भस्म

पत्नी प्रेम में लगाते हैं शिव शरीर पर भस्म

शुद्ध सनातन धर्म में पत्नी प्रेम में लगाते हैं शिव शरीर पर भस्म बिना गृहस्थ आश्रम के मुक्ति को असंभव बताया गया है । यहां तक कि ज्यादातर ईश्वरीय सत्ताओं को भी विवाहित दिखाया गया है । सनातन धर्म में पत्नी के प्रति प्रेम को उच्च आदर्श के रुप में दिखाया गया है । भगवान श्री राम ने अपनी पत्नी और माता सीता के लिए समुद्र पार कर रावण की कैद से उन्हें छुड़ाया था ।शिव और सती का अमर प्रेम :

पत्नी प्रेम में लगाते हैं शिव शरीर पर भस्म

जब माता सती ने खुद को किया भस्म :

पुराणों की मान्यता के अनुसार जब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माता सती ने खुद को भस्म कर लिया था तब भगवान शिव उनके मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रम्हांड में तांडव करने लगे थे । ऐसे में सृष्टि का संहार तय दिखने लगा तब सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे भगवान शिव के मोह को भंग करने के लिए प्रार्थना की ।

शिव और सती का अमर प्रेम : भगवान शिव को भी अपनी पत्नी मां सती और मां पार्वती के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है । महादेव शिव माता सती से इतना प्रेम करते थे कि उनके लिए वो सृष्टि का संहार तक करने के लिए तांडव करने लगे थे ।

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विष्णु ने तोड़ा शिव को मोह :

रघुवंशम के अनुसार एक बार कुश अपने महल में सोये हुए थे तो रात के अंधेरे में एक स्त्री उनके सामने आई । कुश ने उनका परिचय पूछा तो उस स्त्री ने कहा कि वो अयोध्या की अधिष्ठात्री देवी हैं । श्री राम के जाने के बाद अयोध्या पूरी तरह से स्वामीविहीन हो गई है और उसकी दुर्दशा हो गई है । अयोध्या की देवी ने कुश से वापस अयोध्या को बसाने के लिए निवेदन किया। कुश वापस अयोध्या आते हैं और फिर से अयोध्या को बसाते हैं। एक बार फिर अयोध्या वापस अपने वैभव में लौट जाती है । कुश सरयू नदी के अंदर रहने वाले नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी से विवाह करते हैं और न्यायपूर्वक शासन चलाने लगते हैं ।

भस्म लगाने की दार्शनिकता :

भगवान शिव के शरीर पर लगे भस्म के कई दार्शनिक मायने भी हैं । ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शरीर का यह भस्म शरीर की नश्वरता को दर्शाता है । भगवान शिव ही संहार के कारक हैं । वही मृत्यु के आदि देवता हैं । हमारी मृत्यु के बाद हमारी राख ही अवशेष के रुप में बच जाती है । इसे ही शिव धारण कर यह संदेश देते हैं कि यह जीवन नश्वर और क्षणिक है ।

भस्म लगाने का वैज्ञानिक तर्क :

इसका एक वैज्ञानिक कारण भी दिया जाता है । कहा जाता है कि शरीर पर राख लगाने से शरीर के सारे रोम छिद्र बंद हो जाते हैं और गर्मी और ठंडक का अहसास खत्म हो जाता है । चूंकि शिव कैलाश जैसे ठंडे स्थान पर निवास करते हैं इसीलिए अपने शरीर को गर्म रखने के लिए वो शरीर पर भस्म लगाते हैं ।

शिव अपने शरीर को गर्म रखने के लिए सिर्फ भस्म ही नहीं लगाते बल्कि कई अन्य उपाय भी करते हैं । जैसे वो धतूरा खाते हैं, भांग पीते हैं। इन सबका सीधा संबंध शरीर के तापमान नियंत्रण से माना जाता है । शिव जी का आसन भी बाघ की छाल से बना है । बाघ की छाल तापमान को नियंत्रित करती है और आसन को गर्म रखती है। भगवान भोलेनाथ नीलकंठ भी कहे जाते हैं। क्योंकि उन्होंने ज्वाला से भरे हलाहल विष का पान किया था । इस विष की गर्मी भी उन्हें कैलाश में गर्म रखती है ।

लेकिन भस्म का वैज्ञानिक संबंध के साथ – साथ उनके पत्नी प्रेम से ही है । भोलेनाथ अपने आराध्य श्री राम की तरह ही अपनी पत्नी के प्रेम के लिए सदियों से विख्यात रहे हैं ।

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