विश्वामित्र-मर्यादापुरुषोत्तम ram

श्री राम के महान गुरु विश्वामित्र

शुद्ध सनातन धर्म में गुरु को ईश्वर के तुल्य माना गया है। गुरु वो होते हैं जो एक सामान्य इंसान को ही नहीं अवतारी पुरुष को भी उनकी ईश्वरीय सत्ता का साक्षात्कार करा सकते है। यही वजह है कि जब भगवान विष्णु ने भी धरती पर श्री राम और श्री कृष्ण के रुप में अवतार लिया तब उन्हें भी गुरु के ज्ञान की आवश्यकता पड़ी। श्री राम के जीवन में वशिष्ठ, विश्वामित्र, अत्रि, भारद्वाज और अगस्त्य जैसे ऋषि तुल्य गुरुओं का बहुत बड़ा महत्व है। विशेषकर गुरु विश्वामित्र ने युवक श्री राम को भविष्य के एक महानतम योद्धा और मर्यादापुरुषोत्तम बनाने में सबसे ज्यादा योगदान दिया।

गुरु विश्वामित्र और शिष्य श्री राम :

वाल्मीकि रामायण में ही नहीं लगभग सभी राम कथाओं में विश्वामित्र के द्वारा श्री राम को अपना शिष्य बना कर उन्हें योद्धा बनाने की कथा आती है । प्रसंग के अनुसार विश्वामित्र के यज्ञ का लगातार ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे राक्षस विध्वंस कर रहे थे। ये सभी राक्षस रावण के सेना के अग्रभाग थे। रावण के राक्षसों ने अयोध्या और मिथिला के निकट तक रावण का राज्य कायम कर लिया था और वो लगातार ऋषियों का वध कर रहे  थे। रावण के साम्राज्य को नष्ट करने और ऋषियों की रक्षा करने के लिए विश्वामित्र ने अयोध्या के राजकुमार श्री राम को अपना शिष्य बनाने का निश्चय कर लिया।

विश्वामित्र और दशरथ का संवाद :

राम कथा के प्रसंग के अनुसार विश्वामित्र दशरथ के दरबार में आते हैं और उनसे राक्षसों को मारने के लिए श्री राम को दशरथ से मांगते हैं। दशरथ श्री राम के प्रति बहुत मोहित थे । वर्षों के इंतज़ार के बाद उनके घर संतान हुई थी । श्री राम की उम्र भी उस वक्त सिर्फ 12 वर्ष की थी । दशरथ चिंतित हो उठते हैं कि महज 12 साल का उनका बेटा रावण की सेना के राक्षसों से कैसे लड़ेगा । वो मना कर देते हैं। ऐसे में विश्वामित्र क्रोधित हो उठते हैं। तब रघुकुल के राजगुरु वशिष्ठ दशरथ को समझाते हैं और कहते हैं कि विश्वामित्र पर भरोसा रखें । वो श्री राम को एक महान योद्धा बना देंगे। तब दशरथ तैयार होते हैं और श्री राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज देते हैं। इसके बाद श्री राम की महान यात्रा शुरु होती है जिसमें एक राजकुमार एक महान योद्धा और ईश्वरीय सत्ता के रुप में स्थापित हो जाते हैं।

दुष्ट नारी के वध से शुरु होती है श्री राम की महान यात्रा :

विश्वामित्र सबसे पहले श्री राम को एक नारी ताड़का का वध करने के लिए कहते हैं। श्री राम का आदर्श था कि वो किसी स्त्री का वध नहीं करेंगे । तब विश्वामित्र उन्हें समझाते हैं कि ताड़का ने नारी के गुणों का त्याग कर दिया है और वो अब महज एक क्रूर राक्षसी है । विश्वामित्र समझाते हैं कि गो और ब्राह्म्णों की रक्षा करने के लिए किसी दुष्ट नारी का वध भी पाप नहीं है । तब गो और ब्राह्म्णो की रक्षा के लिए ताड़का का वध करते हैं।

श्री राम को दिव्यास्त्र प्रदान करना :

श्री राम के द्वारा ताड़का का वध करने के बाद रावण वध की योजना पर विश्वामित्र कार्य शुरु कर देते हैं। दरअसल ताड़का के वध के बाद ही श्री राम की महानता और विराटता प्रगट हो जाती है। इंद्र और कई देवता विश्वामित्र से आग्रह करते हैं कि वो भविष्य में रावण के साथ राम के होने वाले युद्ध के लिए उन्हें तैयार करना शुरु कर दें। इसके बाद विश्वामित्र श्री राम को दिव्यास्त्र प्रदान करते हैं। विश्वामित्र श्री राम को सबसे पहले बला और अतिबला शक्ति प्रदान करते हैं। बला और अतिबला शक्ति से श्री राम अपराजेय हो जाते हैं। उन्हें भूख प्यास और निद्रा से जीत प्राप्त हो जाती है । विश्वामित्र श्री राम को ब्रम्हास्त्र, पशुपतास्त्र, सुदर्शन चक्र , वज्र आदि चलाने की शिक्षा देते हैं और श्री राम को सारे दिव्यास्त्र प्रदान कर देते हैं।

श्री राम के द्वारा अहिल्या का उद्धार :

मारीच को घायल और सुबाहु का वध करवाने के बाद विश्वामित्र श्री राम को गौतम ऋषि के आश्रम ले जाते हैं। वहां शापित अहिल्या का उद्धार करवा कर श्री राम की दैवी शक्ति से विश्व का परिचय करवाते हैं। इससे पहले श्री राम के द्वारा ऐसी कोई भी दैवी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया गया था । अहिल्या के उद्धार के जरिए विश्व को ये पता चलता है कि श्री राम कोई सामान्य वीर पुरुष नहीं हैं बल्कि वो पहले से तय नारायण के अवतार हैं।

धनुष भंग और श्री राम के अवतरण की घोषणा :

विश्वामित्र श्री राम को मिथिला ले जाते हैं जहां भगवान शिव का महान धनुष रखा था । इस धनुष को आज तक कोई भी देवता, यक्ष, गंधर्व , मनुष्य या राक्षस नहीं उठा पाया था । लेकिन श्री राम धनुष को उठा कर तोड़ देते हैं। इस धनुष भंग के बाद माता सीता से श्री राम का विवाह होता है । लेकिन इससे भी बड़ी बात यह साबित होती है कि श्री राम विष्णु के अवतार हैं क्योंकि इसे भगवान शिव, माता जानकी और विष्णु के सिवा कोई भी उठा नही सकता था । इसके बाद भगवान विष्णु के पूर्व अवतार भगवान परशुराम आते हैं। लेकिन भगवान श्री राम के तेज के सामने परशुराम भी पराजित हो जाते हैं। इसके बाद ही यह स्पष्ट हो जाता है कि अब रावण का वध करने के लिए विष्णु का अवतरण हो चुका है और अब परशुराम जी का युग समाप्त हो चुका है ।

गुरु विश्वामित्र और श्री राम की यात्रा :

कोई भी गुरु अपने शिष्य में वो सारी संभावनाएं देख लेता है जिसकी उसे दरकार होती है। विश्वामित्र यह जानते थे कि श्री राम विष्णु के अवतार हैं और खुद श्री राम ने इसे कभी प्रगट नहीं किया है । सारे देवताओ को भी यह चिंता थी कि रावण का वध कैसे होगा। क्या श्री राम सच में विष्णु के वही अवतार हैं जिन्हें रावण को मारना था । ताड़का, सुबाहु , मारीच पर श्री राम के विजय से उनके महान योद्धा होने का प्रमाण मिला, अहिल्या से उनके दिव्य होने का पता चलता है और धनुष भंग होने से सबको पता चल गया कि अब रावण का संहार निश्चित है । यही विश्वामित्र की एक गुरु के रुप में श्री राम के जीवन में सबसे बड़ी भूमिका थी। यही विश्वामित्र का संसार को गायत्री मंत्र देने के बाद का सबसे बड़ा योगदान भी है ।

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