शुद्ध सनातन धर्म में नारियों को पूज्य बताया गया है , नारियों के अंदर शक्ति का वास बताया गया हैनारियां अगर निष्ठा पूर्वक ईश्वर की भक्ति करें तो ईश्वर की कृपा सबसे पहले उन्हें ही प्राप्त होती हैं
कौन हैं सावित्री, क्यों किया सत्यवान से विवाह :
मद्र देश के राजा अश्वपति को कोई संतान नहीं थी, महान तपस्या के बाद देवी सावित्री ( ब्रम्हा की पत्नी ) उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लेती हैं , जब सावित्री विवाह योग्य होती हैं तो वो सत्यवान नामक एक राजकुमार का वरण करती हैं , सत्यवान के पिता का राज्य शत्रुओं के द्वारा छीन लिया जाता है सत्यवान अपने माता- पिता के साथ वन में रहते हैं , नारद जी के द्वारा सावित्री को यह बताया जाता है कि सत्यवान अल्पायु हैं , एक दिन सत्यवान पेड़ पर लकड़ी काटने चढ़ते हैं तो बीमार हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है , जब यमराज सत्यवान की आत्मा को ले जाने के लिए आते हैं तो सावित्री भी उनके पीछे- पीछे चलने लगती हैं , जब यमराज सावित्री को बताते हैं कि सत्यवान को अब वापस जीवित नहीं किया जा सकता तब भी अपना हठ नही छोड़ती हैं
पत्नी परिवार का केंद्र है :
शुद्ध सनातन धर्म में पत्नी को परिवार की ईकाई माना गया है, वही पूरे परिवार का कल्याण कर सकती हैं, बिना गृहस्थ आश्रम का पालन किये महान से महान आत्मा को भी मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती हैं, पत्नी न केवल पुरुष के लिए बल्कि उसके माता- पिता और पुत्र- पुत्रियों के कल्याण की भी कारण होती है –
यमराज ने दिये सावित्री को तीन वरदान :
- ऐसे में यमराज सावित्री को सत्यवान की आयु को छोड़कर तीन वरदान मांगने के लिए कहते हैं,
- पहला वरदान यह मांगती है कि उसके सास और श्वसूर जो कि अंधे थे उनके आंखो की रोशनी लौट जाए !
- दूसरा वरदान यह मांगती है कि उसके सास और श्वसुर को उनका राज्य वापस मिल जाए. !!
- यमराज से तीसरा वरदान यह मांगती है कि वो सौ संतानों की माता बने और सदा सौभाग्यशाली रहे .!!!
कैसे फिर से जीवित हुआ सत्यवान :
यमराज पहले के दोनो वरदान तो दे देते हैं लेकिन तीसरे वरदान को देने में समस्या यही आती है कि बिना अपने पति के सावित्री को संतान कैसे होगी , ऐसे में वो सत्यवान को वापस जीवनदान दे देते हैं, इस प्रकार सावित्री न केवल अपने पति को फिर से जीवन देने में सफल होती हैं बल्कि अपने सास- श्वसुर का भी कल्याण कर देती हैं
सावित्री हैं वंदनीया नारी :
सावित्री के इस महान कार्य के बाद से वो सनातन धर्म में वंदनीय नारी बन जाती हैं , उनके इस कार्य के स्मरण में ही सनातन धर्म की नारियां प्रत्येक वर्ष वट सावित्री व्रत का पूजन करती हैं , सावित्री के इस प्रयास से शुद्ध सनातन धर्म की नारियों के महान आदर्श की स्थापना होती है, सनातन धर्म की नारियां न केवल अपने पति के कल्याण के लिए ही कार्य करती हैं बल्कि वो पूरे परिवार की धुरी होती हैं