श्री राम कथा में प्रभु श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप मे दिखाया गया है। शुद्ध सनातन धर्म में श्री हरि विष्णु पृथ्वी पर धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिए श्री राम के रुप में अवतरित हुए थे । लेकिन श्री राम के जीवन के कुछ ऐसे प्रसंग भी हैं जिन पर कई सवाल उठाए जाते रहे हैं । इसमें माता सीता की अग्नि परीक्षा, शूर्पनखा के नाक कान काटने का प्रसंग और वालि को श्री राम के द्वारा छिप कर मारे जाने की घटना सबसे ज्यादा विवादित रहे हैं।
वालि कौन था :
रामायण के सबसे ज्यादा वीर पात्रों में एक रहा है, वालि को भगवान इंद्र का पुत्र या अंशावतार माना जाता रहा है । वालि का जन्म त्रेता युग में न होकर सतयुग में हुआ था, कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान बड़ी भूमिका थी ।
कहा जाता है कि जब देवता और असुर समुद्र मंथन के दौरान मंदार पर्वत को नागराज वासुकि की रस्सी के जरिए हिलाने में असमर्थ साबित हो रहे थे तब वालि ने ही मंदार पर्वत को अपनी भुजाओं से एक ही बार में मथ डाला था ।
उसके इसी पराक्रम की वजह से समुद्र मंथन के दौरान निकली तारा पत्नी के रुप में मिली थी । वालि की पत्नी तारा भी समुद्र मंथन से ही निकली थीं और देवताओं के पुरोहित वृहस्पति ने तारा को अपनी पुत्री के रुप में अंगीकार किया था । लेकिन जब वालि ने अपना पराक्रम दिखाया तो देवताओं ने तारा को वालि को पत्नी के रुप में सौंप दिया था ।
अतुलित शक्ति से संपन्न था वालि :
कहा जाता है कि वालि को उसके पिता इंद्र ने एक सोने का हार प्रदान किया था इस हार को पहनने के बाद उसके सामने जो भी युद्ध करने के लिए आता उसका आधा बल उसे प्राप्त हो जाता था और अपने शत्रु को परास्त कर देता था ।
- वालि ने दुदुंभि नामक राक्षस का वध किया था । दुदुंभि ऐसा वीर राक्षस था जिसकी शक्ति के सामने स्वयं समुद्र और हिमालय ने भी हार मान ली थी । उसी दुदुंभि का वध वालि ने आसानी से कर दिया था ।
- उत्तर रामायण की कथा के अनुसार वालि ने रावण को अपनी बगल में दबा कर रखा था और बाद में रावण के द्वारा क्षमा मांगने पर उसे रिहा किया था
- वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड में सुग्रीव वालि के पराक्रम का वर्णन करते हुए यह भी बताते हैं कि वालि एक ही दिन में चारों समुद्रों के तटों पर जाकर भगवान सूर्य की पूजा करता था ।
वालि का वध क्यों हुआ :
- माता सीता की अग्नि परीक्षा की तरह ही श्री राम द्वारा वालि को मारने का प्रसंग रामायण के सबसे कठिन और आलोचनात्मक प्रसंग है। श्री राम जो विष्णु के अवतार थे। वीरों में सर्वोत्तम थे उन्होंने बालि को छिप कर क्यों मारा ।
- क्या वालि श्री राम से भी ज्यादा वीर था। क्या श्री राम को सीधे युद्ध में नहीं मार सकते थे। श्री राम द्वारा किया गया ये कृत्य रामायण के सबसे कठिन पलों में से एक है।
- वाल्मीकि जहां वालि के आरोपों को सीधे -सीधे सामने रख देते हैं वहीं तुलसीदास जी अपने रामचरितमानस में इस घटना को भी दैवीय रुप दे देते हैं। शायद तुलसी के लिए भी इसे न्यायोचित्त ठहरानें में मुश्किल साबित हुआ हो।
श्री राम का भक्त था :
जिन राम को खर- दूषण, रावण -कुंभकर्ण जैसे महावीर राक्षसों को मारने में जरा भी मुश्किल नहीं हुई। श्री राम ने इन सबको सीधी लड़ाई में मार डाला वहीं वानरराज़ वालि को उन्होंने पेड़ से छिप कर मारा। लेकिन देखिए तुलसीदास जी कैसे इसे भी एक दैवीय रुप दे देते हैं। राम के द्वारा छिप कर मारने पर भी उनकी वीरता पर कोई प्रश्न नहीं उठाता बस यही कह देता है कि प्रभु मेरे से ज्यादा प्यारा आपके लिए सुग्रीव कैसे हो गया-
मै बैरी सुग्रीव प्यारा, अवगुन कवन नाथ मोहि मारा !
यहां वालि खुद में ही दोष देखता है कि उसे श्री राम की सेवा का मौका नहीं मिल पाया।
क्या दोष का वालि का :
श्रीराम उसे कठोरता से जवाब देते हैं –
अनुज,बधू भगिनि सुत नारी। सुनु सठ कन्या सम ए चारी।
इन्हीं कुदृष्टि बिलोकत जोई। ताहु बधे कछु पाप न होई।।
अर्थ : अपने छोटे भाई की पत्नी, अपनी बहिन, और पुत्र की पत्नी पर जो भी खराब दृष्टि रखता है उसे मारने में कोई पाप नहीं लगता है
इसके बाद भी तुलसी ने वालि को श्री राम की भक्ति करते हुए ही दिखाया है-
प्रभु अजहूं मैं पापी अंतकाल गति तोरी।
अर्थ : वालि लगातार श्री राम की स्तुति करता रहता है।
श्री राम से प्रश्न :
जबकि वाल्मीकि रामायण में वालि और श्री राम का संवाद काफी तीखा रहा है। सीधे- सीधे श्री राम पर कायरता का आरोप लगाता है और उनके द्वारा छिप कर मारने को गलत ठहराता है-
त्वम् नराधिपतेः पुत्रः प्रथितः प्रिय दर्शनः !
पराङ्मुख वधम् कृत्वा को अत्र प्राप्तः त्वया गुणः !!
यदहम् युद्ध सम्रब्धः त्वत् कृते निधनम् गतः ! ४-१७-१६
अर्थ : हे राम आप प्रिय दिखने वाले राजकुमार हैं। लेकिन देखिए मैं जब किसी और के साथ युद्ध कर रहा था तो आपकी वजह से मुझे कैसी मृत्यु प्राप्त हो रही है। आपको मुझे मार कर क्या मिल गया वो भी ऐसे वक्त में जब मैं आपके सामने भी नहीं था
न त्वाम् विनिहत आत्मानम् धर्म ध्वजम् अधार्मिकम् !
जाने पाप समाचारम् तृणैः कूपम् इव आवृतम् !! १-१७-२२
श्री राम पर वालि का आरोप :
अर्थ : मैं नहीं जानता था कि आप धर्म की ध्वजा लेकर अधर्म करेंगे। मैं नहीं जानता था कि आप वैसे कुएं के समान होंगे जिन्हें सरकंडो से ढंक कर रखा गया है
सताम् वेष धरम् पापम् प्रच्छन्नम् इव पावकम् !
अर्थ : मैं नहीं जानता था कि आप एक महान आत्मा के रुप में एक पापी सिद्ध होंगे
वयम् वनचरा राम मृगा मूल फल अशनाः !
एषा प्रकृतिर् अस्माकम् पुरुषः त्वम् नरेश्वरः !! १-१७-३०
अर्थ : हे राम हमारी और आपकी कोई तुलना ही नहीं है। हम वानर हैं। जंगल में विचरते हैं और कंद मूल और फल खाकर रहते हैं, जबकि आप मानव शहर में रहते हैं और अच्छा भोजन खाते हैं। हमारा स्वभाव है कि हम मारते हैं या मर जाते हैं लेकिन आपने जो ये कार्य किया है ये जानवरों के द्वारा भी नहीं किया जाता है और ये किसी भी प्रकार से एक राजकुमार के लिए गलत है
हत्वा बाणेन काकुत्स्थ माम् इह अनपराधिनम् !
किम् वक्ष्यसि सताम् मध्ये कर्म कृत्वा जुगुप्सितम् !! १-१७-३५
अर्थ : हे राम आप अपने पूर्वजों को क्या मुंह दिखाएंगे कि आपने मुझ जैसे निस्सहाय को अपने बाणों से छिप कर मारा है।
अधार्यम् चर्म मे सद्भी रोमाणि अस्थि च वर्जितम् !
अभक्ष्याणि च मांसानि त्वत् विधैः धर्मचारिभिः !! १-१७-३८
अर्थ : हे राम न तो हम वानरों की हड्डी और न ही चमड़ा किसी काम का होता है और न ही हमारा मांस किसी के खाने के काम आता है फिर भी आपका मुझे मारने का कारण क्या है
श्री राम का वालि को जवाब :
सीधे आरोप वाल्मिकि रामायण को पढ़ने के बाद किसी का भी ह्द्य करुणा और क्षोभ से भर सकते हैं। इसके बाद श्री राम जो उत्तर वालि को देते हैं वो लगभग वही है जो तुलसी दास ने रामचरितमानस में दिए हैं-
यवीयान् आत्मनः पुत्रः शिष्यः च अपि गुणोदितः !
पुत्रवत् ते त्रयः चिंत्या धर्मः चैव अत्र कारणम् !! ४-१८-१४
अर्थ : छोटा भाई, अपना पुत्र और अच्छे गुणों वाला शिष्य पुत्र के समान होता है।
तत् एतत् कारणम् पश्य यत् अर्थम् त्वम् मया हतः !
भ्रातुर् वर्तसि भार्यायाम् त्यक्त्वा धर्मम् सनातनम् !! ४-१८-१८
अर्थ : तुमने पुत्री के समान अपने छोटे भाई की पत्नी के साथ दुर्व्वहार किया है, यही वजह है कि मैंने तुम्हे मारा है
न मे तत्र मनस्तापो न मन्युः हरिपुंगव !
वागुराभिः च पाशैः च कूटैः च विविधैः नराः !! ४-१८-३७
प्रतिच्छन्नाः च दृश्याः च गृह्णन्ति सुबहून् मृगान् !
अर्थ : वालि तुम एक जानवर हो। जानवरों का शिकार छिप कर भी किया जाता है।
वालि को होता है अपनी गलतियों का अहसास :
इसके अलावा श्री राम कई अन्य बातों से भी जवाब देते हैं। रामचरितमानस की तरह वाल्मीकि रामायण में भी श्री राम की बातों को सुनने के बाद वालि को अपनी गलतियों का अहसास होता है। वो श्री राम से अपने किए के लिए क्षमा मांगता है।
वालि का अन्यायी स्वभाव :
वालि स्वंय न्योचित्त युद्ध नहीं करता था । उसके पास इंद्र का दिया एक सोने का हार था जिसे पहन कर वो युद्ध करता था । उस हार को पहनते ही वालि के पास शत्रु की आधी शक्ति उसके पास आ जाती थी और शत्रु बलहीन हो जाता था । ऐसे में वालि किसी भी वीर के साथ एकतरफा युद्ध करता था । जो खुद बराबरी का युद्ध नहीं करता था उसकी न्याय की दुहाई का कोई मतलब नहीं रह जाता है । वो सुग्रीव जैसे अपने से कमजोर के खिलाफ भी युद्ध के लिए सोने की हार पहन कर ही उतरा था ।
वालि से युद्ध में श्री राम की मर्यादा :
श्री राम और महावीर हनुमान दोनों ने ही देवताओं के वरदानों की मर्यादाओं की रक्षा की । जब महावीर हनुमान जी पर मेघनाद ने ब्रम्हास्त्र चलाया था ताकि वो अशोक वाटिका में हनुमान जी को पकड़ सके, तब हनुमान जी ने ब्रम्हास्त्र की मर्यादा रखी थी । हालांकि खुद महावीर हनुमान जी को ब्रम्हा जी से यह वरदान मिला था कि उन पर किसी भी प्रकार के ब्रम्हास्त्र का कोई असर नहीं होगा । फिर भी जनमानस में ब्रम्हास्त्र की प्रतिष्ठा के लिए उन्होंने मेघनाद द्वारा चलाए गए ब्रम्हास्त्र का सम्मान किया और मूर्छित हो गए –
ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार॥
सुंदरकांड, रामचरितमानस
ठीक इसी प्रकार श्री राम को पता था कि इंद्र के द्वारा दिए गए चमत्कारी सोने के हार को पहन कर युद्ध कर रहा है । इस सोने के हार में इंद्र का वरदान छिपा था । अब या तो श्री राम वालि को सीधे युद्ध में मारते और इंद्र के इस वरदान की मर्यादा भंग करते या फिर वालि को छिप कर मारते और इंद्र के वरदान का सम्मान करते । श्री राम ने इंद्र के मर्यादा की रक्षा की और गैरबराबरी का युद्ध कर रहे को छिप कर ही मारने का प्रयास किया ।
श्री राम ने नारी मर्यादा की रक्षा की :
इंद्र के वरदान की रक्षा करते हुए अन्यायी वालि का वध करने के लिए श्री राम ने उसे छिप कर जरुर मारा । श्री राम हमेशा मर्यादाओं की स्थापना के लिए जाने जाते हैं। श्री राम ने हमेशा उन पुरुषों का वध किया जिन्होंने किसी स्त्री की मर्यादा को भंग करने के लिए अधर्म किया था। चाहे वो वालि हो या रावण दोनों ही स्त्री की मर्यादा को भंग करने के लिए कुख्यात थे। श्री राम नारी की मर्यादा को फिर से स्थापित करने आए थे। तभी उन्होंने अहिल्या, तारा, और स्वयं अपनी पत्नी माता सीता की मर्यादाओं को फिर से स्थापित करने के लिए रावण और वालि का वध किया ।
दरअसल वो युग मर्यादाओं की रक्षा के लिए ही था यही वजह है कि श्री राम ने भी वरदान की मर्यादा के लिए ही बालि को छिप कर मारा।