कौन हैं माँ त्रिपुरसुंदरी? : माँ सती से उत्पन्न हुई आद्या शक्ति के 10 स्वरुपों को 10 महाविद्याएं भी कहा जाता है। इन 10 महाविद्याओं में महाकाली(माँ काली) और मां तारा के बाद तीसरी महाविद्या के रुप में माँ त्रिपुर सुंदरी की अराधना की जाती है। जहां महाकाली(माँ काली) सृष्टि की क्रियात्मक शक्ति का प्रतीक हैं और सृष्टि के निर्माण के पहले और संहार के बाद उपस्थित रहती हैं, वहीं माँ तारा पंच तत्वों के द्वारा सृष्टि के निर्माण का प्रारंभ करती हैं
तीनों लोकों का निर्माण करती हैं माँ त्रिपुर सुंदरी :
इसके बाद तीनों लोकों के निर्माण की बारी आती है, जिसे माँ त्रिपुर सुंदरी पूरा करती हैं। माँ त्रिपुर सुंदरी को माँ ललिता, माँ कामाक्षी और माँ राजराजेश्वरी भी कहा जाता है, क्योंकि वही तीनों लोकों को अपने माया के वशीभूत कर उनका निर्माण, संचालन और संहार करती हैं। माँ त्रिपुर सुंदरी को सदाशिव भगवान की नाभि से उत्पन्न दिखाया गया है और जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव के उत्पन्न होने का कारण भी बनती हैं। माँ त्रिपुर सुंदरी के सिंहासन के नीचे पंच देवताओं – ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सरस्वती और लक्ष्मी को दिखाया गया है जो अपने मस्तक पर माँ ललिता के सिंहासन को धारण करते हैं।

माँ त्रिपुरसुंदरी प्रलय की साक्षी हैं :
‘ललितासहस्त्रनाम’ में माँ त्रिपुरसुंदरी को ‘प्रलय तांडव साक्षिणि’ भी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि वो प्रलय की साक्षी रहती हैं। उनके ही नाखूनों से विष्णु को उत्पन्न बताया गया है। वही प्रलय के बाद पुन सृष्टि निर्माण की क्रिया में पुनः ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गणेश और सभी देवताओं को जन्म देती हैं।
माँ त्रिपुर सुंदरी ने भंडासुर का वध किया :
माँ त्रिपुर सुंदरी को भंडासुर दैत्य का संहारक भी कहा जाता है । भण्डासुर दैत्य कामदेव के भस्म होने के बाद उसकी राख से पैदा हुआ था। इसका अर्थ ये है कि वो काम भावना जो कि संसार के निर्माण और प्रजनन का कारक है, उसके खत्म होने के बाद जो विरक्ति स्वरुप भण्डासुर का जन्म होता है, उसे मार कर फिर से प्रजनन की क्रिया को शुरु करती है, जिससे संसार एक बार फिर से जन्म लेता है। माँ त्रिपुर सुंदरी मन, बुद्धि और चित्त की देवी हैं। उनकी अराधना से भक्तों को तीनों लोकों की सभी सिद्धियां मिल जाती हैं।