भगवद्गीता, जो भगवान की साक्षात वाणी है, जो मानव मात्र के कल्याण के लिए भगवान ने स्वयं पृथ्वी पर अपनी योगमाया से प्रकट होकर अपने अनन्य सखा अर्जुन को बताई ताकि दुनिया को परमात्मा के होने का संदेश दिया जा सके, तत्व गीता में भगवान के संदेशों व संकेतों को समझना आसान नहीं है इसे वही समझ सकता है जो तत्व गीता को बार बार पढ़े और वेदों को जानता हो। तत्व गीता को पढ़ने के लिए मन व बुद्धि का स्थिर होना आवश्यक है क्योंकि भगवान के संदेश अत्यंत गूढ़ व रहस्य से भरे है। भगवान के एक एक शब्द हजार अर्थों को जन्म देतें हैं और जो व्यक्ति सही कड़ी को पकड़ लेता है वो तर जाता है,उसे भगवान के संदेश साफ समझ में आ जाते हैं, उसे तत्व का ज्ञान हो जाता है, उसे भगवत् प्राप्त का मार्ग मिल जाता है। कई बार ऐसा भी होगा कि आप भगवान के संदेशों व रहस्यों को नहीं समझ पाए लेकिन उसका हल भी भगवान ने बताया है. चौथे अध्याय में भगवान कहते हैं
तव्दिध्दि रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानीनस्तत्तवदर्शिन:
तू इस ज्ञान को तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ, उनको भलिभांति दण्डवत्-प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे परमात्मा तत्व को भलीभांति जानने वाले ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगें।
हम सौभाग्यशाली हैं कि तत्व गीता के माध्यम से हमें भगवान के उस गोपनीय ज्ञान की जानकारी हो जाएगी जिसे जानने के लिए दिव्य दृष्टि की आवश्यकता होती है। अर्जुन तो साक्षात नारायण के रुप ही थे लेकिन उनको भी भगवान का तत्व ज्ञान तब मिला जब भगवान ने उन्हें दिव्य दृष्टि दी। अब भगवान की यही दिव्य दृष्टि तत्व गीता के रुप में हम सबको सहज उपलब्ध है।
नीचे दिए गए टेबल में हर अध्याय और उसमे उल्लेखित विशेषताओं का लिंक दिया गया है जिसे आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं :