गुरु

श्रीकृष्ण ही हैं सबके गुरु

शुद्ध सनातन धर्म में गुरु की महिमा को गोविंद से जोड़ा गया है और कहा गया है कि –

गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागुं पाय ।
बलिहारी गुरु आपनौं जिन गोविंद दियो बताय ।।

अर्थात : भक्त संशय में है कि वो गुरु और गोविंद दोनों को सामने खड़ा देख किसको पहले प्रणाम करे । ऐसे में गुरु की ही बलिहारी है और गुरु ही गोविंद से पहले हैं ऐसा गुरु कहते हैं। लेकिन अगर गोविंद ही गुरु भी हों तब ?

गुरु और गोविंद अभिन्न हैं :

सनातन धर्म में गुरु और गोविंद को एक दूसरे से अभिन्न माना गया है । कहा गया है कि बिन गुरु ज्ञान मिलना असंभव हैं । हरेक व्यक्ति को ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की शरण में जाना चाहिए । लेकिन अगर ऐसे में किसी को यह समझ में नहीं आए कि वो किसे अपना गुरु मानें तो गोविंद ही उसे सच्चे गुरु के पास ले जाने का रास्ता बताते हैं ।अर्थात गुरु के पास ले जाने वाले सबसे बड़े गुरु भी गोविंद ही हैं । यही वजह है कि गोविंद अर्थात श्री कृष्ण को ही जगद्गुरु कह कर उनकी वंदना की गई है –

वासुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् ।
देवकी परमानंद कृष्णम् वन्दें जगद् गुरुम ।।

श्रीमद् भगवद्गीता में है ज्ञान :

आखिर ऐसा क्यों है कि श्री कृष्ण को ही जगद् का सबसे महान गुरु कह कर वंदना की गई है तो इस प्रश्न का जवाब भी श्री मद् भगवद्गीता के तीसरे अध्याय के इन श्लोकों से मिलता है –

न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥


अर्थात : हे पृथापुत्र ! तीनों लोकों में मेरे लिये कोई भी कर्तव्य शेष नही है, और न ही किसी वस्तु का अभाव है न ही किसी वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा है, परंतु इसके बाद भी मैं कर्तव्य समझ कर कर्म करने में लगा रहता हूँ ।  

यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः ।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥

अर्थात : हे पार्थ ! यदि मैं नियत कर्मों को सावधानी से न करूँ तो यह निश्चित है कि सभी मनुष्य मेरे ही मार्ग का ही अनुसरण करेंगे।

यदि उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्‌ ।
संकरस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः ॥

इसलिए यदि मैं कर्तव्य समझ कर कर्म न करूँ तो ये सभी लोक भ्रष्ट हो जायेंगे तब मैं अवांछित सृष्टि की उत्पत्ति का कारण हो जाऊँगा और इस प्रकार समस्त प्राणियों को नष्ट करने वाला बन जाऊँगा ।  

हम सबके गुरु हैं कृष्ण :

वास्तव में गुरु वही होता है जो मार्ग दिखाए और इसके लिए गुरु को ही पहले उस मार्ग पर चलना होता है । श्रीकृष्ण श्रीमद् भगवद्गीता में एक गुरु की तरह अर्जुन को ज्ञान देते हैं । कर्मपथ का अनुसरण कर उस पर चलने की सलाह देते हैं । गुरु की तरह अर्जुन को ज्ञान,कर्म, और भक्ति का मार्ग बताते हैं । अर्जुन को निष्काम कर्म कर उसे उसके स्वधर्म की याद दिलाते हैं ।

हरेक व्यक्ति अर्जुन की तरह संशय में पड़ा है । सभी को गुरु रुपी कृष्ण मिलते हैं । उसे संशय से सागर को पार कर ईश्वर शरण में ले जाते हैं । ऐसा नहीं है कि सिर्फ कृष्ण सिर्फ द्वापर युग के अर्जुन के लिए आ1ए थे ।वो हम सभी संशय रुपी अर्जुनों के ह्द्य में एक गुरु की तरह वास कर हमें सच्चा मार्ग दिखाते हैं । बस हमें अर्जुन की तरह प्रश्नों को अपने भीतर खड़ा करना है । कृष्ण रुपी गुरु की उदय इन्ही प्रश्नों से होता है । जिस दिन हमारे प्रश्न सत्य मार्ग के लिए खड़े हो जाएंगे हमारे जीवन में भी कृष्ण रुपी गुरु का आगमन हो जाएगा ।

उद्धव के भी गुरु थे कृष्ण :

कृष्ण सिर्फ अर्जुन के लिए गुरु या मार्गदर्शक नहीं हैं । वो गोपियों को प्रेम मार्ग पर चलाते हैं और उद्धव जी के अहंकार के अंधकार को दूर करने के लिए उन्हें गोपियों के मार्ग पर चलाने के लिए उनके पास व्रज भेजते हैं । कृष्ण महाभारत में भीष्म के लिए भी गुरुवत् होते हैं । जब भीष्म शरशय्या पर मरणासन्न होते हैं तब उन्हें वही ज्ञान के द्वारा कष्टों से मुक्त करते हैं । कृष्ण द्रौपदी के सखा ही नहीं गुरु भी हैं। वही उसे हरेक संकटों से बचाते हैं ।

समूचे विश्व के गुरु हैं श्रीकृष्ण :

कृष्ण का दर्शन पूरे विश्व के लिए अप्रतिम है । जब विश्व का पहला अणु बम विस्फोट किया जाता है तो भौतिक विज्ञानी ओपनहेमर ने श्री कृष्ण की प्रेरणा से ही इसे करते हैं और श्री मद् भगवद्गीता का यह श्लोक उद्धृत करते हैं –

ॐ  दिवि सूर्यसहस्रस्य भवेद्युगपदुत्थिता । यदि भाः सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मनः ॥

अर्थात : अगर एक साथ सहस्रो सूर्य भी एक साथ उदित हो जाएं तो कदाचित ही वह परमात्मा के प्रकाश के सदृश होंगे ।

कहा जाता है कि जर्मन चिंतक शॉपेनहॉवर जब निराशावाद से ग्रसित हो गए थे तब उन्हें श्री कृष्ण की गीता से ही आशा का संचार मिला था और वो गीता पढ़ने के बाद उसे सिर पर रख कर नाचने लगे थे ।

आजादी की लड़ाई में कृष्ण का योगदान :

श्री कृष्ण ने ही गुरुवत होकर हमारे स्वतंत्रता संग्राम को निश्चित दिशा दी । अरविंदो घोष के बारे में कहा जाता है कि उन्हें श्री कृष्ण ने दर्शन देकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में पूरी योजना बताई थी । विवेकानंद का वेदांत भी श्रीमद्भगवद्गीता से ही प्रेरित रहा है । महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के जीवन पर श्री मद् भगवद्गीता और श्री कृष्ण का प्रभाव सबसे ज्यादा था । ऐनी बेसेंट, जवाहर लाल नेहरु ऐसे असंख्य नाम हैं जिन्हें गीता से और श्री कृष्ण से प्रेरणा मिली थी ।

विश्व के महान लेखकों इमर्सन, विचारक थेरोयो, अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलिय्म्स और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीवन पर गीता और भगवान श्री कृष्ण के प्रभावों को देखा जा सकता है । श्री कृष्ण जगत के पालक हैं । वो अपने विचारों और कार्यों के द्वारा हमारे संसार को प्रेरित करते रहते हैं और हमें सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्ग दिखाते हैं।

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