सूर्यग्रहण

रामायण और महाभारत में भी हुआ था सूर्यग्रहण

शुद्ध सनातन धर्म के महान ग्रंथो में सूर्यग्रहण के बारे में विस्तार से बताया गया है । ऋग्वेद में सूर्यग्रहण की चर्चा कई बार की गई है । एक ऋचा में इंद्र द्वारा ऋषि अत्रि की सहायता से सूर्य को ग्रहण से बचाने की चर्चा है ।पौराणिक ग्रंथों और महाकाव्यों में भी सूर्यग्रहण का जिक्र आया है ।

सूर्यग्रहण का समुन्द्र मंथन से संबंध :

श्री मद् भागवत में समुद्र मंथन के दौरान भगवान श्री हरि विष्णु के द्वारा राहु का सिर काट लेने की कथा है । राहु का सिर काटने का इशारा सूर्य और चंद्र ही करते हैं । ऐसे में राहु सूर्य और चंद्रमा का शत्रु हो जाता है । राहु द्वारा समय समय पर सूर्य और चंद्र को ग्रसने की वजह से ही सूर्य और चंद्र ग्रहण की बात कही गई है ।

महाकाव्यों वाल्मीकि रामायण और व्यास रचित :

हमारे महान महाकाव्यों वाल्मीकि रामायण और व्यास रचित महाभारत में भी सूर्य ग्रहण का जिक्र आता है । वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड में जब श्री राम से युद्ध करने के लिए खर और दूषण अपनी 14000 सेना के साथ प्रस्थान करते हैं तो कई प्रकार के अपशकुन होते हैं । इन अपशकुनों में सूर्यग्रहण का भी उल्लेख है । जब खर और दूषण युद्ध के लिए निकलते हैं तो उल्काएं गिरने लगती हैं । सियार रोने लगते हैं । आसमान से खून की बारिश होने लगती है। भगवान सूर्य का तेज़ कम पड़ने लगता है । सूर्य के चारो तरफ अंधेरा छाने लगता है –

कबन्धः परिघ आभासो दृश्यते भास्कर अंतिके || ३-२३-११
जग्राह सूर्यम् स्वर्भानुः अपर्वणि महाग्रहः |
प्रवाति मारुतः शीघ्रम् निष्प्रभो अभूत् दिवाकरः || ३-२३-१२

भावार्थ : एक गोलाकार वलय सूर्य के चारो तरफ घिर गया है ।सूर्य तेजहीन हो गए जैसे राहु ने सूर्य को ग्रस लिया हो ।

भगवान शिव को पशुपति कहा गइसके बाद सूर्यकुल तिलक श्री राम और खर में आमना सामना होता है । खर, दूषण और त्रिशरा सहित पूरी सेना का श्री राम अकेले ही संहार कर देते हैं ।या है । सभी देवी – देवताओं के वाहन कोई न कोई पशु -पक्षी हैं ताकि उनका संरक्षण किया जा सके और उनका वध न हो ।

महाभारत में भी इसी प्रकार की एक घटना का उल्लेख है जब सूर्य दिन में ही सबकी नज़रों से गायब हो जाते हैं और चारो तरफ अंधेरा छा जाता है । यह घटना जयद्रध वध के वक्त होती है । जयद्रध को भगवान शिव से यह वरदान था एक दिन वो अर्जुन को छोड़कर बाकि के पांडवों से अपराजित रहेगा । इसी का लाभ उठा कर वो अभिमन्यु की हत्या का कारण बनता है । अभिमन्यु की हत्या का दोषी मानकर अर्जुन यह शपथ लेते हैं कि अगर सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध नहीं करेंगे तो वो अग्नि में प्रवेश कर मृत्यु को अंगीकार करेंगे । जब जयद्रथ और अर्जुन का युद्ध शुरु होता है तब सारी कौरव सेना जयद्रथ के बचाव में उतर जाती है और युद्ध लड़ते -लड़ते शाम होने लगती है । तब श्री कृष्ण कुछ ऐसा करते हैं कि सूर्यास्त से पहले ही सूर्य अदृश्य हो जाते हैं –

ततोसृजत तम: कृष्ण: सूर्यस्यावरणं प्रति,  योगी योगेन संयुक्तो योगीनीश्वरो हरि:

भावार्थ : अर्थात तब भगवान श्री कृष्ण ने सूर्य को छिपाने के लिए अंधकार की सृष्टि की ।

इसके बाद जब जयद्रथ और पूरी कौरव सेना को यह भ्रम हो गया कि सूर्य सच में अस्त हो गए है तो जयद्रथ खाली रह गया । उसी वक्त अर्जुन ने जयद्रथ का वध कर दिया ।इसके बाद सूर्य फिर से दिखने लगते हैं और अस्ताचल की तरफ बढ़ जाते हैं । रामायण में जिस सूर्यग्रहण का उल्लेख मिलता है वो एक आंशिक सूर्यग्रहण जैसा लगता है क्योंकि वहां अंधकार उत्पन्न न होकर सूर्य की रोशनी के कम होने और सूर्य के चारो तरह वलय के बनने की बात है । जबकि महाभारत में जो होता है उससे यही लगता है कि उस वक्त पूर्ण सूर्यग्रहण हो गया था और लगभग पूरी तरह से अंधेरा छा गया था ।

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