सीता के जन्म की कथा

माता सीता के जन्म की कथा

शुद्ध सनातन में जहां श्री राम के जन्म की कथा जगविदित है वहीं माता सीता के जन्म की कथा को लेकर कई रहस्य छिपे हुए हैं। अलग- अलग राम कथाओं में माता सीता के जन्म की कथा अलग-अलग मिलती है। हालांकि एक बात सभी राम कथाओं में समान है कि माता सीता राजा जनक की जन्मना पुत्री नहीं थीं और उन्हें मिथिला के राजा जनक ने हल चलाते वक्त कृषि करते वक्त पाया था । लेकिन इसके बावजूद माता सीता के जन्म की कथा रहस्य से भरी हुई है। 

वाल्मीकि रामायण में माता सीता के जन्म की कथा :

आदि ऋषि वाल्मीकि जी के द्वारा रचित पहली राम कथा जिसे हम रामायण के नाम से जानते हैं, इस ग्रंथ में माता सीता के जन्म की कथा बहुत ही संक्षेप में बताई गई है। वाल्मीकि रामायण के बाल कांड के सर्ग 66 के श्लोक 13 में पहली बार राजा जनक माता सीता के जन्म के बारे में बताते हैं। 

माता सीता के जन्म की कथा और भगवान शिव का महान धनुष :

प्रसंग यह है कि श्रीराम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ वहां प्रत्येक वर्ष होने वाले धनुष उत्सव यज्ञ में गए थे। विश्वामित्र श्रीराम को मिथिला में रखे हुए भगवान शिव के उस महान धनुष के दर्शन कराने ले गए थे, जिस धनुष से उन्होंने प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस किया था। प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती थीं जो भगवान शिव की पत्नी थीं । माता सती ने  अपने पति भगवान शिव का अपमान देख कर वहीं यज्ञ कुंड में योगाग्नि के द्वारा आत्मदाह कर लिया था। माता सती के दाह से क्रोधित भगवान शिव ने अपने श्वसुर प्रजापति दक्ष के यज्ञ का विध्वंस इसी धनुष से किया था। 

वाल्मीकी रामायण की कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति और अन्य देवताओं ने इस यज्ञ का भाग भगवान शिव को देने से इंकार कर दिया था। अपने पति को मिले इसी अपमान को न सह पाने की वजह से माता सती ने जब योगाग्नि से अपने प्राण त्याग दिए थे, तब शिव ने क्रोध स्वरुप इस धनुष को उठाया और देवताओ को चेतावनी थी कि अगर उन्होंने इस यज्ञ का भाग उन्हें समर्पित नहीं किया तो वो सभी देवताओं का वध कर देंगे । 

कैसे मिला राजा जनक को यह शिव धनुष :

देवताओ ने भगवान शिव से क्षमा प्रार्थना की और यज्ञ भाग देने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद भगवान शिव उन देवताओं पर प्रसन्न हो गए और देवताओं को यह धनुष दे दिया। देवताओं ने फिर बाद में यह धनुष राजा जनक के पूर्वज राजा देवव्रत को दे दिया।

हल के फाल ( सीत) से जुड़ा है माता सीता के जन्म का रहस्य :

 इसके बाद राजा जनक विश्वामित्र को माता सीता के जन्म की कथा बताते है। राजा जनक विश्वामित्र से कहते हैं- 

अथ मे कृषतः क्षेत्रं लांगलादुत्थिता मम ||
क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतेति विश्रुता ||

अर्थः बाद में जब मैं एक दिन कृषि के लिए हल से जमीन को जोत रहा था तब मेरे हल से सीत( फाल) से जमीन की मिट्टी के साथ बाहर एक बालिका निकली, चूंकि वह हल के फाल(सीत) से बाहर निकली, इसलिए सीता के नाम से प्रसिद्ध हुई। 

भूतलादुत्थिता सा तु व्यवर्धत ममात्मजा ।
वीर्यशुल्केति मे कन्या स्थापितेयमयोनिजा ।।

अर्थः भूमि के तल से बाहर आई यह बालिका किसी के गर्भ या योनि से उत्पन्न नहीं हुई है इसलिए यह अयोनिजा है । उस बालिका का मैंने अपनी पुत्री की तरह पालन पोषण किया है।

भूतलादुत्थितां तां तु वर्धमानां ममात्मजाम् ।
वरयामासुरागम्य राजानो मुनिपुंगव ।।

अर्थः हे मुनि। मेरी जो पुत्री भूमि से उत्पन्न हुई है , वह जब बड़ी हो गई तो कई राजा उससे विवाह करने के लिए प्रस्ताव लेकर आए।

माता सीता के जन्म का रहस्य राजा जनक बताते हुए यह भी कहते हैं कि चूंकि उनकी पुत्री अयोनिजा है इसलिए दिव्य है। उसका विवाह वो किसी ऐसे वीर से ही करेंगे जो इस धनुष को उठा सकेगा। 

आध्यात्म रामायण में माता सीता के जन्म की कथा :

जहां वाल्मीकि रामायण में माता सीता के जन्म की कथा को एक अलौकिक घटना के रुप से ज्यादा आश्चर्यजनक घटना के रुप में दिखाया गया है वहीं आध्यात्म रामायण में इस घटना को दैवी रुप दे दिया गया है। आध्यात्म रामायण के रचयिता वेद व्यास जी को माना जाता है और यह ब्रम्ह पुराण का उत्तर खंड है।

आध्यात्म रामायण के बाल कांड में माता सीता के जन्म की कथा श्रीराम सीता के विवाह के बाद राजा जनक के द्वारा सुनाई जाती है। राजा जनक यह कथा दशरथ जी के सामने विश्वामित्र और वशिष्ठ को सुनाते हैं। राजा जनक बताते हैं कि माता सीता का पादुर्भाव वैसे तो सीता ( हल के धंसने से बनी रेखा) से हुआ जब वो स्वयं यज्ञ के लिए खेत में हल जोत रहे थे ।

लेकिन माता सीता साक्षात लक्ष्मी के रुप में अवतरित हुई हैं यह कथा राजा जनक को नारद जी बताते हैं। नारद जी राजा जनक को बताते हैं कि दशरथ जी के यहां रावण के वध हेतु साक्षात विष्णु श्रीराम के रुप में अवतार ले चुके हैं। इधर साक्षात लक्ष्मी जी ने माता सीता के रुप में जन्म लिया है। इसलिए श्री राम और माता सीता का विवाह पक्का करने के लिए धनुष यज्ञ करना। इस धनुष को सिर्फ श्री राम ही भंग कर सकते हैं।यही सोच कर राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा की कि जो भी इस धनुष को उठा लेगा उससे ही वो सीता का विवाह करेंगे।

आध्यात्म रामायण में भगवान शिव का यह धनुष त्रिपुर राक्षसों के वध के लिए प्रयोग किया गया था जिसे बाद में राजा जनक के पूर्वज को दे दिया गया है।

आनंद रामायण में माता सीता के जन्म की कथा :

आनंद रामायण के रचयिता किन्ही वाल्मीकि को ही माना जाता है। इस ग्रंथ में माता सीता के जन्म और उनके पूर्व जन्म की कथा दी गई है। माता सीता साक्षात लक्ष्मी हैं और उनका माता सीता के जन्म से पहले एक जन्म हो चुका था। 

आनंद रामायण की कथा में माता सीता के जन्म की कथा स्वयंवर के बाद सुनाई जाती है। आनंद रामायण में पहली बार माता सीता के स्वयंवर की कथा आती है जो वाल्मीकि रामायण और आध्यात्म रामायण में नहीं है। आनंद रामायण में भी जिस शिव धनुष की कथा है उसे भगवान शिव ने त्रिपुर राक्षसों को मारने के लिए प्रयोग किया था। इसी धनुष का इस्तेमाल परशुराम ने भी सहस्त्रबाहु कार्तीवीर्य को मारने के लिए किया था। आनंद रामायण में इस शिव धनुष को माता सीता बचपन से ही उठा लेती थीं और इसे खिलौने के तरह खेलती थीं।

माता सीता के स्वयंवर की कथा :

माता सीता के लिए आयोजित स्वयंवर में बिना बुलाई रावण भी आ जाता है। वो अपने बीसों हाथों से धनुष को उठा तो लेता है लेकिन प्रत्यंचा चढ़ाने में विफल हो कर गिर जाता है और धनुष के नीचे ही दब जाता है। रावण की बड़ी बुरी हालत दिखाई गई है। वो धनुष के नीचे दबा हुआ नंगा हो जाता है और धोती में ही उसे मल- मूत्र हो जाता है। 

जब रावण धनुष के नीचे दबा रहता है तो जनक विलाप करते हैं कि पृथ्वी पर कोई वीर पुरुष नहीं है, जो इस धनुष को उठा सके । तब श्रीराम इस धनुष को उठाते हैं और प्रत्यंचा चढ़ा कर इसे तोड़ डालते हैं। 

आनंद रामायण में माता सीता के पूर्व जन्म की कथा :

आनंद रामायण में माता सीता के पूर्व जन्म की कथा राजा जनक श्रीराम जानकी विवाह के बाद सबके सामने अहल्या के पुत्र शतानंद से सुनते हैं।माता सीता के पूर्व जन्म का प्रसंग है कि पूर्वकाल में पद्माक्ष नामक एक राजा था। उसने माता लक्ष्मी को पुत्री के रुप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया । माता लक्ष्मी प्रसन्न हुई लेकिन उन्होंने कहा कि मैं तो भगवान विष्णु की पत्नी होने की वजह से उनके ही अधीन हूं इसलिए राजा भगवान विष्णु को इसके लिए तैयार करे।

पद्माक्ष के घर माता लक्ष्मी का पुत्री के रुप में जन्म :

इसके बाद राजा पद्माक्ष ने भगवान विष्णु को तपस्या से प्रसन्न किया। भगवान विष्णु ने उसे नारंगी का एक फल दिया और अंतर्धान हो गए।जब राजा पद्माक्ष ने उस नारंगी के फल को चीरा तो उसमें एक दिव्य कन्या दिखाई दी। राजा को समझ में आ गया कि ये साक्षात लक्ष्मी ही हैं। इस कन्या का नाम पदमाक्ष के नाम पर पद्मा रखा गया।

पद्मा के विफल स्वयंवर की कथा :

जब पद्मा बड़ी हो गई तो राजा ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर का आयोजन किया और वहां आए राजाओं को यह चुनौति दी कि जो भी अपने शरीर को आकाश के नीले रंग से रंग देगा,वही पद्मा का पति होगा। 

इस चुनौति में विफल रहने पर वहां पद्मा से विवाह करने आए देवता, दैत्य, राजा लोगों ने पद्माक्ष पर ही आक्रमण कर दिया और एक दैत्य के हाथों राजा पद्माक्ष का वध कर दिया गया। इसके बाद देवी पद्मा को पाने के लिए सभी दैत्य, देवता, राजा उनकी तरफ बड़े वेग से दौड़ पड़े। यह देख कर पद्मा अग्नि मे कूद पड़ीं। वहां आए समस्त राजाओं, देवताओं और दैत्यों ने पद्मा को न पा सकने के क्रोध में सारा नगर जला कर राख कर दिया ।

पद्मा पर रावण का मोहित होना और हरण करने का प्रयास करना :

आनंद रामायण की कथा के अनुसार एक वक्त लक्ष्मी स्वरुपा पद्मा अग्नि कुंड से बाहर निकल कर वेदी पर बैठी थीं, तो उसी वक्त अपने पुष्पक विमान से वायु मार्ग से जा रहे रावण की उन पर दृष्टि पड़ गई। रावण उन्हें देख कर मोहित हो गया और जैसे ही रावण ने पद्मा को पकड़ने की कोशिश की वो फिर से अग्नि कुंड में प्रवेश कर गईं। 

रावण का संदूक लेकर लंका लौटना :

रावण ने पद्मा को जैसे ही अग्नि कुंड में प्रवेश करते देखा उसने क्रोध पूर्वक घड़ों से पानी डाल कर अग्नि को बुझा दिया। रावण ने जब राख में पद्मा को ढूंढने की कोशिश की तो वहां उसे सिर्फ पांच रत्न दिखाई दिये । रावण ने इन पांच रत्नों को एक संदूक में रख दिया और लंका लौट कर वह संदूक उसने अपनी पत्नी मंदोदरी को दे दिया।

लंका में माता सीता के जन्म की कथा :

एक दिन रावण ने मंदोदरी को वह संदूक लाने के लिए कहा जिसमें उसने वो पांच रत्न रखे थे। मंदोदरी जब संदूक लाने गई तो वो इतनी भारी थी कि उसे वह उठा नहीं पाई। जब मंदोदरी ने उस संदूक को खोला तो उसके अंदर एक दिव्य कन्या दिखाई दी। मंदोदरी ने क्रोध में रावण से इस दिव्य कन्या के बारे में पूछा तो उसने पद्मा की कथा बता दी। मंदोदरी ने रावण को कहा कि जिस पद्मा की वजह से उसके पिता का सारा राज्य नष्ट हो गया उस कलंकिनी पद्मा रुपी इस कन्या को वो लंका क्यों लेकर आ गया। यह बालिका लंका के विनाश का कारण बनेगी। 

माता सीता का मिथिला की भूमि में पाये जाने की कथा :

मंदोदरी ने अपने सेवकों को बुलाकर कहा कि इस दिव्य कन्या को कहीं दूर भूमि में गाड़ दे ताकि यह विनाश का कारण ही न बन सके।यह सुन कर उस दिव्य बालिका ने कहा कि मैं वापस लंका आउंगी और रावण सहित सभी राक्षसों के वध का कारण बनूंगी। इसके बाद रावण के सेवकों ने इस दिव्य कन्या को मिथिला में एक भूमि के अंदर ले जाकर संदूक के साथ ही गाड़ दिया। 

राजा जनक को माता सीता रुपी पुत्री की प्राप्ति :

आनंद रामायण की कथा के अनुसार जिस भूमि के अंदर इस दिव्य कन्या को गाड़ा गया था वो भूमि राजा जनक ने एक ब्राह्मण को दान में दे दी थी। उस भूमि को जोतते वक्त उस ब्राह्मण के हल की सीता ( फाल से बनी भूमि की रेखा) से यह संदूक बाहर निकल आया। चूंकि भूमि के अंदर पाए जाने वाले सारे संसाधनों पर राजा का ही अधिकार होता है , इसलिए उस ब्राह्मण ने इस संदूक को राजा जनक को दे दिया। राजा जनक ने जब इस संदूक को खोला तो इसमें से वही दिव्य कन्या दिखाई दी।

राजा जनक ने इस कन्या का नाम सीता रखा जो साक्षात लक्ष्मी की स्वरुप पद्मा ही हैं। इसलिए माता सीता का एक नाम पद्मा भी है ।

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