शूद्र ऋषि व्यास हैं सबसे प्रथम गुरु

शुद्ध सनातन धर्म में कभी भी वर्ण व्यवस्था इतनी संकीर्ण नहीं रही जितनी आज है । प्राचीन वैदिक और महाकाव्य कालों में वर्ण व्यवस्था का आधार जन्म से नहीं बल्कि कर्म से था । भगवान श्री कृष्ण स्वयं श्री मद् भगवद्गीता में वर्ण व्यवस्था को गुण और कर्म पर आधारित होने की महान उद्घोषणा करते हैं –

ब्राह्म्णक्षत्रियविंशा शूद्राणां च परंतप ।
कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभावप्रभवैगुणै ।।

अर्थात: हे परंतप(अर्जुन ) ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र अपने कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों के अनुसार विभक्त किये गए हैं ।

कर्म के अनुसार है वर्ण व्यवस्था :

वैदिक काल में भी एक ही परिवार के चार सदस्य चार वर्णों के हो सकते थे । गुरु पूर्णिमा भी एक ऐसे ही महान ऋषि वेद व्यास जी के जन्मदिन पर मनाया जाता है । वेद व्यास जी और ऋषि वाल्मीकि ये दो ही ऐसे महान ऋषि हुए हैं जिन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त है और दोनों ही जन्म से शूद्र बताए गए हैं ।

व्यास के जन्मदिवस पर मनाते हैं गुरु पूर्णिमा :

गुरु पूर्णिमा श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास के जन्म के अवसर पर मनाया जाने वाला एक ऐसा त्योहार है जिस दिन सभी शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनसे प्राप्त शिक्षा के लिए उन्हें धन्यवाद करते हैं ।

परंपरा से हट कर है व्यास की जन्म कथा :

वेद व्यास जी के जन्म की कथा अति विचित्र है । महाभारत के आदि पर्व में उनके जन्म की कथा विस्तार से दी गई है । उनके पिता महान पराशर ऋषि थे और उनकी माता सत्यवती थीं । वही सत्यवती जो पांडवों और कौरवों के वंश की महामाता मानी गई हैं ।

पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं व्यास :

कथा यह है कि सत्यवती शूद्र वर्ण के निषाद जाति की कन्या थीं । उनके पिता एक नाविक थे । सत्यवती के शरीर से मछली की गंध आती थी इसलिए उन्हें मत्स्यगंधा भी कहा जाता था । वो खुद नाव चलाने में दक्ष थीं । एक बार ऋषि पराशर को वो यमुना विहार करा रहीं थी तो पराशर जी उनके रुप पर मोहित हो गए। सत्यवती कुमारी कन्या थीं और बिना अपने पिता के अनुमति के बिना किसी पराये पुरुष से संबंध नहीं बना सकती थीं । दूसरी तरफ पराशर ऋषि के शाप का भय भी उन्हें था ।

लेकिन पराशर ऋषि ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनके साथ समागम के बाद भी वो कुमारी कन्या ही बनी रहेंगी और उनके शरीर से निकलने वाली मछली की दुर्गंध भी समाप्त होकर एक सुगंध में परिवर्तित हो जाएगी जिसका विस्तार एक योजन तक होगा ।

इसके बाद पराशर ऋषि के समागम से सत्यवती को गर्भ ठहर जाता है और एक पुत्र की प्राप्ति होती है जिन्हें वो यमुना के द्वीप पर त्याग देती हैं  । इस पुत्र का जन्म चूंकि एक द्वीप पर होता है और उनका रंग श्याम अर्थात कृष्ण होता है इसलिए वह पुत्र संसार में कृष्ण द्वैपायन के नाम से प्रसिद्ध होता है ।

सारे शास्त्रों के रचयिता हैं व्यास :

कृष्ण द्वैपायन जन्म से ही सारे शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं । चूंकि उन्होंने ही वेदों का विस्तार किया इसिलए वो संसार में कृष्ण द्वैपायन व्यास के नाम से पूजित होते हैं । व्यास ने चारों वेदों का संपादन किया और उन्हें लिपिबद्ध कर संसार को समर्पित कर दिया ।

व्यास ने ही महाभारत जैसे महान काव्य की रचना की और अपनी दिव्य दृष्टि और ज्ञान के जरिए साक्षात गणेश जी से इसे लिपिबद्ध करवाया । व्यास जी ने ही अठारह पुराणों की भी रचना की । उनके द्वारा रचित पुराणों से सर्वश्रेष्ठ पुराण श्री मद्भागवतम है जिसका परायण आज पूरा संसार करता है ।

कौरवों पांडवों के पितामह हैं व्यास :

व्यास जी का योगदान सिर्फ उनका ज्ञान ही नहीं था पूरा कुरु वंश दरअसल उन्ही के द्वारा उत्पन्न हुआ था । सत्यवती का विवाह शांतनु से होता है और भीष्म यह प्रतीज्ञा लेते हैं कि सत्यवती के वंश से ही राजा बनेगा और भीष्म अपनी सौतेली माता की इस इच्छा है कि आजीवन अविवाहित होने का संकल्प लेते हैं । शांतनु और सत्यवती से दो पुत्र उत्पन्न होते हैं जिनका नाम विचित्रवीर्य और चित्रांगद था ।

चित्रांगद युवावस्था में ही एक गंधर्व के द्वारा युद्ध में मारे जाते हैं और विचित्रवीर्य भी कम आयु में ही स्वर्ग सिधार जाते हैं तब कुरु वंश में संतान की आवश्यकता होती है । ऐसे मे सत्यवती अपने पुत्र व्यास को बुलाती हैं और नियोग प्रथा के द्वारा स्वर्गवासी विचित्रवीर्य की दोनो पत्नियों अम्बिका और अम्बालिका से समागम करते हैं औऱ धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म होता है । एक दासी से व्यास के पुत्र विदुर जी पैदा होते हैं

धृतराष्ट्र के सौ पुत्र होते हैं जो कौरव कहलाते हैं और पांडु के पांच पुत्र संसार में पांडव के नाम से प्रसिद्ध हैं ।

त्रिकालदर्शी थे व्यास :

व्यास को त्रिकालदर्शी माना जाता है उन्हें प्रारंभ से ही पता था कि कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत होगा और भगवान श्री कृष्ण इस सारे महाभारत के वास्तविक नायक होंगे ।

द्रौपदी के धर्मरक्षक हैं व्यास :

व्यास ने ही द्रौपदी के पांचों पांडवो से विवाह को न्यायसंगत और धर्मसंगत बना कर द्रौपदी के धर्म की रक्षा की थी । व्यास जी ने ही द्रौपदी को यह वरदान दिया थी कि वो जब भी अपने किसी दूसरे पति के पास जाएगी तो वो वापस कुंवारी बन जाएगी ।

व्यास ने दी संजय को दिव्य दृष्टि :

व्यास जी ने ही धृतराष्ट्र द्वारा महाभारत युद्ध को देखने की इच्छा करने पर संजय को दिव्य दृष्टि दी थी । संजय ने ही धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का सारा आँखो देखा हाल बताया था। ऐसी ही दृष्टि व्यास जी ने द्रौपदी को भी दी थी । वो भी महाभारत युद्ध का सारा हाल अपनी दिव्य दृष्टि से देख सकती थीं ।

ब्रम्हा और विष्णु के अंश हैं व्यास :

ऐसा माना जाता है कि व्यास स्वयं ब्रम्हा ही हैं। सत्ययुग में ब्रम्हा ने ही व्यास का अवतार लेकर वेदों की रचना की थी जिसका संपादन फिर उन्हीं ने कृष्ण द्वैपायन व्यास के रुप में द्वापर युग में की । व्यास को कहीं – कहीं साक्षात विष्णु का अंश भी माना जाता है । व्यास को ही ब्रम्हसूत्र का भी रचयिता माना जाता है ।

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