शुद्ध सनानत धर्म में श्रीकृष्ण की माताओं का श्रीकृष्ण के जन्म में बहुत योगदान है, श्रीकृष्ण के जन्म की कथा को कई महान ग्रंथों में विशेष महत्व दिया गया है । श्रीकृष्ण भगवान श्री हरि विष्णु के पूर्णावतार माने जाते हैं और भगवान श्री विष्णु अपनी 16 कलाओं के साथ पृथ्वी पर श्री हरि कृष्ण के रुप में अवतरीत हुए थे। श्रीकृष्ण ही भगवान विष्णु के वो प्रथम और इकलौते अवतार हैं जो पृथ्वी पर शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते थे और गरुड़ की सवारी करते थे ।
भाद्र मास कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान श्री विष्णु ने माता देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण के रुप में अवतार लिया और देवकी और पिता वसुदेव के समस्त दुखों का अंत कर दिया । भगवान के इस अवतार का कारण न केवल कंस के अत्याचार थे, महाभारत के द्वारा धर्म की संस्थापना थी बल्कि श्रीकृष्ण की माताओं की तपस्या भी इस अवतरण का महत्वपूर्ण कारण थीं । यही वजह है कि कृष्ण जन्माष्टमी माताओं के प्रेम और तपस्या का भी त्योहार है ।
श्रीकृष्ण की माताओं की तपस्या बनी जन्म की वजह :
कई ग्रंथो की कथाओं से यह पता चलता है कि ईश्वर ऐसे ही किसी स्त्री के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं। श्रीराम की माता कौशल्या और पिता दशरथ पूर्व जन्म में शतरुपा और स्वयभु मनु थे । इन दोनों ने तपस्या की थी और विष्णु को अपने पुत्र के रुप में पाने की कामना की थी। भगवान विष्णु ने मनु और शतरुपा की तपस्या के फलस्वरुप ही अयोध्या में दशरथ और कौशल्या के घर जन्म लिया था। दशरथ और कौशल्या ही पूर्व जन्म में मनु और शतरुपा थे ।
ठीक इसी तरह कुछ माताओं की तपस्या ने विष्णु को श्रीकृष्ण के रुप में अवतार लेने के लिए विवश कर दिया था ।
श्रीकृष्ण की माताओं पृश्नि की तपस्या :
कथा है कि पूर्व कल्प में प्रजापति सुतपा और उनकी पत्नी पृश्नि ने भगवान श्री हरि विष्णु की कठोर तपस्या की । भगवान विष्णु प्रसन्न और प्रगट हुए और वर मांगने को कहा । पृश्नि ने उनसे अपने पुत्र के रुप में जन्म लेने का वरदान मांगा तो भगवान विष्णु ने उन्हें उनके गर्भ से तीन बार जन्म लेने का वरदान दिया । पहली बार भगवान विष्णु ने पृश्नि के गर्भ से उसी काल में जन्म लिया और पृश्निगर्भ के नाम से प्रसिद्ध हुए ।
दूसरे जन्म में प्रजापति सुतपा ऋषि कश्यप और पृश्नि ने देवमाता अदिति के रुप में जन्म लिया । इस जन्म में भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रुप में जन्म लिया ।
तीसरी बार प्रजापति सुतपा वसुदेव के रुप में और पृश्नि ने देवकी के रुप में जन्म लिया । इस जन्म में भगवान विष्णु ने उनके गर्भ से भगवान श्री कृष्ण के रुप में कृष्ण जन्माष्टमी की रात जन्म लिया ।
माता धरा की तपस्या और कृष्ण का जन्म :
पौराणिक कथाओं विशेषकर श्रीमद् भागवत में माता यशोदा के पूर्व जन्म का वर्णन है। कथा के अनुसार नन्द बाबा पूर्व जन्म में आठ वसुओं में श्रेष्ठ वसु द्रोण थे । उनकी पत्नी का नाम धरा था। वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने तपस्या के द्वारा ब्रम्हा जी को प्रसन्न और प्रगट कर लिया। माता धरा ने ब्रम्हा जी से वरदान मांगा कि जब वो पृथ्वी पर जन्म लें तो श्री कृष्ण में उनकी भक्ति अचल हो। माता धरा ने और वसुश्रेष्ठ द्रोण ने ही पृथ्वी पर नन्द गोप और माता यशोदा के रुप में जन्म लिया और श्री कृष्ण को पालन करने वाले माता पिता होने का पुण्य प्राप्त किया।
माता सुरभि और कृष्ण जन्म कथा :
- हरिवंश पुराण और ब्रम्हवैवर्त पुराण और श्रीमद् भागवत की कथाओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु ने द्वापर में एक साथ कई स्वरुपों में अवतार लिया था जिसमें उनके प्रमुख अवतार श्रीकृष्ण का था । इसके अलावा बलराम जी ( जिन्हें संकर्षण भी कहा जाता है ), प्रद्युम्न और अनिरुद्ध भी विष्णु अवतार ही थे । अर्जुन को भी विष्णु के नर रुप का अवतार माना जाता है ।
- इन पौराणिक कथाओं के अनुसार पूर्वकाल में ऋषि कश्यप ने वरुण से एक यज्ञ के लिए गौएं मांगी थी । यज्ञ पूरा होने पर वरुण की गायों को कश्यप ने नहीं लौटाया । इसका कारण यह था कि कश्यप की दो पत्नियों अदिति और सुरभि ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था ।
- वरुण ने कश्यप और उनकी पत्नियों को शाप दिया कि वो अगले जन्म में पृथ्वी पर जन्म लेंगे और उसी प्रकार संतान के लिए दुखी रहेंगे जैसे वरुण की गायें अपने बछड़ों से दूर रह रही हैं।
- इसी वजह से दोनों को अगले जन्म में देवकी और रोहिणी के रुप में जन्म लेना पड़ा और वो कश्यप के अगले जन्म स्वरुप वासुदेव जी की पत्नियां बनीं । कथा के अनुसार कश्यप ऋषि की दोनों पत्नियों अदिति और सुरभि ही देवकी और रोहिणी थीं। भगवान विष्णु ने वासुदेव जी की दोनों पत्नियों देवकी और रोहिणी के द्वारा अवतार ग्रहण किये । देवकी से श्री कृष्ण के रुप में भगवान विष्णु ने अवतार लिया तो रोहिणी के गर्भ से भगवान विष्णु बलराम जी के रुप में प्रगट हुए ।
श्रीकृष्ण की माताओं दिति के शाप से हुई कृष्ण के भाइयों की मृत्यु :
श्री मद् भागवतम और अन्य कई ग्रंथों की कथा के मुताबिक ऋषि कश्यप की दो पत्नियों दिति और अदिति के बीच हमेशा संघर्ष रहता था । अदिति के पुत्रों में इंद्र और विष्णु थे । जबकि दिति के पुत्रों में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप थे । अदिति के पुत्रों इंद्र ने अपने भाई विष्णु की सहायता से हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यप को मरवा डाला । तब दिति को लगा कि उसके पास भी ऐसा पुत्र होना चाहिए जो इंद्र और विष्णु के समान हो । ऐसे में कश्यप ऋषि ने उसे इंद्र के समान पुत्र प्राप्ति का वरदान बताया ।
जब दिति गर्भवती थीं तो इंद्र ने उनकी तपस्या भंग कर दी और उनके गर्भ में स्थित शिशुओं के 49 टुकड़े कर दिये । जब इन शिशुओं ने रोना शुरु कर दिया तो इंद्र ने उन्हें रोने से मना किया और उन 49 शिशुओं को देवताओं की श्रेणी में लेकर उन्हें 49 मरुद्गण बना दिया ।
लेकिन दिति ने अपने पुत्रों की यह हालत देख कर इंद्र की माता अदिति को शाप दिया को वो भी अगले किसी जन्म में अपने पुत्रों की हत्या होते देखती रहेगी। ऐसा ही हुआ। जब अदिति ने देवकी के रुप में अवतार लिया तो उनके गर्भ में भी स्थित सात शिशुओं को जन्म लेते ही कंस ने मार दिया। इस प्रकार एक माता के शाप की वजह से श्रीकृष्ण के जन्म से पहले उनके भाइयों की हत्या कर दी गई ।
श्रीकृष्ण की माताओं रत्नमाला और पूतना की कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार श्रीकृष्ण को मारने वाली राक्षसी पूतना भी पूर्व जन्म में एक महान स्त्री थी । कहा जाता है कि पूतना पूर्व जन्म में भक्त शिरोमणि दैत्यराज बलि की पुत्री रत्नमाला थीं । जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास तीन पग भूमि के दान के लिए पहुंचे तब रत्नमाला के मन में इच्छा हुई कि काश उनके ऐसा पुत्र होता जिसे वो स्तनपान करातीं। लेकिन वामन भगवान द्वारा उनके पिता राजा बलि की सारी संपत्ति ले लेन के बाद रत्नमाला के मन में विकार आ गया कि अगर ये मेरा पुत्र होता तो मैं इसे दुग्ध की जगह विष का स्तनपान कराती ।
जब भगवान श्रीकष्ण का जन्म होने वाला था तब भगवान विष्णु ने उनकी यह इच्छा पूरी कर दी। रत्नमाला ने पूतना राक्षसी के रुप में जन्म लिया। उसे श्रीकृष्ण को मारने के लिए कंस ने भेजा तब पूतना ने अपने स्तनपान के द्वारा कृष्ण को विष पिलाने की कोशिश की और मारी गई। लेकिन चूंकि उसके मन में मातृभाव भी था इस लिए कहा जाता है कि पूतना के अंतिम संस्कार के वक्त उसके शरीर से चंदन की खूशबू आने लगी और वो मोक्ष को प्राप्त हो गई ।