शुद्ध सनातन धर्म में भगवान श्री हरि विष्णु के दो महावतारों श्री राम और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की बड़ी महिमा गाई गई है । रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद् पुराण आदि शास्त्रों में श्री राम और भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को लेकर कई श्लोकों की रचना की गई है । ऐसा कहा गया है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने धर्म की संस्थापना के लिए श्रीराम और श्री कृष्ण के रुप में जन्म लिया था ।
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क्या विष्णु से अलग हैं :
आमतौर पर यही मान्यता रही है कि श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण दोनों ही भगवान श्री हरि विष्णु के ही अवतार हैं और दोनों का अवतरण संसार के कल्याण के लिए हुआ था । दोनों को भगवान विष्णु से अभिन्न माना गया है । वाल्मीकि रामायण, श्रीमद्भगवद्पुराण और कई अन्य ग्रंथों के अनुसार दोनों ही भगवान विष्णु से अलग नहीं हैं लेकिन कई अन्य ग्रंथों और श्लोकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने से कुछ और कथा भी सामने आती है ।
श्रीराम नहीं हैं विष्णु के अवतार :
यह एक चौंकाने वाली अवधारणा है । लेकिन वाल्मिकी रामायण के कुछ अंशों को ध्यान से पढ़ने से विष्णु और श्रीराम एक दूसरे से अलग- अलग सत्ताएं नज़र आती हैं। वाल्मीकि रामायण के सुंदरकांड के इस श्लोक को ही देखिए । प्रसंग है कि महावीर हनुमान जी माता सीता की खोज करते – करते रावण के महल में चले जाते हैं । वहां वो रावण को पलंग पर सोते देखते हैं । रावण की भुजाओं और उसके शरीर के अन्य अंगों पर इंद्र के हाथी ऐरावत के दांतो औऱ भगवान विष्णु के चक्र के प्रहारों से हुए जख्मों के चिन्ह हनुमान जी को नज़र आते हैं –
ऐरावत विषाण अग्रैर् आपीडित क्र्त व्रणौ ।
वज्र उल्लिखित पीन अंसौ विष्णु चक्र परिक्षितौ ।।
वाल्मीकि रामायण , सुंदरकांड
अर्थात – रावण जिसी बाहों पर इंद्र के वाहन ऐरावत हाथी के दांतों और विष्णु के चक्रों के प्रहारों के निशान थे ।
इसका अर्थ यही है कि विष्णु भी जिस रावण को पराजित न कर सकें उसे श्रीराम के एक बाण ने मार डाला था ।
तुलसीदास जी ने भी अपनी रामचरितमानस के सुंदरकांड में एक प्रसंग में जो जिक्र किया है उससे लगता है कि श्रीराम भगवान विष्णु से अलग कोई अन्य ईश्वरीय सत्ता हैं । प्रसंग है जब हनुमान जी रावण को उसके दरबार में भगवान श्री राम के पराक्रम के बारे में सूचित करते हैं –
सुनु रावन ब्रम्हांड निकाया !
पाई जासु बल बिरचति माया !!
जाके बल बिरंचि हरि ईसा !
पालत सृजत हरत दससीसा !!
अर्थात – हे दशानन रावण सुनों जिनका बल पाकर माया संपूर्ण ब्रम्हांड की रचना करती है। ब्रम्हा , विष्णु, महेश जिनके बल से सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं। मैं उन्हीं राम का दूत हूं ।
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही वर्णित कुछ श्लोकों से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम विष्णु से अलग ईश्वरीय सत्ता हैं। श्रीराम का भगवान विष्णु के अवतार के रुप में पूरी तरह से स्थापित होना शायद एक बाद की घटना है ।
श्रीकृष्ण क्या विष्णु से अलग हैं :
हालांकि महाभारत, हरिवंश पुराण और श्रीमद् भागवतम तीनों ही ग्रंथ भगवान श्रीकृष्ण को ही नारायण हरि विष्णु का पूर्ण अवतार बताते हैं । लेकिन कई अन्य ग्रंथों विशेषकर ब्रम्हवैवर्त पुराण की कथा कुछ और ही कहती है । इस ग्रंथ के मुताबिक श्रीकृष्ण सर्वोच्च सत्ता हैं और वो गोलोक में वास करते हैं। गोलोक से बहुत नीचे वैकुंठ हैं जहां विष्णु और लक्ष्मी का वास है । गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के साथ अनंत काल से लीला करते रहते हैं ।
कैसे हुई विष्णु की उत्पत्ति :
- ब्रम्हवैवर्त पुराण के मुताबिक गोलोकवासी परम पुरुष भगवान भगवान श्रीकृष्ण से ही सभी ईश्वरीय सत्ताओं की उत्पत्ति हुई है । वही परम पुरुष भगवान भगवान श्रीकृष्ण विष्णु, शिव और ब्रम्हा को उत्पन्न करते हैं । वही सृष्टि की रचना, पालन और संहार के आधार हैं। गोलोकवासी ने ही प्रकृति और पुरुष को उत्पन्न किया है । वही जगत के मूल आधार हैं।
- ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार गोलोक वासी भगवान अजन्मा, आदि और अनंत हैं। उनका न तो जन्म होता है और न ही उनका मरण होता है। सृष्टि के आदि और प्रलय के बाद भी सिर्फ वही रह जाते हैं ।
- ब्रम्हवैवर्त पुराण के अध्याय 3 में भगवान श्रीकृष्ण से नारायण की उत्पत्ति की कथा है । जिनकी कांति श्याम थी, वे पितांबर धारी और वनमाला से सुषोभित थे। उनकी चार भुजाएं थी जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित हो रहे थे । अपनी उत्पत्ति के साथ ही नारायण श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे –
वरं वरेण्यं वरदं वरार्हं वरकारणम् ।
कारणां कारणानां च कर्म तत्कर्मकारणम् ।।
तपस्तफलदं शश्वत तपस्विनां च तापसम् ।
वन्दें नवघनश्यामं स्वात्मारामं मनोहरम् ।।
वेद रुपं वेदबीजं वेदोक्तफलदं फलम् ।
वेदज्ञं तद्धिधानं च सर्ववेदविदां वरम ।।
अर्थात – जो वर (श्रेष्ठ ), वरेण्यं, वरदायक और वर प्राप्ति के कारण हैं । जो कारणों के भी कारण, कर्म स्वरुप और उस कर्म के भी कारण हैं । तप जिनका स्वरुप है, जो नित्य निरंतर तपस्या का फल प्रदान करते हैं, तपस्वीजनों में सर्वश्रेष्ठ तपस्वी हैं, नूतन जलधर के समान श्याम, स्वात्माराम और मनोहर हैं, उन भगवान श्रीकृष्ण की मैं वंदना करता हूं जो निष्काम और कामरुप हैं, कामना के नाशक और कामदेव की उत्पत्ति के कारण हैं। जो सर्वरुप, सर्वबीजरुप, सर्वोत्तम और सर्वेश्वर हैं, वेद जिनका स्वरुप है, जो वेदों के बीज, वेदोक्त फलों के दाता और फलरुप हैं, वेदों के ज्ञाता, उसके विधान को जानने वाले और संपूर्ण वेदवेत्ताओं के शिरोमणि हैं, मैं उन श्रीकृष्ण प्रणाम करता हूं ।
इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि गोलोकवासी श्रीकृष्ण परम पुरुष हैं और नारायण श्रीहरि विष्णु उन्ही से उत्पन्न हुए हैं –
ब्रम्हा और शिव की उत्पत्ति :
ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार परम ईश्वरीय सत्ता गोलोकवासी श्रीकृष्ण ने नारायण के बाद भगवान शिव और ब्रम्हा की उत्पत्ति अपने ही तेज से की । भगवान शिव और ब्रम्हा ने भी नारायण की तरह ही उत्पन्न होते ही श्रीकृष्ण की स्तुति की । इस प्रकार ब्रम्ह वैवर्त पुराण के अनुसार धीरे – धीरे श्रीकृष्ण की लीला के फलस्वरुप सारे जीव जगत की उत्पत्ति हुई है ।
ब्रम्हवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार पृथ्वीलोक के मथुरा में गोलोकवासी भगवान श्रीकृष्ण ने ही अपने स्वरुप के रुप में अवतार लिया था, न कि विष्णु के अवतार के रुप में श्रीकृष्ण पृथ्वी पर लीला करने के लिए आए ।
ब्रम्हवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार एक बार गोलोकवासी भगवान श्रीकृष्ण की लीला सहचरी आद्या शक्ति श्रीराधा जी उनसे रुठ गईं और उन्हें छोड़ कर कहीं चली गईं । उनकी अनुपस्थिति में विरजा नामक गोपिका श्रीकृष्ण के नजदीक आ गईं । जब श्री राधा जी वापस लौटीं तब वो भगवान श्रीकृष्ण और विरजा को भला बुरा कहने लगीं । राधा जी के द्वारा किए गए इस अपमान को विरजा सह नहीं सकीं और वो नदी बन कर पृथ्वी लोक में चली गईं। भगवान श्रीकृष्ण का अपमान करते देख उनके एक प्रिय गोप श्रीदामा को राधा जी पर क्रोध आ गया और उसने राधा जी को पृथ्वी पर जन्म लेने के लिए शाप दे दिया । श्रीदामा ने राधा जी को भगवान श्रीकृष्ण से वियोग का शाप तो दे दिया लेकिन राधा जी ने भी श्रीदामा को राक्षस होने का शाप दे दिया ।
राधा के लिए अवतार :
ऐसे में गोलोकवासी परमपुरुष भगवान श्रीकृष्ण ने दोनों के कल्याण के लिए पृथ्वी पर अवतार लेने का निश्चय किया । ब्रम्हवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार गोलोकवासी भगवान श्रीकृष्ण ने ही राधा जी को फिर से अपनाने के लिए और श्रीदामा को राक्षस योनि से मुक्त कराने के लिए वृंदावन में अवतार लिया । जिन तिथि को गोलोकवासी भगवान श्रीकृष्ण ने मथुरा में श्रीकृष्ण के रुप में जन्म लिया उसी दिन को श्री कृष्ण जन्माष्मी का त्यौहार मनाया जाता है ।