शिव हैं सर्वश्रेष्ठ पति

भगवान शिव को त्रिदेवों में संहार का देवता कहा गया है । भगवान शिव को ही वैरागी और श्मशानवासी भी कहा गया है । देवाधिदेव को हमेशा समाधि में लीन और संसार से परे दिखाया गया है । भगवान शिव को क्रोध में तांडव करते दिखाया गया है । भगवान भोलेनाथ को कैलाश जैसे निर्जन स्थान पर वास करते भी देखा जाता है । भगवान शंकर को कामदेव को नष्ट करने वाला बताया गया है । भगवान शिव धतुरे और अन्य नशा का सेवन करते प्रदर्शित किये गये हैं । उनके साथ भूत प्रेत निवास करते हैं । 

इसके बाद भी सनातन धर्म में श्रावण के मास के हरेक सोमवार को कुंवारी स्त्रियां भगवान शिव जैसे पति के लिए व्रत रखती हैं। आखिर इसका कारण क्या है । आखिर कौन सी ऐसी विशेषताएं हैं भगवान भोलेनाथ में कि कुवांरी स्त्रियां कमलनयन, कोमन बदन और सबसे ज्यादा आकर्षक भगवान विष्णु को छोड़कर अखंड वैरागी भगवान शिव जैसा पति चाहती हैं ।  इसके पीछे कई कारण हैं –

शिव हैं सबसे सांसारिक ईश्वर :

ये सत्य है कि भगवान शिव वैरागी हैं । भस्म लगाते हैं और समाधि में लीन रहते हैं । वही संहार के देवता भी हैं। लेकिन ये भी सच है कि भगवान शिव से ज्यादा सांसारिक ईश्वरीय सत्ता भी कोई नहीं है । उनका वैवाहिक जीवन भी सभी देवताओं में सबसे ज्यादा सफल है । 

शिव का अपना भरा–पूरा परिवार है :

संभवत: सभी देवी – देवताओं में शिव ही ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार है । त्रिदेवों में जहां विष्णु और ब्रम्हा के कोई भी पुत्र या पुत्री नहीं हैं। भगवान शिव के गणेश, और कार्तिकेय जैसे महान पुत्र हैं । उनकी अशोक सुंदरी जैसी पुत्री भी हैं। यहां तक कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्रों गणेश और कार्तिकेय का भी अपना परिवार है । भगवान कार्तिकेय की पत्नी देवसेना हैं । भगवान गणेश की दो पत्नियां ऋद्धि और सिद्धी हैं। भगवान गणेश के दो पुत्र शुभ और लाभ भी हैं। इसके अलावा भगवान गणेश की पुत्री संतोषी माता हैं। 

इस प्रकार देखें तो भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती न केवल वैवाहिक बंधन में बंधे हैं बल्कि उनका भरा पूरा परिवार भी है जिसमें पुत्र , पुत्रियों के अलावा पुत्र वधुएं, प्रौत्र और प्रौत्री भी हैं। अब ऐसे भरे पूरे परिवार वाले ईश्वर जैसा पति कौन स्त्री नहीं चाहेगी । इतना विस्तृत परिवार किसी भी अन्य ईश्वरीय सत्ता के पास नहीं है । 

परिवार के लिए शिव ने छोड़ दिया संहार का कार्य :

कहा जाता है कि जब ब्रम्हा बार बार संसार की सृष्टि करते थे और शिव बार- बार उसका संहार कर देते थे तो ब्रम्हा जी ने युक्ति लगाई । ब्रम्हा जी ने सोचा कि अगर संसार का संहार करने वाले शिव जी का ही अपना संसार बसा लिया जाए तो वो अपने संसार के प्रति मोह से ग्रस्त हो जाएंगे और अपने परिवार की खातिर वो कभी भी संसार का संहार नहीं करेंगे ।

 इसी वजह से उन्होंने भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से कराया। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती से जो पारिवारिक संसार बना उसकी वजह से भगवान भोलेनाथ ने संहार का कार्य ही बंद कर दिया । दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान शिव के संसार बसाने के बाद अब कभी भी प्रलय नहीं आएगा ।अब आप ही सोचिए कि जिस ईश्वरीय सत्ता को अपने परिवार से इतना लगाव है वैसे ईश्वरीय सत्ता के गुणों से युक्त पति कौन नहीं चाहेगा ।

पत्नी प्रेम की पराकाष्ठा हैं शिव :

वैसे सभी देवता और ऋषिगण अपनी पत्नियों का विशेष आदर करते हैं। भगवान विष्णु माता लक्ष्मी से विशेष प्रेम करते हैं । भगवान श्री राम ने तो अपनी पत्नी माता सीता को रावण के कैद से छुड़ाने के लिए समंदर पर सेतु बना लिया था । लेकिन इसके बावजूद भगवान भोलेनाथ का माता पार्वती के प्रति प्रेम अनुकरणीय है ।  भगवान शिव माता पार्वती से इतना प्रेम करते हैं कि जब वो असुरों का संहार करने के लिए महाकाली का रुप धारण करती हैं तब उनका क्रोध मिटाने के लिए वो अपने पुरुषत्व रुपी अंहकार का त्याग भी कर देते हैं और अपनी ही पत्नी के चरणों में लेट जाते हैं। इसे आधुनिक भाषा में नारीवाद की जीत के रुप में जरुर देखा जाता है लेकिन सच यही है कि भगवान भोलेनाथ अपनी पत्नी के प्रेम के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं । ऐसे पति को कौन नहीं चाहेगा जो अपनी पत्नी के लिए अपने पुरुषवादी अंहकारों का भी बलिदान कर दे ।

स्त्री- पुरुष समानता के प्रतीक हैं शिव :

दूसरे भगवान भोलेनाथ सदा अपनी पत्नी माता पार्वती को अपने आसन का बराबर हिस्सा प्रदान करते हैं। स्त्री पुरुष समानता का यह दर्शन सिर्फ शिव – पार्वती के बीच के संबंधो में ही नज़र आता है ।  जहां माता लक्ष्मी और सरस्वती भगवान श्री हरि विष्णु के चरणों की सेवा करती नज़र आती हैं वहीं माता पार्वती भगवान शिव के साथ बराबर के आसन पर विराजित दिखती हैं। कौन स्त्री नहीं चाहेगी कि उसका पति उसे हमेशा बराबरी का दर्जा दे । 

माता पार्वती के मित्र स्वरुप पति हैं शिव :

स्त्री पुरुष संबंधो में बराबरी के बाद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं आपसी संवाद । भगवान शिव माता पार्वती के साथ हमेशा संवाद करते दिखते हैं। इसका उदाहरण हैं ज्यादातर पुराण और व्रत कथाएं जिसमें शिव माता पार्वती को किसी देवता के पराक्रम या भी किसी व्रत के महत्व की कथा सुनाते नजर आते हैं ।  भले ही कैलाश एक निर्जन स्थान हो लेकिन अगर ऐसे पति का साथ हो जो आपके मनोरंजन और ज्ञान के लिए आपको कथाएं सुनाएं तो कौन भला कैलाश पर भी अकेलापन महसूस करेगा । शिव जी के पास हमेशा माता पार्वती के प्रश्नों और शंकाओं का जवाब तैयार होता है । वो कभी भी माता पार्वती को अकेलेपन का अहसास नहीं होने देते हैं । 

आपने गौर किया होगा कि ज्यादातर कथाओ में शिव ही माता पार्वती को कथा सुना रहे होते हैं।  अमरनाथ की कथा इसका बेहतरीन उदाहरण है जिसे सुनते वक्त माता पार्वती को नींद आ गई थी और एक कबूतर के जोड़े ने यह कथा सुन ली थी ।

मनोरंजक पति भी हैं भगवान शिव :

भगवान शिव भले ही वैरागी के रुप में दिखाए गए हों लेकिन अपनी पत्नी माता पार्वती के मनोरंजन के लिए वो सारे प्रयास करते दिखते हैं। सनातन धर्म में सारे मनोरंजनो के एकमात्र प्रणेता भगवान शिव को ही माना जाता है ।  सारी 64 कलाओं और क्रीड़ाओं के एक मात्र आविष्कारक भगवान शिव ही हैं। चाहे वो संगीत कला हो , वाद्य कला हो , चौसर जैसा खेल हो सभी का निर्माण भगवान शिव ने इसलिए किया था कि अगर कभी वो कैलाश से बाहर किसी कार्य के लिए जाएं तो माता पार्वती अकेलापन महसूस न करें और अपना मन बहला सकें ।

शिक्षक पति भी हैं शिव :

भगवान शंकर न केवल माता पार्वती के मनोरंजन का ध्यान रखते हैं बल्कि उन्होंने माता पार्वती को सभी रहस्यों और विद्याओं से शिक्षित भी किया है । ज्योतिष शास्त्र , योगविद्या, तंत्रशास्त्र इन सबकी रचना भगवान शिव ने ही की है । भगवान शिव ने माता पार्वती को इन सारे शास्त्रों का ज्ञान दिया और उन्हें अपने समान ही बनाने का प्रयास किया ।

नारी स्वातंत्र्य के समर्थक हैं शिव :

आधुनिक काल में स्त्रियां पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर पूरी दुनिया में बराबरी के साथ अपना नाम रोशन कर रही हैं । समुद्र की गहराइयों से लेकर अंतरिक्ष की उंचाइयों तक में स्त्रियों के पराक्रम से पुरी दुनिया चकित है ।  लेकिन सनातन धर्म में भगवान शिव शायद इकलौती इश्वरीय सत्ता हैं जिन्होने नारी शक्ति को पुरुष शक्ति के बराबर का दर्जा दिया । जहां भगवान श्री हरि विष्णु माता लक्ष्मी की रक्षा के लिए पृथ्वी पर अवतार लेते रहते हैं । चाहे माता लक्ष्मी माता सीता के रुप में रावण के कैद से विष्णु अवतार श्री राम के पराक्रम से निकली हों या फिर भूमि के रुप में वो रसातल से भगवान वामन अवतार के द्वारा निकाली गई हैं। 

लेकिन माता पार्वती अपनी रक्षा और शक्ति का संधान खुद ही करती हैं। भगवान शिव ने उन्हें इतनी स्वतंत्रता दे रखी हैं कि वो खुद ही असुरों का संहार करने में समर्थ हैं। माता पार्वती स्वतंत्र रुप से शक्ति के विभिन्न अवतार लेकर ( काली, दुर्गा, शताक्षी, तारा आदि ) असुरों का संहार करती हैं। ऐसी स्वतंत्रता किस स्त्री की मनोकामना नहीं होगी ।  यही कारण हैं कि सभी स्त्रियां शिव जैसा ही पति चाहती हैं। लेकिन गौर करने वाली बात ये भी है कि सभी पुरुष भी माता पार्वती से ही उनके ही गुणों वाली पत्नी भी चाहते हैं । इसीलिए मां पार्वती के ही अवतार मां दुर्गा से इच्छित पत्नी के लिए प्रार्थना भी करते हैं ।

पत्नियों के लिए भी है प्रार्थना :

सनातन धर्म में पुरुषों ने अपनी इच्छित पत्नियों के लिए प्रार्थनाएं की हैं । मार्कण्डेय पुराण में पत्नी की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा से प्रार्थना की गई है – 

पत्नी मनोरमां देहि , मनोवृतानुसारिणिम ।
तारिणीं दुर्ग संसार सागरस्य कुलोद्भवाम ।।

अर्थात : हे मां दुर्गा आप हमें हमारे मन के अनुसार चलने वाली पत्नी प्रदान कीजिए जो इस दुर्ग और कठिन संसार रुपी सागर को पार करने और हमारे कुल के कल्याण के लिए तत्पर हों । 

महाभारत में भी आदि पर्व में दुष्यंत की सभा में जब शकुंतला अपने पुत्र भरत को लेकर जाती हैं और दुष्यंत उन्हें पत्नी के रुप में पहचानने से इंकार कर देते हैं तब वो पत्नी के महत्व पर प्रकाश डालती हैं और कहती हैं  – 

अर्ध भार्या मनुष्यस्य भार्या श्रेष्ठतम्: सखा ।
भार्या मूलं त्रिवर्गस्य भार्या मूलं तरिष्यत: ।।

अर्थात : पत्नी पुरुष का आधा अंग है । पत्नी उसकी सबसे अच्छी मित्र है । पत्नी धर्म, अर्थ और काम का मूल है और संसार सागर से तरने वाली इच्छा वाले पुरुष के लिए पत्नी ही सबसे उत्तम साधन है । 

शकुंतला इसके आगे भी दुष्यंत को पत्नी का महत्व समझाते हुए कहती हैं कि – 

भार्यावन्त: क्रियावन्त: सभार्या गृहमेधिन: ।
भार्यावन्त: प्रमोदन्ते भार्यावन्त: श्रियान्विता: ।।

अर्थात : जिनके पत्नी हैं वो ही यज्ञ कर्म आदि कर सकते हैं ।सपत्नीक पुरुष ही सच्चे गृहस्थ हैं । पत्नी वाले पुरुष सुखी और प्रसन्न रहते हैं और जो पत्नी से युक्त हैं वो मानों लक्ष्मी से युक्त हैं । 

आदर्श पति -पत्नी हैं शिव पार्वती :

शिव और माता पार्वती के जैसे आदर्श दांपत्य जीवन की अभिलाषा सभी के मन में रहती हैं। इसीलिए अगर सुयोग्य पति की तलाश हो तो भगवान शिव की अराधना करनी चाहिए और अगर एक आदर्श पत्नी की तलाश हो तो माता पार्वती से प्रार्थना करनी चाहिए । 

सनातन धर्म में विवाह एक पवित्र और आवश्यक संबंध है :

शुद्ध सनातन धर्म में पति और पत्नी का संबंध हमेशा से दिव्य और पवित्र रहा है । गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है । बिना गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किए किसी को भी मोक्ष की प्राप्ति संभव नहीं है । आदि काल से ही लगभग सभी देवी देवताओं को विवाहित रुप में दिखाया गया है । ज्यादातर ईश्वरीय सत्ताएं वैवाहिक जीवन का निर्वाह करते देखी गई हैं। विष्णु- लक्ष्मी, ब्रम्हा – ब्रम्हाणी, इंद्र- इंद्राणी, श्री राम सीता , श्रीकृष्ण – रुक्मणी आदि सभी देवी देवता विवाह के बंधन में बंधे रहते हैं । यहां तक कि तपस्या रत ऋषि मुनियों ने भी खुद को विवाह के बंधन में बांधा है । महान सप्तऋषियों में अत्रि का अनुसूया से , अगत्स्य का लोपामुद्रा से , वशिष्ठ का अरुंधति से विवाह संबंध दिखाया गया है । ये सभी महान पतिव्रता नारियां रही हैं जिनके तपबल से देवता भी उनके समक्ष नतमस्तक रहे हैं । 

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