तांडव नृत्य अर्थात सृष्टि के संहार का नृत्य । ऐसा नृत्य जो सृष्टि की लयात्मक व्यवस्था को अव्यवस्थित कर उसे प्रलय में बदल दे। शिव तांडव नृत्य अक्सर भगवान शिव से ही जोड़ा जाता रहा है । कहा जाता है कि जब सृष्टि के संहार की बारी आती है तो शिव जाग्रत हो उठते हैं और वो महाकाली के साथ विध्वंस का ऐसा नृत्य करते हैं जिससे सृष्टि का संहार हो जाता है । परंतु क्या शिव तांडव नृत्य सिर्फ सृष्टि के संहार से ही जुड़ा है या इसका कोई और भी अर्थ है ।
तांडव का अर्थ क्या है
तांडव शब्द तंदुल शब्द से बना है जिसका अर्थ है उछलना । संपूर्ण उर्जा के साथ शरीर को उछालने की क्रिया को तांडव कहते हैं। इस नृत्य में वीर और वीभत्स रस का प्रयोग किया जाता है । आम तौर पर सृष्टि में दो प्रकार की स्थिति होती है । लयात्मक स्थिति और प्रलयात्मक स्थिति ।
परम पुरुष और उसकी प्रकृति
हमारी सृष्टि प्रकृति और पुरुष से मिल कर बनी है । पुरुष को कई ईश्वरीय सत्ताओं से जोड़ा जाता रहा है । वैष्णव मतो के अनुसार भगवान विष्णु ही सृष्टि के आदि रचयिता, पालकर्ता और संहारकर्ता हैं । वही परम पुरुष हैं। उनकी आह्लादिनी और क्रियात्मक शक्ति माता लक्ष्मी ही माया स्वरुप प्रकृति हैं । विष्णु अपनी प्रकृति की सहायता से संसार की सृष्टि और प्रलय करते हैं। शैव मतों के अनुसार भगवान सदाशिव ही परम पुरुष हैं और माता पार्वती उनकी प्रकृति हैं जिनके साथ मिलकर भगवान शिव सृष्टि की रचना, पालन और संहार करते हैं ।
परम पुरुष का तांडव और प्रकृति का लास्य
नृत्य शास्त्र के अनुसार सृष्टि दो प्रकार के नृत्यों से संचालित होती हैं। जब प्रकृति अपने लय में होती हैं तो माता पार्वती के पास सृष्टि के संचालन का दायित्व होता है। लय में जब मां पार्वती या प्रकृति होती हैं तो से लास्य नृत्य होता है । परंतु जब लयात्मक प्रकृति में कोई व्यवधान होता है तो परम पुरुष का हस्तक्षेप होता है और प्रकृति लास्य नृत्य समाप्त कर देती हैं और परमु पुरुष शिव का प्रलयात्मक नृत्य शुरु होता है ।
शिव तांडव
शास्त्रों में भगवान शिव कई बार शिव तांडव करते देखे गए हैं। जब कभी भी विनाश का कार्य वो शुरु करते हैं उसके बाद वो शिव तांडव नृत्य जरुर करते हैं। दरअसल अगर सृजन एक लीला कार्य है तो प्रलय भी भगवान की एक लीला ही है । और जब लीला अर्थात खेल है यह सारा कार्य तो इसमें संगीत और नृत्य भी होगा । शिव तांडव क्रोध को नियंत्रित नहीं कर पाते और उनका पूरा शरीर अतिरिक्त उर्जा से उछलने लगता है । उर्जा का यही रूपांतरण तांडव कहलाता है ।
शिव ने कब कब तांडव नृत्य किया
शास्त्रों के मुताबिक शिव हमेशा प्रलय के बाद शिव तांडव करते हैं। लेकिन इसके अलावा भी कई बार वो क्रोध में भर कर नृत्य करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब उनकी पहली पत्नी सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह कर लिया था तब भगवान शिव ने अपनी पत्नी माता सती का शव अपने कंधे पर रख कर सृष्टि का विनाश करने के लिए शिव तांडव नृत्य शुरु कर दिया था । इस नृत्य को खत्म कराने के लिए और भगवान शिव का माता सती के पार्थिव शरीर के प्रति मोह भंग कराने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के 51 टुकड़े किये थे । जहां जहां माता सती के अंग गिरे वहां वहां आज भी शक्तिपीठें हैं।
एक बार भगवान शिव ने अंधकासुर को मारने के बाद भी शिव तांडव नृत्य किया था जिसके बाद उनके नृत्य को देखते हुए उनका नाम नटराज पड़ा ।
सिर्फ शिव ही नहीं करते हैं तांडव
शिव तांडव एक नृत्य शैली है जो प्रधान रुप से भगवान शिव के द्वारा किया जाता रहा है । लेकिन दुष्टों के विनाश कार्य के बाद अपनी क्रोध रुपी उर्जा को नियंत्रित करने के लिए कई ईश्वरीय सत्ताओं ने नृत्य किया है ।
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मां दुर्गा, श्री दुर्गा तांडव स्त्रोत्र की रचना की है । कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने भी रावण का वध करने के पश्चात तांडव नृत्य किया था । इस स्त्रोत्र की रचना भी एक महान रचनाकार भागवतानंद जी ने की है । इसके अलावा भगवान गणेश , भगवान भैरव आदि के द्वारा भी तांडव नृत्य करने का प्रमाण है ।
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने मां दुर्गा, श्री दुर्गा तांडव स्त्रोत्र की रचना की है कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने भी रावण का वध करने के पश्चात तांडव नृत्य किया था । इस स्त्रोत्र की रचना भी एक महान रचनाकार भागवतानंद जी ने की है । इसके अलावा भगवान गणेश , भगवान भैरव आदि के द्वारा भी तांडव नृत्य करने का प्रमाण है ।