भारत की भाषा संस्कृत और सनातन धर्म ने भारत को एक सूत्र में बांधने का शंकराचार्य जी ने किया है। भगवान श्री राम ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक भारत को एक सूत्र में बांधा। श्री कृष्ण ने भी युधिष्ठिर के नेतृत्व में एक राष्ट्र को जन्म दिया । वहीं चाणक्य और शंकराचार्य ने भी भारत को सांस्कृतिक , राजनैतिक और धार्मिक रुप से एक करने का महान कार्य किया।
विदेशी इतिहासकारों की दृष्टि में भारत अलग अलग संस्कृतियों, भाषाओं और राज्यों में बंटा एक भूखंड मात्र रहा है। लेकिन यूरोपीय अवधारणा के विपरीत जहां राजनैतिक और भौगौलिक सीमाओं की एकता को ही एक राष्ट्र माना जाता रहा है वहीं भारत की राष्ट्र की संकल्पना एक सांस्कृतिक धार्मिक संकल्पना है।
जब भारत में बौद्ध धर्म औऱ तथागत के अहिंसा के उपदेशों से पूरा देश गूंजायमान था उस वक्त भारत में यवनों, शकों और हूणों के हमले भी हो रहे थे। ऐसे में सनातन धर्म के सामने कई चुनौतियां थी। सनातन धर्म कर्मकांडों और जातिवाद में फंस कर रह गया था। इस्लाम का भी सिंध के क्षेत्र में आगमन हो चुका था। ऐसे में शंकर ने हरेक प्राणी में ब्रम्ह का वास बता कर जातिप्रथा पर कुठाराघात किया। शंकर के भाष्यों में सभी प्राणियों के लिए दया भावना के साथ साथ एकता की भावना भी दिखती है। शंकर ने देश के चारों सीमाओं पर अपने पीठ भी स्थापित किये।
शंकराचार्य के सनातन धर्म की व्याख्या में सगुण- निर्गुण और उंच -नीच की भावना खत्म होती दिखती है। ब्रम्ह सत्यं जगत मिथ्या के उनके सिद्धांत ने सनातन धर्म को फिर से एक कर दिया । इसके अलावा शंकराचार्य के ही सिद्धांतों को आधार बना कर भारत ने भक्ति आंदोलन का विकास हुआ इस आंदोलन ने उन नीचली जातियों को भी भगवान की भक्ति का आधार दिया जिन्हें मंदिरों में प्रवेश भी नहीं करने दिया जाता था।
शंकर ने बौद्ध धर्म के उन सिद्धांतो को भी खत्म कर दिया जिसने भारत को एक कमजोर देश के रुप में स्थापित कर दिया था। यही वजह है कि शंकर को बौद्ध धर्म अपना सबसे बड़े शत्रु के रुप में देखता है। हालांकि शंकर का बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों से कोई विरोध नहीं था और नागार्जुन के शून्यवाद के बहुत नजदीक उनका अद्वैत सिद्धांत था। इसी लिए बौद्ध धर्म के सिद्धांतो की समीपता की वजह से उन्हें कपट बुद्ध की भी उपाधि दी गई।