संयम और स्वास्थ्य का वैज्ञानिक व्रत – एकादशी

वैज्ञानिक है सनातन धर्म : शुद्ध सनातन धर्म अपने आप में महान वैज्ञानिक धर्म है । इस धर्म में कोई भी रीति – रिवाज़ और परंपरा बिना किसी वैज्ञानिक तर्क के नहीं है । ऐसा ही एक वैज्ञानिक व्रत है एकादशी ।

क्यों दो बार आती है एकादशी :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

विष्णु के 24अवतारों से जुड़ी है 24 एकादशियां :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

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एकादशी व्रत की वैज्ञानिकता :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण से जुड़ा है एकादशी का व्रत :

एकादशी का व्रत चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण शक्ति के इसी सिद्धांत का पालन करता है । एकादशी के दिन चावल, बीन्स और कई ऐसी वस्तुओं को खाने पर पाबंदी हैं जिनसे हमारे शरीर के रक्तचाप में बढ़ोत्तरी या कमी आती है ।

एकादशी के दिन चावल खाने की मनाही क्यों :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

क्या है फरमंटेशन :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

ब्लड प्रेशर कम करती है एकादशी :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

एकादशी में चावल आदि का निषेध क्यों :

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

ऐसे में एकादशी का व्रत हमारे शरीर को नशीले पदार्थो से मुक्त करता है । चावल, बैगन, आदि में पाए जाने वाले किटाणुओं से तैयार भोजन को न खाकर हम अपने शरीर को शुद्ध कर लेते हैं ताकि हमारा शरीर पूर्णिमा और अमावस्या के दुष्प्रभावों को झेल सके । जो भी व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके रक्तचाप का स्तर आमतौर पर हमेशा सामान्य रहता है और मानसिक रोगों जैसे पागलपन और डिप्रेशन की समस्या न के बराबर होती है ।

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