सरस्वती

सरस्वती देवी- जिनके स्वरुप को लेकर आज भी है भ्रम

माता सरस्वती, जिन्हें हम मां शारदे, वाग्देवी और वीणावादिनी आदि नामों से जानते हैं उनके स्वरुप को लेकर आज भी बहुत सारे भ्रम हैं। शायद ही किसी देवी के चरित्र पर इतने आरोप लगें हों जितने मां सरस्वती पर लगे हैं। मां ज्ञान और विद्या की देवी हैं उनके चरित्र पर लांछन लगाने का कुकृत्य सैकड़ों वर्षों से किया गया है। शुद्ध सनातन मां सरस्वती के मूल स्वरुप और उनके महान चरित्र पर प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा है।

कौन हैं मां सरस्वती :

वेदों में जिन तीन प्रमुख देवियों का जिक्र बार बार आता है वो हैं उषा, इला और सरस्वती। मां को विद्या प्रदान करने वाली देवी कहा गया है । लेकिन पुराणों के काल तक आते आते मां के मूल स्वरुप और उनकी चरित्र को लेकर कई विवादों ने जन्म ले लिया।

ब्रह्मा का अपनी पुत्री सरस्वती से विवाह का भ्रम :

हम सभी जानते हैं कि शुद्ध सनातन धर्म की छवि को बिगाड़ने का प्रयास सैकड़ों वर्षों से किया जा रहा है । कई अवैदिक संप्रदायों और विदेशी आक्रमणकारियों ने हमारे देवी- देवताओं के चरित्र हनन के लिए हमारी पुस्तकों में या तो छेड़ छाड़ की है या फिर उन्होंने कई दूसरी पुस्तकें लिखी हैं।

सरस्वती

इन्हीं अवैदिक संप्रदायों ने एक भ्रम फैला रखा है कि ब्रह्मा की पूजा इसलिए नहीं की जाती क्योंकि वो अपनी ही पुत्री सरस्वती को देख कर मोहित हो गए थे और उनसे विवाह कर लिया था।

ब्रह्मा की पत्नी का नाम भी सरस्वती है और पुत्री का नाम भी सरस्वती है :

अगर हम पुराणों का ठीक से अध्ययन करें तो हमें एक गूढ़ कथा मिलती है। पुराणों के अनुसार सरस्वती का जन्म ब्रह्मा जी की जिह्वा से हुआ था और इस तरीके से वो ब्रहमा जी की पुत्री कहलाईँ । ब्रहमा जी की जिह्वा से उत्पन्न पुत्री सरस्वती का विवाह भगवान विष्णु से हुआ था और वो भगवान विष्णु की पत्नी कहलाईं।

 महालक्ष्मी की पुत्री सरस्वती से ब्रह्मा जी का विवाह हुआ :

देवी भागवत और श्री दुर्गा सप्तशती से यह कथा आती है कि सरस्वती जी का जन्म महालक्ष्मी के सत्वगुण से हुआ है । महालक्ष्मी ने ब्रह्मा जी को सृष्टि के संचालन के लिए सत्वगुण से विवाह करने का आदेश दिया। तो ब्रह्मा जी जो पत्नी सरस्वती हैं वो महालक्ष्मी की पुत्री हैं। और ब्रहमा की जिव्हा से उत्पन्न सरस्वती विष्णु की पत्नी हैं। अर्थात एक ही नाम सरस्वती दो देवियों का है । एक ब्रह्मा की पत्नी या कहें तो महालक्ष्मी की पुत्री हैं। दूसरी ब्रह्मा की पुत्री या कहें तो विष्णु की पत्नी हैं।

आद्या शक्ति से उत्पन्न हुई हैं सरस्वती :

  • पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि आद्या शक्ति के त्रैगुणात्मक (सत्व, रजस और तमोगुण) शक्तियों से तीन देवियों का प्रादुर्भाव हुआ है। आद्या शक्ति के सत्व गुण से मां, रजस गुण से महालक्ष्मी और तमोगुण से महाकाली का प्रादुर्भाव हुआ है ।
  • आद्याशक्ति से उत्पन्न मां का विवाह ब्रह्मा जी से हुआ , महालक्ष्मी को भगवान विष्णु ने अंगीकार किया औऱ महाकाली को भगवान शिव की अर्धांगिनी बनाया गया ।
  • कुछ पुराणों विशेषकर ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार भगवान विष्णु की तीन पत्नियां हैं- लक्ष्मी, गंगा और सरस्वती। एक बार तीनों में भगवान विष्णु पर अधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया । इस विवाद में गंगा और सरस्वती ने एक दूसरे को नदी होने का शाप दे दिया । इसी शाप की वजह से गंगा और सरस्वती नदियों का पृथ्वी पर अवतरण हुआ।
  • परंतु यह कथा तो पुराणों में आई जरुर है लेकिन वेदों में पहले से ही सरस्वती को नदी के रुप में सबसे पवित्र नदी कह कर उनकी प्रशंसा में कई सूक्तों की रचना हुई है।

माता सरस्वती की महानता को कम करने का षड़यंत्र :

वेदों में जिन माता को ज्ञान की देवी कह कर उनकी वंदना की गई है। कई अन्य पुराणों मे भी माता को आद्या शक्ति की तीन सबसे प्रमुख स्वरुपों में प्रथम स्थान प्राप्त है वहीं बाद के कुछ ग्रंथों में उनकी महानता को कम करने का प्रयास किया गया है।

वाल्मीकि रामायण में कहीं भी मंथरा और कुंभकर्ण की जिव्हा पर सरस्वती के बैठने की कथा नहीं है लेकिन बाद की कुछ राम कथाओं में इसे क्षेपक के रुप में डाल कर माता को एक षड़यंत्रकारी देवी के रुप में दिखलाया गया है जो किसी की भी जिव्हा पर बैठ कर अनर्थ करा सकती हैं।

मंथरा और कुंभकर्ण की कथा :

  • बाद की राम कथाओं  विशेषकर आध्यात्म रामायण में इस तरह की जो कथाएं मिलती हैं। पहली है जब श्री राम को वनवास का षड़यंत्र मंथरा के दिमाग की उपज नहीं थी बल्कि देवताओं के अनुरोध पर मां सरस्वती उसकी जिह्वा पर बैठ गईं थी।
  • दूसरी कथा भी आध्यात्म रामायण और आनंद रामायण आदि में मिलती है। बाद में रचे गए वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में भी यह कथा डाली गई है।
  • कथा यह है कि जब रावण , कुंभकर्ण और विभीषण ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर रहे थे ।
  • तब ब्रह्मा जी ने कुंभकर्ण से वरदान मांगने के लिए कहा । कुंभकर्ण ब्रह्मा जी से इंद्रासन मांगने ही वाला था कि देवताओं के अनुरोध पर मां सरस्वती उसकी जिह्वा पर बैठ गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निंद्रासन मांग लिया। यही वजह थी कि कुंभकर्ण हमेशा सोता रहता था।
  • यह ज्ञान की देवी माता सरस्वती की महानता को कम करने का प्रयास है ।मूल वाल्मीकि रामायण में इस प्रकार की कोई भी कथा नहीं दी गई है।

महान देवी हैं माता सरस्वती :

  • वेदों में माता तीन प्रमुख देवियों में तो हैं ही साथ ही महाभारत में उन्हें तो वेदों की माता कहा गया है जो ब्रह्मा जी के साथ मिल कर सृष्टि का संचालन करती हैं।भारत ही नहीं विदेशों में भी माता की पूजा की जाती रही है। वर्तमान पाकिस्तान में शारदा मंदिर और कश्मीर में स्थित शारदा पीठ मां सरस्वती के प्रमुख प्राचीन मंदिरों में एक हैं।
  • म्यांमार, कंबोडिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड जैसे बौद्ध धर्म प्रधान देशों में भी मां की पूजा की जाती है। इंडोनेशिया के वार्षिक कैलेंडर का आखिरी दिन मां को समर्पित है।
  • भारत में विशेषकर बिहार, बंगाल, केरल और तमिलनाडु में हरेक वंसत पंचमी को माता के प्रादुर्भाव पर उत्सव मनाया जाता है और उनसे ज्ञान प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।
  • कवि कालिदास से लेकर निराला जैसे महान कवियों ने माता सरस्वती की वंदना में कई रचनाएं की हैं।
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