क्या संजय ने महाभारत युद्ध का आंखो देखा हाल सुनाया था

शुद्ध सनातन धर्म का महान ग्रंथ महाभारत अनेक चमत्कारिक घटनाओं से भरा है । इसी में एक चमत्कार वो हैं जिसमें कहा गया है कि संजय को वेद व्यास ने दिव्य दृष्टि दी थी और उसने धृतराष्ट्र को महल में ही बैठे – बैठे पूरे महाभारत के युद्ध का वर्णन प्रत्यक्ष और लाइव टेलीकास्ट के जरिए दिखाया था । क्या सच में ऐसा ही था या फिर मूल महाभारत कुछ और की कथा कहती है जिसके बारे में बहुत से विद्दानों को भी भ्रम रहा है ।

व्यास द्वारा धृतराष्ट्र को आंखे देने का प्रस्ताव :

महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 2 में वेद व्यास जी महाभारत के युद्ध के पूर्व धृतराष्ट्र के पास आते हैं और वो धृतराष्ट्र को युद्ध को प्रत्यक्ष देखने के लिए दिव्य दृष्टि प्रदान करने की बात कहते हैं –

यदि चेच्छसि संग्रामे दृष्टमेतान विशाम्पते ।
चक्षुर्ददानि ते पुत्र युद्धं तत्र निशामय ।।
भीष्म पर्व, अध्याय 2 , श्लोक 6

अर्थात : व्यास जी कहते हैं कि हे पुत्र धृतराष्ट्र अगर तुम इनको ( कौरवो और पांडवो ) को संग्राम में लड़ते हुए देखना चाहता है तो मैं तुम्हें इनका युद्ध देखने के लिए नेत्र दे दूं और तू सुख से संग्राम को देख ।

यहां धृतराष्ट्र को वो ‘चक्षुदर्दानि’ अर्थात ‘आंखे देने’ का वरदान देने की बात कहते हैं, किसी प्रकार की दिव्य दृष्टि जिससे वो महल में बैठे हुए ही युद्ध देख सके ऐसा व्यास जी कुछ भी नहीं कहते हैं । अर्थात अगर धृतराष्ट्र युद्ध को प्रत्यक्ष देखना चाहते थे तो उसे युद्ध भूमि के पास जाना पड़ता और वो अपनी अंधी आँखो के बजाय ठीक हुई आंखो से युद्ध देख सकते थे ।

धृतराष्ट्र द्वारा आंखे ठीक कराने का प्रस्ताव ठुकराना :

धृतराष्ट्र युद्ध भूमि में जाकर अपनी आंखो से अपने लोगों को मरते देखना नहीं चाहते थे इसलिए वो इस प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं और व्यास जी से कहते हैं कि –

न रोचये ज्ञातिवधं द्रस्टुं ब्रम्हर्षिसत्तम ।
युद्धमेतत्वशेषेण श्रुणुयां तव तेजसा ।।
भीष्म पर्व ,अध्याय 2, श्लोक 7

अर्थात : हे ब्रम्हर्षि व्यास जी मुझे अपने जान पहचान वाले संबंधियों के मारे जाने का दृश्य अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं युद्ध के तत्वों के शेष को सुनना चाहता हूं ।

इसका पहला अर्थ ये हो सकता है कि धृतराष्ट्र अपनी आंखो के द्वारा युद्ध भूमि में जाकर युद्ध को प्रत्यक्ष देखना नहीं चाहते थे , दूसरा वो युद्ध का आंखो देखा त्वरित हाल भी नहीं जानना चाहते थे । धृतराष्ट्र युद्ध में हुई घटनाओं के शेष अर्थात घटना हो जाने के बाद उसकी शेष कहानी सुनना चाहते थे । इसका अर्थ यह हो सकता है कि संजय ने भी उन्हें बाद में कथा सुनाई जब युद्ध का अंत हो जाता है ।

अब इसकी पड़ताल करने के लिए हमें आगे के श्लोकों को ध्यान से पढ़ना होगा और इसकी व्याख्या करनी होगी ।

संजय को दिव्य दृष्टि की प्राप्ति :

धृतराष्ट्र के द्वारा नेत्रों को ठीक कराने के व्यास के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद और युद्ध के शेष का वर्णन सुनने की इच्छा से व्यास संजय को एक दिव्य दृष्टि देते हैं वो दिव्य दृष्टि किस प्रकार की थी ? क्या इसके जरिए संजय युद्ध का लाइव टेलीकास्ट कर पा रहे थे या नहीं वो आगे के श्लोकों से ज्ञात हो जाएगी

एतस्मिन्नेच्छति द्रष्टुं संग्रामं श्रोतुमिच्छति ।
वराणामिश्वरो व्यास: संजयाय वरं ददौ ।।
भीष्म पर्व, अध्याय 2, श्लोक 8

अर्थात : युद्ध को प्रत्यक्ष देखना तो नहीं किंतु उसका वर्णन सुनना चाहने वाले धृतराष्ट्र के लिए, वर देने में ईश्वर स्वरुप सक्षम व्यास जी ने संजय को वरदान दिया ।

एप ते संजयो राजन् युद्धमेतद्वद्विष्यति ।
एतस्य सर्वसंग्रामें न परोक्षं भविष्यति ।।
भीष्म पर्व, अध्याय 2, श्लोक 9

अर्थात : व्यास ने धृतराष्ट्र से कहा कि हे राजन संजय आपको युद्ध का सब समाचार बताएगा (बताएगा दिखाएगा नहीं )। संपूर्ण संग्राम में कोई ऐसी बात नहीं होगी जो इसके प्रत्यक्ष न हो ।

चक्षुषा संजयो राजन् दिव्यनैव समन्वित: ।
कथयिष्यति ते युद्धं सर्वज्ञश्च भविष्यति ।।
भीष्म पर्व , अध्याय 2, श्लोक 10

अर्थात : हे राजन दिव्य दृष्टि को प्राप्त हुआ यह संजय आपको रण में जो कुछ घटना होगी वह सब तुझे सुना सकेगा और इसे सर्वज्ञता प्राप्त होगी ।

प्रकाशं वाअप्रकाशं वा दिवा चा यदि वा निशि ।
मनसा चिंतितमपि सर्वे वेत्स्यति संजय ।।
भीष्म पर्व , अध्याय 2, श्लोक 11

अर्थात : व्यास कहते हैं कि प्रत्यक्ष प्रकाशित या अप्रत्यक्ष, अप्रकाशित , दिन या रात तथा मन में विचारी गई बात को भी संजय जान सकेगा ।

संजय का युद्ध भूमि में जाना :

इस श्लोक के बाद का श्लोक ध्यान देने योग्य है क्योंकि इससे पहली बार ज्ञात होता है कि संजय पहले युद्ध भूमि में जाकर इस युद्ध को देखता है इसके बाद वो वापस लौट कर धृतराष्ट्र को कथा सुनाता है –

नैनं शस्त्राणि छेत्स्यन्ति नैनं बाधिष्यते श्रम: ।
गावल्गणिरयं जीवन् युद्धाद्स्माद विमोक्ष्यते ।।
भीष्म पर्व , अध्याय 2, श्लोक 12

अर्थात : व्यास कहते हैं कि संजय को कोई शस्त्र नहीं काट सकेगा और न ही परिश्रम इसको कोई कष्ट दे सकेगा ।यह गल्वगणि ( संजय) जीवित ही युद्ध से लौट आएगा ।

स्पष्ट है कि संजय को दिव्य दृष्टि तो मिली थी लेकिन इस युद्ध को प्रत्यक्ष देखने के लिए उसे भी रणभूमि में जाना ही पड़ा था । इसके बाद वो युद्ध क्षेत्र से जीवित लौट जाता है और धृतराष्ट्र को युद्ध की कहानी बताता है । संजय युद्ध क्षेत्र में जाता है और जब आखिर में भीष्म को शिखंडी के जरिए अर्जुन मार देता है तब एक बार फिर वो धृतराष्ट्र के पास लौटता है और उन्हें इसका समाचार देता है ।

भीष्म की मृत्यु और संजय का युद्ध भूमि से लौटना :

संजय द्वारा महाभारत के युद्ध की कथा का वर्णन उस वक्त से शुरु होता है जब वो भीष्म की मृत्यु का समाचार लाता है औऱ धृतराष्ट्र व्याकुल हो जाते हैं। भीष्म की मृत्यु के समाचार से आहत धृतराष्ट्र संजय से युद्ध का विस्तार से वर्णन करने के लिए कहते हैं और इसके साथ ही संजय द्वारा युद्ध का विस्तार से देखा गया वर्णन फ्लैशबैक में शुरु होता है ।

 भीष्म युद्ध के दसवें दिन मारे जाते हैं । ऐसे में दसवें दिन की घटना से युद्ध का विस्तार से पूर्व में जाकर वर्णन करना यही साबित करता है कि यह कथा फ्लैशबैक में जाकर की गई जब संजय युद्ध भूमि से लौट कर धृतराष्ट्र के पास गए थे । भीष्म पर्व के ही अध्याय 13 के श्लोकों से इसकी जानकारी मिलती है  –

वैशम्पायन उवाच
अथ गावल्गणिर्विद्वान संयुगादेत्य भारत ।
प्रत्यक्षदर्शी सर्वस्य भूतभव्यभविष्यति ।।
ध्यायते धृतराष्ट्राय सहसोत्पत्य दुखित: ।
आचष्ट निहतं भीष्मं भरतानां पितामहम ।।

अर्थात : वैशम्पायन जी कहते हैं कि – भरतनंदन । एक दिन की बात है कि भूत ,वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता और सब घटनाओं को प्रत्यक्ष देखने वाले गल्वणगण पुत्र विद्वान संजय ने युद्ध भूमि से सहसा लौट कर चिंतामग्न धृतराष्ट्र के पास जाकर अत्यंत दुखित होकर भरतवंशियों के पितामह भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनाया ।

संजयोSहं महाराज नमस्ते भरतर्षभ।
हतोभीष्मः शान्तवो भरतानां पितामहः ।

अर्थात : हे महाराज मैं संजय आपको नमस्कार करता हूं। मैं संजय आपकी सेवा में उपस्थित हूं ।भरतवंशियों के पितामह और शांतनु के पुत्र भीष्म आज युद्ध में मारे गए ।

उपर इन श्लोको से यह स्पष्ट हो रहा है कि संजय जिस दिन तक भीष्म को मारा गया युद्ध भूमि में ही थे और उन्होंने अर्जुन के द्वारा भीष्म को मारे जाने की घटना तक युद्ध को प्रत्यक्ष वहीं रणभूमि में देखा था ।

धृतराष्ट्र द्वारा युद्ध का वर्णन पूछना :

भीष्म पर्व के अध्याय 14 में धृतराष्ट्र भीष्म की मृत्यु का समाचार सुन कर विलाप करने लगते हैं और संजय से महाभारत के युद्ध का पूरा वृतांत सुनाने को कहते हैं  –

कथं करुणामृषभो हतो भीष्म शिखंडिना ।
कथं रथात् स न्यपतत् पिता में वासमोपमः ।।
भीष्म पर्व, अध्याय 14, श्लोक 1

अर्थात – धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि कुरुकुल के श्रेष्ठतम पुरुष मेरे पिता तुल्य भीष्म शिखंडी के हाथों कैसे मारे गए । वे इंद्र के समान पराक्रमी थे वो कैसे गिरे ।

इसके बाद के 76 श्लोकों तक धृतराष्ट्र भीष्म की मृत्यु पर विलाप करते हैं और आश्चर्य करते हैं कि कैसे भीष्म जैसा महान योद्धा मारा गया ? इसके बाद भीष्म पर्व के 14वें अध्याय के श्लोक नंबर 77 में वो संजय से युद्ध शुरु होने के पूर्व से लेकर दसवें दिन जब भीष्म को अर्जुन शरशय्या में धराशायी कर देते हैं उसका पूरा वृतांत सुनाने के लिए कहते हैं –

त्स्मान्मे सर्वमाचक्ष्व यद् वृतं तत्र संजय ।
यद वृतं तत्र संग्रामे मन्दस्याबुद्धिसम्भवम ।।
अपनीतं सुनीतं यत् तन्ममाचक्ष्व संजय ।
भीष्म पर्व, अध्याय 14, श्लोक 77

अर्थात : धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं कि मुझसे वहां का सारा वृतांत कहो। मूर्ख दुर्योधन के अज्ञान के कारण उस युद्ध में अन्याय और न्याय की जो जो बातें घटित हुईं, उन सबका वर्णन करो ।

तथा तद्भवद् युद्धं कुरुपांडवसेनयोः ।
क्रमेण येन यस्मिंश्च काले यच्च यथाभवत् ।।
भीष्म पर्व, अध्याय 14 , श्लोक 79-80

अर्थात : धृतराष्ट्र संजय से कहते हैं कि हे संजय  कौरवों पांडवो की सेना का वह युद्ध जिस समय जिस क्रम से और जिस रुप में हुआ था ,वह सब कहो ।

संजय द्वारा युद्ध का प्रारंभ से वर्णन :

जब धृतराष्ट्र भीष्म की मृत्यु का समाचार सुनते हैं तब वो कुरुक्षेत्र से लौटे संजय को युद्ध का पूरा वृतांत जो उसने वहां देखा था उसे प्रारंभ से वर्णन करने के लिए कहते हैं। तब संजय धृतराष्ट्र के सामने युद्ध का फ्लैशबैक में जाकर वर्णन भीष्म पर्व के अध्याय 15 से शुरु करते हैं –

हयानां च गजानां च राज्ञां चामिततेजसाम ।
प्रत्यक्षं यन्मया दृष्टं दृष्टं योगबलेन च ।।
श्रुणु तत् पृथ्वीपाल मा च शोके मनः कृथाः ।
दिष्टमेतत् पुरा नूनमिदमेव नराधिपः ।
भीष्म पर्व, अध्याय 15, श्लोक 5-6

अर्थात : संजय कहते हैं कि हे पृथ्वी के पति मैंने हाथियों,घोड़ों और अमित तेजस्वी राजाओं के विषय में जो कुछ अपनी आंखों से देखा है ( देख नहीं रहे , देख चुके हैं ) और योगबल से जिनका साक्षात्कार किया है ( क्योंकि व्यास ने उन्हें सभी के मन की बातें भी जानने की शक्ति दी थी ) , वह सब वृतांत सुना रहा हूं, सुनिये और अपने मन को शोक में न डालिए। निश्चय ही दैव का यह विधान मुझे पहले से ही प्रत्यक्ष हो चुका है ( अर्थात संजय पहले से ही दैवी विधान के द्वारा तय युद्ध को देख चुके थे और अब लौट कर धृतराष्ट्र के सामने इसका वर्णन कर रहे हैं) ।

संजय द्वारा अपनी दिव्य शक्तियों का वर्णन :

नमस्कृत्वा पितुस्तेSहं पाराशर्याय धीमते ।
यस्य प्रसादाद् दिव्यं तत् प्राप्तं ज्ञानमनुत्तमम् ।
दृष्टिश्चातीन्द्रिया राजन् दूराच्छ्रवणमेव च ।
परचित्तस्य विज्ञानमतीतानागतस्य च ।
व्युत्थितोत्पत्तिविज्ञानमाकाशे च गतिः शुभा ।
अस्त्रैरसंगो युद्धेषु वरदानान्महात्मनः ।
श्रुणु मे विस्तरेणेदं विचित्रं परमाद्भ्दुतम ।
भरतानांभूद् युद्धं यथा तल्लोमहर्षणम् ।
भीष्म पर्व, अध्याय 15, श्लोक – 7-10

अर्थात : संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं कि हे राजन ! जिनके कृपा प्रसाद से मुझे परम उत्तम दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है ,इंद्रियातीत विषयों को भी  प्रत्यक्ष देखने वाली दृष्टि मिली है ,दूर से भी सब कुछ सुनने की शक्ति, सबके मन की बातों को समझ लेने का सामर्थ्य ,भूत और भविष्य का ज्ञान, शास्त्र के विपरीत चलने वाले मनुष्यों की उत्पत्ति का ज्ञान, आकाश में चलने फिरने की उत्तम शक्ति, तथा युद्ध के समय में अस्त्रों से अपने शरीर को अछूते रहने का अद्भुत चमत्कार, आदि सब बातें जिन महात्मा के वरदान से मेरे लिए संभव हुई हैं, उन्हीं पराशरनंदन आपके पिता व्यास जी को नमस्कार करके इस अत्यंत अद्भुत,विचित्र और रोमांचकारी युद्ध का वर्णन आरंभ करता हूं ।

इन श्लोकों से कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं –

  • धृतराष्ट्र को सारी कथा फ्लैशबैक में सुनाई गई जब संजय युद्ध को देख के लौटते थे ।
  • पहली बार संजय युद्ध भूमि से दसवें दिन लौटे और उन्होंने भीष्म के शरशय्या पर धराशायी होने का समाचार सुनाया ।
  • संजय द्वारा धृतराष्ट्र को कथा का वर्णन दसवें दिन से शुरु किया गया जब तक युद्ध का एक बड़ा हिस्सा लड़ा जा चुका था ।
  • दस दिन तक लगातार संजय युद्धभूमि में रह कर ही युद्ध देख रहे थे ।
  • संजय को जो दिव्य दृष्टि मिली थी उससे वो युद्ध को प्रत्यक्ष रुप से देख तो सकते थे लेकिन इसके लिए उनका रणभूमि में रहना जरुरी था ।
  • संजय रणभूमि में रहकर प्रत्यक्ष और सुरक्षित हो कर युद्ध देख सकें इसके लिए व्यास जी ने उन्हें अस्त्रों से सुरक्षित रहने का वरदान दिया था ।
  • संजय कभी भी कहीं भी आ जा सकें और जरुरत पड़े तो हस्तिनापुर आकर धृतराष्ट्र को कथा सुनाएं और फिर अगले ही दिन त्वरित गति से युद्ध भूमि में लौट सकें इसके लिए व्यास जी ने उन्हें आकाश में उड़ने की भी शक्ति दी थी ।
  • संजय युद्ध भूमि में रहने वाले तमाम लोगों के मन की बातें भी जान सकें यह वरदान भी उन्हें व्यास जी ने दिया था ।
  • व्यास जी ने संजय को प्रकाश और अंधेरी रात में भी घटने वाली बातों को जानने की दिव्य शक्ति दी थी ।
  • व्यास जी ने संजय को त्रिकालदर्शी अर्थात भूत, वर्तमान और भविष्य की घटनाओं को भी जानने और उसके कार्य कारण संबंध को समझने की भी शक्ति दी थी ।

सारांश रुप में ही कहा जा सकता है कि संजय को दिव्य दृष्टि तो प्राप्त थी लेकिन वो लाइव टेलीकास्ट नहीं कर सकते थे। दूसरे उन्हें व्यास ने दिव्य दृष्टि के अलावा ऐसी बहुत सी शक्तियों का वरदान दिया था जिससे वो आकाश में चल सकते थे. समय के पार जा सकते थे और अस्त्रों से सुरक्षित रह सकते थे ।

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