शुद्ध सनातन धर्म अपने कई संप्रदायों के लिए विख्यात है । सिख संप्रदाय भी सनातन धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा है। यदि प्रथम पूज्य गुरु नानक जी ने सनातन धर्म की अद्वैत पंरपरा से खुद को जोड़ा तो दशमेश पूज्य गुरु गोबिंद सिंह जी ने भक्ति और निर्गुण दोनों ही सनातनी परंपरा से सिख संप्रदाय को जोड़ दिया।
पूज्य गुरु गोबिंद सिंह का सनातन धर्म से रिश्ता :
हमारे दशमेश और पूज्य गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने ‘बिचित्र नाटक’ की रचना। इस रचना के द्वारा उन्होंने सारे संसार को यह बताया कि स्वयं वो और पूज्य प्रथम गुरु श्री नानक जी स्वयं इक्ष्वाकु वंश और श्री राम के वंशज हैं।
लव और कुश के कुलों से हैं प्रथम गुरु श्री नानक जी और पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी :
सूर्यकुल तिलक और इक्ष्वाकु वंश जिसमें भगवान श्री राम का अवतरण हुआ , उसी वंश में सिख संप्रदाय के प्रथम गुरु श्री नानक जी ने भी अवतार लिया। पूज्य गुरु नानक जी का जन्म बेदी परिवार में हुआ था, जबकि दशमेश पूज्य गुरु श्री गोबिंद सिंह जी का अवतरण सोढ़ी वंश में हुआ था। इन दोनों ही कुलों का संबंध भगवान श्री राम के पुत्रों लव और कुश के वंश से है।
पूज्य दशमेश गुरु गोबिंद सिंह जी अपने ‘बिचित्र नाटक’ में पूरे सूर्य वंश का इतिहास लिखते हैं और कहते हैं कि –
बेदी भयों प्रसंन राज कह पाइकै। देत भयो बरदान हीए हुलसाइकै ।
जब नानक कल मै हम आन कहाई है। हो जगत पूज करि तोहि परम पद पाई है।।4.7।।
अर्थः- कुश वंश के बेदी प्रमुख ने लव वंश के सोढ़ी राजा को यह वरदान दिया कि जब आगे चल कर कुश वंशीय बेदियों में नानक जी का अवतार होगा तब वो लव वंश के सोढ़ी कुल को एक बार फिर से उच्च अवस्था प्रदान करेंगे ।
तिन बेदियन के कुल बिखे प्रगटे नानक राई।
सब सिक्खन को सुख दए जह तह भए सहाई।।5.4।।
अर्थः-कालांतर में कुश वंश के बेदियों के यहां श्री नानक जी का प्रागट्य हुआ और सभी सिक्खों को उन्होंने सुख दिया।
इसके बाद दशमेश पूज्य गुरु श्री गोबिंद सिंह जी अपने कुल को वर्णन करते हुए कहते हैं –
जब बर दानि समै वहु आवा । रामदास तब गुरु कहावा।
तिह बरदानी पुरातनि दिआ। अमरदासि सुरपुरि मगु लिआ।।5.8।।
अर्थः- लव वंशीय सोढ़ी कुल में पूज्य गुरु श्री रामदास जी हुए और उन्हीं के कुल में बाद में पूज्य दशमेश श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ।
दशमेश पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का ‘अयोध्या’ से संबंध
वैसे तो हम सभी जानते हैं कि दशमेश पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सनातन हिंदू धर्म की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। लेकिन बहुत कम ही लोगों को यह पता है कि पूज्य दशमेश ने अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि आंदोलन के लिए भी महान योगदान किया था।
श्रीराम जन्मभूमि और पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी :
अयोध्या के श्री राम जन्मभूमि के पास ही स्थित गुरुद्वारा ‘ब्रह्मकुंड’ में पूज्य गुरु गोबिंद सिंह जी के अयोध्या आगमन और श्रीराम जन्मभूमि जाने का इतिहास दर्ज है। इतिहास के अनुसार पूज्य गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी पूज्य माता श्रीमती गुजरीदेवी और अपने मामा कृपाल सिंह जी के साथ श्रीराम जन्मभूमि के दर्शन किये थे और यहां उन्होंने बंदरों को चने भी खिलाए थे।
जब पूज्य गुरु श्री गोबिंद सिंह जी ने अयोध्या की रक्षा की
इतिहास के अनुसार जब औरंगजेब की सेना ने अयोध्या पर हमला किया और प्रभु श्री राम की पवित्र नगरी को अपवित्र करने का कुत्सित प्रयास किया। मुगलों के हमले की जानकारी जैसे ही चिमटाधारी संत बाबा वैष्णवदास जी को लगी तो उन्होंने सनातन धर्म उद्धारक दशमेश पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी से श्रीराम जन्मभूमि की रक्षा की गुहार की। पूज्य दशमेश उस वक्त आनंदपुर साहिब में प्रवास कर रहे थे। दशमेश पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने तुरंत निहंगों की सेना को वहां भेजा और इस सेना ने चिमटाधारी साधुओं के साथ मिलकर औरंगजेब की मुगल सेना को पराजित कर श्री राम जन्मभूमि की रक्षा की ।
अयोध्या में हैं पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की निशानियां : इसके बाद भी पूज्य दशमेश श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का विक्रम संवत् 1726 में अयोध्या आगमन हुआ। उनके खंज़र, तीर आदि शस्त्र आज भी गुरुद्वारा ब्रह्मकुंड में निशानी के रुप में मौजद है।
अयोध्या से है पूज्य सिख गुरुओं का गहरा नाता :
अयोध्या में इससे पहले प्रथम गुरु श्री नानक जी का विक्रम संवत् 1557 में आगमन हुआ था और यहां पूज्य नानक जी ने ब्रम्हा जी के मंदिर स्थित दुखभंजनी नामक पवित्र कुएं के जल से स्नान भी किया था। विक्रम संवत् 1725 में अयोध्या नगरी में परम तेजस्वी पूज्य गुरु श्री तेगबहादुर जी का भी आगमन हुआ था। असम से पंजाब जाते वक्त पूज्य गुरु श्री तेगबहादुर जी ने अयोध्या में 2 दिनों का तप भी किया था।
मां दुर्गा की अन्य भक्ति की पराकाष्ठा हैं पूज्य श्री गुरु गोबिंद सिंह जी
पूज्य दशमेश श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सनातन धर्म की व्याख्या के लिए कई रचनाएं की जिनमें ‘चंडी चरित्र’ विशेष रुप से उल्लेखनीय है। यह स्तुति ‘दशम ग्रंथ’ के ‘उक्ति बिलास’ नामक विभाग का एक हिस्सा है। शक्ति की उपासना सिक्ख संप्रदाय का एक अभिन्न अंग है। पूज्य दशमेश ने आदि शक्ति को दुर्गा, चंडी, भगोती ( भगवती), काली,पार्वती, शिवा आदि नामों से पुकारा है।
सिख संप्रदाय में चंडी या दुर्गा को ही आदि शक्ति कहा गया है। इसी से सारे संसार की उत्पत्ति बताई गई है। यही आदिशक्ति सारे संसार का पालन और संहार भी करने वाली है। सिख संप्रदाय के अनुसार प्रथम गुरु पूज्य श्री नानक जी समेत सारे सतगुरुओं ने इन्ही भगोती( भगवती) का ध्यान किया था। सिख संप्रदाय की अरदास भी यहीं से प्रारंभ होती है –
प्रिथम भगौती सिमरि कै गुरु नानक लई धिआइ
अर्थः- मैं उस भगोती की सिमर रहन हूँ जो नानक गुर के ध्यान में आई थी।
सिख संप्रदाय में आदि शक्ति का स्वरुप निराकार है :
जहां सनातन धर्म के ‘शाक्त संप्रदाय’ में शक्ति की अराधना सगुण रुप में होती है और मूर्ति पूजा की परंपरा है, वहीं सनानत धर्म के ही सिख संप्रदाय में शक्ति की अराधना निराकार रुप मे होती है और मूर्ति पूजा का विरोध किया गया है।
पूज्य दशमेश श्री गुरु गोबिंद सिंह जी अपनी वाणी में कहते हैं –
पवित्री पुनीता पुराणी परेयं।
प्रभी पूरणी पारब्रम्ही अजेयं ।।
अरुपं अनूपं अनामं अठामं।
अभीतं अजीतं महा धरम धामं।।
चंडी चरित्र- भाग 2
अर्थः- हे देवी तू पवित्र, पुनित, पौराणिक है। तू ही पारब्रम्ही और अजेय है। तेरा कोई रुप नहीं है, तू अनूप है और अनाम है। तूझे कोई जीत नहीं सकता । तू ही महाधर्म धाम है।
पूज्य गुरु गोबिंद सिंह जी ने जिस आद्यशक्ति की निराकार रुप में वंदना की है वही सनातन धर्म की आद्याशक्ति हैं जो निराकार ब्रह्म हैं। पूज्य दशमेश उन्हीं आदिशक्ति को ‘शिवा’ के नाम से भी संबोधित करते हैं और उनकी वंदना करते हुए कहते हैं कि वो उन्हें ऐसा वर दें जिससे वो शुभ कर्म करने से कभी विचलित न हों और हमेशा अपराजेय रहें-
देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कभुं न टरूं ।
न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं।।