ऋषि मुनि संत महात्मा साधु

ऋषि, मुनि, संत, महात्मा, साधु, योगी और सिद्ध किन्हें कहते हैं

आमतौर पर हम ऋषि- मुनि, संत, महात्मा, साधु, महंत, पुरोहित, पुजारी, आचार्य, गुरु, सिद्ध, योगी, पंडित, ब्राह्म्ण, और ज्ञानी के बीच भेद नहीं कर पाते हैं। किसी भी धार्मिक और आध्यात्मिक कर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए इनमें से कोई भी संज्ञा प्रयुक्त कर लेते हैं। जबकि मूल रुप से अगर देखें तो इन सबके अर्थ, कार्य और विशेषताएं एक दूसरे से एकदम अलग- अलग हैं।

ऋषि कौन हैं :

‘ऋषि’ संज्ञा उस व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जिसने वैदिक ऋचाओं और मंत्रों की रचना की है और अपने द्वारा रचित मंत्र या ऋचा के द्वारा परम सत् या परम तत्व का साक्षात्कार किया है। वैदिक ऋचाओं के रचयिताओं को मंत्रद्रष्टा कहा गया है। विश्वामित्र, वशिष्ठ, अगत्स्य, अत्रि, अंगिरा आदि महान ऋषि हुए हैं ।

मुनि कौन हैं :

  • ‘मुनि’ संज्ञा उस व्यक्ति के लिए प्रयोग की जाती है जिसके मन में किसी भी कामना का कोई भी ज्वार नहीं उठता है। उसका मन एकदम शांत है। मुनि का संबंध बाहरी मौन से नहीं है। आमतौर पर यह माना जाता है कि जिसने मौन व्रत धारण कर लिया है वही मुनि है।
  • वास्तव में ऐसा नहीं है, हम कई बार मौन धारण करते हैं लेकिन फिर भी हमारे अंदर लगातार कोई न कोई विचार चलता रहता है। आप सड़क पर चलते हुए लोगों को ध्यान से देखें तो वो भले ही उपर से मौन हों लेकिन उनके अंदर विचारों का वाक्युद्ध लगातार चलता रहता है।
  • जो जहां है वो वहां उपस्थित नहीं दिखता। कोई बड़बड़ाता जा रहा है तो कोई अपने उपर झुंझलाते हुए रास्ते में जा रहा है, तो कोई आनंद में गीत गाता जा रहा है। उन सबके भीतर लगातार कोई न कोई संवाद चल रहा है। अपने आप से संवाद करते रहना अस्थिर बुद्धि का लक्षण है।
  • जिसने अपने अंदर की सभी भावनाओं के ज्वार से खुद को मुक्त कर लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है। वह व्यक्ति अगर आपसे बात भी कह रहा है या मौन व्रत का त्याग भी कर लिया है तो भी वह व्यक्ति मुनि कहा जाता है। मुनि का अर्थ है जिसके अंदर कामनाओं और विचारों का संवाद और विवाद खत्म हो गया है। जिसका मन स्थिर हो गया है वही मुनि है।

संत, महात्मा और साधु किसे कहते हैं :

‘संत’ वो है जिसने अविनाशी सत् को जान लिया है। ‘महात्मा’ वह है जिसकी आत्मा किसी भी क्षुद्र विचारों से व्यथित नहीं होती, वो महान और पवित्र कार्यों के संलग्न है। ‘साधु’ एक सरल स्वभाव है जो किसी के भी अंदर हो सकता है।

योगी और सिद्ध किसे कहते हैं :

जिसने कर्मयोग के द्वारा समत्व बुद्धि को प्राप्त कर अविनाशी सत् के साथ खुद का योग करा लिया है वही योगी है। ‘सिद्ध’ वो है जिसने कुंडलिनी जागरण के द्वारा अविनाशी सत् का साक्षात्कार किया है।

महंत, पुजारी और पुरोहित कौन हैं :

सनातन धर्म को राजनैतिक और धार्मिक तथा नैतिकता से जोड़ने वाले व्यक्तियों को इस संज्ञा में रखा जा सकता है। महंत किसी संप्रदाय विशेष की व्यवस्था का उच्चतम अधिकारी होता है। पुरोहित धार्मिक कर्मकांडों को संपन्न कराने वाला व्यक्ति होता है। पुजारी ईश्वर की मूर्ति की सेवा करने वाला सेवक है।

आचार्य और गुरु कौन हैं :

‘आचार्य’ धार्मिक पुस्तकों के ज्ञाता होते हैं। ये सनातन धर्म की महान परंपरा के अंदर लिखी गई पुस्तकों के व्याख्याकार होते हैं। ये एक प्रकार के धार्मिक शिक्षक होते हैं।

‘गुरु’ वो है जो किसी भी व्यक्ति की चेतना को ईश्वर की परम चेतना से मिला देता है। गुरु की महिमा ऋषि, मुनि, साधु और संतों सबने गाई है। बिना गुरु के बताए रास्ते के कोई भी न तो ऋषि हो सकता है, न मुनि बन सकता है और न ही संत, महात्मा, आचार्य या योगी बन सकता है।

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