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रामलीला अर्थात प्रभु श्री राम की लीला :
‘रामलीला’ अर्थात् भगवान विष्णु के मर्यादापुरुषोत्तम अवतार श्रीराम के द्वारा की गई लीला। शास्त्रों के अनुसार विष्णु हरेक युग में पृथ्वी पर नर या इंसान का शरीर धारण कर जन्म लेते हैं और पृथ्वी पर अनेक प्रकार के कार्य करते हैं, जिन्हें वैष्णव संप्रदाय में ‘लीला’ कहा जाता है । विष्णु के अवतारों की लीलाओं में सबसे प्रमुख श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाएं हैं। श्रीराम की लीला को वाल्मीकि , तुलसी, कंब, कृतिवास आदि ने लिपिबद्ध किया और अपनी पुस्तकों के माध्यम से प्रचारित किया। श्रीकृष्ण की लीला को श्रीमद्भागवत में वेद व्यास जी ने लिपिबद्ध किया और इनके अलावा अनेक संतों ने श्रीकृष्ण की लीलाओं पर बहुत कुछ लिखा और गाया।
श्रीराम के जन्म से लेकर उनके जीवन की संपूर्ण यात्रा को सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि ने श्लोकबद्ध किया और उस लीला को ‘रामायण’ का नाम दिया । ‘रामायण’ अर्थात राम की यात्रा । वाल्मीकि ने ब्रह्मा के आदेश से और देवर्षि नारद के कहने पर श्रीराम की यात्रा को ‘एक नर से ईश्वर के रुप’ में परिवर्तित होने की यात्रा के रुप में लिखा । गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान शिव के मानस में अंकित श्रीराम की लीला को श्री रामचरितमानस के रुप में लिखा ।
विदेशों में भी खेली जाती है रामलीला :
आज भले ही सनातन धर्म भारत ,नेपाल और मॉरिशस में सीमित रह गया है, लेकिन विश्व भर में सनातन हिंदू धर्म को मानने वालों की संख्या बढ़ रही है। इसके अलावा ईसाइयत और इस्लाम के आने से पहले पूरे विश्व में हिंदू धर्म के विचारों का प्रसार था। प्राचीन विश्व में हिंदू धर्म के विचारों के साथ रामलीला का भी प्रचार हुआ । यही वजह है कि हजारों वर्षों से देश और दुनिया के कई देशों में प्रभु श्रीराम की लीलाओं पर आधारित रामलीला के मंचन की प्रथा रही है । भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड और मलेशिया सहित कई देशों में आज भी नवरात्रि के अवसर पर रामलीला के मंचन की परंपरा रही है ।
श्रीराम जन्म की कथा :
वाल्मीकि रचित ‘रामायण’ और गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री ‘रामचरितमानस’ के ‘बालकांड’ में भगवान श्रीराम के जन्म की कथा दी गई है। तुलसीदास जी ने प्रभु श्रीराम के जन्म को एक ईश्वरीय अवतार के रुप में जन्म लेते दिखाया है और उनके जन्म को दिव्य और अलौकिक रुप में दिखाया है। तुलसी के राम पहले विष्णु के रुप में प्रगट होते हैं और कौशल्या उन्हें देख कर अभिभूत हो जाती हैं –
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रुप बिचारी ।।
इस स्तुति के बाद भगवान विष्णु से कौशल्या आग्रह करती हैं कि वो अपने इस विष्णु रुप का त्याग करें और बालक रुप में शिशु लीला करें –
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रुपा ।
कीजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख रुप अनूपा ।।
जहां तुलसीदास जी के बालक राम के जन्म पहले विष्णु को प्रगट होते दिखाया है वहीं वाल्मीकि प्रभु श्रीराम को एक सामान्य शिशु के रुप में माता के गर्भ से पैदा हुए दिखाते हैं –
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् |
कौसल्याजनयद्रामं सर्वलक्षणसंयुतम् || 1.18.10
विष्णोरर्धं महाभागं पुत्रमैक्ष्वाकुनंदनम् |
लोहिताक्षं महाबाहुं रक्तौष्ठं दुंदुभिस्वनम् || 1.18.11
-वाल्मीकि रामायण बालकांड
अर्थः- सूर्य के उदित अभिजीत नक्षत्र ( प्रोद्यमाने) में जगत के नाथ और सभी लोकों में वंदनीय विष्णु के आधे गुणों से युक्त ( विष्णोर्धं) इक्ष्वाकु वंश मे कौशल्या के गर्भ से महाभाग, महाबाहु जिनके होंठ रक्त की तरह लाल थे, जिनकी आँखे लोहित की तरह लाल थीं, श्रीराम ने जन्म लिया ।
वाल्मीकि जी ने श्रीराम को विष्णु के आधे अँश से युक्त बताया है, क्योंकि कौशल्या को दशरथ जी ने पुत्र कामेष्टि यज्ञ से प्राप्त खीर का आधा भाग ही खिलाया था। अतः विष्णु ने अपने आधे गुणों से युक्त होकर श्रीराम के रुप में जन्म लिया । बाकी के भागों से विष्णु जी ने भरत,लक्ष्मण और शत्रुघ्न के रुप में जन्म लिया। इस प्रकार त्रेता युग में विष्णु ने एक साथ चार भाइयों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रुप में जन्म लिया । ये सभी विष्णु के अवतार थे । ऐसा ही “रामचरितमानस’ में तुलसीदास भी लिखते हैं-
तिन्ह के गृह अवतरिहउं जाई। रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई ।।
अर्थात : तुलसी के अनुसार भी श्रीराम ही नहीं उनके तीनों भाई भी भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार थे ।
श्रीराम नर हैं या नारायण ? :
हालाँकि तुलसीदास श्रीराम के जन्म को विष्णु के प्रगट होने के रुप में ही दिखाते हैं, लेकिन वाल्मीकि रामायण में प्रारंभ के कुछ श्लोकों से यह लगता है कि वाल्मीकि के राम एक नर के रुप में विष्णु का अवतार तो हैं, लेकिन वो धीरे धीरे अपने आप को ईश्वर के रुप में स्थापित करते हैं। वाल्मीकि के राम कि तुलसीदास के राम की तरह अपने जन्म के साथ ही अपना अवतारी रुप नहीं दिखाते हैं । वाल्मीकि रामायण के ‘बालकांड’ के प्रथम सर्ग में नारद और वाल्मीकि संवाद है । इस संवाद में वाल्मीकि जी नारद से पूछते हैं कि” वो कौन नर है जो सभी गुणों से युक्त है उनके बारे में मैं जानना चाहता हूं”
तपःस्वाध्यायनिरतं तपस्वी वाग्विदां वरम् |
नारदं परिपप्रच्छ वाल्मीकिर्मुनिपुङ्गवम् || १-१-१
को न्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान् |
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः || १-१-२
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे |
महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् || 1.1.5
अर्थात्ः- तपस्वी वाल्मीकि वेदों और स्वाध्याय में निरत देवर्षी नारद से पूछते हैं ” इस समय संसार में कौन ऐसा इंसान है जो गुणवान, वीर्यवान, धर्म को जानने वाला, उपकारी और अपने सत्य वचन पर ढृढ़ रहने वाला है । मैं ऐसे नर के बारे में जानना चाहता हूं और आप ही उस इंसान के बारे में बताने में सामर्थ्यवान हैं।”
वाल्मीकि रामायण के प्रारंभिक श्लोकों में श्रीराम एक श्रेष्ठ इंसान के रुप में दिखाए गए हैं लेकिन धीरे- धीरे वाल्मीकि अपने रामायण में राम के एक श्रेष्ठ नर से ईश्वर के रुप में स्थापित करते हैं। भले ही वाल्मीकि और तुलसीदास की रामकथाओं में शुरु में थोड़ा अंतर दिखता है, लेकिन दोनों ही आखिरकार इस बात से सहमत हो जाते हैं कि श्रीराम सिर्फ नरोत्तम नही बल्कि साक्षात ईश्वर विष्णु ही हैं। यही वजह है कि ‘बालकांड’ में ही वाल्मीकि श्रीराम को विष्णु के आधे भाग से उत्पन्न बताते हैं ।
विष्णु ने राम के रुप में पृथ्वी पर क्यों अवतार लिया :
भगवान विष्णु ने श्रीराम के रुप में क्यों अवतार लिया, इसकी सबसे सटीक जानकारी वाल्मीकि रामायण में मिलती है। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक श्रीराम के रुप में भगवान विष्णु के जन्म लेने की असली वजह रावण का वध कर देवताओं को रावण के अत्याचारों से मुक्त करना था। रावण ने अपने अत्याचारों से तीनों लोकों को दग्ध कर दिया था और ब्रह्मा के द्वारा प्राप्त वरदान से वह देवताओं, किन्नरों, यक्षों और गंधर्वों के द्वारा मारा नहीं जा सकता था । रावण को सिर्फ कोई नर या इंसान ही मार सकता था। लेकिन कोई सामान्य इंसान नहीं, बल्कि कोई अवतारी पुरुष ही रावण का वध कर सकता था ।
विष्णु से श्रीराम रुप में अवतार लेने के लिए देवताओं की प्रार्थना
दशरथ निःसंतान थे, लेकिन उन्हें एक आशा थी कि उनके घर पुत्र का जन्म अवश्य होगा ,क्योंकि श्रवण कुमार के पिता ने उन्हें शाप दिया था, कि वो भी अपने पुत्र के वियोग में प्राण देंगे । इस शाप में दशरथ के पिता बनने की संभावना थी । इसी संभावना नें विष्णु के द्वारा श्रीराम के रुप में अवतार लेने का मार्ग बनाया ।
पुत्र प्राप्ति की आशा और विश्वास से दशरथ जी ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ के अंत में ‘पुत्रकामेष्टि’ अनुष्ठान का कर्मकांड भी किया। इस ‘पुत्रकामेष्टि’ अनुष्ठान को देवताओं ने एक अवसर के रुप में लिया और भगवान विष्णु से आग्रह किया कि ‘वो ही दशरथ के घर पुत्र के रुप में जन्म लें और रावण का वध करें’-
एवं पितामहात्तस्माद्वरदानेन गर्वितः || १-१६-६
उत्सादयति लोकांस्त्रीन् स्त्रियश्चाप्यपकर्षति |
तस्मात्तस्य वधो दृष्टो मानुषेभ्यः परन्तप || १-१६-७
अर्थः- देवता विष्णु जी से कहते हैं- “हे विष्णु ! रावण ने ब्रह्मा से वरदान पाने के बाद अत्याचार करना शुरु कर दिया है। वो स्त्रियों पर भी अत्याचार कर रहा है । रावण का वध सिर्फ मानव रुप में ही किया जा सकता है, क्योंकि वो किसी और तरीके से मारा नहीं जा सकता ।”
विष्णु ने दशरथ के यहां जन्म लेने का निर्णय किया –
इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान् |
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् || १-१६-८
अर्थः- देवताओं के ऐसे वचन सुन कर विष्णु जी ने राजा दशरथ को अपने पिता के रुप में चुना ।
इसी प्रकार की कथा तुलसीदास के रामचरितमानस में भी मिलती है, लेकिन वाल्मिकी रामायण में इस प्रसंग को विस्तार से बताया गया है। रावण के अत्याचार से त्रस्त होकर जब सभी देवता ब्रह्मा से प्रार्थना करते हैं तो ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की स्तुति करते हैं। तब भगवान विष्णु प्रगट होकर ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं को आश्वासन देते हैं कि वो दशरथ जी के यहां श्रीराम के रुप में जन्म लेंगे।
श्रीराम का जन्म दशरथ के यहां ही क्यों हुआ?
ये प्रश्न अक्सर उठाया जाता है कि आखिर विष्णु ने श्रीराम के रुप में दशरथ के यहां ही क्यों जन्म लिया? तुलसीदास के रामचरितमानस में कहा गया है कि पूर्व काल में कश्यप ऋषि और माता अदिति ने बड़ा भारी तप किया था और भगवान विष्णु को अपने पुत्र के रुप में पाने की कामना की थी। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया था कि वो त्रेतायुग में दशरथ के रुप में जन्में कश्यप और माता कौशल्या के रुप में जन्मी माता अदिति के यहां जन्म लेंगे –
जनि डरपहुं मुनि सिद्ध सुरेसा ।तुम्हि लागि धरिहउं नर बेसा ।।
कस्यप अदिति महातप कीन्हा । तिन्ह कहुं मैं पूरब बर दीन्हा ।।
ते दसरथ कौसल्या रुपा । कोसलपुरी प्रगट नर भूपा ।।
इसके अलावा तुलसीदास जी ने माता कौशल्या को भगवान विष्णु के भक्त के रुप में भी दिखाया है, जब भगवान श्री विष्णु श्रीराम के रुप में उनके सामने प्रगट होते हैं तब माता कौशल्या उनकी स्तुति करती हैं –
भय प्रगट कृपाला दीन दयाला । कौसल्या हितकारी ।
दशरथ जी और कौशल्या जी के पूर्व जन्म की तपस्या का परिणाम ही था कि साक्षात विष्णु ने उनके घर श्रीराम के रुप में जन्म लिया।
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