ऋषियों राम रावण का युद्ध

राम रावण का युद्ध ऋषियों की योजना का परिणाम

रामलीला मर्यादापुरुषोत्तम राम के द्वारा पृथ्वी पर की जाने वाली वो अद्भुत लीला है जिसके द्वारा धर्म की संस्थापना हुई और साधुओं और ऋषियों का कल्याण हुआ।भगवान श्री हरि विष्णु ने कृष्णावतार के दौरान श्री मद्भगवद्गीता में स्पष्ट कहा है कि वो हरेक युग में साधुओं या ऋषियों के कष्टों को तारने के लिए और धर्म की संस्थापना के लिए अवतार लेंगे । तो क्या श्री राम का अवतरण का संबंध भी साधुओं और ऋषियों की कल्याण के लिए था और राम के इस कल्याणकारी उद्देश्य की योजना समस्त ऋषियों ने मिल कर ही की थी ।

प्रभु श्री राम के जीवन में ऋषियों का महत्व :

प्रभु श्री राम के जन्म से लेकर उनके द्वारा रावण का वध और राम राज्य की स्थापना तक हरेक बिंदु पर हम ऋषियों को देखते हैं। श्री राम का जन्म ही दो ऋषियों के कार्यों का परिणाण था। वाल्मीकि रामायण के बालकांड में जब राजा दशरथ संतानहीन होने को लेकर दुखित होते हैं तो उनके राजपुरोहित ऋषि वशिष्ठ उन्हें यज्ञ करने की सलाह देते हैं। इस यज्ञ में वो पुत्रकामेष्टि कर्मकांड करने की सलाह देते हैं। इसके लिए ऋषि वशिष्ठ ही योग्य़ पुरोहित के रुप में ऋष्यश्रृंग ऋषि को आमंत्रित करने की सलाह देते हैं। ऋषि ऋष्यश्रृंग के द्वारा कराए गये पुज्ञकामेष्टि यज्ञ के बाद ही दशरथ के यहां भगवान विष्णु श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के रुप मे अंशों के साथ अवतार लेते हैं। श्री राम और सारे भाइयों की प्रारंभिक शिक्षा भी गुरु वशिष्ठ के द्वारा ही दी जाती है । इस प्रकार प्रभु श्री राम का जन्म ही ऋषियों के अथक कार्यों के फलस्वरुप हुआ ।

ऋषि विश्वामित्र द्वारा श्री राम को महान योद्धा के रुप में परिणत करना :

  • जब प्रभु श्री राम 12 वर्ष के हो जाते हैं तो दशरथ के दरबार में ऋषि विश्वामित्र पधारते हैं और ताड़का, सुबाहु और मारीच के अत्याचारों से यज्ञों और ऋषियों को बचाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण को दशरथ से मांगते हैं। जब दशरथ मोहवश अपने पुत्र श्री राम को विश्वामित्र के साथ भेजने से इंकार करते हैं तब भी ऋषि वशिष्ठ ही उन्हें समझाते हैं और श्री राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेजते हैं। वशिष्ठ और विशवामित्र दोनों ही ब्रम्हर्षि थे और दोनों को श्री राम के अवतरण का महान उद्देश्य ज्ञात था । ये दोनों ही जानते थे कि विष्णु ने श्री राम के रुप में अवतार रावण का वध करने के लिए लिया है । इसलिए वो श्री राम को एक महान योद्धा के रुप में परिणत करना चाहते थे । 
  • जब श्री राम ताड़का और सुबाहु का वध कर देते हैं तो विश्वामित्र उन्हे बला और अतिबला नामक दिव्य शक्तियों से लैस कर देते हैं । इन दोनों शक्तियों के फलस्वरुप श्री राम युद्ध में अपराजेय हो जाते हैं। 
  • इसके बाद विश्वामित्र को इंद्र आकर निवेदन करते हैं कि अब वक्त आ गया है कि श्री राम को भविष्य में होने वाले रावण के साथ युद्ध के लिए प्रशिक्षित कर दिया जाए । श्री राम को विश्वामित्र तमाम दिव्यास्त्र प्रदान करते हैं। 
  • श्री राम और लक्ष्मण शायद इकलौते ऐसे तपस्वी और वनवास को जाने वाले व्यक्ति थे जो अपने साथ धनुष और बाण लेकर चले थे । जब श्री राम को वनवास मिलता है तो वो सबसे पहले मुनि भरद्वाज के पास जाते हैं । मुनि भरद्वाज उन्हें चित्रकूट में बसने के लिए कहते हैं जहां खर और दूषण के राज्यों की सीमाएं मिलती हैं। खर और दूषण रावण के भाई थे और रावण ने उन्हें इस क्षेत्र का कार्य सौंपा था ।  

श्री  राम का खर के राज्य दंडकारण्य में सीधा प्रवेश :

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब श्रीराम चित्रकूट में रहने लगते हैं जो कि खर के राज्य का सीमावर्ती क्षेत्र था तब ऋषियों के बीच एक प्रकार की घबराहट फैल जाती है – 

नयनैर् भृकुटीभिः च रामम् निर्दिश्य शन्किताः |
अन्योन्यम् उपजल्पन्तः शनैः चक्रुर् मिथः कथाः || 2.116.3
तेषाम् औत्सुक्यम् आलक्ष्य रामः तु आत्मनि शन्कितः |
कृत अन्जलिर् उवाच इदम् ऋषिम् कुल पतिम् ततः || 2.116.4

वाल्मिकि रामायण, अयोध्याकांड

अर्थः- राम ऋषियों के आंखों की हरकत देख कर और उन्हें गुप्त रुप से किसी रहस्यात्मक कथा कहते देख कर उन ऋषियों से इस भय का कारण पूछते हैं ।

रावण अवरजः कश्चित् खरो नाम इह राक्षसः |
उत्पाट्य तापसान् सर्वान् जन स्थान निकेतनान् || 2.116.11
धृष्टः च जित काशी च नृशंसः पुरुष अदकः |
अवलिप्तः च पापः च त्वाम् च तात न मृष्यते || 2.116.12

अर्थः- हे राम इस वन मे रावण का भाई खर रहता है जो तपस्ययों के स्थानों को नष्ट कर देता है और वो आपको भी हानि पहुंचा सकता है । 

ऋषि गण श्री राम से निवेदन करते हैं कि वो चित्रकूट का त्याग कर दें और दंडकारण्य में प्रवेश करें । हालांकि दंडकारण्य रावण के भाइयों से सामना करने के लिए सीधा स्थान था लेकिन फिर भी ऋषियों ने संभवतः एक योजना के तहत श्री राम को चित्रकूट से और भी अंदर जाकर दंडकारण्य में प्रवेश करने के लिए कहा । इसके बाद श्री राम दंडकारण्य में प्रवेश कर जाते हैं जहां रास्ते में वो अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुंचते हैं। 

अत्रि के आश्रम में राम का पहुंचना और अनुसूया की योजना :

जब श्री राम ऋषि अत्रि के आश्रम में पहुंचते हैं तो उनकी पत्नी माता अनुसूया सीता को दिव्य आभूषण और वस्त्र देती हैं । इसके अलावा वो एक दिव्य लेप भी माता सीता को देती हैं। ये दिव्य वस्त्र और आभूषण कभी भी मैले नहीं होते थे और इस दिव्य लेप को लगाने के बाद माता सीता को वन और किसी भी स्थान पर शरीर के मैले होने का भय समाप्त हो जाता है । यही दिव्य वस्त्र पहन कर माता सीता लंका में अशोक वाटिका में रहती हैं और रावण के दिए वस्त्रों को पहिने बिना एक ही वस्त्र को पहन कर रह पाती हैं। 

ऋषि सुतीक्ष्ण और श्री राम की प्रतिज्ञा :

अरण्यकांड में जब श्रीराम दंडकारण्य में प्रवेश कर जाते हैं तो वहां वो ऋषि सुतीक्ष्ण से मिलते हैं। ऋषि सुतीक्ष्ण श्री राम को दंडकारण्य में राक्षसों के द्वारा मारे जाने वाले ऋषियों की हड्डियां दिखाते है और उनसे राक्षसों से ऋषियों की रक्षा करने की प्रार्थना करते हैं – 

ततः त्वाम् शरणार्थम् च शरण्यम् समुपस्थिताः |
परिपालय नः राम वध्यमानान् निशाचरैः || 3.6.19

वाल्मीकि रामायण , अरण्यकांड

श्रीराम ऋषि सुतीक्ष्ण की इस प्रार्थना और ऋषियों के साथ हुए इस अत्याचार से द्रवित और क्रोधित हो जाते हैं और शपथ लेते हैं कि वो इस पृथ्वी से राक्षसों का संहार कर देंगे –

तपस्विनाम् रणे शत्रून् हन्तुम् इच्छामि राक्षसान् |
पश्यन्तु वीर्यम् ऋषयः सः ब्रातुर् मे तपोधनाः || 3.6.25

अर्थः- मेरी इच्छा है कि ऋषियों के शत्रु इन राक्षसों का संहार कर दूंगा । आप सभी ऋषि गण मेरे और मेरे भाई की बहादुरी का यकीन करें   । राम ने ऐसा कह कर ऋषि को वचन दिया । 

शबरी के द्वारा सीता की खोज का रास्ता बताना :

सीता हरण के बाद जब श्री राम मार्ग मे कबन्ध का वध करते हैं तो कबन्ध उन्हें मतंग ऋषि के आश्रम जाने की सलाह देता है । मतंग ऋषि के आश्रम में शबरी रहती थीं । शबरी श्री राम की आवभगत करती हैं और वहीं उन्हें सुग्रीव से मित्रता करने की सलाह देती हैं। 

ऋषि अगत्स्य और रावण का वध :

राम और रावण के युद्ध के पहले ऋषि अगत्स्य श्री राम के पास आते हैं और उन्हें भगवान सूर्य की उपासना का मंत्र बताते हैं जिसे आदित्य हद्य स्तोत्रम कहा जाता है निराश राम के जीवन में आशा का संचार होता है और ऋषि अगत्स्य की प्रेरणा से श्रीराम भगवान सूर्य को प्रसन्न करते हैं। राम रावण के युद्ध में जब रावण का वध नहीं हो पा रहा था तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार इंद्र का सारथी माताली श्री राम को उस बाण की याद दिलाता है जिसे अगत्स्य ऋषि ने  श्री राम को दिया था –

ततः संस्मारितो रामस्तेन वाक्येन मातलेः |
जग्राह स शरं दीप्तं निःश्वसन्तमिवोरगम् || 6.108.3
यं तस्मैन् प्रथमं प्रादादगस्त्यो भगवानृषिः |
ब्रह्मदत्तं महाबाणममोघं युधि वीर्यवान् || 6.108.4

अर्थ – माताली के द्वारा याद कराये जाने पर श्री राम ने एक चमकता तीर अपने हाथ में लिया । यह बाण ब्रम्हा जी के द्वारा  अगत्स्य ऋषि को दिया गया था जिसे अगत्स्य ऋषि ने श्री राम को दिया था । 

इसी बाण से श्री राम रावण का संहार कर देते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि किस प्रकार श्री राम के जन्म से लेकर रावण के वध तक में ऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी । दरअसल रावण ऋषियों का घोर शत्रु था और ऋषिगण किसी भी कीमत पर रावण का संहार करवाना चाहते थे । श्री राम के रुप में उन्हें वो शक्ति मिल गई थी और उनके जन्म के समय से ही ऋषि गण इस योजना पर संयुक्त रुप से कार्य करने लगे थे ।

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