क्या कोई ग्रंथ सिर्फ एक ही अवतार की यात्रा हो सकती है क्या और वो भी जब रामायण जैसा महान ग्रंथ की बात हो। रामायण सनातन धर्म के सबसे महान और पवित्र ग्रंथों में है। रामायण सनातन धर्म की आत्मा है। सनातन धर्म विश्व का शायद इकलौता धर्म है जिसमें ईश्वर के स्वरुप की कल्पना न सिर्फ निराकार और साकार के रुप में की गई है बल्कि इस यह धर्म ईश्वर के इंसानी स्वरुप के अलावा पशु स्वरुप को भी मान्यता देता है ।
शुद्ध सनातन धर्म में ईश्वर निराकार भी हैं, साकार भी हैं। पशु और पक्षी रुप में भी हैं और पुरुष और नारी के रुप में भी हैं। ईश्वर के निराकार रुप के परमात्मा और ब्रम्ह कह कर अराधना की गई है । तो भगवान गणेश, गरुड़, मत्स्य, कूर्म, वाराह आदि अवतार लेकर भी ईश्वर प्रगट हुए हैं।
इसी प्रकार ईश्वर का साकार रुप पुरुष और नारी दोनों के ही रुपों में प्रगट हुआ है । प्रकृति और पुरुष दोनों के मिलने से ही संसार चलता है । कहीं ईश्वर को परम पुरुष के रुप में देखा गया है तो कहीं आद्या नारी शक्ति के रुप में देखा गया है ।
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वेद -पुराणों में स्त्रियों की भक्ति और संघर्ष :
वेदों में अगर इंद्र, वरुण, मित्र, अश्विनी कुमार और अग्नि जैसे पुरुष देवता हैं तो सरस्वती, मही, रात्रि और उषा जेसी देवियां भी हैं। पौराणिक और महाकाव्य काल में दुर्गा, काली, सरस्वती, पार्वती भी ईश्वरीय सत्ताएं हैं।
महाकाव्यों में पुरुष पात्रों की तरह ही स्त्री पात्रों को भी सशक्त दिखाया गया है । नारी पात्र भी धर्म की संस्थापना और मर्यादा की रक्षा के लिए उसी प्रकार संघर्ष करती हैं जिस प्रकार पुरुष करते हैं।
स्त्रियों की भक्ति और संघर्ष पर केंद्रित है :
महाभारत में, कुंती, गांधारी, सत्यवती जैसे महान नारियां हैं जिनके आत्मबल और सशक्त विचारों पर पूरा महाभारत केंद्रित है । महाभारत में कई जगह व्यास और कुंती युधिष्ठिर को द्रौपदी की सलाह पर चलने के लिए आदेश देते हैं।
रामायण मे भी कई सशक्त नारी पात्र हैं। माता सीता , वालि की पत्नी तारा, मंदोदरी, कैकयी, शूर्पनखा आदि खुद अपने निर्णय लेने में सक्षम हैं। रामायण में वो कहीं भी कमजोर पात्र के रुप में नहीं दिखती हैं। दरअसल पूरी रामायण ही नारी पात्रों के इर्द गिर्द घूमती है ।
क्या सिर्फ श्रीराम की कथा है :
रामायण को यूं तो मूल रुप से राम और रावण के बीच हुए युद्ध की कथा के रुप में देखा जाता है जिसमें असत्य के उपर सत्य की विजय को दिखाया गया है। इसमें भगवान श्री राम के द्वारा अपने मानवीय संघर्षों के जरिए मर्यादा स्थापित करने का उद्देश्य बताया गया है। अक्सर लोगों की कल्पना में रामायण के ज्यादातर पुरुष पात्र ही नज़र आते हैं। श्री राम, लक्ष्मण जी, हनुमान जी , सुग्रीव, विभिषण आदि।
स्त्री पात्रों में माता सीता , माता कौशल्या और कैकयी ज्यादातर दिखती हैं। लेकिन रामायण सिर्फ श्री राम के पुरुष भक्तों की मुक्ति और भक्ति की ही कहानी नहीं है बल्कि रामायण में कई स्त्री पात्र भी हैं जो श्री राम की भक्ति के पात्र हैं और अपनी मुक्ति भी प्राप्त करते हैं।
मूल उद्देश्य :
वाल्मीकि रामायण के अनुसार रामायण का अर्थ होता है राम की यात्रा । लेकिन वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम की इस यात्रा की कथा लिखने का उद्देश्य सिर्फ राम के चरित्र का बखान करना मात्र नहीं है बल्कि स्वयं वाल्मीकि रामायण के अनुसार इसके मूल उद्देश्य में ही नारियों मे सबसे महान माता सीता हैं। वाल्मीकि रामायण के इस श्लोक से यह स्पष्ट हो जाता है –
काव्यं रामायणं कृत्स्न्नं सीतायाश्चरितं महत् |
पौलस्त्यवधमित्येवं चकार चरितव्रतः || १-४-७
अर्थात- वाल्मीकि ने अपनी कठिन तपस्या के फलस्वरुप इस रामायण की रचना की । इसका उद्देश्य माता सीता के चरित्र की महानता की स्थापना और पौलत्स्य वध ( रावण वध ) है ।
वाल्मीकि रामायण लिखने के पीछे वाल्मीकि की प्रेरणा ही यह थी कि जिस रावण ने माता सीता का अपहरण कर उनके चरित्र पर दाग लगाने की कोशिश की थी , उस रावण का कैसे राम ने वध किया। दूसरे, कैसे रामायण लिख कर माता सीता के चरित्र पर जो कलंक लगाने का प्रयास किया गया था उस कलंक को खत्म कर उनकी महानता को स्थापित करना ।
माता सीता का महान व्यक्तित्व :
माता सीता और श्रीराम के बीच का संबंध न केवल प्रेम पर आधारित है बल्कि उसमें बराबरी और एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव भी है । माता सीता नारी सम्मान के प्रति हमेशा सचेत रही हैं। वाल्मीकि रामायण में माता सीता श्री राम के पीछे पीछे घूंघट मे चलने वाली सामान्य स्त्री नहीं हैं बल्कि वो श्रीराम के आगे आगे चलती हैं –
इति तौ पुरुषव्याघ्रौ मन्त्रयित्वा मनस्विनौ || २-५५-१२
सीतामेवाग्रतः कृत्वा काळिन्दीम् जग्मतुर्नदीम् |
वाल्मीकि रामायण, अयोध्याकांड
अर्थात : राम और लक्ष्मण यमुना नदी के किनारे पर चलने लगे और इस बार फिर माता सीता उनमें सबसे आगे चल रही थीं ।
श्री राम की मंत्री माता सीता :
माता सीता न केवल श्री राम की आदर्श पत्नी हैं बल्कि वो श्रीराम की मंत्री भी हैं। वो बराबरी के साथ अपना पक्ष श्री राम के सामने रखती हैं । श्री राम की कोई बात उन्हें अगर गलत लगती हैं तो भी वो श्री राम का प्रतिरोध करने से नहीं चूकती।
वाल्मीकि रामायण में प्रसंग है कि श्री राम दंडकारण्य में प्रवेश करने से पहले ऋषि सुतीक्ष्ण के आश्रम मे जाते हैं । ऋषि सुतीक्ष्ण उन्हें राक्षसों के द्वारा ऋषियों की हत्या करने की बात बताते हैं । तब श्री राम राक्षसों के संहार की प्रतिज्ञा कर लेते हैं –
स्नेहात् च बहुमानात् च स्मारये त्वाम् न शिक्षये |
न कथंचन सा कार्या गृहीत धनुषा त्वया || ३-९-२४
बुद्धिः वैरम् विना हन्तुम् राक्षसान् दण्डक आश्रितान् |
अपराधम् विना हन्तुम् लोको वीर न कामये || ३-९-२५
अर्थात – हे श्री राम मैं आपसे प्रेम और सम्मान के साथ आपसे निवेदन करती हूं कि आपने जो बिना किसी से शत्रुता स्थापित हुए ही राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा कर ली है वो मेरी समझ से सही निर्णय नहीं है ।
माता सीता के द्वारा अग्नि परीक्षा का विरोध :
जब श्री राम रावण का वध कर देते हैं और माता सीता उनके समक्ष लाई जाती हैं तो श्री राम उनसे कटु वचन बोलते हैं और माता सीता को अग्नि परीक्षा के द्वारा अपनी शुद्धता का प्रमाण देने के लिए बोलते हैं। तब भी माता सीता अपने सशक्त व्यक्तित्व का परिचय देते हुए श्री राम का विरोध करती हैं और कहती है-
किं मामसदृशं वाक्यमीदृशं श्रोत्रदारुणम् |
रूक्षं श्रावयसे वीर प्राकृतः प्राकृताम् इव || ६-११६-५
वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड
अर्थात – हे श्रीराम आप इस तरह के कटु वचन क्यों बोल रहे हैं जो मेरे कानों को अप्रिय लग रहे हैं। आप उसी प्रकार बोल रहे हैं जैसे कोई सामान्य पति अपनी पत्नी से बात करता है ।
न तथास्मि महाबाहो यथा त्वमवगच्छसि |
प्रत्ययं गच्छ मे स्वेन चारित्रेणैव ते शपे || ६-११६-६
वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड
अर्थात : मैं वो नहीं हूं जिस प्रकार आप मुझे समझ रहे हैं। मुझ पर विश्वास कीजिए । मैं अपने चरित्र की शुद्धता के लिए आप की कसम खाती हूं ।
पृथक्स्त्रीणां प्रचारेण जातिं त्वं परिशङ्कसे |
परित्यजेमां शङ्कां तु यदि तेऽहं परीक्षिता || ६-११६-७
वाल्मीकि रामायण, युद्धकांड
अर्थात : कुछ चरित्रहीन स्त्रियों के आचरण को प्रमाण मान कर आप समूची स्त्री जाति के चरित्र पर संदेह कर रहे हैं। आप ऐसा मत कीजिए । आप संदेह का त्याग कीजिए। आपने तो मेरा चरित्र पहले ही देख रखा है ।
माता सीता श्रीराम को इस प्रकार न केवल समझाने का प्रयास करती हैं बल्कि उनका जम कर विरोध भी करती हैं।
श्री राम के स्वरुप की ज्ञाता माता सीता :
माता सीता श्री राम से न केवल बराबरी का संबंध रखती हैं बल्कि वो श्री राम की ईश्वरीय सत्ता को भी जानने वालों में प्रथम हैं। वो श्री राम की अनन्य भक्त भी हैं । राम कथा के सारे स्त्री पात्रों में श्री राम की सबसे अनन्य भक्ति साक्षात मां सीता ही करती हैं।
रामचरितमानस में स्वयंवर के दौरान जब माता सीता सभी देवी देवताओं से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें सहज सुंदर सांवरों श्री राम ही पति के रुप में मिले तब भी उनकी प्रार्थना सुनी नहीं जाती है। थक कर माता सीता श्रीराम का ध्यान करती हैं तब श्री राम उनकी प्रार्थना को सुन कर धनुष भंग करते हैं –
मन ही मन मनाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस भवानी।।
करहुं सफल आपनी सेवकाई। करि हितु हरहु चाप गरुआई।।
अर्थ: माता सीता मन ही मन व्याकुल हो रही हैं और महेश और पार्वती जी से प्रसन्न होने को कह रही हैं।मैंने आपकी जो सेवा की है उसको सफल कीजिए।मुझ पर स्नेह कर धनुष के भारीपन को हल्का कर दीजिए।
गननायक बरदायक देवा।आजु लगें कीन्हिउं तुअ सेवा।।
बार बार बीनती सुनी मोरी।करहुं चाप गुरुता अति थोरी।।
अर्थ: हे गणों के नायक वर देने वाले गणेश जी ।मैंने आज ही के दिन के लिए आपकी सेवा की है।बार बार मेरी विनती सुन कर धनुष के भारी पन को कम कर दीजिए।
आखिर में माता सीता भगवान श्री राम का ध्यान करती हैं-
सकुचि ब्याकुलता बडी जानी।धरि धीरजुं प्रतीति उर आनी।।
तन मन बचन मोर पनु साचा। रघुपति पद सरोज चितु राचा।।
तौ भगवान सकल उर बासी।करिहि मोही रघुबर के दासी।।
जेहिं के जेहिं पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलई न कथु संदेहु।।
अर्थ: अपनी बढ़ी हुई व्याकुलता को देख कर सीता जी सकुचा गईं और धीरज धर कर मन में विश्वास को ले आईं कि यदि तन, मन वचन से मेरा प्रण सच्चा है और श्री रघुनाथ जी के चरणों में मेरा चित्त वास्तव में अनुरक्त है तो सबके ह्दय में वास करने वाले श्री रघुनाथ जी मुझे अवश्य अपनी दासी बनाएंगे
श्री राम की भक्त महान नारियां :
- माता सीता के अतिरिक्त माता अहिल्या, माता शबरी, तारा, मंदोदरी, लंकिनि और त्रिजटा अनेक ऐसी स्त्रियां थी जों भगवान श्री राम के वास्तविक स्वरुप को जानती थीं। ये सभी भगवान के अवतार स्वरुप को जानती थीं इसीलिए उनके प्रति उनकी भक्ति अद्भुत थी।
- माता अहिल्या तो भगवान श्री राम के द्वारा अपने उद्धार का इंतजार वर्षों से कर रही थीं। भगवान ने अपने चरणों से स्पर्श कर उन्हें उनके शाप से मुक्त कर दिया था माता शबरी की भक्ति तो इतनी प्रबल थी कि भगवान श्री राम ने उन दलित संत स्त्री के जूठे बेर भी खाए और उन्हें मुक्ति प्रदान की।
वालि की पत्नी की श्रीराम भक्ति :
जिस वालि को श्रीराम ने मारा उस वालि की पत्नी प्रारंभ से ही श्रीराम के विष्णु अवतार होने के बारे में जानती थीं। वालि की पत्नी तारा का जन्म ही समुद्र मंथन से हुआ था ।
तारा ने अपने पति वालि को भी बार बार भगवान श्री राम के ईश्वरीय स्वरुप के बारे में बताया था । लेकिन वालि ने तारा की बात नहीं मानी और भगवान श्री राम के बाणों से मारा गया। इसके बाद भी तारा ने श्री राम के प्रति कोई विरोध नहीं दिखाया और उनके चरणों में अपने पति वालि के कहने पर अपने पुत्र अंगद तक को भेंट कर दिया।
मंदोदरी की श्री राम भक्ति :
मंदोदरी ने भी रावण को बार बार भगवान श्री राम के वास्तविक स्वरुप से परिचय कराया और कहा कि वो माता सीता को श्री राम को लौटा दें वरना उसके विनाश को स्वयं ब्रम्हा और शंकर जी भी नहीं रोक सकेंगे-
सुनहुं नाथ सीता बिनु दीन्हे। हित न तुम्हार संभु अज कीन्हें।।
लंकिनि का इंतज़ार :
रामायण के अन्य स्त्री पात्रों में लंकिनि भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वो भी श्री राम के स्वरुप के बारे में जानती थीं। तभी जब हनुमान जी उसे घूंसा मारते हैं तो वो कहती है –
तात मोर अति पुन्य बहुता । देखेउं नयन राम कर दूता।
लंकिनि हनुमान जी को लंका जाने का मार्ग बताती हुई विजय का उपाय भी बताती है और कहती हैं कि विजय श्री राम की भक्ति के द्वारा ही मिलेगी-
प्रबिसि नगर किजै सब काजा। ह्दय राखी कोसलपुर राजा।
त्रिजटा की श्रीराम भक्ति :
रामायण में ही त्रिजटा राक्षसी भी है जिसे श्री राम की भक्ति प्राप्त है और इसी भक्ति के द्वारा वो पहले से ही देख लेती हैं कि एक वानर के द्वारा लंका को जलाया जाएगा और श्रीराम की सेना रावण का संहार करेगी-
त्रिजटा नाम राक्षसी एका। राम चरण रति निपुण विवेका।।
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी।।
खर आरुढ़ नगन दससीसा।मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।
एहि बिधि सो दक्षिण दीसी जाई। लंका मनहुं बिभिषण पाई।
नगर फिर रघुबीर दोहाई।तब प्रभु सीता बोली पठाई।।
केंद्र में हैं नारी पात्र :
रामायण में जब भी स्त्री पात्रों का प्रवेश होता है पूरी कहानी बदल जाती है। हरेक नारी पात्र कथा को नया मोड़ दे देती है।कैकयी राम को वनवास भेजती है और राजा बनते – बनते राम वनवासी बन जाते हैं जो आगे चल कर रावण के वध का हेतु बनती है।
शूर्पनखा के आने और इसके बाद माता सीता के अपहरण के साथ ही रावण के वध की कहानी शुरु हो जाती है।माता सीता को ही रावण के वध का मुख्य कारण माना जाता है ।
लोक श्रुतियों की कथा के अनुसार शबरी के जूठे बेर के बीज की लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बन जाते हैं। कहा जाता है कि श्रीराम ने शबरी के जो जूठे बेर खाकर उसके बीज पृथ्वी पर गिराए थे उसी से संजीवनी बूटी बनीं। इसके अलावा माता सीता की खोज में शबरी का आश्रम एक महत्वपूर्ण स्थान है । वहीं से श्रीराम आगे चलकर सुग्रीव के पास पहुंचते हैं और महावीर हनुमान जी से उनकी भेंट होती है ।
यहां तक की राक्षस और सर्प जाति की नारियां भी श्रीराम के द्वारा रावण वध के लिए सेतु का कार्य करती हैं । सर्प माता सुरसा हनुमान जी को समुद्र के मार्ग पर प्रशिक्षित करती हैं। लंकिनी लंका के अंदर जाने का मार्ग देती है। त्रिजटा भविष्य में लंका दहन का संकेत देती हैं। सभी स्त्री पात्र रामायण में उतने ही प्रखर और मजबूत हैं जितने उसके पुरुष पात्र।