संजीवनी बूटी

Secret of Sanjivni Buti | संजीवनी बूटी का असली रहस्य

संजीवनी बूटी का असली रहस्य क्या है। क्या संजीवनी बूटी को खाते ही मरा हुआ इंसान भी जीवित हो उठता है? कई पुस्तकों में संजीवनी बूटी को मृत व्यक्ति को जीवित कर देने वाली औषधि बताया जाता रहा है । आखिर संजीवनी बूटी का असली रहस्य क्या है? क्या ये अमरता की बूटी है? क्या से सिर्फ बेहोशी दूर करने की दवा है? क्या ये कोमा से किसी व्यक्ति को वापस लाने की दवा है या फिर ये मरे हुए को वापस जिंदा करने की औषधि है?

आमतौर पर हम यही जानते हैं कि संजीवनी बूटी का जिक्र केवल ‘रामायण’ में आता है। लेकिन वास्तव में ‘रामायण’ के अलावा ‘महाभारत’ में भी संजीवनी बूटी का जिक्र आया है। महाभारत के ‘वन पर्व’ में हनुमान जी भीम को संजीवनी बूटी के बारे में बताते हैं। ‘वाल्मीकि रामायण’ में कम से कम दो बार हनुमान जी के द्वारा संजीवनी बूटी लाने का वर्णन आता है। पहली बार मूर्च्छित वानरों को होश में लाने के लिए और दूसरी बार लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने के लिए हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आते हैं ।

संजीवनी बूटी कहां मिलती है ?

‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार हिमालय के पास कैलाश और ऋषभ पर्वतों के बीच स्थित द्रोणगिरि पर्वत है। इसी द्रोणगिरि पर्वत पर संजीवनी बूटी पाई जाती है । ‘आध्यात्म रामायण’ के अनुसार द्रोणगिरि पर्वत को क्षीरसागर में स्थित बताया गया है । ‘आध्यात्म रामायण’ के अनुसार क्षीरसागर स्थित द्रोणगिरि पर्वत पर संजीवनी बूटी मिलती है। गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’ हिमालय को संजीवनी बूटी की उत्पत्ति का स्थान बताता है।

तमिल भाषा में लिखी गई प्राचीन ‘कम्ब रामायण’ में संजीवनी बूटी का उत्पत्ति स्थान कहीं और है ,जो हिमालय से बहुत आगे और दूर है। ‘कम्ब रामायण’ के अनुसार हिमालय से भी बहुत आगे हेमकूट पर्वत है। हेमकूट पर्वत के पार नीलगिरी पर्वत है। नीलगिरी पर्वत के पार ‘औषध पर्वत’ है । इसी ‘औषध पर्वत’ पर संजीवनी बूटी सहित तीन और बूटियां मिलती हैं।

संजीवनी बूटी के साथ – साथ तीन और बूटियों का जिक्र भी वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण में मिलता है । महाभारत में भी संजीवनी बूटी के अलावा तीन और बूटियों के बारे में जानकारी मिलती है। इन बूटियों के नाम हैं

  • विशल्यकरणी
  • संधानी
  • सुवर्णकरणी

संजीवनी बूटी का पता किसने बताया ? 

‘आध्यात्म रामायण’ के अनुसार स्वयं श्रीराम ही महावीर हनुमान जी को क्षीरसागर स्थित द्रोणगिरि पर्वत पर संजीवनी बूटी का पता बताते हैं । राम के कहने पर हनुमान क्षीरसागर में स्थित द्रोणगिरि पर्वत को उखाड़ कर लंका ले जाते हैं। इसके बाद श्रीराम द्रोणगिरि से संजीवनी बूटी खोज निकालते हैं और लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करते हैं। 

  • ‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार जाम्बवंत हनुमान जी को संजीवनी बूटी का पता बताते हैं। ‘कम्ब रामायण’ में भी जाम्बवंत ही हनुमान को संजीवनी बूटी का पता बताते हैं। जहां ‘वाल्मीकि रामायण’ में जाम्बवंत के अनुसार संजीवनी बूटी का उत्पत्ति स्थान हिमालय के पास स्थित द्रोणगिरि पर्वत है। वहीं, कम्ब रामायण में जाम्बवंत हिमालय से बहुत आगे नीलगिरि पर्वत के पास स्थित औषध पर्वत को संजीवनी बूटी का उत्पत्ति स्थान बताते हैं।
  • कम्ब रामायण में जाम्बवंत हनुमान जी को कहते हैं कि” संजीवनी, विश्ल्यकरणी, संधानी और सुवर्णकरणी बूटियों की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थीं। देवताओं ने इन औषधियों को इसी औषध पर्वत पर छिपा कर रखा है और कई दिव्य शक्तियाँ इसकी रक्षा करती हैं। ” जाम्बवंत कहते हैं कि “जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था और पूरी पृथ्वी को उन्होंने अपने तीन पगों से नापा था, उस वक्त मैं विष्णु के आगे -आगे ढिंढोरा पिटता हुआ चल रहा था। मुझे उसी वक्त इन चारों औषधियों के बारे में पता चला था।”
  • तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ के अनुसार वैद्य सुषेण लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने के लिए हनुमान को संजीवनी बूटी का पता बताते हैं। रामचरितमानस के अनुसार जब लक्ष्मण मूर्च्छित हो जाते हैं तो विभीषण हनुमान को लंका से वैद्य सुषेण को लाने के लिए कहते हैं। वैद्य सुषेण विभीषण के कहने पर लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर करने का उपाय बताते हैं और हनुमान विभीषण के कहने पर संजीवनी बूटी लाने के लिए हिमालय जाते हैं।

संजीवनी बूटी पीने से अमर हो सकते हैं ? 

अमरता हमेशा मनुष्य और सारे प्राणियों को अपनी ओर आकर्षित करती है । संसार के सभी प्राणी अमर होना चाहते हैं। सनातन हिंदू धर्म के लगभग सभी महान ग्रंथों में ऐसे मनुष्यों, राक्षसों और दूसरे जीवों का उल्लेख है, जिन्होंने अमरता की प्राप्ति के लिए कठिन प्रयत्न किये, तपस्या की और देवताओं से वरदान प्राप्त करने की कोशिश की ।

 शुद्ध सनातन हिंदू धर्म में ययाति, नहुष, रावण, महिषासुर, तारकासुर जैसे कई महावीरों का जिक्र है, जिन्होंने अमर होने के लिए कठिन प्रयास किये । वेदों में भी सोमरस का जिक्र है, जिसको पीने के बाद व्यक्ति अमर हो सकता है। दरअसल देवताओं और दूसरे प्राणियों में यही एक अंतर है कि वो अमर हैं और दूसरे सभी प्राणियों का अंत कभी न कभी निश्चित है।

अमृत, सोमरस और संजीवनी बूटी में क्या अंतर है ?

 शुद्ध सनातन धर्म की गहराइयों में जाने पर हमें अमरता से संबंधित जिन पेयों, रसों या औषधियों का जिक्र मिलता है, उसमें सर्वप्रथम अमृत है ।अमृत को समुद्र मंथन से निकाला गया था और तय संधि या शर्त के मुताबिक इसको देवताओं और दानवों में बराबर बांटना था। लेकिन एक तय रणनीति के तहत केवल देवताओं को ही अमृत मिला और वो अमर हो गए। इसके बाद प्रतिक्रिया स्वरुप असुरों या दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने महादेव शिव की तपस्या कर उनसे ‘मृत संजीवनी विद्या’ सीखी। इस ‘मृत संजीवनी’ के द्वारा वो मरे हुए असुरों को जीवित कर देते थे। 

वेदों के सोमरस , पुराणों के अमृत और मृत संजीवनी विद्या के बाद सनातन हिंदू धर्म के महान महाकाव्यों रामायण और महाभारत में मृतक को पुनर्जीवित करने के लिए जिस औषधि का नाम सामने आता है, वो है संजीवनी बूटी । लेकिन संजीवनी बूटी अमृत नहीं है । यह एक मूर्च्छा दूर करने वाली बूटी है, जबकि अमृत पी कर कोई भी अमर हो सकता है । ‘सोमरस’ एक शक्तिवर्धक पेय है. जिसे पी कर देवता शक्तिशाली हो जाते हैं। यह भी अमरता नहीं दे सकता है ।

जाम्बवंत संजीवनी बूटी के ज्ञाता है 

 संजीवनी बूटी का सर्वप्रथम जिक्र वाल्मीकि रामायण में ही मिलता है । इस बूटी का जिक्र सबसे पहले तब सामने आता है, जब मेघनाद के बाणों से राम – लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना मूर्च्छित हो जाती है और सिर्फ विभीषण, जाम्बवंत और हनुमान जी होश में रह जाते हैं । तब हनुमान को जाम्बवंत ही सबसे पहले संजीवनी बूटी के बारे में बताते हैं । कम्ब रामायण में भी जाम्बवंत ही हनुमान जी को संजीवनी बूटी का पता देते हैं । सिर्फ रामचरितमानस में वैद्य सुषेण हनुमान को संजीवनी बूटी का पता बताते हैं।

जाम्बवंत कौन हैं और उनका असली परिचय क्या है ? 

 सनातन हिंदू धर्म में कई चिरंजीवियों, दीर्घजीवियों और अमर लोगों का वर्णन मिलता है। मार्कण्डेय ऋषि, परशुराम, जामबवंत, कुछ ऐसे चरित्र हैं जो सतयुग और त्रेता और द्वापर युगों में मौजूद थे। परशुराम और मार्कण्डेय तो कलियुग में भी जीवित बताए गए हैं। वाल्मीकि रामायण के अनुसार जाम्बवंत ब्रह्मा के अँश से उत्पन्न हुए थे। वाल्मीकि रामायण के बालकांड में वर्णन आता है कि जाम्बवंत सतयुग में ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए थे। जाम्बवंत द्वापर युग में भी मौजूद थे और उनकी पुत्री जाम्बवती से श्रीकृष्ण का विवाह हुआ था।

वाल्मीकि रामायण और कम्ब रामायण के अनुसार जाम्बवंत ही वो महान चरित्र थे, जिन्हें संजीवनी बूटी ही नहीं ऐसी कई बूटियों का ज्ञान था, जो किसी भी मृतक व्यक्ति को न केवल पुनर्जीवित सकती थी, बल्कि उसे तुरंत स्वस्थ भी कर सकती थी। जाम्बवंत सुग्रीव की सेना के सबसे वृद्ध और सबसे समझदार रीक्ष थे। हनुमान के अलावा जाम्बवंत ही राम कथाओं में सबसे बुद्धिमान नज़र आते हैं। जाम्बवंत की सलाह पर ही हनुमान ने लंका जाने के लिए समुद्र पार किया था। जाम्बवंत ही हनुमान जी की वास्तवकि शक्तियों को जानते थे।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जाम्बवंत को इन बूटियों के बारे में उस वक्त ज्ञान मिला था, जब वो समुद्र मंथन के दौरान पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा रहे थे । जाम्बवंत बताते है कि वो ही समुद्र मंथन में इस्तेमाल होने वाली बूटियों को इक्ठ्ठा कर रहे थे । इसका अर्थ ये भी है कि जाम्बवंत ही समुद्र मंथन में अमृत निकालने के लिए जरुरी बूटियों के खोजकर्ता थे, जिन बूटियों का मंथन कर अमृत रस तैयार किया गया था । 

कम्ब रामायण में यही बात थोड़ी अलग तरीके से कही गई है। कम्ब रामायण के अनुसार संजीवनी, विशल्यकरणी, संधानी और सुवर्णकरणी बूटियों को समुद्र मंथन के दौरान देवताओं ने प्राप्त किया था। देवताओं ने इन बूटियों को हिमालय और हेमकूट पर्वतों से बहुत आगे, नीलगिरि पर्वत के पास औषध पर्वत पर छिपा दिया गया था। जब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर तीनों लोकों को अपने तीन पगों से नाप रहे थे, तब ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न जाम्बवंत विष्णु के आगे- आगे ढिंढोरा पिटते हुए चल रहे थे। जाम्बवंत को उसी दौरान इन औषधियों के बारे में पता चला।

जाम्बवंत ने की थी पृथ्वी की परिक्रमा

वाल्मीकि रामायण के किष्किंधाकांड के इस श्लोक को देखिए जिसमें जाम्बवंत, अगंद और हनुमान जी से यह बता रहे है कि वो अब बूढ़े हो चुके हैं, इसीलिए माता सीता की खोज करने के लिए समुद्र पार नहीं कर सकते । जाम्बवंत बता रहे हैं कि सतयुग में जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था, उस वक्त उन्होंने विष्णु के आगे आगे 21 बार पृथ्वी की परिक्रमा की थी।

 जाम्बवंत यह भी बताते हैं कि जब वो युवा थे, तब उन्होंने ही समुद्र मंथन के दौरान अमृत तैयार करने के लिए जरुरी बूटियों को इकठ्ठा करने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा की थी – 

तान् च सर्वान् हरि श्रेष्ठान् जांबवान् इदम् अब्रवीत् |
न खलु एतावत् एव आसीत् गमने मे पराक्रमः || ४-६५-१४
अर्थः- जाम्बवंत कहते हैं कि “मेरी कहीं भी जाने की क्षमता असीमित है
।”

मया वैरोचने यज्ञे प्रभविष्णुः सनातनः |
प्रदक्षिणी कृतः पूर्वम् क्रममाणः त्रिविक्रमः || ४-६५-१५

अर्थः- जाम्बवंत कहते हैं कि “एक बार मैंने पूरें ब्रम्हांड का चक्कर उस वक्त लगा लिया था ,जब विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि के यज्ञ में भगवान विष्णु ने वामन का रुप धरा था और अपने स्वरुप का विस्तार तीनों लोकों में कर दिया था । उस वक्त मैंने भगवान विष्णु की भक्ति में उनके चारों तरफ परिक्रमा की थी।”

तथा च ओषधयो अस्माभिः संचिता देव शासनात् |
निर्मथ्यम् अमृतम् याभिः तदा तदानीम् नो महत् बलम् || ४-६६-३३

अर्थः- जाम्बवंत कहते हैं कि “मैंने समुद्र मंथन के वक्त भी देवताओं के आदेश पर जड़ी बूटियों को एकत्रित करने के लिए पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाया था ताकि उनका इस्तेमाल समुद्र मंथन से अमृत बनाने के लिए हो सके ।”

इस प्रकार ये तो स्पष्ट होता है कि श्रीराम की सेना में सिर्फ जाम्बवंत को ही उन औषधियों का ज्ञान था, जिनसे अमृत तैयार किया जा सकता है या फिर उनका इस्तेमाल कर कोई भी फिर से जीवित हो सकता है या फिर स्वस्थ हो सकता है। 

संजीवनी बूटी दो बार लाए थे हनुमान

वाल्मीकि रामायण से ज्ञात होता है कि हनुमान को एक बार नही बल्कि दो बार संजीवनी बूटी लानी पड़ी थी । पहली बार, जैसे ही मेघनाद के बाणों से राम ,लक्ष्मण, सुग्रीव सहित 64 करोड़ वानरों की सेना मूर्च्छित हो जाती है। तब सिर्फ जाम्बवंत , हनुमान जी और विभीषण को ही होश रह जाता हैं।ऐसी परिस्थिति में जाम्बवंत हनुमान जी को बताते है कि “हिमालय में कैलाश पर्वत और ऋषभ पर्वत के ठीक बीच में चार प्रकार की बूटियां मिलती है, जिन्हें संजीवनी , विशाल्यकर्णी, सुवर्णकर्णी, और संधानी कहते हैं। “

मृतसञ्जीवनीं चैव विशल्यकरणीम् अपि |
सौवर्णकरणीं चैव सन्धानीं च महौषधीम् || ६-७४-३३

अर्थः- “संजीवनी बूटी से किसी मूर्च्छित या प्राणहीन व्यक्ति के प्राण वापस लाए जा सकते हैं, विशल्यकरणी बूटी से शस्त्रों से लगे गहरे घावों को तुरंत भर दिया जा सकता है, सुवर्णकरणी बूटी से शरीर को फिर से वापस शक्ति मिल जाती है और संधानी बूटी से टूटी हड्डियों को जोड़ा जा सकता था

जाम्बवंत के कहने पर हनुमान जी हिमालय जाते हैं और ये चारों बूटियां लेकर आते हैं । इन बूटियों के द्वारा श्रीराम , लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना को वापस मूर्च्छा से लाया जाता है और पूरी सेना फिर से युद्ध के लिए तैयार हो जाती है। संजीवनी बूटी से मूर्च्छा दूर की गई। विशल्यकरणी बूटी से जिन वानरों को शस्त्रों के घाव लगे थे उन्हें ठीक किया गया। सुवर्णकरणी बूटी को पीकर सभी फिर से शक्तिशाली हो गए। जिन वानरों के शरीर की हड्डियाँ टूट गई थीं उनकी हड्डियों को संधानी बूटी से जोड़ा गया।

दूसरी बार संजीवनी बूटी लाए हनुमान

संजीवनी बूटी का दूसरी बार इस्तेमाल तब होता है कि जब लक्ष्मण के द्वारा मेघनाद का वध कर दिया जाता है। अपने पुत्र मेघनाद के वध से दुखित और क्रोधित रावण युद्धभूमि में आकर लक्ष्मण पर शक्तिबाण चलाता है( वाल्मीकि रामायण के मुताबिक लक्ष्मण पर मेघनाद ने नहीं बल्कि, रावण ने शक्ति बाण चलाया था) 

तावणेन रणे शक्तिः क्रुद्धेनाशीविषोपमा |
मुक्ताशूरस्यभीतस्य लक्ष्मणस्य ममज्ज सा || ६-१००-३४
न्यपतत्सा महावेगा लक्ष्मणस्य महोरसि |
जिह्वेवोरगराजस्य दीप्यमाना महाद्युतिः || ६-१००-३५
ततो रावणवेगेन सुदूरमवगाढया |
शक्त्या निर्भिन्नहृदयः पपात भुवि लक्ष्मणः || ६-१००-३६

लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के बाद एक बार फिर जाम्बवंत हनुमान जी को हिमालय संजीवनी बूटी लाने के लिए भेजते हैं। हनुमान जी बूटी लेकर आते हैं और लक्ष्मण जी की मूर्च्छा दूर होती है और श्रीराम का विषाद और शोक दूर होता है। इस प्रकार एक बार नहीं दो- दो बार संजीवनी बूटी का प्रयोग राम-रावण युद्ध में होता है।

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