राम लक्ष्मण सीता वनवास एक साथ गए थे। जबकि, कैकयी ने दशरथ से सिर्फ राम का वनवास देने का ही वरदान मांगा था, फिर सीता जी श्रीराम के साथ वनवास के लिए क्यों गईं? श्रीराम और माता सीता के बीच गहन और अद्भुत प्रेम था। श्रीराम माता सीता के वनवास की कठिनाइयों से बचाना चाहते थे। श्रीराम अपनी माता को वन जाने से रोकने में सफल रहें । श्रीराम अपने पिता दशरथ को भी वन में जाने से रोकने में सफल रहे । लेकिन आखिर वो कौन सा तर्क था जिसके सामने श्रीराम माता सीता के सामने परास्त हो गए और माता जानकी को वन ले जाने के लिए तैयार हो गए। ऐसा क्या कह दिया माता सीता ने कि श्रीराम भी निरुत्तर हो गए ?
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क्या सिर्फ पतिधर्म के लिए सीता वनवास के लिए गईं ?
ज्यादातर विद्वानों का मानना है कि सीता माता अपने पति धर्म के निर्वाह के लिए श्रीराम के साथ वनवास के लिए गईं। माता सीता एक सती स्त्री थीं और महान पतिव्रता नारी भी थीं। यह सत्य भी है कि सीता माता अपने पतिव्रत धर्म का पालन करने के लिए श्रीराम के साथ वनवास के लिए गई थीं। श्रीराम अकेले ही 14 वर्षों के लिए वनवास जाना चाहते थे, ताकि वो अपने पिता के प्रति अपने धर्म का पालन कर सकें। लेकिन राम लक्ष्मण सीता वनवास, 14 वर्षो का वनवास न सिर्फ उनके अपने पतिव्रत धर्म के पालन के लिए था, बल्कि इसकी एक और महान वजह थी ।
माता सीता के वनवास की दूसरी कौन सी वजह थी? इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण में मिलता है । जब श्रीराम को 14 वर्षों का वनवास मिला तो उनके साथ दशरथ, माता कौशल्या, सारी अयोध्या की जनता और मंत्री भी वन के लिए जाने की जिद करने लगे । श्रीराम ने सबको तो किसी तरह से वन में न जाने के लिए मना लिया, लेकिन वो माता सीता को वन में अपने साथ न जाने के लिए मनाने में असफल रहें। इसकी वजह भी वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में मिलती है।
श्रीराम का वनवास
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के सर्ग 26 में श्रीराम माता सीता से मिलने जाते हैं और उन्हें सूचित करते हैं, कि उनके पिता ने उन्हें 14 साल का वनवास दे दिया है। श्रीराम माता सीता को कुछ कर्तव्य बताते हैं। वह माता सीता से कहते हैं, कि जब वो वनवास के लिए चले जाएंगे तो सीता ही कौशल्या और दशरथ का ख्याल रखेंगी । माता सीता कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे राजा भरत नाराज़ हो जाएं।
माता सीता का वन जाने के लिए आग्रह
माता सीता श्रीराम के साथ वनवास जाने का आग्रह करती हैं और कहती हैं कि जहां पति रहें वहीं पत्नी का रहना पतिव्रत धर्म है । श्रीराम माता सीता को वन में होने वाली कठिनाइयों के बारे में बताते हैं ,लेकिन माता सीता कठिनाइयों की परवाह किये बिना वनवास जाने की जिद पर अड़ जाती हैं। श्रीराम माता सीता को वनवास न जाने के लिए कई तर्क देते हैं, लेकिन माता सीता उनकी एक नहीं सुनती और वो खुद ऐसे रहस्य बताती हैं जिनके बारे में श्रीराम को भी पता नहीं था। माता सीता श्रीराम को बताती हैं कि उनका वनवास के लिए जाना श्रीराम के वनवास जाने से भी पहले ही तय हो चुका था।
एक ज्योतिषी ने की थी राम लक्ष्मण सीता वनवास की भविष्यवाणी
जब राम माता सीता को वन ले जाने के लिए तैयार नहीं होते तो माता सीता उन्हें पहला रहस्य बताती हैं, जो उनके बचपन से जुड़ी थी। वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड के सर्ग 29 में इस रहस्य पर से पर्दा उठाते हुए माता सीता कहती हैं –
अथ च अपि महा प्राज्ञ ब्राह्मणानाम् मया श्रुतम् |
पुरा पितृ गृहे सत्यम् वस्तव्यम् किल मे वने || 2.29.8
अर्थः हे श्रीराम! जब मैं अपने पिता के घर अर्थात अपने मायके में थीं ,तब मैं वहां प्रज्ञावान ब्राह्म्णों के मुख से सुना था कि मेरे भाग्य में वनवास जाना लिखा हुआ है।
लक्षणिभ्यो द्विजातिभ्यः श्रुत्वा अहम् वचनम् गृहे |
वन वास कृत उत्साहा नित्यम् एव महा बल || 2.29.9
अर्थः- शरीर के चिन्हों को देख कर भविष्यवाणी करने वाले उन ब्राह्म्णों की यह भविष्यवाणी सुनने के बाद से ही मैं हमेशा वनवास जाने के लिए उत्सुक रहने लगी थी।
आदेशो वन वासस्य प्राप्तव्यः स मया किल |
सा त्वया सह तत्र अहम् यास्यामि प्रिय न अन्यथा || 2.29.10
अर्थः- हे मेरे प्रिय राम ! मेरे वनवास जाने की भविष्यवाणी आज सच हो रही है। मैं अवश्य आपके साथ वन के लिए जाउंगी।
माता सीता के वनवास की दूसरी भविष्यवाणी
माता सीता के वनवास की भविष्यवाणी बचपन में ही महान ज्योतिष के जानकार ब्राह्म्णों ने कर दी थी। लेकिन इसके अलावा एक स्त्री ने भी माता सीता के बचपन में ही उनके वन जाने की भविष्यवाणी कर दी थी । माता सीता श्रीराम को इस दूसरी भविष्यवाणी से भी अवगत कराती हैं, और कहती हैं –
कन्यया च पितुर् गेहे वन वासः श्रुतः मया ।
भिक्षिण्याः साधु वृत्ताया मम मातुर् इह अग्रतः || 2.29.13
अर्थः- जब मैं (सीता) अविवाहित थीं, उस वक्त एक साधु स्वभाव की भिक्षुणी ने भी मेरी माता के सामने यह भविष्यवाणी की थी कि मैं( सीता) वन में रहूंगी। ऐसा मैंने खुद सुना था
माता सीता ने श्रीराम को तीसरा रहस्य बताया
माता सीता श्रीराम को पहली बार जरुर यह बता रही थीं कि उनका वनवास जाना पहले से ही तय था, लेकिन माता सीता ने श्रीराम को यह भी बताया कि उन्होंने पहले भी इसका जिक्र अपरोक्ष रुप से श्रीराम के सामने कई बार किया था-
प्रसादितः च वै पूर्वम् त्वम् वै बहु विधम् प्रभो |
गमनम् वन वासस्य कान्क्षितम् हि सह त्वया || 2.29.14
अर्थः- हे प्रभु श्रीराम! मैंने पहले भी कई बार आपको यह कहा था कि कुछ दिन के लिए दोनों वन में वास करते हैं ।
माता सीता ने पहले भी श्रीराम को कहा था कि कुछ दिनों के लिए वन में वास करें। शायद माता सीता इसलिए ऐसा करना चाहती थीं, ताकि उनका यह प्रारब्ध कट जाए। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि अगर कोई पूर्वजन्म के किसी कर्म के अनुसार इस जन्म में घटित होनी होती हैं तो तो वह अवश्य घटित होगी । इसके लिए कई प्रकार के ऐसे उपाय किये जाते हैं जिससे इस घटना का प्रभाव कम हो जाए। कुछ लड़कियों के भाग्य में अगर दूसरा विवाह लिखा है, तो आम तौर पर यह प्रथा है कि उस लड़की का विवाह पहले किसी वृक्ष से कर दिया जाता है । इससे वह कन्या दो विवाहों के दोष से बच जाती है।
माता सीता अपने वनवास के दोष को कम करना चाहती थीं
माता सीता भी शायद वन में कुछ समय रह कर इस वनवास की भविष्यवाणी के दोष को इसी प्रकार खत्म करना चाहती थी, लेकिन वह ऐसा पहले कर न सकीं। इसकी वजह यह भी थी कि अभी उनके विवाह को ज्यादा वक्त नहीं हुए थे। वो अयोध्या के राजपरिवार की मान्यताओं को नहीं जानती थीं, इसलिए उन्होंने अपरोक्ष रुप से ही श्रीराम से पहले भी वन जाने का आग्रह किया था। लेकिन, नियति में जो लिखा था, वही हुआ। श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण तीनों वनवास के लिए चल पड़े।