Ramanujacharya: भारत में सनातन धर्म जब कर्मकांडों के जाल और जातिवाद के जहर से आपस में बंट रहा था तब जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने जातिवाद के जहर से मुक्त कराने के लिए अद्वैत का सिद्धांत दिया था। इस सिद्धांत के मुताबिक सभी मानव चाहे किसी भी धर्म और जाति के हों, ईश्वर के ही अंश हैं और इस माया रुपी झूठे संसार में भटक रहे हैं। शंकर के इस सिद्धांत ने ही देश में निचली जातियों के अंदर एक समानता का भाव भरा और निर्गुण पंरपरा का विकास शुरु हुआ।
Ramanujacharya भक्ति आंदोलन के जन्मदाता ( Father of Bhakti movement)
भक्ति आंदोलन के जन्मदाता के रुप में हमेशा रामानुजाचार्य जी को सनातन धर्म में विशेष आदर प्राप्त है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने अद्वैत सिद्धांत के द्वारा सभी जातियों के बीच समानता का सिद्धांत दिया। अब बारी थी जातिगत विषमता को धर्म के क्षेत्र में दूर कर सभी को ईश्वर प्राप्ति का अधिकार देना। इसके लिए रामानुजाचार्य जी ने भक्ति आंदोलन की नींव रखी। सबसे पहले उन्होंने जगद्गुरु आदि शंकराचार्य के सिद्धांतों का खंडन किया कि ईश्वर का स्वरुप सिर्फ निराकार है।
जगद्गुरु रामानुजाचार्य जी ने सगुण परंपरा का प्रचार किया और ईश्वर की मूर्ति की पूजा का प्रचार किया। रामानुजाचार्य के अनुसार निराकार ब्रह्म रुप भी धारण कर सकता है और उनकी पूजा किसी भी स्वरुप या मूर्ति के रुप में की जा सकती है। दक्षिण भारत के अलावार और नयनार संतों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने ईश्वर के सगुण रुप की पूजा को प्रचारित किया। रामानुजाचार्य जी ने सगुण स्वरुप भक्ति को मोक्ष के लिए आवश्यक और सहज माना।
रामानुज ने शुष्क और भावना रहित निर्गुण परंपरा का विरोध कर एक ऐसी नई भक्ति परंपरा का उद्धोष किया जिनसे कबीर,नानक, तुलसी, रैदास, मीरा जैसे भक्त निकले और उन्होंने निर्गुण और सगुण भक्ति आंदोलन को उत्तर भारत में जन जन में फैला दिया।
ईश्वर को भक्ति के द्वारा पाया जा सकता है
रामानुज का कहना था कि चूंकि ईश्वर ने ही इस संसार को बनाया है, तो ईश्वर का बनाया संसार झूठा या मिथ्या नहीं हो सकता। ब्रह्म और उसकी सृष्टि एक हो कर भी उनके बीच विभेद हो सकता है और जीव ईश्वर में वापस तभी मिल सकता है, जब उसे या तो ईश्वर की अनुकंपा प्राप्त हो जाए( जैसा गीता में कहा गया है) या फिर वो अपने भक्ति कर्म के द्वारा ईश्वर में मिल जाए।

रामानुजाचार्य ने विशिष्टाद्वैत का सिद्धांत दिया
1017 ई में दक्षिण भारत में जन्में रामानुजाचार्य के इस विचार को ही विशिष्टाद्वैत कहा जाता है। इस सिद्धांत में भक्ति के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग बताया गया है। ये भक्ति सभी जीवों को प्राप्त है चाहे वो किसी भी धर्म या जाति के हों । भक्ति के इस सिद्धांत को लेकर रामानंद उत्तर आए और उनके ही शिष्य कबीर, तुलसी, रैदास, मीरा आदि निकले। इस परंपरा में निर्गुण अर्थात निराकार ईश्वर की अराधना और सगुण अर्थात ईश्वर के मूर्ति रुप की भी भक्ति शामिल थी। रामानुजाचार्य के इस आंदोलन को मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने भी अपनाया और दलित हिंदुओं ने भी सहज स्वीकार किया। आज जो भी भक्ति का स्वरुप है वो रामानुजाचार्य के ही सिद्धांत विशिष्टाद्वैत की देन है।
रामानुजाचार्य ने सबके लिए भक्ति के द्वार खोल दिये
रामानुजाचार्य के ईश्वर सभी जाति पांति और धर्म के लोगों के लिए हैं।हालांकि जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने भी जाति प्रथा का विरोध किया लेकिन रामानुजाचार्य जी ने दलितों और मुस्लिमों के लिए भी मंदिरों के द्वार खोल दिये। रामानुजाचार्य जी ने दलितों के मंदिर प्रवेश की वकालत की । उनके एक मंदिर में एक मुस्लिम राजकुमारी बीबी नचियार की भी पूजा के लिए उनकी मूर्ति स्थापित की । बीबी नचियार एक मुस्लिम राजकुमारी थी और भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी।