सीता हरण

राम-रावण युद्ध|सीता हरण के बिना भी तय था युद्ध|Ram Ravan war was fixed

राम-रावण युद्ध सनातन हिंदू धर्म की सबसे महान घटनाओं में एक है। रावण के द्वारा सीता हरण और इसके बाद राम के द्वारा हनुमान, सुग्रीव और दूसरे वानरों की सहायता से लंका पर आक्रमण और रावण का वध सत्य और असत्य या धर्म और अधर्म के युद्ध के रुप में देखा जाता है । ऐसा माना जाता है कि अगर सीता हरण नहीं हुआ होता तो शायद ही राम- रावण युद्ध होता । लेकिन अगर हम सनातन हिंदू धर्म ग्रंथों को ध्यान से पढ़ें तो हमें कुछ और ही कहानी नजर आती है।

कुछ विद्वानों और संतों का कहना है कि श्रीराम का जन्म रावण के वध के लिए हुआ था और इसके लिए वो वाल्मीकि रामायण के बालकांड के सर्ग 15-16 के उस प्रसंग का उदाहरण देते हैं । इस प्रसंग में रावण के अत्याचारों से त्रस्त होकर देवतागण भगवान ब्रह्मा के पास जाते हैं और वहां उपस्थित विष्णु से कहते हैं, कि वो नर रुप में दशरथ के यहां अवतार लें और रावण का वध कर देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त कराएं –

ततो देवाः सगन्धर्वाः सिद्धाश्च परमर्षयः |
भागप्रतिग्रहार्थं वै समवेता यथाविधि ।।1.15
ताः समेत्य यथान्यायं तस्मिन् सदसि देवताः |
अब्रुवन् लोककर्तारं ब्रह्माणं वचनं ततः ।।1.15.4

 अर्थः- दशरथ के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ से हर्षित होकर देवता, सिद्ध, गंधर्व और ऋषिगण एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और इसके बाद सभी देवता, गंधर्व और ऋषिगण एक साथ ब्रह्मा के पास पहुंचे और कहा । 

भगवंस्त्वत्प्रसादेन रावणो नाम राक्षसः |
सर्वान्नो बाधते वीर्याच्छासितुं तं न शक्नुमः ||1.15.16

अर्थः- “हे ब्रह्म देव ! रावण नामक एक राक्षस हम सभी को प्रताड़ित करता रहता है । आपने उसे ऐसा वरदान दे दिया है कि हम उसे नियंत्रित भी नहीं कर पा रहे । “

इसके बाद देवतागण रावण के अत्याचारों के बारे में ब्रह्मा जी को अवगत कराते हैं ,तभी वहां विष्णु पहुंचते हैं और उनसे उनके दुखों का कारण पूछते हैं। विष्णु देवताओं से पूछते हैं कि रावण के वध का उपाय क्या है ?

ततो नारायणो विष्णुः नियुक्तः सुरसत्तमैः |
जानन्नपि सुरानेवं श्लक्ष्णं वचनमब्रवीत् || 1.16.1
उपायः को वधे तस्य राक्षसाधिपतेः सुराः |
यमहं तं समास्थाय निहन्यामृषिकण्टकम् 1.16.2

अर्थः- जब भगवान देवताओं के द्वारा रावण के वध के लिए भगवान विष्णु को नियुक्त किया गया तब भगवान ने देवताओं से रावण के वध का उपाय पूछा

त्वां नियोक्ष्यामहे विष्णो लोकानां हितकाम्यया |
राज्ञो दशरथस्य त्वमयोध्याधिपतेः विभोः।। 1.15.19
धर्मज्ञस्य वदान्यस्य महर्षिसमतेजसः |
अस्य भार्यासु तिसृषु ह्रीश्रीकीर्त्युपमासु च || 1.15.20
विष्णो पुत्रत्वमागच्छ कृत्वात्मानं चतुर्विधम् |

अर्थः- देवताओ ने जगत के पालनकर्ता विष्णु को नियुक्त करते हुए कहा कि वो अयोध्या के राजा दशरथ के यहां जन्म लें । दशरथ जो राजाओ में ऋषि के समान हैं और उनकी पत्नियां जो अच्छाई, वैभव और यश की प्रतीक हैं। 

एवमुक्ताः सुराः सर्वे प्रत्यूचुर्विष्णुमव्ययम् |
मानुषं रूपमास्थाय रावणं जहि संयुगे ।। 1.16.3

अर्थः- सभी देवताओं ने विष्णु को कहा कि “आप मानव रुप लेकर रावण को युद्ध में पराजित करें ।”

क्या सिर्फ राम रावण युद्ध के लिए लिखी गई ? 

वाल्मीकि रामायण के श्लोकों से यह पता चलता है कि रामायण लिखने के दो महान उद्देश्य थे –

काव्यं रामायणं कृत्स्न्नं सीतायाश्चरितं महत् |
पौलस्त्यवधमित्येवं चकार चरितव्रतः || 1.4.7

अर्थः “रामायण काव्य को लिखने के दो उद्देश्य थे। पहला, सीता के चरित्र की महानता को स्थापित करना और दूसरा, पौलत्स्य (अर्थात रावण ) के वध की वजह बताना ।”

इस श्लोक से यही पता चलता है कि रामायण की रचना के लिए वाल्मीकि क्यों प्रेरित हुए थे? दरअसल वाल्मीकि के ये अपने विचार थे। वाल्मीकि ने रामायण की रचना राम रावण युद्ध के समाप्त होने के बरसों बाद की थी। राम- रावण के युद्ध का एक बड़ा कारण रावण द्वारा जानकी हरण जरुर था। इससे सीता के चरित्र और प्रतिष्ठा पर सवाल उठे थे ।

वाल्मीकि ये मानते थे कि सीता के चरित्र पर सवाल इसीलिए सवाल उठे क्योंकि रावण ने उनका हरण कर लिया था। सीता के चरित्र पर उठने वाले सवालों लिए वाल्मीकि रावण को जिम्मेवार मानते थे। इसलिए सीता के चरित्र की फिर से स्थापना तब ही संभव थी, जब रावण के वध को न्यायोचित ठहराया जा सके, रावण के द्वारा सीता हरण को गलत ठहराया जा सके।

लेकिन वाल्मीकि के ये विचार बहुत बाद के हैं। सवाल ये भी है कि अगर जानकी हरण नही होता तो क्या वाल्मीकि रामायण की रचना नहीं करते? ऐसा नहीं है क्योंकि, नारद ने ब्रह्मा के आदेश के अनुसार रामायण लिखने का आदेश वाल्मीकि को दिया था । ब्रह्मा वाल्मीकि से किसी ऐसे पुरुष का इतिहास लिखवाना चाहते थे जो सर्व गुण समप्न्न हो । ब्रह्मा के आदेश से नारद वाल्मीकि से ऐसा काव्य लिखने के लिए कहते हैं। वाल्मीकि का पहला सवाल ही यह था कि आखिर संसार में वो कौन मनुष्य है जो सर्व गुण संपन्न है –

को न्वस्मिन् साम्प्रतं लोके गुणवान् कश्च वीर्यवान् |
धर्मज्ञश्च कृतज्ञश्च सत्यवाक्यो दृढव्रतः ||1.1.2
चारित्रेण च को युक्तः सर्वभूतेषु को हितः |
विद्वान् कः कः समर्थश्च कश्चैकप्रियदर्शनः || 1.1.3
एतदिच्छाम्यहं श्रोतुं परं कौतूहलं हि मे |
महर्षे त्वं समर्थोऽसि ज्ञातुमेवंविधं नरम् |1.1.5

अर्थः- वाल्मीकि नारद जी से पूछते हैं कि “पृथ्वी पर वर्तमान में कौन ऐसा पुरुष है, जो चरित्रवान है और अच्छाई के गुणों से युक्त है । जो धर्म के मार्ग पर चलने वाला , सत्य बोलने वाला और अपने व्रत पर ढृढ़ रहने वाला है । किसका चरित्र इतना महान है? कौन है वो पुरुष जो सभी भूतों का कल्याण चाहने वाला है । कौन ऐसा पुरुष है जो देखने में सबसे सुंदर है । हे नारद जी! मैं ये सब आपसे सुनना चाहता हूं । आप ऐसे किसी मनुष्य को जरुर जानते होंगे ।”

इसके बाद नारद जी श्रीराम के चरित्र के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि “श्रीराम ही वो मनुष्य हैं सभी सोलह गुणों से युक्त हैं ।” इसके बाद वाल्मीकि श्रीराम के बारे में और भी जानकारियां इकठ्ठी करते हैं और इसके बाद रामायण की रचना करते हैं। इससे स्पष्ट है कि वाल्मीकि से ब्रह्मा किसी दूसरे उद्देश्य से रामायण लिखवाना चाहते थे जबकि वाल्मीकि का रामायण लिखने का उद्देश्य एक दम अलग था ।  ब्रह्मा सर्वश्रेष्ठ इंसान के रुप में राम की यात्रा वाल्मीकि के माध्यम से लिखवाना चाहते थे। वाल्मीकि सीता के चरित्र की पुनर्स्थापना और रावण के वध को न्यायोचित ठहराने के लिए रामायण लिखना चाहते थे।

 

सीता मुक्ति राम का उद्देश्य नहीं था 

ऐसी मान्यता है कि श्रीराम ने माता सीता को रावण के कैद से मुक्त कराने के लिए रावण से युद्ध किया और उसका वध किया था। शुद्ध सनातन हिंदू धर्म के सबसे महान ग्रंथ रामायण को पढने से भी एक तरीके से ये सच लगता है। रावण छल से माता सीता का हरण कर लेता है और भगवान श्रीराम अपनी पत्नी जानकी को मुक्त कराने के लिए हनुमान जी , सुग्रीव और अन्य वानरों की सहायता से लंका जाते हैं और रावण का वध कर देते हैं।

 लेकिन अगर रामायण जैसा महान ग्रंथ सिर्फ एक ऐसे सरल उद्देश्य पर ही टिका होता तो कभी भी भगवान श्रीराम के चरित्र और उनके जीवन को पूरे विश्व के द्वारा इतना नहीं सराहा जाता । आज सारा संसार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों पर चलना चाहता है । निश्चित ही रामायण और राम के जीवन के कुछ ऐसे उद्देश्य होंगे जिन पर अभी तक ध्यान नहीं गया है।

ऐसा माना जाता है कि राम और रावण की शत्रुता की शुरुआत शूर्पनखा के नाक कान काटे जाने के प्रसंग से शुरु होती है। लेकिन ऐसा पूरी तरह सत्य नहीं है। वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट है कि श्रीराम का जन्म ही रावण या कहें तो ऋषि पुलत्स्य के राक्षस वंश के खात्में के लिए हुआ था। रावण ऋषि पुलस्त्य का ही वंशज था । जब राम ताड़का और सुबाहु का वध करते हैं और मारीच को घायल कर समुद्र में फेंक देते हैं, तभी रावण और उसके पूरे वंश को पता चल जाता है कि राक्षसों के वध की शुरुआत हो चुकी है।

रावण के वध की योजना देवताओं ने बना ली थी 

जैसे ही विश्वामित्र की आज्ञा से राम ताड़का और सुबाहु का वध करते हैं न सिर्फ राक्षसों को ही नहीं बल्कि देवताओं को भी यह ज्ञात हो जाता है कि, वो राम ही हैं जो रावण के पूरे वंश का संहार करने के लिए विष्णु के अवतार के रुप में जन्में हैं । तभी जैसे ही राम ताड़का का वध करते हैं, साक्षात इंद्र विश्वामित्र को ये इशारा कर देते हैं कि वो राम को वो सारे अस्त्र और शस्त्र दें दे ,जिन्हें एक विशेष उद्देश्य ( ऋषि पुलस्त्य के राक्षस वंश के वध ) के लिए तैयार किया गया है –

उवाच परमप्रीतः सहस्राक्षः पुरन्दरः || १-२६-२७
सुराश्च सर्वे संहृष्टा विश्वामित्रमथाब्रुवन् |
पात्रभूतश्च ते ब्रह्मंस्तवानुगमने रतः || १-२६-३०
कर्तव्यं सुमहत्कर्म सुराणां राजसूनुना |

अर्थात – “हे विश्वामित्र ! आप राम को उन सभी अस्त्र शस्त्रों से सुस्सजित कर दीजिए जिनका निर्माण एक खास उद्देश्य के लिए किया गया है।”

इसके बाद विश्वामित्र राम को सारे दिव्यास्त्रों की शिक्षा देते हैं, जब श्रीराम मारीच को घायल कर देते हैं ,तब भी मारीच रावण के दरबार में जाकर उसे श्रीराम की शक्ति के बारे मे सूचित करता है ।

श्रीराम के वनवास के साथ ही रावण के वध की योजना बन गई थी 

 जब राम वनवास के लिए चित्रकूट पहुंचते हैं तो रावण का भाई खर सावधान हो जाता है और राम को परेशान करने के लिए वहां निवास कर रहे ऋषि मुनियों पर हमले करने लगता है। जब ऋषि मुनि खर के हमले से परेशान हो जाते हैं तो वो श्रीराम को खर के बारे में बताते हैं कि कैसे वो श्रीराम के आने के बाद से हमलावर हो गया है –

रावण अवरजः कश्चित् खरो नाम इह राक्षसः |
उत्पाट्य तापसान् सर्वान् जन स्थान निकेतनान् || २-११६-११
धृष्टः च जित काशी च नृशंसः पुरुष अदकः |
अवलिप्तः च पापः च त्वाम् च तात न मृष्यते || २-११६-१२

अर्थात – “रावण का भाई खर आपके इस स्थान पर आने के बाद से हम सभी ऋषि मुनियों पर हमले कर रहा है। ये राक्षस खर मनुष्यों को मारने वाला दुष्ट राक्षस है ।”

त्वम् यदा प्रभृति ह्य् अस्मिन्न् आश्रमे तात वर्तसे |
तदा प्रभृति रक्षांसि विप्रकुर्वन्ति तापसान् || २-११६-१३

अर्थात – “जब से आपके यहां आने की खबर उसे मिली है तब से ही वो सभी ऋषि मुनियों को मार रहा है ।”

खरः त्वय्य् अपि च अयुक्तम् पुरा तात प्रवर्तते |
सह अस्माभिर् इतो गग्च्छ यदि बुद्धिः प्रवर्तते || २-११६-२१

अर्थात – हे श्री राम ये दुष्ट खर आप पर भी हमले कर सकता है

श्रीराम समझ जाते हैं कि अभी रावण के भाई खर से सीधे टकराने का लाभ नहीं है, इस वजह से वो चित्रकूट से पलायन करते हैं ।

सीता हरण से पहले ही राम ने राक्षसों के वध की प्रतिज्ञा ले ली  

  हालांकि खर के द्वारा ऋषियों को सताने की बात जानकर राम चुपचाप चित्रकूट से दंडकारण्य की ओर बढ़ जाते हैं ,लेकिन श्रीराम का रावण और उसके वंश के अन्य राक्षसों के वध का संकल्प बढ़ने लगता है। जब श्रीराम दंडकारण्य पहुंचते हैं और वहां वो खर के नेतृत्व में राक्षसों के द्वारा मारे गए मुनियों की हड्डियों को देखते हैं तो द्रवित हो जाते हैं –

प्रविश्य तु महारण्यं दण्डकारण्यमात्मवान् |
रामो ददर्श दुर्धर्षस्तापसाश्रममण्डलम् || ३-१-१

जब शरभंग मुनि के आश्रम में श्रीराम पहुंचते हैं और सभी ऋषि मुनि उनसे रावण के राक्षसों से रक्षा की गुहार लगाते हैं तो श्रीराम कहते हैं कि वो वनवास सिर्फ अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के उद्देश्य से नहीं आए हैं –

न एवम् अर्हथ माम् वक्तुम् आज्ञाप्यः अहम् तपस्विनाम् |
केवलेन स्व कार्येण प्रवेष्टव्यम् वनम् मया || ३-६-२२

श्रीराम आगे कहते हैं कि उनका उद्देश्य राक्षसों से ब्राह्मणों और ऋषियों की रक्षा करना है । इस वजह से भी वो वन में आए हैं –

विप्रकारम् अपाक्रष्टुम् राक्षसैः भवताम् इमम् |
पितुः तु निर्देशकरः प्रविष्टो अहम् इदम् वनम् || ३-६-२३

इसके बाद श्रीराम यह शपथ लेते हैं कि वो ऋषियों की रक्षा करने के लिए सारे राक्षसों का संहार कर देंगे –

तपस्विनाम् रणे शत्रून् हन्तुम् इच्छामि राक्षसान् |
पश्यन्तु वीर्यम् ऋषयः सः ब्रातुर् मे तपोधनाः || ३-६-२५

खर के साथ युद्ध से ही रावण के साथ युद्ध की आधिकारिक घोषणा हो जाती है 

इसके बाद शूर्पनखा का आना और उसका नाक कान काटा जाना इसकेबाद खर-दूषण का संहार उसी महान उद्देश्य का प्रारंभ है, जिसके लिए श्रीराम का अवतार हुआ था । आधिकारिक रुप में रावण के भाई खर के साथ श्रीराम के युद्ध के साथ ही राम रावण का महान युद्ध शुरु हो जाता है । वो युद्ध जिसका उद्देश्य पुलत्स्य ऋषि के सारे वंश को खत्म करना था। ताकि राक्षसों से ब्राह्मणों, ऋषियों , गो माता की रक्षा हो सके, जिनका नेता पुलस्त्य वंश का सबसे महान राजा रावण था –

स्वस्ति गो ब्राह्मणानाम् च लोकानाम् च इति संस्थिताः |
जयताम् राघवो युद्धे पौलस्त्यान् रजनी चरान् || ३-२४-२१
चक्र हस्तो यथा युद्धे सर्वान् असुर पुंगवान् |

सीता हरण रावण की एक विफल युद्ध नीति थी ,अगर रावण माता जानकी का हरण नहीं भी करता तो भी यह युद्ध भविष्य में होना ही था ।

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