शुद्ध सनातन धर्म में श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में पूजा जाता है । राम भगवान विष्णु के अवतार इसलिए भी कहा जाता है श्री राम का अवतरण ही धर्म की मर्यादा को स्थापित करने के लिए हुआ था । श्री राम ने अपने पूरे जीवन काल में किसी भी प्रकार के अलौकिक चमत्कार नहीं किए और मानव क्षमताओं का ही प्रयोग करते हुए मर्यादा की स्थापना की ।
क्या श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं :
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं। भगवान श्री हरि विष्णु ने जगत के कल्याण और दुष्ट रावण को मारने के लिए अवतार लिया था। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में भी यह कथा मिलती है कि भगवान विष्णु ने दशरथ के घर जन्म लिया और रावण का वध कर धर्म की पुनर्स्थापना की। वाल्मीकी रामायण में श्लोक है –
इत्येतद्वचनं श्रुत्वा सुराणां विष्णुरात्मवान् |
पितरं रोचयामास तदा दशरथं नृपम् || १-१६-८
अर्थात : देवताओं से यह वचन सुन कर कि रावण का वध कोई मनुष्य ही कर सकता है विष्णु ने उदार ह्दय वाले दशरथ के पुत्र के रुप में जन्म लेने का निश्चय किया
रामचरितमानस में श्री राम भगवान विष्णु के अवतार हैं :
रामचरितमानस में भी भगवान श्री हरि विष्णु सभी देवताओं को आश्वासन देते हैं कि राम भगवान विष्णु के अवतार सूर्य कुल में जन्म लेकर रावण का संहार करेंगे, कौशल्या के सामने भी राम के जन्म के वक्त श्री हरि विष्णु प्रगट होते हैं तो माता कौशल्या उनकी स्तुति करती हैं –
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रगट श्री कंता।
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रुपा।।
किजै सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा।।
क्या श्रीराम और विष्णु अलग- अलग सत्ताएं हैं :
लेकिन रामचरितमानस और वाल्मीकी रामायण में ही कई ऐसे प्रसंग हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि भगवान राम भगवान विष्णु के अवतारअलग- अलग सत्ता हैं और कई बार तो ऐसा लगता है कि विष्णु भी श्री राम के अधीन हैं जो व्यापक अनादि अनंता हैं। जब हनुमान जी रावण के दरबार में जाते हैं तब वो रावण के श्री राम का परिचय देते हैं –
जाके बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा
अर्थात : जिन श्रीराम के बल से ही ब्रम्हा जगत की सृष्टि करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और शिव संहार करते हैं मैं उन्ही का दूत हूं
विभिषण जी भी रावण को समझाते हुए कहते हैं कि –
तात राम नहीं नर भूपाला भुवनेश्वर कालहुं कर काला।
ब्रम्ह अनामय अज भगवंता व्यापक अजित अनादी अनंता।।
अर्थात : मेरे भाई राम कोई पृथ्वी के राजा भर नहीं हैं वो समस्त कालों के भी काल हैं और वो ही ब्रम्ह स्वरुप अजेय और अनंत हैं
लक्ष्मण भी जब शुक दूत को रावण के दरबार में वापस भेजते हैं तो संदेश स्वरुप कहलाते हैं –
बातन्ह मनहिं रिझाई सठ जनि घालसि कुल खीस।
राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्णु अज ईस।।
अर्थात : हे मूर्ख रावण केवल बातों से ही रिझा कर अपने कुल को नष्ट मत कर क्योंकि राम का बिरोध करके तू ब्रम्हा, विष्णु और शँकर जी से भी नहीं बच सकेगा।
कई देवताओं के अवतार हैं श्री राम :
कुछ इसी तरह के प्रसंग वाल्मीकी रामायण में भी आते हैं जब भगवान श्री राम भगवान विष्णु के अवतार ही नहीं बताया गया है बल्कि उन्हें कई अन्य दैवीय सत्ताओं का भी अवतार बताया गया है। युद्ध कांड में जब श्री राम माता सीता को अग्नि परीक्षा के लिए कहते हैं और माता सीता अग्नि परीक्षा के लिए अग्नि में प्रवेश करती हैं तब भगवान श्री ब्रम्हा, शिव , कुबेर , इंद्र, यमराज और वरुण उन्हें उनके वास्तविक स्वरुप के बारे में बताते हैं –
ततो वैश्रवणो राजा यमश्च पृभिः सह |
सहस्राक्षश्च देवेशो वरुणश्च जलेश्वरः || ६-११७-२
षड्र्धनयनः श्रीमान् महादेवो वृषध्वजः |
कर्ता सर्वस्य लोकस्य ब्रह्मा ब्रह्मविदां वरः || ६-११७-३
एते सर्वे समागम्य विमानैः सूर्यसंनिभैः |
आगम्य नगरीं लङ्कामभिजग्मुश्च राघवम् || ६-११७-४
ये सभी ईश्वरीय सत्ताएं भगवान राम भगवान विष्णु के अवतार ईश्वरीय शक्तियों का अवतार बताती हैं –
ऋतधामा वसुः पूर्वं वसूनां च प्रजापतिः || ६-११७-७
त्रयाणामपि लोकानामादिकर्ता स्वयं प्रभुः |
अर्थात : हे राम आप आठ वसुओं में ऋतधाम वसु हैं। जो सृष्टि के प्रथम रचयिता हैं और सत्य लोक में वास करते हैं
रुद्राणामष्टमो रुद्रः साध्यानामपि पञ्चमः
अश्विनौ चापि कर्णौ ते सूर्याचन्द्रामसौ दृशौ
अर्थात : हे श्री राम आप एकादश रुद्रों में आठवें रुद्र हैं और गणदेवताओं में पांचवें गण साध्या हैं। जुड़वां भाई देवता अश्विन कुमार आपके दोनों कान हैं और सूर्य और चंद्र आपकी दोनों आंखे हैं।
अक्षरं ब्रह्म सत्यं च मध्ये चान्ते च राघव || ६-११७-१४
लोकानां त्वं परो धर्मो विष्वक्सेनश्चतुर्भजः |
अर्थात : ब्रम्हा कहते हैं कि हे श्री राम आप अक्षर सत्य ब्रम्ह हैं औऱ चतुर्भुज विष्णु हैं
इन श्लोकों से स्पष्ट है कि भगवान श्री राम सिर्फ विष्णु के अवतार मात्र न होकर निराकार और साकार ब्रम्ह दोनों ही स्वरुपों को धारण करने वाले हैं।
क्या श्री राम निराकार स्वरुप भी हैं :
सनातन धर्म में निर्गुण और सगुण दोनों रुपों में ही ईश्वर की अराधना की परंपरा रही है। निर्गुण अर्थात ईश्वर का निराकार स्वरुप । ऐसा स्वरुप जो शब्द , रुप,गंध और स्पर्श से परे हैं। ये कण-कण में बसते हैं।
वैसे तो निर्गुण निराकार ब्रम्ह की अराधना का मूल भी वेद ही है, लेकिन उपनिषदों ने निराकार ब्रम्हा की उपासना पर विशेष जोर दिया। बाद में आदिगुरु शंकराचार्य के आगमन के बाद निराकार ब्रम्ह पर आधारित अद्वैत की संकल्पना बनी ।
कबीर और नानक के निराकार राम :
आदि गुरु शंकराचार्य की अद्वैत की अवधारणा ने निचली श्रेणी के वंचित जातियों को बड़ी प्रेरणा थी । जिन जातियों को मंदिरों में प्रवेश से रोका गया उन्होंने ईश्वर के निराकार रुप को ही अपना लिया । जाति भेद से परे इस उपासना पद्धति ने रैदास,कबीर, नानक, दादू, धन्ना जैसे महान दलित संतों को सनातन धर्म की कुरीरितों से लड़ने का साहस दिया । इन संतों ने श्री राम को निराकार ब्रम्ह के रुप में स्थापित किया और राम नाम जप के द्वारा मुक्ति का पथ प्रदर्शित किया ।
तुलसी के निराकार और साकार राम :
तुलसी के राम राजा राम हैं लेकिन वो भी उन्हें अनंत, अगोचर और निराकारी रुप में भी मान्यता देते हैं –
तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥
ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥
तभी तो कबीर दास के राम जहां निराकार ब्रम्ह मूलक राम हैं वहीं तुलसीदास के श्री राम साकार ब्रम्ह हो कर भी निराकार स्वरुप भी धारण कर सकते हैं। तुलसी के साकार श्री राम भी करुणा के सागर हैं तो कबीर और नानक के राम भी मुक्तिदाता हैं।