शुद्ध सनातन धर्म में भगवान शिव को सबका ईश्वर माना गया है । देवता, दानव, राक्षस, दैत्य, असुर सभी भगवान शिव के महान भक्त रहे हैं। सब पर महादेव की कृपा रही है। चाहे श्री राम हों या फिर अत्याचारी राक्षस रावण महादेव की भक्ति सभी करते रहे हैं।
शिव क्यों हैं सबके ईश्वर :
भगवान शिव वैरागी हैं। न उन्हें किसी विशेष पक्ष का समर्थन करते दिखाया गया है और न ही वो किसी के शत्रु रहे हैं। वो हमेशा सम पर स्थित रहे हैं। जहां भगवान विष्णु धर्म के अनुसार चलने वालों के पक्ष में ही खड़े दिखते हैं वहीं महादेव की शरण में अधर्मी तक को सुरक्षा प्राप्त है । जहां भगवान विष्णु को रीति रिवाजों का पालन करने वाले देवता, मनुष्य और कुछ एक महान धर्माचारी असुरों और दैत्यों की ही भक्ति प्राप्त रही वहीं भगवान शिव के यहां देवता, मनुष्य के अलावा भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस, सहित सभी प्राणियों को सुरक्षा और भक्ति प्राप्त हुई है ।
श्री राम और रावण दोनों के हैं महादेव :
रामायण की कथा दरअसल महादेव के दो महान भक्त के आपसी युद्ध की कथा है। भगवान श्री राम के चरित्र और उनसे जुड़ी कथाओं को पढ़ने पर ऐसा ही लगता है कि राम और रावण दोनों की महादेव का महान भक्त थे। दोनों ही ने भगवान शिव से अपनी विजय के लिए प्रार्थना की थी।
रावण को शास्त्रों का महान ज्ञाता माना जाता है । रावण को महादेव का अनन्य भक्त भी माना जाता है। कहा जाता है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए ही रावण ने शिव तांडव स्त्रोत की रचना की थी। कहा जाता है कि रावण ने ही झारखंड स्थित वैद्यनाथ धाम में भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। ऐसी ही कथा रावण के द्वारा हिमाचल प्रदेश स्थित बैजनाथ धाम में भी भगवान शिव के लिंग की स्थापना के बारे में है। हालांकि वाल्मिकि रामायण औऱ तुलसी रचित रामचरितमानस में रावण को महादेव के महान भक्त के रुप में तो दिखाया गया है लेकिन रावण द्वारा स्थापित ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की कहानी अन्य ग्रंथों में ही पाई जाती है।
रावण को प्राप्त थी सुरक्षा :
उत्तर वाल्मीकि रामायण और कई अन्य ग्रंथों में एक कथा मिलती हैं। इस कथा के अनुसार ब्रम्हा ने भूमिगत जल और संसार के प्राणियों की रक्षा के लिए राक्षसों का सृजन किया था। ब्रम्हा के द्वारा हेति और प्रहेति नामक दो राक्षसों का सृजन किया था। इन राक्षसों में प्रहेति ने संन्यास ले लिया । लेकिन हेति ने विवाह कर लिया ।
हेति ने काल की पुत्री भया से विवाह किया। भया और हेति का पुत्र विद्य़ुतकेशी हुआ। विद्युतकेशी की पत्नी ने अपने बच्चे को जन्म के साथ ही त्याग दिया था। इस त्यागे हुए बच्चे को भगवान शिव और माता पार्वती ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था । इस पुत्र का नाम भगवान शंकर ने सुकेश रखा । भगवान शिव ने अपने पुत्र सुकेश को वरदान दिया कि वो कभी भी राक्षसों का वध नहीं करेंगे और हमेशा उनकी रक्षा करेंगे । इसके बाद से राक्षसों ने भगवान विष्णु से डरना छोड़ दिया और भगवान शंकर की भक्ति करने लगे। रावण सुकेश के ही पुत्र सुमाली का नाती या दौहित्र था ।
शिव के दो महान भक्त में रावण को अपने माता की तरफ से राक्षस कुल प्राप्त हुआ था इस वजह से भगवान शंकर का उसे संरक्षण भी प्राप्त हुआ। दूसरे वो भगवान शंकरका महान भक्त भी था। रावण की महान शिवभक्ति ऐसी थी कि उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने दसों सिरों का बलिदान कर दिया था। रावण की ऐसी भक्ति देख कर भगवान शंकर ने उसे चंद्रहास खड़ग भी प्रदान किया था।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना :
भले ही वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में श्री राम के द्वारा शंकर की पूजा करने के लिए रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना का वर्णन नहीं है, लेकिन कंबन रचित तमिल रामायण, अद्भुत रामायण और स्कंदपुराण में भगवान श्री राम के द्वारा रामेश्वरम में भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की कहानी जरुर है। भगवान शंकरऔर श्री राम के बीच कौन किसका भक्त है ये कहना कठिन है। भगवान शिव श्री राम की भक्ति करते रामचरितमानस में नज़र आते हैं तो कई अन्य ग्रंथों में श्री राम भी भगवान शंकर के महान भक्त के रुप में देखे जाते हैं, हालांकि उत्तर भारत में यह जनमान्यता है कि श्री राम ने ही रामेश्वरम में भगवान शंकर के ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी, लेकिन वाल्मिकि रामायण और रामचरितमानस में भगवान श्री राम के द्वारा किसी भी शिव लिंग की स्थापना की कोई कथा नहीं है।
श्री राम का पुरोहित रावण :
इसको लेकर इन ग्रंथों में दो कथाएं मिलती हैं। पहली कथा ये है कि श्री राम को जब ये लगने लगा कि रावण को भगवान शिव के आशीर्वाद के बिना हराना असंभव है तो उन्होंने रामेश्वरम में भगवान शिव के लिंग की स्थापना की। भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा के लिए श्री राम के पुरोहित के रुप में स्वयं रावण आया ।
श्री राम के लगा था ‘ब्रम्ह हत्या’ का पाप :
एक कथा ये भी है कि भगवान श्री राम ने जब रावण को मार दिया तो उन्हें ब्रम्हहत्या का पाप लगा। इसी पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने भगवान शिव के रामेश्वरम स्थित ज्योतिर्लिंग की स्थापना की । जो भी हो लेकिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगो में से दो ज्योतिर्लिगों की स्थापना दो महान शत्रुओं श्री राम और रावण ने ही की थी और दोनों ही भगवान शिव के महान भक्त भी थे।