श्रीराम और हनुमान

क्या श्रीराम और हनुमान जी सगे भाई थे

जब महावीर हनुमान जी शक्तिबाण से मूर्छित लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लेकर आते हैं और लक्ष्मण जी उससे जीवित हो जाते हैं तो श्री राम उन्हें खुशी से गले लगा लेते हैं । इस प्रसंग का वर्णन करते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं, इन पंक्तियों में श्रीराम और हनुमान जी की तुलना अपने प्रिय भाई भरत से करते हैं ।

लाय संजीवनी लखन जियाए, श्री रघुबीर हरषि उर लाए !

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई !!

महावीर हनुमान जी तो श्री राम के दास थे फिर कई और स्थानों पर श्री राम उन्हें अपना भाई बताते हैं। क्या इसके पीछे कोई रहस्य है । क्या श्रीराम और हनुमान जी में स्वामी और सेवक के अलावा भी कोई रिश्ता था । शुद्ध सनातन आज इसी बात की पड़ताल कर रहा है । वाल्मीकि रामायण में महावीर हनुमान जी के जन्म की जो कथा है वो बिल्कुल अलग है । मूल रामायण के मुताबिक महावीर हनुमान जी सिर्फ पवन देव के पुत्र हैं जिन्हें माता अंजनी ने एक गुफा में पाया था । मूल वाल्मीकि रामायण के अनुमार हनुमान जी प्रगट हुए थे न कि माता अंजनी के द्वारा प्रसव पीड़ा के बाद जन्मे थे । तुलसी दास जी के रामचरिमानस मे भी महावीर हनुमान जी के जन्म को लेकर कुछ विशेष प्रकाश नहीं डाला गया है और उन्हें भगवान शंकर के समान ( शंकर सुवन ) और मारुति नंदन अर्थात पवन देव के पुत्र के रुप में दिखाया गया है । लेकिन रामायण की कथा सदियों से विश्व भर में गायी और प्रसारित की जा रही हैं। इनमें कई लोक श्रुतियां भी हैं जिनका वर्णन न तो वाल्मीकि रामायण में मिलता है और न ही तुलसी दास रचित रामचरितमानस या कम्बन रचित तमिल रामायण में । परवर्ती कालों में कई लोक श्रुतिओं ने रामायण में कई अन्य उपकथाओं को भी जन्म दिया जिसमें एक कथा ये है कि श्री राम और हनुमान जी दरअसल सगे भाई थे । ये उपकथा यह कहती हैं कि जब ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर दशरथ जी के द्वारा ऋषि श्रृंगी ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराया तो यज्ञ पुरुष ने राजा दशरथ को एक खीर से भरा पात्र दिया और कहा कि वो इसे अपनी महत्वपूर्ण रानियों को खिला दें ।

राजा दशरथ की मुख्यत तीन रानियां थी । कौशल्या पटरानी थीं और कैकयी और सुमित्रा उपपटरानियां थीं । कौशल्या को राजा दशरथ ने खीर का आधा भाग दिया ।  सुमित्रा को उस आधे भाग का आधा दिया ।  बाकि का आधा और सबसे कम भाग कैकयी को मिला । कैकयी को ये अच्छा नहीं लगा। उसी वक्त माता अंजना व्यंकटेश पर्वत पर भगवान शिव की तपस्या कर रही थीं । माता अंजनी को शिव के जैसा पुत्र चाहिए था। भगवान शिव और पवन देव  ने मिलकर एक लीला की । कैकयी के हाथो की खीर एक चील ले उड़ी और वो खीर अंजना के हाथो में जा गिरी । माता अंजना ने इसे प्रभु का प्रसाद समझ कर खा लिया और इससे महावीर हनुमान जी का जन्म हुआ । इसी लिए महावीर हनुमान शंकर सुवन , केसरी नंदन और मारुति नंदन भी कहे जाते हैं । उस तरफ कैकयी का हाथ खाली हो गया । तब कौशल्या और सुमित्रा ने अपने अपने हिस्से के खीर को आधा – आधा बांट कर कैकयी को दे दिया जिससे भरत का जन्म हुआ । इस प्रकार श्री राम और महावीर हनुमान जी दरअसल सगे भाई माने जा सकते हैं । हालांकि इस लोक श्रुति का कोई स्पष्ट प्रमाण नही है । संभवत यही वजह रही होगी कि कैकयी के पुत्र हनुमान हो सकते थे लेकिन भरत हुए । और तभी श्री राम बार बार  अपने सामने लक्ष्मण के होते हुए भी महावीर हनुमान जी की तुलना लक्ष्मण जैसे आज्ञाकारी भाई से न करके कैकयी के पुत्र भरत से करते रहते थे ।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Translate »