महाभारत में राक्षस कौन हैं? राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई?

सनातन धर्म के महान ग्रंथों में देवताओं, मनुष्यों और अन्य प्राणियों के अलावा कई ऐसी प्रजातियों और प्राणियों का भी जिक्र आता है जिन्हें आज के दौर में पहचानना या खोजना बहुत ही मुश्किल है। सनातन धर्म के ग्रंथों में कई प्रजातियों जिनमें यक्ष, राक्षस, गंधर्व, विद्याधर, अप्सराएं, नाग आदि प्रमुख हैं, उनका बार- बार जिक्र आया है । ये राक्षस कौन थे और किस- किस काल में मौजूद थे ये जानना जरुरी है ।

राक्षस कौन हैं? राक्षसों की उत्पत्ति कैसे हुई?

 पौराणिक ग्रंथों में राक्षसों का जिक्र हमेशा से आता रहा है, लेकिन वाल्मीकि रामायण में विशेषकर उत्तरकांड में राक्षसों की उत्पत्ति के बारे में ऋषि अगस्त्य श्रीराम को बताते हैं। वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड के चतुर्थ सर्ग में राक्षसों की उत्पत्ति के बारे में कहा गया है । ऋषि अगस्त्य कहते हैं –

प्रजापतिः पुरा सृष्टवा अपः सलिलसम्भवः ।
तासां गोपायने सत्वानसृजत् पद्मसंभवः ।।

अर्थात—जल से प्रकट हुए कमल से उत्पन्न प्रजापति ब्रह्मा ने पूर्वकाल में समुद्रगत जल की सृष्टि करके उसकी रक्षा के लिए अनेक प्रकार के जल- जंतुओं को उत्पन्न किया।

ते सत्वाः सत्वकर्तारं विनीतवदुपस्थिताः।
किं कुर्म इति भाषन्तः क्षुत्पिपासाभयार्दिताः ।।

अर्थः  रघुनंदन! वे जन्तु भूख और प्यास के भय से पीड़ित हो ‘अब हम क्या करें’, ऐसी बातें करते हुए अपने जन्मदाता ब्रह्मा जी के पास विनीत भाव से गए।

प्रजापतिस्तु तान् सर्वान् प्रत्याह प्रहसन्निव ।
आभाष्य वाचा यत्नेन् रक्षध्वमिति मानद् ।।

अर्थः- दूसरों का मान देने वाले रघुवीर! उन सबको आया देख कर प्रजापति ने उन्हें वाणी के द्वारा संबोधित करके हँसते हुए से कहा- ‘जल जंतुओं !  तुम यत्न पूर्वक इस जल की रक्षा करो ।

रक्षाम इति तत्रान्यैर्यक्षाम इति चापरैः।
भुक्षिताभुक्षितैरुक्तस्ततस्तानाह भूतकृत ।।

अर्थः- वे सब जन्तु भूखे प्यासे थे। उनमें से कुछ ने कहा – “हम इस जल की रक्षा करेंगे और दूसरे ने कहा कि हम इसका यक्षण(पूजन) करेंगे” , तब उन भूतों की सृष्टि करने वाले प्रजापति ने उनसे कहा

रक्षाम इति यैरुक्तं राक्षसास्ते भवन्तु वः ।
यक्षाम इति यैरुक्तं यक्षा एव भवन्तु वः ।।

अर्थः- तुमसे से जिन लोगों ने रक्षा करने की बात कही है , वे ‘राक्षस’ के नाम से प्रसिद्ध हों और जिन्होंने यक्षण (पूजन ) का कार्य स्वीकार किया है , वे लोग ‘यक्ष’ के नाम से विख्यात हों

इसका अर्थ ये है कि राक्षसों की सृष्टि प्रजापति ब्रह्मा जी ने जलगत सृष्टि की रक्षा के लिए किया था। बाद के काल में ये राक्षस देवताओं और मनुष्यों के द्रोही हो गए और इनका संहार भगवान विष्णु , इंद्र और अन्य देवताओं के द्वारा धर्म की रक्षा करने के लिए किया जाने लगा।

रामायण के प्रमुख राक्षसों में  रावण, कुम्भकर्ण , मेघनाद प्रमुख हैं इसके अलावा अन्य कई राक्षसों का भी वर्णन रामायण में आता है, जिनका वध धर्म की स्थापना के लिए श्रीराम, लक्ष्मण, हनुमान जी और अन्य देवशक्तियों के द्वारा किया गया।

महाभारत में राक्षसों का वर्णन

 महाभारत में राक्षसों का वर्णन बहुत कम ही किया गया है, लेकिन फिर भी महाभारत में भी कई राक्षसों का वर्णन आता है । इनमें घटोत्कच, अलम्बुष, बकासुर, हिडिम्ब आदि प्रमुख हैं। इनमें घटोत्कच भीम और उनकी राक्षस जाति की पत्नी हिडिम्बा का पुत्र था, तो अलम्बुष ऋष्यश्रृंग का पुत्र था ।

महाभारत में राक्षसों का जिक्र

महाभारत के कई पर्वों में राक्षसों को लेकर एक नये प्रकार का विचार मिलता है । महाभारत में कहा गया है कि जब दैत्यों, दानवों और राक्षसों का वध विष्णु, शिव और अन्य देवताओं के द्वारा कर दिया गया, तो द्वापर युग में उनकी आत्माओं ने मनुष्य का शरीर धारण कर लिया ।

 इस बार राक्षसों की आत्माओं ने इंसानों के शरीर पर कब्जा कर लिया और महाभारत का युद्ध इन राक्षसों की आत्माओं के द्वारा इंसानी शरीर के माध्यम से किए जा रहे अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए किया गया ।

इंसानी शरीर में राक्षस

महाभारत के ‘वन पर्व’ में जब दुर्योधन जंगल में रह रहे पांडवों को परेशान करने के लिए अपनी सेना लेकर जाता है, तो रास्ते में उसका युद्ध एक गंधर्व चित्रसेन से होता है। चित्रसेन दुर्योधन और कर्ण सहित उसकी पूरी सेना को पराजित कर देता है और कर्ण के भागने के बाद दुर्योधन को कैद कर लेता है ।

युधिष्ठिर को जब ये पता चलता है तो वो दुर्योधन की रक्षा के लिए अर्जुन और भीम को भेजते हैं। अर्जुन चित्रसेन को पराजित कर दुर्योधन को कैद से मुक्त कराता है । दुर्योधन इसके बाद आत्मग्लानि से भर कर आत्महत्या करने के लिए आमरण अनशन करने लगता है। यह देख कर पाताल के राक्षसों और दैत्यों को ये लगता है कि दुर्योधन को बचाना जरुरी है, क्योंकि वो अधर्म में उनका साथी है।

राक्षस दुर्योधन को माया के द्वारा पाताललोक ले जाते हैं और वहां उसे समझाते हैं कि हम सभी तुम्हारे साथ पांडवों और कृष्ण के खिलाफ युद्ध करेंगे और तुम्हें विजय दिलाएंगे। राक्षस बताते हैं कि बहुत सारे राक्षस अपनी आत्माओं को भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा और अन्य कौरव वीरों के शरीरों में प्रवेश करा देंगे और कौरवों की सहायता करेंगे।

राक्षस बताते हैं कि कर्ण के अंदर नरकासुर की आत्मा प्रवेश करेगी और अर्जुन का वध नरकासुर का आत्मा के द्वारा किया जाएगा। इसके अलावा एक लाख से ज्यादा संशप्तक राक्षसों की आत्माएं कौरव वीरों के शरीरों में प्रवेश करेंगी और पांडवों के खिलाफ युद्ध करेंगी। इस प्रकार वो दुर्योधन को महाभारत के युद्ध के लिए राजी कर लेते हैं।

इस कथा से पता चलता है कि कौरवों के शरीरों में राक्षसों की आत्माओं ने प्रवेश किया था और महाभारत का युद्ध लड़ा था। लेकिन इसके अलावा कई ऐसे राक्षस भी थे जो सशरीर महाभारत काल में नज़र आते हैं।

राक्षस घटोत्कच की कथा

राक्षस घटोत्कच महाभारत में एक महान वीर के रुप मे दिखाया गया है जो हमेशा पांडवों की सहायता करता था। घटोत्कच को भीम और उनकी एक राक्षस पत्नी हिडिम्बा का पुत्र बताया गया है।

  • कथा ये है कि जब लाक्षागृह के कांड से बच कर पांडव अपनी माँ कुंती के साथ वन में विचरण कर रहे थे तो वहां हिडिम्ब नामक राक्षस ने उन्हें देखा । हिडिम्ब और उसकी बहन हिडिम्बा दोनों ही उस जंगल में एक साथ रहते थे। हिडिम्ब ने अपनी बहन हिडिम्बा को ये आदेश देकर भेजा कि ‘पता लगाओ ये कौन हैं। हम इनको मार कर इनका मांस खाएंगे।‘
  • लेकिन हिडिम्बा भीम को देख कर मोहित हो जाती है और उनसे विवाह का आग्रह करते हुए सारा सच बता देती है। हिडिम्बा के कहने पह भीम हिडिम्ब राक्षस को मार डालते हैं और कुंती के आदेश पर हिडिम्बा से विवाह कर लेते हैं।
  • कुछ वक्त के बाद भीम और हिडिम्बा का एक पुत्र होता है जिसका नाम घटोत्कच रखा जाता है। भीम अपने पांडव भाइयों के पास लौट जाते हैं और घटोत्कच को ये आदेश देते हैं कि ‘जब भी हम तुम्हें बुलाएं तो तुम हमारी सहायता के लिए जरुर आना।‘
  • घटोत्कच सिर्फ महाभारत के युद्ध मे ही पांडवों की सहायता के लिए नहीं आता, उसके पहले भी कई बार भीम उसे सहायता के लिए बुलाते हैं। वन पर्व में जब सारे पांडव भाई और द्रौपदी थक जाते हैं तो घटोत्कच को भीम बुलाते हैं और घटोत्कच उन्हें आकाशमार्ग से गंधमादन पर्वत तक ले जाते हैं।
  • इसके अलावा युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करने के पहले अपने चारों भाइयों को दिगविजय के लिए सभी दिशाओं में भेजते हैं, तो सहदेव के कहने पर घटोत्कच लंका जाते हैं और विभीषण से कर वसूल कर भी आते हैं।
  • महाभारत के युद्ध में भी अपनी मृत्यु से पूर्व घटोत्कच प्रतिदिन युद्ध करते दिखाए गये हैं। जब घटोत्कच ने भयंकर युद्ध शुरु किया तो दुर्योधन के कहने पर कर्ण ने अपनी अमोघ शक्तिबाण से उसे मार डाला ।

बकासुर राक्षस का भीम के द्वारा वध

महाभारत में ही एक कथा आती है कि जब पांडव एक गांव में एक ब्राह्म्णी के यहाँ रुके हुए थे, तो उस वक्त अचानक कुंती को उस ब्राहम्णी के रोने की आवाज सुनाई पड़ी । कुंती को उस ब्राहम्णी ने बताया कि गांव की सीमा पर बकासुर नामक एक राक्षस रहता है, जिसके पास रोज गांव के एक आदमी को भोजन के लिए भेजना पड़ता है ।

इस बार ब्राह्म्णी के परिवार से किसी को भेजने की बारी थी। कुंती ब्राह्म्णी के परिवार के सदस्य की जगह भीम को भेजती है। भीम बकासुर को मार डालते हैं और उस गांव को राक्षस के आतंक से मुक्त कराते हैं।

महाभारत में अलम्बुष राक्षस का वर्णन

महाभारत में कौरवों की तरफ से एक राक्षस वीर के युद्ध करने का वर्णन आता है, जिसका नाम अलम्बुष था। अलम्बुष को ऋष्यश्रृंग का पुत्र बताया गया है और वो एक महावीर था। उसने एक दिन अभिमन्यु को भी युद्ध में पराजित किया था और उसने लाखों पांडव सैनिकों का वध किया था। अल्मबुष एक मायावी राक्षस था और उसने ही अर्जुन के पुत्र इरावान का वध कर दिया था।वो आखिरकार सात्यिकि के द्वारा युद्ध में मारा जाता है ।

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