ऊँ नमः शिवाय, मंत्र का अर्थ और ‘शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र’ का शुद्ध अर्थ

शुद्ध सनातन धर्म में भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा गया है और ‘ऊँ नमः शिवाय’ को एक महामंत्र माना गया है । इसे ‘शिव पंचाक्षर मंत्र’ भी कहते हैं। ‘ऊँ’ तो ‘प्रणव’ है, लेकिन ‘नमः शिवाय’ पांच अक्षरों से मिल कर बना है ।

इस पंचाक्षर मंत्र को पुण्यदायी और मोक्षदायी कहा गया है। लेकिन कई लोग इस मंत्र का उच्चारण अलग तरीके से करते हैं। इसे ‘ऊँ नमः शिवाय’ की जगह इसे ‘ऊँ नमो शिवाय’ के रुप में भी करते हैं। लेकिन दोनों ही के अर्थ अलग- अलग हो जाते हैं।

‘ऊँ नमः शिवाय’ का क्या अर्थ है ?

ऊँ को ब्रह्मांड का नाद माना गया है और ऊँ को ही सत् स्वरुप सृष्टि का मूल तत्व माना गया है जिससे सृष्टि की रचना का प्रारंभ होता है। ऊँ एक उर्जा या सत् (Essence) है निराकार, अव्यक्त और अनंत ईश्वरीय सत्ता का प्रतीक है ।

नमः का संस्कृत में अर्थ होता है ‘न ममः’ अर्थात ‘ये मेरा नहीं है’ किसी और का है। ‘शिव’ का अर्थ होता है कल्याण। ‘शिवाय’ का अर्थ होता है कल्याण स्वरुप ईश्वरीय सत्ता।

अब इस मंत्र का पूरा अर्थ अगर हम करते हैं तो ‘ऊँ नमः शिवाय’ से अर्थ निकलता है कि ‘ऊँ’ अर्थात सत् स्वरुप उर्जा शक्ति जिसका मैं जप कर रहा हूं उसका फल मेरा नहीं है बल्कि ‘शिवाय’ अर्थात कल्याण स्वरुप ईश्वरीय सत्ता या ऊँ को समर्पित है। भक्त इसी भाव से इस महामंत्र का जाप करता है कि ऊं से निकलने वाली उर्जा या नाद को मैं कल्याण स्वरुप ईश्वर स्वरुप ऊँ या सत् को समर्पित कर रहा हूं।

समर्पण का भाव ही मुक्ति का भाव है

ऐसा ही भाव हम तब भी देखते हैं जब हम दैनिक पूजा पाठ के दौरान भगवान को भोग समर्पित करते हैं। जब हम भगवान विष्णु को कोई भोग समर्पित करते हैं तो इस मंत्र का उच्चारण करते हैं –

त्वदीयं वस्तु गोविंदम् तुभ्य मेव समर्पये

अर्थात : हे! ईश्वरीय सत्ता गोविंद हम आपकी वस्तु को आप को ही समर्पित कर रहे हैं। सनातन धर्म में ऐसी परिकल्पना है कि इस संसार के सभी जड़ और चेतन वस्तुएं और भाव ईश्वर के द्वारा ही बनाई गई हैं।

ऐसे में हम जो कुछ भी ईश्वर को समर्पित करते हैं वो ईश्वर का ही दिया हुआ होता है। हम जो कुछ भी वस्तु ईश्वर को समर्पित कर रहे हैं वो हमारे द्वारा निर्मित नहीं हैं बल्कि ईश्वर के द्वारा ही सृजित है और हम इसीलिए वह वस्तु या भोग ईश्वर को ही समर्पित कर रहे हैं।

‘ऊँ नमो शिवाय’ मंत्र गलत है?

  • सनातन धर्म  भाव को बहुत महत्व दिया गया है । अगर हम भक्ति भाव से कुछ गलत अशुद्ध मंत्र का भी जप करते हैं तो भी वो ईश्वर को ही समर्पित हो जाता है । तो ‘ऊँ नमो शिवाय’ का जप भी गलत नहीं है लेकिन इसका भाव निश्चित तौर पर ‘ऊँ नमः शिवाय’ से अलग है।
  • ‘ऊँ नमो शिवाय’ में ‘नमो’ का अर्थ नमस्कार या नमन करना होता है । इस मंत्र का अर्थ होता है कि हम उस ऊँ स्वरुप निराकार ईश्वरीय सत् को नमस्कार कर रहे हैं जो ‘शिवाय’ अर्थात कल्याण स्वरुप है।
  • इसलिए जहां ‘नमः शिवाय’ का उच्चारण है. वहां हम ऊँ स्वरुप उर्जा को ईश्वर को ही समर्पित कर रहे हैं और जहां ‘नमो शिवाय’ है वहां हम ऊँ अर्थात सत् स्वरुप ईश्वरीय निराकार सत् को कल्याण स्वरुप ( शिवाय) मान कर उसे नमस्कार कर रहे हैं।

शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र

इस स्त्रोत्र की रचना आदि गुरु शँकराचार्य जी के द्वारा की गई थी । आदि गुरु शँकराचार्य जी ने ‘नमः शिवाय’ अर्थात पांच अक्षरों वाले इस मंत्र को एक स्त्रोत्र में परिवर्तित कर इसके अंदर छिपे महान सत्य को उद्घाटित किया था।

इस स्त्रोत्र में ऊँ का प्रयोग इसलिए नहीं किया गया है क्योंकि ऊँ तो साक्षात निराकार सत् स्वरुप ईश्वर का ही निराकार नाद रुप है। इसलिए ऊँ का अर्थ ही कल्याण स्वरुप निराकार सदाशिव हैं । ‘नमः शिवाय’ से इस मंत्र की व्याख्या कर इसे स्त्रोत्र का रुप दिया गया है।

शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र का अर्थ

ऊँ नमः शिवाय

शिव पंचाक्षर स्त्रोत्र ऊँ अर्थात सत् के कल्याण स्वरुप( शिवाय) के प्रति प्रार्थना है। इसमें साधक सत् स्वरुप (ऊँ) के प्रति अपनी साधना से प्राप्त पंचतत्वों को  कल्याण स्वरुप( शिवाय) हेतु सत् (ऊँ) को ही समर्पित करने का भाव रखता है। यहां ‘न’ से अर्थ पृथ्वी, ‘म’ से अर्थ जल, ‘शि’ से अर्थ अग्नि , ‘वा’ से अर्थ वायु और ‘य’ से अर्थ आकाश तत्व है ।

साधक ने ऊँ अर्थात सत् की साधना से जो पंचतत्वों का गूढ़ रहस्य प्राप्त किया है वो शिव रुपी कल्याण के लिए उसी सत् ( ऊँ) को वापस समर्पित करता है। स्त्रोत्र के पहला श्लोक साधक के द्वारा सत् स्वरुप ऊँ को पृथ्वी तत्व को समर्पित करने से संबंधित है। यह स्त्रोत्र अर्थ के साथ इस प्रकार है –

‘न’ अर्थात पृथ्वी तत्व से जुड़ा है पंचाक्षर स्त्रोत्र का पहला श्लोक

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्माङ्गरागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥

 अर्थः जो नागों के इंद्र अर्थात वासुकि को गले में धारण करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं , जो भष्म को अपने अंगों में प्रेम या राग पूर्वक लगाए हुए हैं, और दिशाएं ही जिनके अंबर या वस्त्र हैं( दिगंबराय)उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर से प्राप्त ‘न’ अर्थात पृथ्वी तत्त्व मेरा नहीं(नमः अर्थात न मम या मेरा नहीं ), उस ऊँ अर्थात सत् के कल्याण स्वरुप का ( शिवाय) है ।

म’ अर्थात जल तत्त्व का कल्याण स्वरुप ईश्वर (शिवाय) को समर्पण

मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥

अर्थः- गंगाजल और चंदन से जिनकी अर्चना हुई है। मंदार पुष्प और अन्य पुष्पों से जिनकी पूजा की गई है। उन नंदी के अधिपति और प्रमथगणों के महान ईश्वर से प्राप्त ‘म’ अर्थात जल तत्त्व मेरा नहीं(नमः अर्थात न मम या मेरा नहीं ), उस ऊँ अर्थात सत् के कल्याण स्वरुप का ( शिवाय) है ।

  ‘शि’ अर्थात अग्नि तत्व का कल्याण स्वरुप को (शिवाय) समर्पण

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द, सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥

अर्थः- ‘शिवाय’ अर्थात जो कल्याण स्वरुप हैं और पार्वती के कमलमुख को प्रसन्न करने के लिए सूर्य स्वरुप हैं, जो प्रजापति दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले हैं, जो वृषध्वज( अर्थात जिनकी ध्वजा पर वृष का चिन्ह अंकित है) उन शोभाशाली नीलकंठ रुपी ईश्वरीय सत्ता से प्राप्त ‘शि’ कराय अर्थात अग्नि तत्त्व मेरा नहीं(नमः अर्थात न मम या मेरा नहीं ) उस ऊँ अर्थात सत् के कल्याणकारी स्वरुप का ( शिवाय) है ।

‘व’ अर्थात वायु तत्त्व का कल्याण स्वरुप को (शिवाय) समर्पण

वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य, मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय।
चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥

अर्थः- वशिष्ठ, अगस्त्य और गौतम आदि मुनियों ने तथा इन्द्र आदि देवताओं ने जिनके मस्तक की अर्चना की है तथा  चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि जिनके नेत्र हैं, उन ईश्वरीय सत्त से प्राप्त ‘व’ कराय अर्थात वायु तत्त्व मेरा नहीं(नमः अर्थात न मम या मेरा नहीं ) उस ऊँ अर्थात सत् के कल्याणकारी स्वरुप का ( शिवाय) है ।

‘य’ अर्थात आकाश तत्व का कल्याण स्वरुप को (शिवाय) समर्पण

यक्षस्वरूपाय जटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥

अर्थः- जिन्होंने यक्ष का स्वरुप धारण किया है ,जो जटाधारी हैं तथा जिनके हाथ में महान पिनाक धनुष है , जो दिव्य हैं, प्रकाशमान( देव) हैं और दिशाएं ही जिनका वस्त्र हैं( दिगंबराय) उन महान ईश्वर से प्राप्त ‘व’ कराय अर्थात आकाश तत्त्व मेरा नहीं(नमः अर्थात न मम या मेरा नहीं ) उस ऊँ अर्थात सत् के कल्याणकारी स्वरुप का ( शिवाय) है ।

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