ऊं नम: शिवाय

ऊं नम: शिवाय – शुभता और कल्याण का महामंत्र

ऊं नम: शिवाय इस मंत्र से शुद्ध सनातन धर्म से जुड़ा हरेक व्यक्ति परिचित है, देवाधिदेव महादेव भोलेनाथ औघड़दानी शिव शँकर जी का यह मंत्र पांच अक्षरों का है और इसे सिद्ध पंचाक्षर मंत्र कहा जाता है, जिस प्रकार महामृत्युंजय मंत्र को यजुर्वेद और पुराणों में महामंत्र की संज्ञा दी गई है, इस सिद्ध पंचाक्षर मंत्र को भी मंत्रराज की संज्ञा दी गई है। इस मंत्र के जाप से किसी भी व्यक्ति के सारे कष्टों का अंत हो जाता है और वो साक्षात भगवान शिव की कृपाप्राप्ति के योग्य बन जाता है। दुनिया से सबसे सरल और शक्तिशाली मंत्रों में एक ऊं नम: शिवाय के रहस्य से आज हम पर्दा उठाने जा रहे हैं। आज इस मंत्रराज के उन रहस्यो से परदा उठेगा जिनका वर्णन वेदों और पुराणों में विस्तार से किया गया है। इस पंचाक्षर मंत्र का उल्लेख सर्वप्रथम कृष्ण यजुर्वेद के श्री रुद्रम श्लोक और शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्ध्यायी में हुआ है।

यजुर्वेद के अनुसार ऊं नम: शिवाय  का मूल अर्थ है, हम उस शुभ और कल्याणकारी ईश्वर को नमन करते हैं, शिव का अर्थ ही शुभ और कल्याण होता है तो शिव अर्थात कल्याणकारी और सबसे शुभ महाशक्ति को नमन करने का यह मंत्र है। ऊं नम: शिवाय वेदो, पुराणों और अन्य शैव ग्रंथो में इस कल्याणकारी मंत्र के रहस्यों की व्याख्या कई प्रकार से की गई है । वैसे तो पंचाक्षर मंत्र के पांच अक्षर है – न, म, शि, वा, य, इसके ऊं लगा कर जप करने से ये छह अक्षरों का मंत्र बन जाता है । 

  • ऊं तो सबसे रहस्यमय सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी ईश्वर का शाब्दिक रुप है
  • बाकि के पांच अक्षरों को पांच तत्वों से जोड़ा गया है, जिन्हें ऊं रुपी ईश्वरीय शक्ति के साथ लगा लेने से पूरे ब्रम्हांड का साधक से संपर्क स्थापित हो जाता है अब इन पांच अक्षरों मे छिपे पांच तत्व या पंचभूत कौन से हैं और इन पर हमारे ग्रंथों का क्या कहना है
  • न शब्द पृथ्वी तत्व का प्रतीक है, पृथ्वी अर्थात आधार तत्व जिस पर हमारा मानव और प्राणी जीवन टिका हुआ है
  • म – जल तत्व का प्रतीक है
  • शि- अग्नि तत्व का प्रतीक है
  • वा- वायु तत्व का प्रतीक है 
  • य – आकाश तत्व का प्रतीक है

इन्ही पंचभूतों से हमारा शरीर और यह ब्रम्हांड बना है। ऊं नम: शिवाय अर्थात ऊं को जोड़ देने से हमारे जीवन चक्र को ईश्वर से जोड़ा जा सकता है, अब इसकी जो एक अन्य गहरी व्याख्या की गई है उसके अनुसार ऊं नम: शिवाय  भगवान शिव के पांच गुणों, सृष्टि के पांच तत्वों और हमारी पांच इंद्रियों के प्रतीक हैं। भगवान शिव के पांच गुण हैं – 

  • सृष्टि का निर्माण
  • सृष्टि का पालन 
  • सृष्टि का संहार
  • सृष्टि को अदृश्य करना 
  • सृष्टि को प्रगट करना 

शिव ऊं स्वरुप हैं अपने ऊं स्वरुप से वो इन पांच कार्यों को करते हैं, अब पांच तत्वों ( न, म , शि, व , य ) अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश के तत्वों से ऊं स्वरुप शिव इस सृष्टि का निर्माण करते हैं । इन्ही पंच तत्वों से मनुष्य का भी निर्माण होता है जो पांच इंद्रियों ( त्वचा, आंख , नाक, मुंह, कान ) के द्वारा इस सृष्टि को अनुभव करता है। इन्ही पांच इंद्रियों के द्वारा वो माया के चक्कर में पड़ता है

भगवान शिव का ये पंचाक्षर मंत्र हमारी पांचों इंद्रियों के अनुभवों को पंचमहाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, हवा और आकाश ) सो संयुक्त करता है और इसके बाद वो साक्षात पंचकर्मा आदिशिव से हमे संयुक्त कर देता है और हम जन्म, मृत्यु और सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर शिव में विलिन हो जाते हैं और शिवोSहं (अर्थात मैं ही शिव हूं ) की अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं ।

ऊं नम: शिवाय के पंचाक्षर मंत्र के जाप के द्वारा किस प्रकार कोई साधक आदि शिव से संयुक्त हो जाता है । इसका रहस्य भी प्राचीन साधकों ने खोला है, हमारे शरीर में छह च्रक होते हैं जिनके द्वारा कुंडलीनी जागरण होता है । कुंडलिनी जागरण के द्वारा हमारी उर्जा को शिव से संयुक्त किया जाता है । पंचाक्षर मंत्र के पांच अक्षरों के जाप से यह संभव हो जाता है । 

ऊं नम: शिवाय :

  • ऊं – भगवान शिव का ह्दय है, साक्षात गुरुवों के गुरु शिव का प्रतीक है। ऊं के  द्वारा गुरु शिव हमें उनकी तरफ आने का मार्ग बताते हैं। 
  • न – अक्षर पृथ्वी तत्व का प्रतीक है, न के जप से हम अपने मूलाधार चक्र को जाग्रत करते हैं, मूलाधार चक्र हमारे जीवन ऊर्जा का आधार है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी तत्व ‘न’ के द्वारा अपनी उर्जा को मूलाधार चक्र से मुक्त करते हैं। 
  • म- यह जल तत्व का प्रतीक है । हमारी कुंडलीनी का दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है । जल तत्व हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है हमारी कामवासना और दूसरी इच्छाओं को नियंत्रित करता है । ‘म’ अक्षर के उच्चारण के द्वारा हम अपनी काम वासना और दूसरी इच्छाओं से मुक्त होते हैं ।
  • शि- यह अक्षर अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है और मणिपुर चक्र को जाग्रत करता है । अग्नि तत्व हमारी सारी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करती है । इस अक्षर के जप से हम संसार की तरफ उन्मुख क्रियाओं को ईश्वर की तरफ मोड़ देते हैं ।
  • व- यह अक्षर वायु तत्व का द्योतक है । वायु तत्व  अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है । यह ह्दय के भावों अर्थात प्रेम और करुणा को नियंत्रित करता है । यह पहली अवस्था है जब मनुष्य जानवरों के भावों से उपर उठ कर ईश्वर की यात्रा पर निकलने को तैयार हो जाता है । 
  • य- यह आकाश तत्व है । इसका स्थान हमारे आज्ञा चक्र अर्थात हमारे तीसरे  नेत्र में है । ‘य’ अक्षर का उच्चारण हमें अंतरिक्ष या ब्रम्हांड या आकाश  से जोड़ देता है तीसरे नेत्र के खुलते ही हमें इस संसार के निर्माता. पालक और संहारक शिव का बोध हो जाता है । और हम शिव के संयुक्त होकर मुक्त हो जाते हैं और हमारा सहस्त्रार चक्र खुल जाता है । हम समाधि में प्रवेश कर जाते हैं । 

ऊं नम: शिवाय इन पंचाक्षर मंत्र के जाप के द्वारा मनुष्य इसी प्रकार सरल तरीके से खुद को ऊं स्वरुप, कल्याण स्वरुप शिव से एकाकार कर सकता है, अस्तु

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