अम्बिका

NAVRATRI: महिषासुर मर्दिनी माँ अम्बिका | Who killed Mahishasur?

महिषासुर का वध करने वाली मां अम्बिका कौन हैं? क्या अम्बिका ही मां दुर्गा हैं? क्या अम्बिका और दुर्गा अलग- अलग देवियां हैं? क्या अम्बिका का ही दूसरा नाम माँ दुर्गा है?। आदि काल से महिषासुरमर्दनी मां शक्ति की पूजा हरेक शारदीय नवरात्रि को होती रही है । माँ दुर्गा को ही महिषासुर मर्दिनी कहा जाता रहा है, लेकिन शुद्ध सनातन धर्म के पवित्र धर्म ग्रंथों के अध्ययन से पता चलता है कि दुर्गा और महिषासुरमर्दिनी दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। हालांकि दोनों ही आद्या शक्ति के ही दो स्वरुप हैं, लेकिन जिन्होंने महिषासुर राक्षस का वध किया था वो दुर्गा नहीं बल्कि अम्बिका हैं ।

देवताओं की नारी शक्ति का पुंज स्वरुप हैं मां अम्बिका 

शाक्त धर्म ग्रंथों में लगातार माँ अम्बिका की प्रार्थना की गई है । उन्हें आद्या शक्ति का एक विशिष्ट रुप माना गया है । कहा जाता है कि संगठन में ही शक्ति का वास है और मां अम्बिका दैवीय  संगठनात्मक शक्ति की एक महान स्वरुप हैं । श्री दुर्गा सप्तशती, मार्कण्डेय पुराण और श्री मद् देवी भागवत में महामाया देवी के बाद एक और महादेवी का नाम बार बार आता है जिन्हें मां अम्बिका कहा जाता है। 

महिषासुर का वध करने के लिए मां अम्बिका ने लिया अवतार

श्रीदुर्गा सप्तशती से पता चलता है कि जब मधु – कैटभ का संहार आद्या शक्ति के स्वरुप दसपदी महाकाली या महामाया देवी ने कर दिया और वो अंतर्धान हो गईं तो इसके बाद महिषासुर नामक एक राक्षस हुआ, जिसने सभी देवताओं को पराजित कर दिया और तीनों लोकों पर उसका अधिकार हो गया। महिषासुर को ये वरदान था कि उसे किसी नारी के द्वारा ही मारा जा सकता है। ऐसे में सभी देवताओं ने अपने तेज से जिन महादेवी का सृजन किया वो और कोई नहीं बल्कि अम्बिका देवी ही हैं। माँ अम्बिका का वाहन सिंह है और उनकी आठ भुजाएं हैं। माता अम्बिका ही महिषासुर राक्षस का संहार करती हैं और देवताओं को वापस स्वर्ग का अधिकारी बनाती हैं। 

माता अम्बिका के अनंत नाम और उनकी अपार महिमा

माता अम्बिका को कई स्थानों पर महामाया, दुर्गा, चंडिका, कालिका, काली, कात्यायनी, कौशिकी, भुवनेश्वरी, चामुण्डा और कई नामों से पुकारा जाता रहा है। वैसे तो सभी मातृशक्तियां आद्याशक्ति का ही स्वरुप हैं लेकिन फिर भी इन सबको आद्या शक्तियों के अलग – अलग अवतारों के रुप में देखने की जरुरत है ।।

ठीक वैसे ही जैसे भगवान श्री राम और श्री कृष्ण दोनों ही भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं, लेकिन दोनों की ही भगवान श्री हरि विष्णु से अलग ईश्वरीय सत्ताएं हैं। जहां भगवान श्री हरि विष्णु वैकुंठ में नित्य निवास करते हैं, वहीं उन्हीं के अवतार भगवान श्री राम साकेत धाम और भगवान श्री कृष्ण गोलोक में वास करते हैं। कहा जाता है कि गोलोक वैकुंठ धाम से भी कई योजन उपर है।

वैसे ही महामाया, अंबिका, चंडिका और दुर्गा आदि देवियां भले ही निराकार आद्या शक्ति की अवतार हैं, लेकिन इन सब की अलग अलग स्वतंत्र सत्ताएं हैं और सबके अलग अलग कार्य हैं। ये सभी वैसे तो आद्या  शक्ति के ही स्वरुप हैं लेकिन अलग अलग उद्श्यों के लिए वो अलग अलग स्वरुप के रुप में अवतरित होती हैं। इस अर्थ में माता अम्बिका, माता दुर्गा, माता कालिका और मां कात्यायनी सभी आद्या शक्ति का ही स्वरुप हैं लेकिन सबसे अवतरण की विशिष्ट वजह रही हैं । 

नवरात्रि और विज्ञान: देवी के अवतार की वैज्ञानिकता्

वैज्ञानिक शोधों से यह साबित हुआ है कि हरेक पुरुष के अंदर स्त्री शक्ति और हरेक स्त्री के अंदर पुरुष के गुण भी समाहित होते हैं। कोई भी प्राणी अपने अंदर अपने पिता और अपनी माता दोनों के ही जीन्स को धारण करता है । ये अनुवांशिक जीन्स हरेक प्राणी के अंदर रहते हैं। तभी किसी पुरुष का चेहरा अपनी माता से मिल सकता है और शरीर के दूसरे अंगों में उसके पिता के जीन्स का प्रभाव दिखता है ।  हरेक पुरुष आनुवाशिंक जीन्स के आधार पर अपने अंदर अपनी माता को धारण करता है जो स्त्री गुण होते हैं। 

श्री दुर्गासप्तशती, मार्कण्डेयपुराण आदि में जिन अम्बिका देवी का अवतरण होता है वो कई देवताओं के अंदर पाई जाने वाली स्त्री शक्तियों का पूंजीभूत रुप हैं। अम्बिका और कोई नहीं बल्कि हरेक देवता और प्राणी के अंदर स्थित स्त्री गुणों का एकत्रित साकार रुप हैं।

अंबिका के अवतार की कथा

श्री दुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय में कथा आती है कि जब महिषासुर को ये वरदान प्राप्त हो गया कि वो नारी को छोड़कर किसी के द्वारा भी मारा नहीं जा सकता है तब सभी देवताओं ने मिल कर अपने अंदर की नारी शक्तियों का पुंज एकत्रित किया और उस पुंज से एक देवी का जन्म हुआ जिन्हें अम्बिका कहा गया । इन नारी शक्ति को सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र दिये और महिषासुर को मारने के लिए उनकी प्रार्थना की । इस शक्तिपुंज से उत्पन्न हुई अम्बिका देवी ने इसके बाद महिषासुर का वध किया । 

देवताओं की शक्तिपुंज हैं माँ अम्बिका 

माँ अम्बिका का अवतार ब्रह्मा, विष्णु, शिव और अन्य देवताओं के तेज पुंज से हुआ है । जब देवताओं ने त्रिदेवों को अपनी व्यथा बताई और महिषासुर का वध करने का उपाय पूछा तो विष्णु , शिव और ब्रम्हा के शरीर से प्रचंड तेज निकला और इससे एक देवी का निर्माण हुआ । इन देवी के अंगों को विभिन्न देवताओं के शक्तिपुंजों ने बनाया । भगवान शंकर के तेज से देवी अम्बिका का मुख बना, यमराज के तेज से देवी के बाल बने, भगवान विष्णु के तेज से देवी की भुजाएं बनीं, ब्रम्हा के तेज से देवी के दोनों चरण बने और इस प्रकार अलग अलग देवताओं के तेज से अलग अलग अंग बने। 

अम्बिका देवी को देवताओं ने शस्त्र दिए

अम्बिका देवी को भगवान शिव ने अपना त्रिशूल दिया, विष्णु ने अपना चक्र दिया, ब्रम्हा जी ने अपना कमंडलु दिया ,काल ने ढाल और तलवार दी ,इंद्र ने अपना वज्र दिया और इसके अलावा अन्य देवताओं ने भी उन्हें कई शस्त्र दिये । विश्वकर्मा ने अपना फरसा दिया, वरुण ने अपना पाश दिया, यमराज ने अपना घंटा देवी अम्बिका को दिया, तो इंद्र ने अपने वज्र का दान अम्बिका को दिया। इस प्रकार अम्बिका को देवताओं ने वस्त्र , आभूषण, मालाएं और बहुत सारी दिव्य वस्तुएँ भी दीं जिससे अम्बिका नारी शक्ति के रुप में पूर्ण रुप सेअवतरीत हुईं ।

अम्बिका और दूसरी देवियों में क्या अंतर है

अम्बिका देवी को आम जन दुर्गा, माहेश्वरी, पार्वती मानते हैं ,लेकिन ऐसा नही है । वो महेश्वरी, वाराही, वैष्णवी, इंद्राणी की तरह देवताओं की स्त्री शक्तियां नहीं हैं। माँ अम्बिका हिमालय में वास करती हैं। माँ दुर्गा का अवतार आद्या शक्ति ने एक दूसरे दैत्य दुर्ग को मारने के लिए लिया। श्री दुर्गा सप्तशती के द्वितीय अध्याय में मां अम्बिका देवी के प्रगट होने, तृतीय अध्याय में उनके द्वारा महिषासुर राक्षस का वध और चतुर्थ अध्याय में देवताओं द्वारा उनकी स्तुति की गई है। श्रीदुर्गा सप्तशती के अध्याय 5 से 10 के बीच में आद्या शक्ति कीअन्य अवतार चंडिका देवी के द्वारा शुम्भ निशुम्भ के वध की कथा है। अध्याय 11 में आद्या शक्ति के द्वारा कई अन्य अवतारों के भविष्य में लेने की बात कही गई है।

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