पार्वती

Navratri: Parvati and her nine forms,नवरात्रिः माँ पार्वती और उनके 9 स्वरुपों का रहस्य

माँ पार्वती को देवाधिदेव महादेव की अर्धांगिनी माना जाता है । बिना माँ पार्वती के भगवान शिव वैरागी हैं। माँ पार्वती ही वो शक्ति हैं, जिन्होंने वैरागी शिव को सांसारिक शिव बनाया और संसार के कल्याण के मार्ग की तरफ उन्मुख किया । माता पार्वती से विवाह के बाद ही वो संसार में जगदीश के रुप में प्रसिद्ध हुए । श्रीदुर्गा सप्तशती में जिस ‘देव्यापराध क्षमा स्त्रोत्र’ का वाचन और गायन किया जाता है, उसमें इस बात को पुरजोर तरीके से कहा गया है –

चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो ।
जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति ।
कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं ।
भवानी तत्पाणिग्रहण परिपाटी फलमिदम ।।

अर्थः – “हे मां भवानी ! जो जटाधारी पशुपति शिव  ,अपने कंठ में सांप की माला पहने रहते हैं, जिन्हें कापालिक और भूत लोग पूजते हैं, उन शिव को जो जगदीश की उपाधि मिली है वो आपसे विवाह करने के फलस्वरुप ही मिली है । 

पार्वती, माँ लक्ष्मी और माँ गायत्री त्रिदेवी शक्तियां हैं

शुद्ध सनातन धर्म में  आद्या शक्ति को त्रिदेवों की जननी भी कहा गया है, और उनके ही माया के फलस्वरुप ब्रह्मा संसार की सृष्टि करते हैं , विष्णु जगत का पालन कार्य करते हैं और शिव सृष्टि का संहार करते हैं । आद्या शक्ति ये माया कैसे करती हैं तो इसका जवाब है कि आद्या शक्ति खुद को ब्रम्हा के लिए गायत्री के रुप में प्रगट करती हैं । विष्णु से जगत का पालन कराने के लिए नारायणी या लक्ष्मी के रुप में प्रगट करती हैं और भगवान शिव के लिए माता पार्वती के रुप में खुद को प्रगट करती हैं। 

माँ पार्वती आदि प्रकृति शक्ति हैं 

भगवान शिव को पुराणों में पशुपति कहा गया है और सदाशिव के रुप में आद्य पुरुष कह कर उनकी वंदना की गई है । शिव पुराण के मुताबिक सदाशिव से ही ब्रम्हा , विष्णु और महेश की उत्पत्ति होती है । सदाशिव से पांच तन्मात्राओं को जन्म होता है और प्रकृति शक्ति पार्वती के साथ मिलकर शिव सृष्टि को जन्म देते हैं । माँ पार्वती आदि प्रकृति शक्ति या माया हैं, जो शिव के साथ मिल कर संसार को जन्म देती हैं। 

श्रीदुर्गा सप्तशती में माँ पार्वती के नौ स्वरुप 

श्रीदुर्गा सप्तशती के देवी कवचम में माँ पार्वती के नौ स्वरुपों का उल्लेख मिलता है, जो अत्यंत मंगलकारी है और सभी विघ्नों से रक्षा करने वाली हैं। माँ महामाया, चंडिका, अंबिका, कालिका, योगमाया,सप्त मातृकाओं का उल्लेख जहां सप्तशती के अलग-अलग अध्यायों में मिलता है, वहीं मां पार्वती श्रीदुर्गा सप्तशती के अध्यायों के अलावा श्री देवी कवचम् में भी प्रगट होती हैं। माता पार्वती के नौ स्वरुप इस प्रकार है- 

  • प्रथमं शैलपुत्री च, द्वितीय ब्रम्हचारिणी
  • तृतीयं चंद्रघंण्टेति. कुष्मांडेति चतुर्थकम।
  • पंचमं स्कंदमातेति, षष्ठं कात्यायनीति च।
  • सप्तम कालरात्रि, महागौरिती चाष्टमम्।
  • नवमां सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तीता।
  • माँ पार्वती का प्रथम रुप शैलपुत्री का है 

माँ पार्वती का पहला स्वरुप हिमालय की पुत्री के रुप में आता है। उन्हें शैलपुत्री भी कहा जाता है । हिमालय के यहां जन्म लेकर वो भगवान शिव की प्राप्ति के लिए तपस्या करती हैं। माता शैलपुत्री की तपस्या सभी नारियों के लिए पति प्राप्ति हेतु आज के समय में भी प्रेरणादायक उदाहरण है ।

  • माँ पार्वती का दूसरा रुप ब्रम्हचारिणी का है 

माँ पार्वती का दूसरा स्वरुप ब्रह्म के समान चर्या अर्थात आचरण करने वाली शक्ति के रुप में आता है, जिन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता हैः-

ब्रह्म चारयितुं शीलं यस्या सा ब्रम्हचारिणी।।

माँ पार्वती ब्रह्मचारिणी रुप में ही हिमालय में वास करती हैं और अपने शरीर से चंडिका और कालिका को प्रगट करती हैं। दोनों ही स्वरुपो में वो कुमारी कन्या हैं और ब्रम्हचारिणी कही जाती हैं। जहां चंडिका देवी विंध्याचल में वास करती हैं वहीं कालिका देवी कल्पा ( हिमाचल प्रदेश ) में वास करती हैं ।

माँ पार्वती का तीसरा स्वरुप माँ चंद्रघंटा हैं 

माँ पार्वती का तीसरा स्वरुप उनके चंद्रमा के धारण करने से संबंधित हैं। चंद्रमा को मनसा कहा जाता है। इस लिए माँ चंद्रघंटा हमारे मन की आह्लादकारिणी शक्ति हैं।इसके अलावा घंटा यमराज के द्वारा देवी अम्बिका को दिया गया अस्त्र है । यह काल वाचक अस्त्र है ।

  • माँ पार्वती का चौथा स्वरुप माँ कुष्मांडा हैं 

माँ पार्वती का ये अद्भुत स्वरुप है। कुष्मांडा स्वरुप अर्थात उनके उदर में तापयुक्त संसार का होना है। इनके द्वारा ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती है । इनका वाहन सिंह है और इनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजी देवी के रुप में भी पूजा जाता है ।

  • स्कंदमाता है माँ पार्वती का पांचवाँ स्वरुप

माँ पार्वती का स्कंदमाता स्वरुप उनके कार्तीकेय की माता के होने को बतलाता है। सभी पौराणिक ग्रंथों और महाकाव्यों में शिव – पार्वती के विवाह और कार्तिकेय के जन्म की कथा आती है । कार्तिकेय को ही स्कंद भी कहा जाता है । माता के पुत्र स्कंद देवताओं के सेनापति भी हैं। माता अपने पुत्र के नाम से स्कंदमाता कही जाती हैं। ये बच्चों के प्रति विशेष रुप से दयालु हैं ।

  • माता कात्यायनी हैं माँ पार्वती का छठा स्वरुप

देवताओं के कार्यों को पूरा करने के लिए जब माता पार्वती कात्ययान ऋषि के आश्रम में प्रगट हुई तब उनका नाम कात्यायनी पड़ा। कई ग्रंथों में देवी कात्यायनी को ही महिषासुर का वध करने वाली कहा गया है, क्योंकि अम्बिका के आविर्भाव के बाद सबसे पहले ऋषि कात्यायन ने ही उनकी पूजा की थी । कहा जाता है कि ये आद्या शक्ति के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई हैं ।

  • माँ पार्वती का काल स्वरुप हैं मां कालरात्रि

साक्षात महाकाल जो संहार के आदि देवता हैं उनका भी संहार करने की शक्ति होने की वजह से उन्हें कालरात्रि कहा जाता है।इनका उल्लेख महाभारत में भी किया गया है । कालरात्रि देवी को मां काली से अलग कर के देखने की जरुरत है । मां काली किसी भी देवी या देवता को अपना माध्यम बना कर प्रगट होती हैं, जबकि कालरात्रि स्वयं माता पार्वती का ही एक अन्य रुप हैं । 

  • माँ पार्वती का सौम्य स्वरुप है महागौरी 

तपस्या के द्वारा गौर वर्ण को प्राप्त करने के बाद ही माता पार्वती महागौरी के नाम से प्रसिद्ध हुई हैं। भगवान शिव को पति के रुप में प्राप्त करने के लिए आठ वर्ष की उम्र में ही माता पार्वती ने जो तपस्या की ।इसकी वजह से उन्हें गौरी या महागौरी कहा गया । 

सभी सिद्धियों को देने वाली माता का स्वरुप हैं सिद्धिदात्री

 सभी सिद्धियों को देने वाली माता पार्वती ही सिद्धिदात्री हैं। सिद्धि का एक अर्थ लक्ष्य की प्राप्ति भी है। इसीलिए माँ पार्वती सभी इच्छित लक्ष्यों को प्राप्त कराने मे समर्थ हैं। यही वजह थी कि जब माता सीता ने श्री राम को पुष्पवाटिका में देखा और उन्हें अपना ह्दय दे दिया, तब माता सीता ने श्री राम को प्राप्त करने के लिए माता पार्वती की पूजा की और श्री राम को उन्होंने अपने पति के रुप में प्राप्त किया।

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