नारायणी

Navratri श्री दुर्गा सप्तशती की नारायणी शक्ति- मां नारायणी

श्री दुर्गा सप्तशती के एकादश अध्याय में आद्या शक्ति के एक महान स्वरुप नारायणी की स्तुति की गई है । नारायण की क्रियात्मक शक्ति को ही नारायणी कहा जाता है ।  विष्णु अर्थात नारायण जगत का पालन करते हैं, बार बार अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की संस्थापना करते हैं और अधर्म का नाश करते हैं। श्री मद्भगवद् गीता में नारायण ने यह घोषणा की है कि – 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवतु भारत
अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानं सृजान्म्यहम।
परित्रानाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम ।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।

अर्थात : जब जब धर्म की हानि होगी तब तब धर्म के उत्थान के लिए, साधुओं के कल्याण के लिए और दुष्टों के विनाश हेतु मैं स्वयं को सृजित करुंगा । 

नारायण के साथ नर और नारायणी दोनों अवतार लेते हैं

लेकिन नारायण सिर्फ अकेले यह कार्य नहीं करते हैं। उनके साथ नर रुप भगवान का दूसरा अंश भी प्रगट होता है। जैसे महाभारत में नारायण स्वरुप कृष्ण के साथ उनके ही दूसरे अंशावतार नर रुप में अर्जुन अवतरित होते हैं। और नारायण के साथ उनकी शक्ति भी अवतरीत होती हैं। अगर नारायण योगनिद्रा में शयन कर रहे हों तो भी शक्ति पृथ्वी पर धर्म संस्थापना का कार्य करती हैं । महाभारत, मार्कण्डेय पुराण, श्री मद्भागवत आदि पवित्र ग्रंथों में कृष्ण के उनकी नारायणी या योगमाया शक्ति भी अवतरीत होती हैं । वो यशोदा के गर्भ से जन्म लेती हैं और कंस तथा अन्य दुष्टों के वध का कारण बनती हैं –

नन्द गोप गृहे जाता यशोदा गर्भ संभवा ।
ततस्तौ नाशिस्यामि विंध्याचल निवासिनी ।।

इन्हीं यशोदा पुत्री नारायणी की पूजा युधिष्ठिर विराट पर्व में तब करते हैं जब उन्हें अज्ञातवास भोगने के लिए विराट के नगर में प्रवेश करना होता है । इन्ही यशोदा के गर्भ से जन्म लेने वाली दुर्गा की उपासना भीष्म पर्व में अर्जुन महाभारत के युद्ध से ठीक पहले करते हैं ।

वैष्णवी नारायणी शक्ति क्या करती हैं 

श्री दुर्गा सप्तशती के एकादश अध्याय में नारायणी शक्ति की विशेषताओं का पता चलता है । उन्हें जगत सो सम्मोहित करने वाला कह कर उनकी स्तुति की गई है – 

त्वं वैष्णवी शक्तिरनंत वीर्या ।
विश्वस्य बीजं परमासि माया ।।
सम्मोहितं देवी समस्तमेतत् ।
त्वं वै प्रसन्न भुवि मुक्तिहेतु ।।

अर्थः- हे देवी तुम अनंत बल सम्पन्न वैष्णवी शक्ति हो , तुम इस विश्व की कारणभूत परा माया हो । हे देवि तुमने ही इस जगत को मोहित कर रखा है , तुम्ही प्रसन्न होने पर इस जीव जगत को मोक्ष प्राप्त करा सकती हो । 

नारायणी शक्ति की स्तुति श्री दुर्गा सप्तशती में की गई है 

विष्णु अगर जगत के पालनकर्ता हैं तो उनकी पालन करने वाली शक्ति वैष्णवी आर्थात नारायणी ही हैं। इन्ही शक्ति की स्तुति श्री दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में की गई है – 

सर्व मंगल मागल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्ति भूते सनातनी ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोस्तुते ।

नारायणी शक्ति ने कैसे चंडिका की शुम्भ और निशुम्भ से युद्ध में सहायता की 

माता चंडिका का शुम्भ और निशुम्भ से जो महायुद्ध हुआ है उसमें माता चंडिका के साथ कई देवियों ने सहयोगी की भूमिका निभाई । इन्हें दो वर्गों में बांट सकते हैं। पहला है जिनका आविर्भाव माता चंडिका से हुआ । इनमें मां काली सबसे प्रमुख है जो चण्ड मुण्ड और रक्तबीज का संहार करती हैं। दूसरा वर्ग है नारायणी से उत्पन्न शक्तियों का । इनमें ब्रम्हाणी, माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, नृसिंही आदि देवियां हैं । इन देवियों को से उत्पन्न दिखाया गया है – 

हंसयुक्त विमानास्थे ब्रम्हाणी रुप धारणी । कौशांम्भ क्षरिके देवी नारायणी नमोस्तुते ।
त्रिशूल चंद्राहिधरे महावृषभवाहिनी ।माहेश्वरी स्वरुपेण नारायणी नमोस्तुते ।
मयूरकुक्कुटवृते महाशक्ति धरेअनघे ।कौमारी रुप संस्थाने नारायणी नमोस्तुते ।
गृहीतोग्र महाचक्रे दृंष्टोद्धृतवसुंधरे । वाराहरुपिणी शिवे नारायणी नमोस्तुते ।

क्या नारायणी शक्ति ही महालक्ष्मी हैं 

 क्या भगवान विष्णु की पत्नी और प्रिया महालक्ष्मी हीं वैष्णवी या नारायणी शक्ति महामाया का स्वरुप है जिन्होंने समस्त जगत को मोह से बांध रखा है।क्योंकि मां लक्ष्मी के लिए ही कहा जाता है कि उन्होंने पूरे संसार को मोह रखा है।

नारायण का अर्थ होता है जो नारा : अर्थात जल में अयन यानि वास करें। इस प्रकार नारायणी का अर्थ वो शक्ति भी हो सकती हैं जिसका मूल जल से हो कालिका देवी हिमालय में वास करती हैं, योगमाया विंध्याचल में लेकिन जल में निवास करने वाली आद्या शक्ति का स्वरुप हो सकती हैं जो नारायण के साथ रहती हैं। नारायण के साथ क्षीर सागर में महामाया लक्ष्मी ही रहती हैं।  महालक्ष्मी को द्वीतीय अध्याय में महिषासुर मर्दिनी भी कह कर उनकी स्तुति की गई है-

सेवे सैरिभमर्दिनिमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां।

श्री दुर्गा सप्तशती के प्राधानिक रहस्यं में भी महालक्ष्मी से ही सभी देवी शक्तियों की उत्पत्ति बताई गई हैं।

नारायण की तरह नारायणी भी अवतार लेती हैं 

पौराणिक मान्यता ही नहीं श्री मद् भगवद्गीता में भगवान नारायण ने यह उद्घोष भी किया है कि वो धर्म की संस्थापना के लिए और अधर्म के नाश के लिए हरेक युग में अवतार लेंगे । जैसा कि हमने पहले ही बताया है कि नारायण के साथ अवतार रुप में उनके ही अंश नर भी अवतरीत होते हैं और साथ में नारायणी शक्ति भी अवतरीत होती हैं। श्री दुर्गासप्तशती के ग्यारहवें अध्याय का अंतिम श्लोक इसकी पुष्टि भी करता है जब देवी देवताओं को आश्वासन देती हैं कि जब – जब संसार में दानवों के द्वारा बाधा उत्पन्न की जाएगी वो पृथ्वी पर तब – तब अवतार लेंगी – 

इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति ।
तदातदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम ।।

नारायणी देवी इसी अध्याय में यह भी बताती है कि वो भविष्य में शाकम्भरी, शताक्षी, दुर्गा, भ्रामरी आदि देवियों के रुप में अवतरीत होंगी और अलग – अलग दैत्यों का संहार कर देवताओं और मानवों को संकटों से मुक्त कराएंगी । इसका अर्थ यह हो सकता है कि अम्बिका, चंडिका के बाद नारायणी ही भविष्य में अवतार लेंगी और वही आद्या शक्ति का भविष्य रुप लेंगी । ऐसी मान्यता भी है कि जब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेंगे तब माता वैष्णवी उनके साथ प्रगट होंगी । माता वैष्णों देवी ही संसार में कल्कि भगवान की सहयोगिनी शक्ति होकर दुष्टों का संहार करेंगी । 

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