नरक चतुर्दशी

Narak Chaturdashi: नरक चतुर्दशी-महिलाओं की मुक्ति का पर्व

नरक चतुर्दशी महिलाओं की मुक्ति का सबसे बड़ा पर्व है। सनातन हिंदू धर्म और संस्कृति के दो महास्तंभ श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों ही स्त्री मुक्ति या महिला मुक्ति से जुड़े रहे हैं। श्रीराम अहल्या उद्धारक, शबरी के मुक्तिदाता और सीता के लिए राक्षस कुल नाशक हैं । दीपावली का पर्व अगर श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है तो उसके ठीक एक दिन पहले भगवान श्रीकृष्ण के एक अद्भुत कार्य के लिए नरक चतुर्दशी मनाने की परंपरा है । 

नरक चतुर्दशी महिलाओं की मुक्ति का पर्व क्यों है:

श्रीराम ने माता सीता को रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए रावण को पराजित किया था और प्रातः स्मरणीय नारी सीता को मुक्त करा कर अपने नारीवादी होने का परिचय भी दिया । इसके अलावा श्रीराम ने अहल्या का उद्धार किया। शबरी को मुक्ति दी। सुग्रीव के पत्नी रुमा को उनके पति के वापस मिलाया और रावण के कैद से असंख्य नारियों को भी छुड़ाया था।

इसी प्रकार श्रीकृष्ण ने भी नरकासुर नामक राक्षस की कैद से 16000 अबला नारियों को मुक्त करा कर अपने नारीवादी होने की घोषणा की :

नरक चतुर्दशी पर होती है श्रीकृष्ण की पूजा :

श्रीकृष्ण को मध्यकाल के रीतिकालीन कवियों ने एक रसिक, छलिया और स्त्रियों के प्रति आसक्त के रुप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया है । लेकिन वास्तव में श्रीकृष्ण अबला नारियों के मुक्तिदाता के रुप में दिखाये गये हैं। 

रुक्मणी का हरण कर श्रीकृष्ण ने रुक्मणी की इच्छा की लाज रखी तो द्रौपदी को चीरहरण से बचा कर भी नारी सम्मान की रक्षा की है । गोपिकाओं को भक्ति ज्ञान देकर जहां उन्हें परिधियों से मुक्त किया, वहीं नरकासुर के अत्याचार से भी 16000 राजकुमारियों को सम्मान दिया । 

नरक चतुर्दशी क्यों मनाते हैं :

महाभारत, श्रीमद्भागवत पुराण आदि महान ग्रंथों में यह कथा है कि प्रागज्योतिषपुर अर्थात वर्तमान असम राज्य में नरकासुर नामक एक असुर जाति का दुष्ट राजा राज करता था। विष्णु और श्रीमदभागवत् पुराण के अनुसार में नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से सभी देवी-देवताओं एवं मानवों को आतंकित कर रखा था। उसने ऋषि-मुनियों के साथ-साथ 16 हजार महिलाओं को बंदी बना रखा था।

नरकासुर के अत्याचार से परेशान होकर सभी संत-महात्माओं ने श्रीकृष्ण से मदद मांगी। श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर के अत्याचार से मुक्ति का आश्वासन दिया। किंतु नरकासुर को यह शाप मिला था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के द्वारा ही होगी। इसलिए श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाया और नरकासुर का वध कर दिया और सभी संतों के साथ-साथ उन 16 हजार स्त्रियों को मुक्ति प्रदान की। 

 श्रीकृष्ण की सोलह हजार पत्नियों का सच :

अक्सर यह कहा जाता रहा है कि श्रीकृष्ण ने सोलह हजार स्त्रियों से विवाह कर बहुपत्नी प्रथा जैसे कुरीति का प्रचार किया । वास्तव में यह सच नहीं है। नरकासुर की कैद में फंसी 16000 स्त्रियों को श्रीकृष्ण ने जब आजाद कर दिया, तब समाज में उन्हें अपनाने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ । ऐसे में इन स्त्रियों के सम्मान की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह कर उन्हें अपनाया । श्रीकृष्ण के इस महान नारीवादी रुप को बाद के काल में गलत तरीके से पेश किया गया ।

नरक चतुर्दशी है नरक निवारण चतुर्दशी :

चूंकि कार्तिक मास के चतुर्दशी को नरकासुर का वध हुआ था और इसी दिन उन अबला और कमजोर 16000 स्त्रियों को नारकीय यातना से मुक्ति मिली थी , इसलिए इस दिन को नरक निवारण चतुर्दशी के नाम से भी जानते हैं। 

नरक चतुर्दशी को मनाते हैं छोटी दिपावली :

अगर सीता की मुक्ति के बाद अयोध्या लौटने पर अपने श्रीराम का सम्मान करने के लिए अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया तो भगवान श्रीकृष्ण ने भी जिन महिलाओं को मुक्त कराया उनके लिए भी नरक चतुर्दशी एक दीपावली से कम नहीं थी । इसी दिन इन सभी के जीवन में अंधकार से प्रकाश रुपी श्रीकृष्ण का आगमन हुआ था । इसीलिए इस दिन को भी दीपावली की तरह ही मनाया जाता है और इसे छोटी दीपावली कहा जाता है । एक प्रकार से यह स्त्रियों की मुक्ति की दीपावली है । 

छह देवताओं से जुड़ी है छोटी दीपावली :

मान्यता है कि इस दिन प्रात:काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है। शाम के समय दीप दान करने की भी परंपरा है जो यम को समर्पित किया जाता है। इस दिन सात देवों की पूजा करने का विधान है। 

  • यमराज को प्रसन्न करने का पर्व: यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है । लेकिन सनानत धर्म में मृत्यु के देवता को भी सम्मान दिया जाता है क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार मृत्यु ही मोक्ष का द्वार है ।  इस दिन रात में यम की पूजा के लिए दीपक जलाए जाते हैं। मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु नहीं होती। माना जाता है कि घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति के द्वारा दक्षिण दिशा में दीप जलाने से घर में यमराज का आगमन नहीं होता है ।
  • काली पूजा: छोटी दीपावली की रात को आद्या शक्ति महाकाली की पूजा का भी विधान है । अमावस्या की रात जैसे ही चंद्रमा सिंह राशि में प्रवेश करते हैं , शाक्त संप्रदाय के लिए यह सिद्धियों की रात होती है । शाक्त संप्रदाय से जुड़े भक्त इस रात को माँ काली को प्रसन्न करते हैं। 
  • श्रीकृष्ण की पूजा का पर्व: चूंकि कृष्ण ने इसी दिन नरकासुर का वध कर 16 हजार स्त्रियों को नरक से मुक्ति दिलाई थी, इसलिए इस दिन कृष्ण की पूजा श्री यानी राधा के साथ की जाती है।
  • शिव पूजा: इस दिन भगवान शिव पंचामृत अर्पित करने के बाद मां पार्वती के साथ दोनों की विशेष पूजा होती है।
  • महावीर हनुमान जी की पूजा: मान्यताओं के अनुसार इस दिन हनुमान जी यानी महावीर जी की पूजा करने से सभी तरह के संकट टल जाते हैं।
  • वामन पूजा: दक्षिण भारत में इस दिन वामन पूजा प्रचलित है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन महादानी राजा बलि को भगवान विष्णु ने पहली बार वामन रूप में दर्शन दिए थे और कहा था कि हर वर्ष वामन रूप में दर्शन दूंगा। 
  • धन के देवता कुबेर की पूजा का पर्वः इसी दिन धन के देवता और यक्षराज कुबेर की पूजा का विधान भी है । जहां दीपावली को सुख और सृमृद्धि की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है वहीं एक दिन पहले धन के देवता की उपासना की जाती है । कुबेर रावण के सौतेले भाई और भगवान शिव के परम सखा हैं। वो अलकापुरी में वास करते हैं। उनकी पूजा करने से घर में धन की कभी कमी नहीं होती है ।
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