महाभारत में एक अद्भुत कथा आती है जब एक बहन ने अपने पूरे मायके के वंश के नष्ट होने से उसकी रक्षा की। नागों के बारे में हम सनातन धर्म के पौराणिक ग्रंथों में हमेशा पढ़ते आ रहे हैं। नागों की उत्पत्ति और उनके वंशों के बारें में पौराणिक ग्रंथों के अलावा महाभारत में विशेष रुप से चर्चा की गई है।
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नागों की उत्पत्ति कैसे हुई?
पौराणिक ग्रंथों और महाभारत के अनुसार नागों की उत्पत्ति ऋषि कश्यप और उनकी पत्नी कद्रू से हुई है। ऋषि कश्यप की 13 पत्नियों में दो पत्नियां कद्रू और विनता के आपसी प्रतियोगिता की वजह से नागों की उत्पत्ति हुई है। कथा के अनुसार एक बार कद्रू और विनता दोनों ही ऋषि कश्यप के पास संतान उत्पत्ति के लिए गईं। क्रदू ने कश्यप से 1000 महाबलशाली पुत्रों का वरदान मांगा। वहीं विनता ने दो महाशक्तिशाली पुत्रों के होने का वरदान मांगा। समय आने पर कद्रू के 1000 नाग पुत्र हुए जिनमें सबसे बड़े शेषनाग या अनंत हुए। शेषनाग के बाद वासुकि, ऐरावत, धृतराष्ट्र, तक्षक, पद्म, महोदर और कालिय प्रमुख थे।
विनता के दो पुत्र अरुण और गरुड़ हुए
ऋषि कश्यप के वरदान से विनता के दो अंडे हुए । विनता ने जब देखा कि कद्रू के 1000 नाग पुत्र हो चुके हैं और उनके दोनों अंडो में से कोई भी नहीं फूटा है। तब उन्होंने एक अंडे को फोड़ दिया। इससे एक अर्धविकसित प्राणी का जन्म हुआ । उसने जन्म लेते ही अपनी मां विनता पर जल्दबाजी करने का आरोप लगा दिया और ये शाप दे दिया कि तुमने अपनी सौत कद्री से प्रतियोगिता की वजह से मुझे आधा अधूरा जन्म दे दिया, इसलिए तुम अपनी सौत की दासी बन कर रहोगी।
बाद में जब इस पुत्र को अपनी मां पर दया आ गई तो उसने कहा कि दूसरे अंडे से जो तुम्हारा पुत्र जन्म लेगा वो तुम्हें अपनी सौत की गुलामी से छुटकारा दिलायेगा। विनता का ये पुत्र अपनी मां को शाप देते ही सूर्य के पास चला गया और उनका सारथि बन गया । विनता का यह पुत्र और सूर्य का ये सारथि संसार में अरुण के नाम से विख्यात हुआ। विनता के दूसरे अंडे से गरुड़ का जन्म हुआ। और उन्होंने अपनी माता को अपनी सौतेली माता कद्रू की गुलामी से मुक्ति दिलाई।
विनता कैसे बनी अपनी सौत की दासी?
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार जब समुद्र मंथन का कार्य चल रहा था तो समुद्र से उच्चःश्रैवा नामक घोड़ा निकला। उस वक्त विनता और कद्रू दोनों ही इस घोड़े को देख कर आश्चर्य से भर गईं। नागों की माता ने विनता से कहा कि देखो तो उच्चःश्रैवा घोड़े का शरीर तो सफेद है लेकिन उसकी पूँछ काली है । विनता ने कहा कि उच्चःश्रैवा की पूँछ भी उसके शरीर की तरह ही सफेद है। दोनों में शर्त लग गई कि कल सुबह हम दोनों ही इस अश्व के समीप जाकर देखेंगी और जिसकी बात गलत साबित हुई वो दूसरे की दासी बन कर रहेगी।
नागों की माता कद्रू ने अपने पुत्रों को बुलाकर कह कि जब कल वो और विनता दोनों अश्व को देखने जाएँगी तो सारे नाग अश्व उच्चःश्रैवा की पूँछ पर लिपट कर उसे काले रंग का बना दें। कुछ नागों ने ऐसा करने से मना कर दिया तो कद्रू ने अपने पुत्रों को शाप दे दिया कि जब कलियुग के प्रारंभ में जनमेजय सर्पयज्ञ करेंगे तो सभी नागों का नाश कर देंगे। लेकिन कुछ पुत्र अपनी मां कद्रू का कहना मान जाते हैं औऱ उच्चश्रैवा की पूँछ पर लिपट कर उसे काले रंग का बना देते हैं। जब कद्रू और विनता दोनों उच्चःश्रैवा के पास पहुंचती हैं तो विनता की बात गलत साबित हो जाती है और विनता को अपनी सौत कद्रू की दासी बनना पड़ता है।
गरुड़ ने दिलाई अपनी माता को गुलामी से आजादी
कुछ समय बीतने के बाद जब विनता का दूसरा अंडा फूटता है तो उससे गरुड़ का जन्म होता है। गरुड़ अपने सौतेले नाग भाइयों के पास जाते हैं और अपनी मां विनता की मुक्ति का उपाय पूछते हैं। नाग बंधु गरुड़ से कहते हैं कि अगर वो अमृत लाकर नागों को दे दें तो उनकी मां को मुक्त कर दिया जाएगा।
गरुड़ अमृत का कलश लेकर आते हैं , लेकिन जैसे ही अमृत कलश को जमीन पर रखते हैं , उसे इंद्र लेकर भाग जाते हैं। जब इंद्र कलश लेकर जा रहे थे तब अमृत की कुछ बूंदे भूमि पर उगे कुशों की झाड़ी पर लग जाती हैं। जब नाग उस अमृत को पीने के लिए आगे बढ़ते हैं तो उनकी जीभ कुश के पत्तों से कट कर फट जाती हैं और इसके बाद से नागों की जीभ दो भागों वाली बन जाती है।
नागों के वंश की रक्षा कैसे होती है?
शेषनाग अपने नाग भाइयों की दुष्टता से परेशान होकर तपस्या में लीन हो जाते हैं और भगवान विष्णु से अमरता का वरदान पाकर उनकी शय्या बन जाते हैं। शेषनाग के बाद वासुकि नागों के राजा बनते हैं। वासुकि ब्रह्मा जी से नागों के वँश की रक्षा का उपाय पूछते हैं तो ब्रह्मा जी कहते हैं कि कद्रू की एक बेटी होगी जिसका नाम जरत्कारु रखना । वो अपने ही हमनाम जरत्कारु ऋषि से विवाह करेगी । जरत्कारु का पुत्र ही नागों के वंश की रक्षा करेगा।
जरत्कारु और जरत्कारु का विवाह
महाभारत की कथा के अनुसार एक ऋषि थे जिनका नाम जरत्कारु था। वो ब्रह्मचारी थे और विवाह नहीं करना चाहते थे। लेकिन एक बार उन्होंने अपने पूर्वजों की आत्माओं को बुरी स्थिति मे देखा तो उन्होंने इसका कारण पूछा। पूर्वजों ने कहा कि चूंकि तुम निःसंतान हो इसलिए हमारी ये बुरी स्थिति है। जरत्कारु ने कहा कि अगर मेरा विवाह मेरी ही नाम वाली किसी कन्या से हुआ तो मैं विवाह कर संतान पैदा करुंगा।
यह बात वासुकि को पता लगी तो उन्होंने अपनी बहन का नाम जरत्कारु रखा और उसका लालन पालन करने लगे । जब वासुकि की बहन जरत्कारु बड़ी हुई तो उसका विवाह उन्होंने ऋषि जरत्कारु से कर दिया।
एक बार ऋषि जरत्कारु अपनी गर्भवती बीवी जरत्कारु से नाराज हो गए। वो जब अपनी पत्नी को छोड़ कर जाने लगे तो उनकी पत्नी जरत्कारु ने कहा कि आप मुझे बिना पुत्र दिये कहां जा रहे हैं। तब जरत्कारु ऋषि ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में मेरा पुत्र पल रहा है।
इसके बाद गर्भवती जरत्कारु अपने भाई वासुकि के पास चली आई। वासुकि की बहन जरत्कारु ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम वासुकि ने आस्तिक रखा।
तक्षक के द्वारा परीक्षित का वध
एक बार राजा परीक्षित ने एक ऋषि शमिक का गलती से अपमान कर दिया और उनके गले में मरा हुआ सांप डाल दिया तो ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने परीक्षित को शाप दे दिया कि अगले सात दिनों में तक्षक नाग उनका वध कर देगा। यही हुआ भी परीक्षित का वध तक्षक ने कर दिया।बाद में जब परीक्षित का पुत्र जनमेजय राजा बना तो उसने तक्षक सहित सभी नागों का वध करने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का अनुष्ठान किया। इस यज्ञ के द्वारा सारे नाग हवन कुंड में जल कर भष्म होने लगे। तब जरत्कारु ने अपने पुत्र आस्तिक को यज्ञमंडप में भेजा । आस्तिक ने अपनी विद्वता से जनमेजय को प्रसन्न कर लिया। आस्तिक ने जनमेजय से दक्षिणा के बदले इस यज्ञ को खत्म कर देने की मांग की । जनमेजय मान गए और इस प्रकार आस्तिक ने नागों के वँश की रक्षा कर ली।