मां के शाप से मुक्ति का पर्व नाग पंचमी

सांप और सभ्यता :

सर्प या सांप संसार के सभी धर्मों कथाओं में किसी न किसी रुप में उपस्थित रहे हैं । कहीं सांपों को शुभता का प्रतीक माना गया है तो कहीं इन्हें शैतान से जोड़ा गया है । विष धारण करने की वजह से सांप हमेशा से भय और आश्चर्य के विषय रहे हैं । संसार की सारी सभ्याताओं ने सांपो को अपने यहां किसी न किसी प्रकार स्थान दिया ही है । लेकिन शुद्ध सनातन धर्म में सांपों विशेषकर नागों की पूजा का प्रचलन है जो संसार के किसी भी अन्य धर्म में नहीं है ।

इस्लाम और ईसाई धर्म में सांप :

अब्राहमिक धर्मों -ईसाइयत और इस्लाम में शैतान सांप का रुप धारण करके आता है और हव्वा को भटका कर सेब का फल खिला देता है । सांप रुपी शैतान के इस कृत्य की वजह से आदम और हव्वा को परमात्मा स्वर्ग से निकाल देते हैं । इस वजह से सांपों को ईसाइयत और इस्लाम में शुभ नहीं माना जाता है और इसके शैतान का स्वरुप माना जाता है । 

बौद्ध और जैन धर्मों में सांप :

बौद्ध धर्म में सांपो का विशेष महत्व रहा है । बौद्ध धर्म की कथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध जब ज्ञान प्राप्ति के लिए बोध गया में तपस्या कर रहे थे तब उनकी तपस्या के 49वें दिन भयंकर वर्षा होती है । इस वर्षा से भगवान बुद्ध को बचाने के लिए नागराज मुचुकुंद अपने फन से छत्र बना देते हैं और भगवान बुद्ध की तपस्या भंग नहीं होती है । 

जैन धर्म के तीर्थंकरों की मूर्तियों पर भी सांपों को छत्र के रुप में दिखाया गया है और तीर्थंकरों को नागों और सर्पों पर दया करते दिखाया गया है । 

शुद्ध सनातन धर्म में सांप :

शुद्ध सनातन धर्म में तो त्रिदेवों में भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों के साथ सांप को अभिन्न रुप से दिखाया गया है । भगवान श्री हरि विष्णु को शेषनाग पर शयन करते दिखाया गया है तो भगवान शिव अपने गले में सांपो की माला पहनते हैं । कई देवियों के हाथों में भी नाग को दिखाया गया है । 

सांपो की उत्पत्ति :

शुद्ध सनातन धर्म की कई पौराणिक कथाओं में सांपो की उत्पत्ति की कथाएं दी गई हैं । अग्नि पुराण, स्कंद पुराण , शिव पुराण के अलावा महाभारत में विशेष तौर पर सांपो की उत्पत्ति और गरुड़ के साथ उनकी शत्रुता की कथा दी गई है । 

कैसे हुई सांपों की उत्पत्ति :

महाभारत के आदि पर्व में सांपों की उत्पत्ति की कथा दी गई है । कथा के मुताबिक महर्षि कश्यप की दो पत्नियों विनता और कद्रू थीं । दोनों ने अपने पति से संतान का वरदान मांगा । महर्षि से कहा कि एक पत्नि को दो संतानें होंगी लेकिन वो बलशाली होंगी और दूसरी से हजारों संताने होंगी । विनता ने दो संतानों का वरदान मांगा । जबकि कद्रू ने हजार संतान का वरदान मांगा ।

 कद्रू हैं सर्पों की माता :

कुछ समय बात कश्यप और कद्रू के संयोग से हजारों सर्पों की उत्पत्ति हुई । कद्रू के पुत्रों में शेषनाग, नागराज वासुकि , तक्षक आदि महत्वपूर्ण सर्प थे । विनता के गर्भ से सूर्य के सारथि अरुण और विष्णु के वाहन गरुड़ का जन्म हुआ । 

लेकिन कश्यप की दोनों ही पत्नियों कद्रू और विनता के बीच शत्रुता थी । इस वजह से सांपों और गरुड़ जी के बीच भी शत्रुता का जन्म हो गया

एक वक्त कद्रू ने अपनी सौत विनता से शत्रुता में हारने की वजह से अपने पुत्रों को शाप दे दिया कि वो युधिष्ठिर के प्रपौत्र राजा जनमेजय के यज्ञ में जल कर मर जाएंगे । इसके बाद इस शाप के विमोचन के लिए नागराज वासुकि ने बहुत प्रयास किया । 

जनमेजय का यज्ञ और मां के शाप से मुक्ति :

अभिमन्यु के पुत्र और अर्जुन के प्रपौत्र राजा परिक्षित ने एक बार गलती से एक मुनि के गले में मरे हुए सांप की माला डाल दी  ।जब यह बात मुनि के क्रोधी पुत्र को पता चलती है तो वो राजा परिक्षित को शाप दे देता है कि आज से ठीक सात दिनों बात तक्षक नाग उन्हें डस का उनके प्राण ले लेगा । 

तक्षक की पांडवो से दुश्मनी :

तक्षक एक नाग था । जब अर्जुन खांडववन को जला रहे थे तब तक्षक का पूरा परिवार जल गया था । तक्षक ने उस वक्त प्रतिज्ञा ली थी कि वो इसका बदला अवश्य लेगा । जब तक्षक को मुनि के पुत्र के शाप का पता चलता है तो वो परिक्षित को डस लेता है और अपना बदला पूरा करता है । 

जनमेजय का सर्प यज्ञ :

परिक्षित के पुत्र जनमेजय को जब यह पता चलता है कि उसके पिता को तक्षक नाग ने मार डाला था तो वह समूचे सर्प वंश के नाश की प्रतिज्ञा लेता है और सांपो को मारने के लिए यज्ञ का आह्वान करता है । राजा जनमेजय सर्प सत्र नामक यज्ञ शुरु करते हैं और सभी सांप यज्ञ कुंड में आकर भस्म होने लगते हैं । तक्षक अपने प्राण बचाने के लिए इंद्र की शरण लेता है । 

लेकिन इंद्र की शरण मे जाने के बाद भी तक्षक स्वर्ग से नीचे गिरने लगता है तभी आस्तिक नामक एक बालक आता है और जनमेजय से सर्प सत्र यज्ञ को बंद कराने का वचन ले लेता है और सांपो के वंश की रक्षा हो जाती है । 

आस्तिक की कथा और मां के शाप से मुक्ति :

सांपों की माता कद्रू ने अपने ही सर्प पुत्रों को शाप दे दिया था कि वो जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाँएंगे । 

इस शाप से मुक्ति का एक ही उपाय था । जरत्कारु नामक एक महान ऋषि से उन्ही के नाम की कन्या का विवाह । उन दोनों से उत्पन्न पुत्र ही जनमेजय को रोक सकता था। नागराज वासुकि ने एक पुत्री को जन्म दिया और उसका नाम भी जरत्कारु रखा । जब नारी जरत्कारु बड़ी हुई तो उसका विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया । दोनों जरत्कारु से जिस पुत्र का जन्म हुआ उसका नाम आस्तिक था ।

आस्तिक ने रोका सर्प यज्ञ :

आस्तिक ने अपने माता के कुल के विनाश को रोकने के लिए प्रतिज्ञा की । जब जनमेजय का सर्प यज्ञ हो रहा था तो आस्तिक ब्राहम्ण के वेश में वहां पहुंचा और जनमेजय को अपने ज्ञान से प्रसन्न कर लिया । जब जनमेजय ने उससे दक्षिणा मांगने को कहा तो उसने जनमेजय से यह वचन ले लिया कि वो सर्पों को अभयदान दे दे और यज्ञ को बंद करा दे । जनमेजय को यह वचन पूरा करना पड़ा और इस प्रकार आस्तिक ने अपने माता के सर्प कुल को विनाश से बचा लिया । 

नागपंचमी और आस्तिक:

कहा जाता है कि जिस तिथि को आस्तिक ने जनमेजय से सर्प सत्र यज्ञ समाप्त करवाया था वो दिन श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी की तिथि थी । इसी दिन को नाग पंचमी के त्योहार के रुप में मनाया जाता है ।

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