शुद्ध सनातन धर्म में भगवान श्री राम और हनुमान जी का प्रेम अद्भुत और अकल्पनीय है । महावीर हनुमान जी की श्रीराम भक्ति की अनेकों कथाएं हैं। जिस प्रकार श्री राम अपने भक्त और दास महावीर हनुमान जी पर अत्यंत करुणा और प्रेम रखते हैं इसका कोई उदाहरण नहीं है ।वाल्मीकि रामायण से लेकर आनंद रामायण, अद्भुत रामायण, कृतिवास रचित रामायण ,कम्ब रामायण और तुलसी रचित रामचरितमानस सभी ग्रंथों में श्रीराम और हनुमान जी के आपसी प्रेम भक्ति संबंध का गुणगान किया गया है ।
श्रीराम और हनुमान का मिलन
लगभग सभी राम कथाओं में किष्किंधाकांड के प्रारंभ तक सिर्फ श्री राम ही कथा के केंद्र रहते हैं। लेकिन किष्किंधाकांड से राम कथा में महावीर हनुमान जी के आगमन के बाद कथा के केंद्र में श्रीराम सीता के अलावा जिस पात्र की सबसे ज्यादा महिमा गाई गई है वो हैं महावीर हनुमान जी ।
जब रावण माता सीता का हरण कर लेता है और माता सीता की खोज में श्रीराम दक्षिण भारत की तरफ बढ़ते जाते हैं तब वो आधुनिक बेल्लारी जिले के पास पंपा सरोवर के तट पर पहुंचते हैं । वहां श्री राम और लक्ष्मण को देख कर सुग्रीव भयभीत हो जाते हैं और उन्हें लगता है कि वालि ने उनके वध के लिए इन दोनों भाइयों को भेजा है ।
तब महावीर हनुमान जी को इन दोनों भाइयों का परिचय और उनका उद्देश्य जानने के लिए भेजते हैं। इसी के साथ महावीर हनुमान जी और श्रीराम की पहली भेंट होती है ।
क्या पहले से एक दूसरे को जानते थे श्री राम और हनुमान
क्या श्री राम और महावीर हनुमान जी एक दूसरे से पहले से परिचित थे । क्या महावीर हनुमान जी का पहले से श्री राम से कोई नाता था । वाल्मीकि रामायण के मुताबिक तो महावीर हनुमान जी जब सुग्रीव के दूत बन कर श्री राम के पास जाते हैं तभी दोनो पहली बार एक दूसरे को अपना परिचय देते हैं ।
लेकिन रामचरितमानस से ऐसा लगता है कि श्रीराम और महावीर हनुमान जी का संबंध बरसों से था और बस किसी कारणवश दोनों एक दूसरे से बिछड़ गए थे । जैसे ही श्री राम अपना परिचय देते हैं महावीर हनुमान जी उन्हें पहचान लेते हैं –
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाई नहीं बरना।।
इस दोहे से ऐसा लगता है कि महावीर हनुमान जी श्रीराम जी के स्वरुप और उनके व्यक्तित्व से पहले से परिचित हैं और इसीलिए वो श्रीराम का नाम सुनते ही उनके चरणों में गिर जाते हैं ।
क्या श्रीराम महावीर हनुमान को भूल चुके थे ?
रामचरितमानस के मुताबिक जब श्रीराम महावीर हनुमान जी का परिचय पूछते हैं तो देखिए महावीर हनुमान जी क्या जवाब देते हैं –
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहूं कस नर की नाईं।।
अर्थात : मैनें तो आपसे अपने न्याय के हिसाब से आपका परिचय पूछा लेकिन आपने मुझे कैसे भुला दिया जो आप मेरा परिचय पूछ रहे हैं।
तब माया बस फिरउं भुलाना। ताते मैं नहीं प्रभु पहिचाना।।
महावीर हनुमान जी कहते हैं कि मैं तो माया के बस में आपको नहीं पहचान पाया। इससे तुलसी यह स्पष्ट करते हैं कि महावीर हनुमान जी तो माया के वश में आकर श्रीराम को नहीं पहचान पाए लेकिन श्रीराम तो माया से परे हैं उन्हें तो महावीर हनुमान जी को पहचान लेना चाहिए था । शायद श्रीराम लीला कर रहे थे और जानबूझ कर उन्होंने खुद को मर्यादा के भीतर रखा और समाज के नियमों का पालन किया ।
श्री राम और हनुमान जी का बचपन साथ बीता था
महावीर हनुमान जी और श्रीराम के आपसी भगवान भक्त संबंधों पर रामचरितमानस से पहले और बाद में भी कई कथाएं लिखी गईं । लोक श्रुतियों में भी कई अन्य प्रकार की कथाएं आती है जिससे यह आभास होता है कि श्रीराम और महावीर हनुमान जी एक दूसरे को पहले से जानते थे ।
आनंद रामायण की एक कथा के अनुसार जब श्रीराम छोटे थे तब भगवान शिव उनका दर्शन करने के लिए दशरथ जी के दरबार में मदारी का वेश बना कर आए थे और वानर के रुप में छोटे हनुमान जी को लेकर आए थे । श्री राम को वानर हनुमान जी बहुत पसंद आए और उन्होंने दशरथ जी से जिद की कि वो इस मदारी से वानर को खरीद लें ।
कहा जाता है कि गुरुकुल जाने तक श्रीराम और वानर रुप हनुमान जी इसके बाद साथ साथ रहे । बाद में महावीर हनुमान जी वापस अपने पिता के पास चले गए ।
श्रीराम और हनुमान रिश्ते में भाई थे
संभवतः रामचरितमानस का यह दोहा महावीर हनुमान जी के द्वारा श्रीराम के साथ उनके बिताए उसी बचपन की याद दिलाने के लिए कहा गया हो –
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहूं कस नर की नाईं।।
अर्थात : मैनें तो आपसे अपने न्याय के हिसाब से आपका परिचय पूछा लेकिन आपने मुझे कैसे भुला दिया जो आप मेरा परिचय पूछ रहे हैं।
इसके अलावा एक कथा जो संत एकनाथ के द्वारा रचित भावार्थ रामायण में है । भावार्थ रामायण के अनुसार श्रीराम और महावीर हनुमान जी सगे भाई थे । भावार्थ रामायण की कथा के अनुसार जब दशरथ जी संतान प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्टि यज्ञ कर रहे थे । जब यज्ञ पुरुष एक खीर लेकर प्रगट हुआ और दशरथ से तीनों रानियों को संतान प्राप्ति के लिए खीर खिलाने को कहा । तब दशरथ ने सबसे पहले यह खीर अपनी बड़ी रानी कौशल्या को दिया । इसके बाद खीर का कुछ भाग सुमित्रा जी को दिया ।
अंत में जब कैकयी को वो खीर देने लगे तो उस खीर को एक चील ले उड़ी । कथा के अनुसार हनुमान जी की माता अंजना शिव जैसा पुत्र पाने की इच्छा में तपस्या कर रही थी । शिव की प्रेरणा से इस चील ने वह खीर माता अंजना के हाथो पर गिरा दिया । इसी खीर से महावीर हनुमान जी का जन्म हुआ ।
इस सीधे सिद्धांत से महावीर हनुमान जी कैकयी के पुत्र हो सकते हैं। लेकिन वो माता अंजना के पुत्र बने और कैकयी के हाथ में बचे बाकी खीर से भरत जी का जन्म संभव हुआ । इस रिश्ते से महावीर हनुमान जी और भरत जी सगे भाई होते और श्रीराम और हनुमान जी का रिश्ता भी भाई का ही होता । शायद इसी लिए तुलसी हनुमान चालीसा श्री राम के मुख से महावीर हनुमान जी के लिए यह संबोधन कहलाते हैं –
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।
अर्थात : शायद यही रिश्ता रहा हो जिसे महावीर हनुमान जी श्रीराम से पहली बार मिलने पर याद दिला रहे हों
तब माया बस फिरउं भुलाना। ताते मैं नहीं प्रभु पहिचाना।।
पहली मुलाकात में भक्त बनें महावीर हनुमान जी
महावीर हनुमान जी श्रीराम को पहले से जानते थे या फिर दोनों आपस में भाई थे या नहीं यह संशय का विषय हो सकता है लेकिन यह तय था कि श्रीराम और महावीर हनुमान जी जब पहली बार मिलते हैं तो इस मिलन के बाद ही महावीर हनुमान श्रीराम के भक्त और दास बन जाते हैं। यह वर्णन लगभग सभी राम कथाओं में मिलती ही है ।
कम्ब रामायण हो या फिर आनंद रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस इन सभी से यह स्पष्ट हो जाता है कि महावीर हनुमान जी एक नज़र में ही श्रीराम के दिव्य और अवतारी स्वरुप को पहचान लेते हैं और उनकी शरण में चले जाते हैं ।
जब महावीर हनुमान जी और श्रीराम की पहली मुलाकात होती है तो हनुमान जी सुग्रीव के एक चतुर और कूटनीतिक दूत के रुप में आते हैं। वो एक भिक्षुक का वेष बना कर आते हैं और श्रीराम से उनका परिचय पूछते हैं –
राजर्षि देव प्रतिमौ तापसौ संशित व्रतौ || ४-३-५
देशम् कथम् इमम् प्राप्तौ भवन्तौ वर वर्णिनौ |
त्रासयन्तौ मृग गणान् अन्याम् च वन चारिणः || ४-३-६
अर्थात : महावीर हनुमान श्रीराम और लक्ष्मण दोनो से यह पूछते हैं कि ‘’आप दोनों राजर्षियों की तरह दिखते हैं या फिर आप देवताओं की तरह दिख रहे हैं। आपका इस जावनरों से भरे जंगल में कैसे आना हुआ ।
इसके बाद महावीर हनुमान जी अपना परिचय भी देते हैं और बताते हैं कि वो सुग्रीव के दूत वानर हनुमान हैं –
प्राप्तः अहम् प्रेषितः तेन सुग्रीवेण महात्मना |
राज्ञा वानर मुख्यानाम् हनुमान् नाम वानरः || ४-३-२१
इसके बाद श्री राम लक्ष्मण जी के सामने महावीर हनुमान के गुणों की प्रशंसा करते है और कहते हैं कि जिसके पास भी महावीर हनुमान जैसा दूत और मंत्री हो उसे कोई भी परास्त नहीं कर सकता है । लक्ष्मण जी महावीर हनुमान को श्रीराम और अपना परिचय देते हैं और पूरी कथा बताते हैं।
लेकिन वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग में कहीं भी यह नहीं दिखाया गया है कि महावीर हनुमान जी श्रीराम के विष्णु अवतार स्वरुप को देख सके या वो पहले से एक दूसरे को जानते थे । संभवतः वाल्मीकि जी का उद्देश्य यही रहा होगा कि वो महावीर हनुमान जी में श्री राम के प्रति भक्ति को धीरे धीरे विकसित होते दिखाएं ।