श्री कृष्ण और राधा का विवाह

आखिर क्यों श्री कृष्ण और राधा का विवाह नहीं हुआ

भगवान श्री हरि विष्णु के पूर्णावतार भगवान श्री कृष्ण और साक्षात जगदंबा माता लक्ष्मी की अवतार राधा रानी के प्रेम की कथा पूरे ब्रम्हांड में अमर प्रेम की कथा के रुप में जानी जाती है। राधा – कृष्ण का प्रेम शुद्ध सनातन धर्म में शुद्ध और अलौकिक प्रेम की पराकाष्ठा है। लेकिन साथ ही ये सवाल भी सदियों से शुद्ध सनातन धर्म के भक्तों के मन में उठता रहा है, कि आखिर भगवान श्री कृष्ण और राधा का विवाह का विवाह क्यों नहीं हो पाया। क्यों दोनों को एक दूसरे से सदा के लिए विछोह झेलना पड़ा। क्यों अपने कन्हैया को पाने के लिए राधा जी यमुना पार कर वृंदावन से मथुरा नहीं गई और क्यों श्याम अपने श्यामा से मिलने के लिए दोबारा यमुना पार कर मथुरा  से वृंदावन नहीं आये। आखिर क्या वजह थी इसकी। 

वैसे राधा जी के अवतरण को लेकर शास्त्रों में मतैक्य नहीं है। आश्चर्य की बात है कि महाभारत में कहीं भी श्री राधा जी का जिक्र भी नहीं है। श्री मद् भागवतम में भी श्री कृष्ण और राधा का विवाह का उल्लेख कहीं नहीं आया है। श्री विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण में भी राधा जी का कोई वर्णन नहीं है। राधा जी का प्रथम वर्णन सबसे आखिरी पुराणों में एक ब्रम्हवैवर्त पुराण में पहली बार मिलता है। ब्रम्हवैवर्त पुराण के बाद जयदेव की महान रचना गीत गोविंदम में भी राधा जी का उल्लेख आता है। 

ब्रम्हवैवर्त पुराण भगवान श्री कृष्ण को लेकर एक बिल्कुल नई संकल्पना देता है। इस पुराण के मुताबिक कृष्ण ही परम पुरुष हैं और वही सृष्टि के निर्माता, पालनकर्ता और संहारकर्ता है। उन्हीं से ही ब्रम्हा, विष्णु और शंकर की उत्पत्ति हुई है। कृष्ण वैकुंठ से भी उपर गोलोक में वास करते है और उनकी आह्लादिनी शक्ति श्री राधा हैं, जिनके साथ वो गोलोक में सदा के लिए आनंदपूर्वक वास करते हैं। सृष्टि निर्माण की इच्छा से वो ब्रम्हा, विष्णु और महेश को उत्पन्न करते हैं, और वही स्वयं श्री कृष्ण बन कर इस धरा धाम पर अवतरीत होते हैं। अर्थात गोलोक वासी श्री कृष्ण ही धरती पर वृंदावन बिहारी लाल कन्हैया कृष्ण बन कर देवकी के पुत्र के रुप में जन्म लेते हैं औऱ गोकुल, वृंदावन की गलियों में अपनी आह्रादिनी शक्ति राधा जी के साथ प्रेम लीला करते हैं। 

इस पुराण के मुताबिक श्री राधा जी को गोलोक वासी आदिपुरुष कृष्ण के एक सखा श्री दामा  का शाप लग जाता है। श्री दामा राधा जी को शाप दे देता है, कि वो धरती पर आम नारी के रुप में जन्म लेंगी और श्री कृष्ण के पृथ्वी पर अवतार लेने के बाद श्री कृष्ण से प्रेम तो करेंगी किंतु श्री कृष्ण और राधा का विवाह नहीं होगा। दोनों को सौ सालों तक एक दूसरे से अलग रहना पड़ेगा। और यही कथा आगे बढ़ती है। कृष्ण पृथ्वी पर देवकी के पुत्र के रुप में जन्म लेते हैं, और मइया यशोदा के यहां उनका लालन पालन होता है। ऱाधा जी का जन्म भी बरसाना में होता है, और दोनों एक दूसरे से प्रेम करने लगते हैं लेकिन शाप वश राधा जी का विवाह वहीं के निवासी रायान गोप से कर दी जाती है। इस प्रकार श्री कृष्ण और राधा का विवाह नहीं कर पाते हैं। 

अन्य ग्रंथों की कथाऐं भी मूल रुप से इसी कथा का विस्तार है। भक्तों ने अपनी – अपनी श्रद्धा से इस कथा में कई नए आयाम प्रस्तुत किये हैं। महान वैष्णव संत वल्लभाचार्य जी ने राधा – कृष्ण के प्रेम को दार्शनिक रुप दे दिया और कह दिया है, अपनी बहिवर्ती धारा को उलट कर ( धारा – राधा) अंतर्वती कर कृष्ण रुपी परमात्मा की तरफ मोड़ देना ही कृष्ण- राधा की अराधना है। उन्होंने कहा राधा जीव सब देह। अर्थात कृष्ण रुपी परमात्मा के लिए राधा ही जीव हैं, और सभी गोपिकाएं देह मात्र हैं। 

परवर्ती काल में राधा -कृष्ण के इस प्रेम का प्रभाव समूचे  सनातन धर्म के ग्रंथो पर पड़ा। श्री राधा – कृष्ण के इस प्रेम का सबसे ज्यादा प्रभाव श्री राम- सीता के संबंधों के वर्णन पर पड़ा। कालीदास से लेकर कंबन और तुलसी तक सभी पर श्री राधा- कृष्ण के प्रेम की व्यापकता का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने भी अपने ग्रंथो में श्री राम और माता जानकी के बीच विवाह पूर्व प्रेम संबंध को स्थापित किया। कंबन ने अपनी तमिल रामायण में पहली बार पुष्प वाटिका प्रसंग का जिक्र किया और श्री राम और माता जानकी को एक दूसरे के प्रेम और विरह में डूबे दिखाया।  जहां वाल्मीकि रामाय़ण मे श्री राम और माता सीता के संबंध एक मर्यादित पत्नी – पति के रुप में हैं वहीं कंबन के रामायण में श्री राम एक व्याकुल प्रेमी की तरह बर्ताव करते दिखते हैं, और माता सीता भी एक विरहिणी की तरह तड़पती दिखती हैं। तुलसी ने भी अपने रामचरिमानस में पुष्प वाटिका प्रसंग का जिक्र कर श्री राम और माता सीता के प्रेम को विवाह से पूर्व ही होते दिखाया है। इस सभी ग्रंथो में सिर्फ वाल्मीकि रामायण ही भगवान कृष्ण के अवतरण से पहले का है। जब श्री कृष्ण और राधा के प्रेम में सारा संसार डूब गया तब बाद के राम भक्तों को भी लगा कि प्रेम और भक्ति में प्रेम सबसे बड़ा है। सो उन्होंने भी अपने ग्रंथो में श्री राम और माता जानकी के बीच प्रेम को दिखाया। 

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