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महावीर हनुमान ने दो बार संजीवनी पर्वत उठाया था

शुद्ध सनातन धर्म के महान ग्रंथ वाल्मीकि रामायण में महावीर हनुमान जी की अनेक गाथाओं का वर्णन किया गया है । हम सभी शुद्ध सनातन धर्म में महावीर हनुमान जी के द्वारा लक्ष्मण जी के लिए संजीवनी बूटी लाने की कथा पढ़ते आ रहे हैं। सामान्य कथा यही है कि जब मेघनाद ने लक्ष्मण जी पर शक्तिबाण चला दिया था तब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे । इसके बाद लंका से वैद्य सुषेण को बुलवाया गया और उन्होंने हिमालय से संजीवनी बूटी लाने का निर्देश दिया । लक्ष्मण जी की प्राण रक्षा के लिए महावीर हनुमान जी हिमालय जाते हैं और बूटी न पहचान पाने की स्थिति में पूरा हिमालय पर्वत ही उखाड़ कर अपने हाथों से लंका ले आते हैं। इसके बाद संजीवनी बूटी से लक्ष्मण जी का इलाज होता है और लक्ष्मण जी फिर से युद्ध के लिए तैयार होते हैं और मेघनाद का वध करते हैं।

लेकिन अगर शुद्ध सनातन के मूल ग्रंथ वाल्मीकि रामायण को गौर से पढ़ा जाए तो एकदम नई कहानी मिलती है। इस  कहानी में कई नई बातें हैं –

  • महावीर हनुमान जी एक बार नहीं दो दो बार हिमालय पर्वत को उखाड़ कर लाते हैं।
  • संजीवनी बूटी ही नहीं तीन अन्य बूटियां भी लेकर आते हैं।
  • सिर्फ लक्ष्मण ही नहीं श्री राम के लिए भी संजीवनी बूटी लेकर आते हैं।
  • लक्ष्मण ही नही श्री राम भी हो गए थे मूर्छित।
  • मेघनाद ने किया था श्री राम और लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना को मूर्छित।
  • मेघनाद के ब्रम्हास्त्र चलाने से श्री राम की सारी सेना हो गई थी मूर्छित
  • श्री राम सहित सारी वानर सेना के लिए संजीवनी लाने गए थे हनुमान जी
  • सुषेण लंका का वैद्य नहीं था वो वानर सेना के एक वैद्य थे।
  • मेघनाद ने नहीं रावण ने चलाया था शक्ति बाण।

अब वाल्मीकि रामायण में दी गई पूरी कहानी को पढ़ते हैं । जब रावण ने पहली बार मेघनाद को युद्ध में भेजा तो मेघनाद ने पूरी वानर  सेना को मूर्छित कर दिया और हाहाकार मचा दिया । ऐसें में श्री राम ने लक्ष्मण को कहा कि अगर हम दोनों मेघनाद के बाणों का सामना नहीं करते तो इससे मेघनाद लगातार वानरों का संहार करता रहेगा। ऐसे में बेहतर यही है कि हम दोनों मेघनाद के बाणों का सामना करें और अगर इसके लिए मूर्छित भी हो जाएं तो कोई बात नहीं। हम दोनों को मृत समझ कर मेघनाद वापस लौट जाएगा। इसके बाद हमें युद्ध की तैयारी का वक्त भी मिल जाएगा। वाल्मीकि रामायण के युद्ध् कांड के इन श्लोकों को देखिए-

महावीर हनुमान जी के द्वारा संजीवनी लाने के लिए हिमालय पर्वत ले जाने की कहानी।

मन्ये स्वयम्भूर्भगवानचिन्त्यो, यस्यैतदस्त्रं प्रभवश् च योऽस्य !
बाणावपातांस्त्वमिहाद्य धीमन्, मया सहाव्यग्रमनाः सहस्व !!
आवां तु दृष्ट्वा पतितौ विसंज्ञौ, निवृत्तयुद्धौ हतरोषहर्षौ !
ध्रुवं प्रवेक्ष्यत्यमरारिवासं, असौ समादाय रणाग्रलक्ष्मीम् !!

जब मेघनाद ब्रम्हास्त्र चलाता है तो राम और लक्ष्मण दोनों के साथ साथ सारे वानर वीर घायल हो कर गिर पड़ते हैं । सिर्फ हनुमान जी और विभीषण को कुछ नहीं हुआ। इसके बाद घायल जाम्बवंत हनुमान जी को आदेश देते हैं कि वो हिमालय पर जाएं और चार बूटियां –  मित्र संजीवनी( जिससे मृत व्यक्ति भी जी उठे), विशाल्यकरणी( अस्त्रों से हुए घावों का इलाज करने वाली बूटी), सुवर्णकर्णी( जिससे वापस शरीर स्वस्थ हो जाए), संधानी( जिससे टूटी हड्डियां ठीक हो जाएं) ले कर आओ –

मृतसञ्जीवनीं चैव विशल्यकरणीम् अपि |
सौवर्णकरणीं चैव सन्धानीं च महौषधीम् |

इसके बाद महावीर हनुमान जी हिमालय जाते हैं और बूटी न पहचान पाने की स्थिति में पूरा पर्वत ले आते हैं। इन बूटियों को ग्रहण करने के बाद श्री राम और लक्ष्मण सहित पूरी वानर सेना फिर से स्वस्थ हो जाती हैं।

ये तो हुई पहली बार महावीर हनुमान जी के द्वारा संजीवनी लाने के लिए हिमालय पर्वत ले जाने की कहानी। लेकिन इसके बाद जब मेघनाद का लक्ष्मण जी वध कर देते हैं तो रावण स्वयं युद्ध क्षेत्र में आता है। वाल्मीकि रामायण के मुताबिक रावण लक्ष्मण जी पर मय दानव के द्वारा निर्मित शक्तिबाण का प्रयोग करता है जो लक्ष्मण जी की छाती पर लगता है और लक्ष्मण जी बेहोश हो जाते हैं-

इत्येवमुक्त्वा तान् शक्तिमष्टघण्टां महास्वनाम् |
मयेन मायाविहिताममोघान् शत्रुघातिनीम् || ६-१००-३०
लक्ष्मणाय समुद्दिश्य ज्वलन्तीमिव तेजसा |
रावणः परमक्रुद्धश्चिक्षेप च ननाद च || ६-१००-३१

तावणेन रणे शक्तिः क्रुद्धेनाशीविषोपमा |
मुक्ताशूरस्यभीतस्य लक्ष्मणस्य ममज्ज सा || ६-१००-३४

ततो रावणवेगेन सुदूरमवगाढया |
शक्त्या निर्भिन्नहृदयः पपात भुवि लक्ष्मणः || ६-१००-३६

लक्ष्मण जी के मूर्छित होते ही श्री राम शोक से विलाप करने लगते हैं। इसके बाद एक बार फिर वानर वैद्य सुषेण के कहने पर महावीर हनुमान जी हिमालय जाते हैं और वही संजीवनी बूटी लेकर आते हैं। इसके बाद लक्ष्मण जी की मूर्छा टूट जाती है और वो फिर से युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।

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