महावीर हनुमान

सबके ह्दय में बसे हैं महावीर हनुमान

शुद्ध सनातन धर्म के महान देवता महावीर हनुमान जी सबके ह्दय में बसते हैं । फिर चाहे उनके प्रभु श्री राम स्वयं हों, माता जगदंबा सीता हों, भइया लक्ष्मण हों, वानरराज सुग्रीव हों या फिर राक्षसराज विभीषण ही क्यों न हों। इन सबके सबसे प्रिय अगर कोई रहे हैं तो वो हैं सिर्फ महावीर हनुमान जी

 सबके प्रिय महावीर हनुमान जी :

हनुमान जी को प्रभु श्री राम ‘तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई’ कहते हैं। माता सीता उन्हें अपना पुत्र कह कर अमरता का वरदान दे देती हैं – 

अजर अमर गुन निधि सुत होहू ।
करहुं बहुत रघुनायक छोहूं ।।

अर्थात : विभिषण जी हनुमान जी के हमेशा से आभारी रहते हैं क्योंकि उनकी की वजह से विभीषण को श्री राम के चरणों में स्थान मिलता है । 

जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा ।
तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा ॥

सुग्रीव के लिए तो महावीर हनुमान जी वास्तव में संकटमोचक है। अगर हनुमान जी उनके दूत बन कर श्रीराम के पास न जाते तो क्या वास्तव में सुग्रीव के संकट कभी खत्म हो सकते थे। क्या वालि का वध संभव था ?

आखिर क्यों हैं सबके प्रिय हनुमान जी :

महावीर हनुमान जी की सबसे बड़ी विशेषता जो उन्हें दूसरो से अलग बनाती है वो है उनकी विनम्रता और अंहकार शून्यता । हनुमान जी कभी भी अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते । आम तौर पर यह देखा जाता है कि जिसके पास थोड़ा सा भी बल आ जाता है वो निर्बलों के उपर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करता है । लेकिन महावीर हनुमान जी जो कि कई मायनों में सुग्रीव से ज्यादा बलवान और शक्तिसंपन्न थें । उन्होंने अपने गुरु भगवान सूर्य के वचन की रक्षा के लिए सुग्रीव का साथ दिया । 

अद्भुत विनम्र हैं महावीर हनुमान :

यहां तक कि जब सभी वानर समुद्र को पार करने के वक्त अपने अपने अंहकार और शक्ति का प्रदर्शन कर रहे थे तब भी महावीर हनुमान जी शांत और धैर्य के साथ बैठे हुए थे। उन्हें शांत देख कर उनके पास जाम्बवंत जी आते हैं और उन्हें उनकी शक्ति का अहसास दिलाते हैं। जाम्बवंत उन्हें यह भी कहते हैं कि उनके अवतरण का मुख्य उद्देश्य है श्री राम का कार्य करना । 

पवन तनय बल पवन समाना ।
बुद्धि विवेक विज्ञान निधाना ।।
कवन सो काज कठिन जग माहि ।
जो तुमसो नहीं जात है पाही ।।


महावीर हनुमान जी इतने विनम्र हैं कि जब प्रभु श्री राम उनसे पूछते हैं कि कैसे लंका को अपने बल से जला दिया तो हनुमान जी अपनी विनम्रता को प्रगट करते हुए इस कार्य का भी सारा श्रेय अपने प्रभु श्री राम को ही दे देते हैं –

कहु कपि रावन पालित लंका।
केहि बिधि दहेउ दुर्ग अति बंका॥
प्रभु प्रसन्न जाना हनुमाना।
बोला बचन बिगत अभिमाना॥

अर्थात : प्रभु श्री राम महावीर हनुमान जी से पूछते हैं कि तुमने कैसे ऐसे दुर्गम लंका को जीत लिया । महावीर हनुमान जी अपने प्रभु श्री राम जी को प्रसन्न देख कर और अपने अभिमान को भूल कर बताते हैं कि –

साखामृग के बड़ि मनुसाई।
साखा तें साखा पर जाई॥
नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।
निसिचर गन बिधि बिपिन उजारा॥
सो सब तव प्रताप रघुराई।
नाथ न कछू मोरि प्रभुताई॥

अर्थात : हे प्रभु श्री राम लंका को जलाने मे मेरी कोई बड़ाई की बात नहीं है । मैं तो एक बंदर हूं एक शाखा से दूसरी शाखा पर उछलता रहता हूं । इसी प्रकार उछल कूद मैंने आपके प्रताप से लंका को जला दिया । इसमें मेरी कुछ भी प्रभुताई नहीं है । 

स्त्रियों का सम्मान करने वाले महावीर हनुमान जी :

केवल प्रभु श्री राम के प्रिय हैं बल्कि वो महावीर हनुमान जी माता जानकी के भी आंखो के तारे हैं। महावीर हनुमान जी को माता जानकी अपना पुत्र मानती हैं। महावीर हनुमान जी भी माता सीता को अपनी मां अंजना के समान मानते हैं।

जब महावीर हनुमान जी लंका जाते हैं तो वो जानते हैं कि माता सीता किस विकट परिस्थिति से गुजर रही होंगी । वो साक्षात रावण को माता सीता के साथ अपशब्द बोलते देखते हैं। महावीर हनुमान जी इसीलिए जब माता सीता से पहली बार मिलते हैं तो उनके भय का निवारण करते हैं और एक अद्भुत माता और पुत्र का रिश्ता कायम कर लेते हैं। 

आज के दौर में जब हम किसी अनजान स्त्री से मिलते हैं तो उन्हे शायद ही किसी रिश्ते से जोड़ते हैं। बल्कि उन्हें मैडम जैसे शब्दों से संबोधित करते हैं जिसमे किसी प्रकार का आत्मीय रिश्ता नहीं दिखता है । जबकि महावीर हनुमान जी जिस भी स्त्री से मिलते हैं पहले उन्हें मां के संबोधित ही करते हैं। चाहे वो सुरसा हों या माता सीता । यही वजह है कि माता सीता हों या लंकिनी हों या फिर सुरसा हों सभी महावीर हनुमान जी को आशीर्वाद दिये बिना नहीं रहतीं  –

माता सीता देखिए कैसे उन्हें अपना पुत्र बना कर सारे आशीर्वाद दे देती है –

मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥

 माता सुरसा और लंकिनी के प्रिय :

 जब सर्प माता सुरसा महावीर हनुमान जी की परीक्षा ले लेती हैं तो वो देखिए कैसे उन्हें मंगल आशीर्वाद देती हैं –

राम काजु सबु करिहहु तुम्ह बल बुद्धि निधान।
आसिष देह गई सो हरषि चलेउ हनुमान॥२॥

यहां तक कि लंकिनी जिसे महावीर हनुमान जी का गुस्सा और मुष्टि प्रहार झेलना पड़ा वो भी महावीर हनुमान जी को आशीर्वाद देती हैं और लंका प्रवेश करने की अनुमति देती हैं . 

प्रबिसि नगर किजै सब काजा। ह्दय राखि कोसलपुर राजा ।।

मित्रता में प्रवीण हैं महावीर हनुमान जी :

श्री राम की सेना में एक से बढ़ कर एक वीर थे । जाम्बवंत , विभीषण, सुग्रीव , लक्ष्मण , नील , नल आदि लेकिन इन सबमें एक कॉमन बात यह थी कि सभी श्री राम के अलावा अगर किसी से सबसे ज्यादा प्रेम करते थे तो वो थे महावीर हनुमान जी । 

बहुत कम ही ऐसे दोहे या श्लोक दिखते हैं जब जाम्बवंत और लक्ष्मण जी के बीच आपसी संवाद हो रहा हो , विभीषण और लक्ष्मण जी के बीच बातचीत हो रही हो,  सुग्रीव और विभीषण एक साथ बैठ कर मित्रतापूर्ण बातें कर रहे हों। लेकिन प्रभु श्री राम अगर उन्हें एक सूत्र में बांध रहे थे तो प्रभु श्री राम के बाद महावीर हनुमान जी ही इकलौते हैं जिनसे सभी के सभी जुड़े रहते हैं। रामायण और रामचरितमानस दोनो में ही लक्ष्मण और हनुमान संवाद, सुग्रीव – हनुमान संवाद, जाम्बवंत- हनुमान संवाद, विभीषण हनुमान संवाद लगातार दिखते रहते हैं। 

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