एक कट्टर हत्यारा आता है और लगातार तीन गोलियां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर चला देता है । हम सब जानते हैं कि गांधी जी से अंतिम शब्द थे राम .. हे राम …! क्यों गांधी को अंतिम वक्त में प्रभु श्री राम ही याद आए। राम के अलावा किसी और का नाम जुबान पर क्यों नहीं आया । तो इसका रहस्य बापू के ही प्रिय पुस्तक श्रीमद् भगवद्गीता में छिपा है ।
गांधी के राम और कृष्ण :
श्री मद् भगवद्गीता के आठवें अध्याय में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि –
अंतकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् !
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः !!
भावार्थ : जो मनुष्य जीवन के अंत समय में मेरा ही स्मरण करता हुआ शारीरिक बन्धन से मुक्त होता है, वह मेरे ही भाव को अर्थात मुझको ही प्राप्त होता है इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः ॥
भावार्थ : हे कुन्तीपुत्र! मनुष्य अंत समय में जिस-जिस भाव का स्मरण करता हुआ शरीर का त्याग करता है, वह उसी भाव को ही प्राप्त होता है, जिस भाव का जीवन में निरन्तर स्मरण किया है।
बापू के जीवन भर जिस नाम का निरंतर जाप और स्मरण किया वो नाम था प्रभु श्री राम का । गांधी जी के जीवन में जिन दो महान और पवित्र पुस्तकों ने जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव डाला था वो थीं – श्री मद्भगवद्गीता और रामचरितमानस । गांधी जी ने श्री मद् भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण का यह ज्ञान अपने जीवन में उतार लिया था। वो पूरी जिंदगी अपने आराध्य प्रभु श्री राम के ही आदर्शों पर चलते रहे । हमेशा मन में राम ही बसे रहे इसीलिए उनके आखिरी शब्द और उनका आखिरी स्मरण भी राम नाम का ही रहा ।
राम नाम जपते रहो .. जब तक तन में प्राण
राम नाम का जाप जीवन के सभी अंधकारों को दूर करने के लिए सबसे शक्तिशाली मंत्र हैं। ये हम ही नहीं कहते बचपन में जब मोहनदास एक बार बहुत बीमार पड़ गए तो उनकी सेवा के लिए एक नर्स को रखा गया । अपने बापू छोटे से बच्चे थे तब । बच्चों को अंधेरे से डर तो लगता ही है । सो अपने बापू भी थोड़े डरपोक से बच्चे थे । तब एक दिन जब नर्स ने देखा कि मोहन एक अंधेरे कमरे मे जाने से डर रहा है तो उस रंभा नाम की राम भक्त नर्स ने बापू को एक मंत्र दिया । वो मंत्र था कि जब भी डर सताए तो बस राम नाम जपने लगो । फिर देखो अंधेरे में भी डर नहीं लगेगा । गांधी जी तो बचपन से ही प्रयोग करने में विश्वास रखते थे। उन्होंने अंधेरे में हिम्मत कर जाने का फैसला कर लिया और मन ही मन राम नाम जपने लगे । फिर क्या था गांधी जी का डर ऐसा भाग गया कि फिर राम नाम की नैया पर सवार होकर उन्होंने अंग्रेजो को भी धूल चटा दी और देश को आजाद करा लिया ।
बापू के राम और दूसरों के श्री राम :
बापू ने 1924 मे अपने अखबार नवजीवन में एक कहानी लिखी । एक बार उनके पास एक वैष्णव भक्त आया। वो खुद को प्रभु श्री राम का बड़ा भक्त मानता था । अपने बापू के आराध्य राम थे जबकि उस वैष्णव के प्रभु श्री रामचंद्र थे। उसने गांधी जी को फटकार लगा दी कि वो राम नाम का उच्चारण ऐसे वैसे कैसे कर सकते हैं। अगर राम का नाम लेना है तो उसके पहले श्री लगाएं या फिर प्रभु श्री रामचंद्र जी लगाएं। गांधी जी उस वैष्णव से भिड़ गए और कहा कि मैं खुद एक वैष्णव हूं और मेरे कुलदेवता प्रभु श्रीरामचंद्र जी ही हैं फिर भी मैं उन्हें सिर्फ राम कहता हूं क्योंकि सिर्फ राम नाम मेरे दिल का ज्यादा छूता है । वो मेरे दिल के ज्यादा करीब है । मैं उनसे प्रेम करता हूं और सिर्फ राम ही कहूंगा।
राम नाम और बापू के आंदोलन :
गांधी जी ने अपने जितने भी आंदोलन चलाएं उन सभी पर प्रभु श्री राम के आदर्शों की छाप नज़र आती रही । बापू ने अपने अखबार यंग इंडिया और नवजीवन में कई बार अपने सारे कार्यों का श्रेय प्रभु श्री राम को दिया । अपने अखबार नवजीवन में उन्होंने अपने सत्याग्रह आंदोलन का श्रेय राम और भरत के प्रेम को दिया । गांधी जी ने कहा कि राम जी ने भरत से वापस राज्य लेने से मना कर दिया तो भरत भी अड़ गए और उन्होंने भी राज्य छोड़ कर नंदीग्राम में संन्यासी का जीवन अपना लिया। दोनों अपने अपने सत्य के लिए डटे थे । इसी को सच्चा सत्याग्रह कह सकते हैं।
राम रावण और बापू का शुद्धि सिद्धांत :
बापू हमेशा कहते रहे कि जब तक हम अपने को नहीं शुद्ध करेंगे हम दुनिया को नहीं बदल सकते । बापू का सिद्धांत ही यही था कि अगर हमने खुद को बदल दिया तो दुनिया अपने आप बदल जाएगी । इसके लिए बापू श्री राम का उदाहरण देते थे। गांधी जी कहते थे कि राम और रावण युद्ध में रावण की हार इसलिए नहीं हुई कि राम ज्यादा वीर थे। गांधी जी कहते थे कि श्री राम ने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान खुद को उतना शुद्ध और परिवर्तित कर दिया था कि उनकी तपश्चर्या की ताकत से रावण पराजित हो गया । बापू राम के आत्मबल का रहस्य उनकी तपश्चर्या में खोजते थे ।
बापू… हमारे महात्मा… हमारे राष्ट्रपिता .. जिनके तप और सत्य से ब्रिटिश हुकूमत भी डरती थी , वो भी कभी डरपोक बच्चे रहे थे। क्या आपको पता है कि बचपन में हमारे बापू मोहनदास करमचंद गांधी अंधेरे से बहुत डरते थे। तो किसने बनाया गांधी जी को दुनिया का सबसे निडर इंसान, किसने उन्हें इतनी शक्ति दी कि वो दुनिया की सबसे शक्तिशाली सत्ता को भी हराने में सफल हुए।
बापू के राम हैं सबके राम :
कोई राम को क्षत्रिय कुल में उत्पन्न ईश्वर मानता है तो कोई उन्हें वर्ण व्यवस्था का संस्थापक । लेकिन गांधी के राम सबके राम हैं। वो ब्राह्म्णों के भी हैं, और अछूतों के भी उतने ही हैं। बापू ने अछूतोद्धार आंदोलन चलाया तो इसका नाम हरिजन आंदोलन दिया । दलितों को हरिजन नाम गांधी जी ने ही दिया । लेकिन ये नाम आया कहां से । तो जान लिजिए इसके पीछे भी राम ही हैं। तुलसी के रामचरितमानस में जब हनुमान जी माता सीता के पास जाते हैं और खुद को राम का दूत बताते हैं तो माता सीता उन्हे हरिजन कह कर प्रेम पूर्वक आशीर्वाद देती हैं –
हरिजन जानी प्रीति अति गाढ़ी । सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ।
जो लोग राम को शूद्र विरोधी मानते थे उन्हें बापू करारा जवाब देते हैं और दलितों को हरिजन नाम देते हैं। बापू के राम दलित शबरी के जूठे बेर खाने वाले राम हैं, अहिल्या का उद्द्धार करने वाले राम हैं, निषादराज को अपना मित्र बनाने वाले और केवट के खैवैया बनने वाले राम हैं। ऐसे राम के भक्त तो दलित ही हो सकते हैं। हनुमान जी सुंदर कांड में खुद को निचली जाती का बताते हैं –
कहहुम कवन मै परम कुलीना। कपि चंचल सबहि विधि हीना ।
प्रात लेई जो नाम हमारा । तेहि दिन ताहि न मिले अहारा ।।
सिर्फ दलित ही नहीं बल्कि वन में रहने वाले परित्य्क्त सभी वानर , रीक्ष , भालुओं पर भी राम की कृपा बरसती है । तभी बापू के राम दलितों और हरिजनों के भी राम हैं।