श्रीदुर्गा सप्तशती में आद्या शक्ति के कई स्वरुपों माँ अंबिका, चंडिका, कालिका, सप्तमातृका और नारायणी शक्तियों का उल्लेख है । आद्या शक्ति का एक महास्वरुप भी है, जो श्रीदुर्गा सप्तशती में गुप्त ही रहता है। वो गुप्त स्वरुप है महालक्ष्मी का। आद्या शक्ति की सबसे वैभवशाली स्वरुप माँ महालक्ष्मी( माँ लक्ष्मी) को इन सभी आद्या शक्तियों में सबसे प्रधान माना गया है । महालक्ष्मी का उल्लेख श्रीदुर्गा सप्तशती के प्राधानिक रहस्य में आता है ।
माँ महालक्ष्मी आद्या शक्ति की सबसे वैभवशाली स्वरुप क्यों हैं
श्रीदुर्गा सप्तशती के प्राधानिक रहस्य में जब राजा सार्वणि महर्षि क्रौष्टिक से यह पूछते हैं कि आद्या शक्ति देवी के किस स्वरुप की अराधना करें –
आराध्यं यन्मया देव्याः स्वरुपं येन च द्विज ।
विधिना ब्रूहि सकलं यथावत्प्रणतस्य मे ।।
अर्थ – “हे द्विजश्रेष्ठ ! मै आपके चरणों में पड़ा हूं । मुझे देवी के जिस स्वरुप की और जिस विधि से अराधना करनी है वो सब मुझे बताइये ।”
ऋषि राजा को महालक्ष्मी के स्वरुप के बारे में बताते हैं –
सर्वस्याद्या महालक्ष्मीस्त्रीगुणा परमेश्वरी ।
लक्ष्यालक्ष्य स्वरुपा मा व्याप्य कृत्स्नं व्यवस्थिता ।।
अर्थ – “त्रिगुणमयी परमेश्वरी महालक्ष्मी ही सबकी ( इन देवियों की ) आदि शक्ति हैं ।वे ही दृश्य और अदृश्य रुप से संपूर्ण विश्व को व्याप्त करके स्थित हैं।”
महालक्ष्मी से हुआ महाकाली की उत्पत्ति
‘प्राधानिक रहस्य’ के अनुसार लक्ष्मी ने अपने तेज से इस जगत को शून्य देख कर इसे परिपूर्ण किया है । परमेश्वरी महालक्ष्मी ने इस जगत को शून्य देखकर केवल तमोगुणरुप उपाधि के द्वारा एक अन्य उत्कृष्ट रुप धारण कर लिया । वह रुप एक नारी के रुप में प्रगट हुआ, जिसके शरीर की कांति एक बिखरे हुए काजल की भांति काले रंग की थी । नेत्र बड़े -बड़े और कमर पतली थी ।वह वक्ष स्थल और कमर पर मुंडों की माला पहने हुई थीं ।लक्ष्मी ने इस स्वरुप को महामाया और महाकाली आदि नाम दिया ।
महालक्ष्मी से महासरस्वती का उद्भव
‘प्रधानिक रहस्य’ के अनुसार जब महालक्ष्मी के तमोगुण रुप से महाकाली का आविर्भाव हुआ, तब उसके बाद महालक्ष्मी के सत्वगुण से एक अन्य देवी का प्राक्ट्य होता है । इस नये रुप का रंग चंद्रमा के समान गोरा था । वो अपने हाथों में अक्ष माला, पुस्तक, वीणा और अंकुश धारण किये हुए थीं । लक्ष्मी ने अपने इस स्वरुप को भी कई नाम प्रदान किये – महाविद्या, महावाणी, आर्या तथा सरस्वती । इसके बाद लक्ष्मी ने दोनों देवियों को कहा कि वो अपनी शक्तियों से स्त्री- पुरुष के जोड़े उत्पन्न करें ।
महालक्ष्मी सृष्टि का निर्माण करती हैं
‘प्राधानिक रहस्य’ के अनुसार लक्ष्मी ने पहले स्वयं से एक स्त्री और एक पुरुष का जोड़ा प्रगट किया । पुरुष जोड़े को विरंची, ब्रह्मन, विधे आदि नामों से जाना गया और स्त्री को लक्ष्मी, कमला और पद्मा आदि नामों से पुकारा गया ।
महाकाली से शिव और विद्या की उत्पत्ति हुई
‘प्रधानिक रहस्य’ के अनुसार इसके बाद महाकाली ने भी एक स्त्री और एक पुरुष को उत्पन्न किया । पुरुष को रुद्र , स्थाणु , शंकर, कर्पदि आदि नामों से पुकारा गया और स्त्री को त्रयी, विद्या, कामधेनु, भाषा, अक्षरा आदि नाम दिये गये ।
- महासरस्वती से हुई विष्णु और चंडी की उत्पत्ति
महालक्ष्मी के आदेशानुसार महासरस्वती ने भी एक स्त्री और एक पुरुष को उत्पन्न किया । पुरुष को विष्णु, ह्र्षीकेश, कृष्ण आदि नामों से पुकारा गया और स्त्री को उमा, गौरी, सती, चंडी आदि नामों से पुकारा गया ।
- कैसे बनी विष्णु-लक्ष्मी, शिव-उमा और ब्रम्हा- सरस्वती का जोड़ी
महालक्ष्मी ने ब्रह्मा और सरस्वती का एक जोड़ा बनाया, रुद्र शिव को गौरी और विष्णु को लक्ष्मी समर्पित कर दी । ब्रह्मा ने सरस्वती के साथ संयुक्त होकर ब्रम्हांड की रचना की । लक्ष्मी के साथ मिलकर विष्णु ने जगत का पालन कार्य अपने हाथ में ले लिया और प्रलयकाल में शिव ने गौरी के साथ मिलकर प्रलय के कार्य को पूरा किया ।
महालक्ष्मी की योगमाया शक्ति हैं महाकाली
श्रीदुर्गासप्तशती के वैकृतिकं रहस्य में यह बताया गया है कि लक्ष्मी की तमोगुण रुपी शक्ति ही महाकाली है और वही विष्णु की माया कही जाती हैं। उन्होंने ही विष्णु को योगमाया के वशीभूत कर योगनिद्रा में डाल रखा है । मधु कैटभ के द्वारा ब्रह्मा को मारने का प्रयास करने पर ब्रह्मा उन्हीं महाकाली की स्तुति करते हैं और वो विष्णु को योगनिद्रा से जगाकर मधु-कैटभ का वध करने के लिए प्रेरित करती हैं ।
अम्बिका और महालक्ष्मी एक ही हैं
श्री दुर्गासप्तशती में देवताओं के शरीर से निकली स्त्री शक्तियों से जिन अम्बिका देवी का आविर्भाव होता है वो और कोई नहीं बल्कि आद्या शक्ति महालक्ष्मी ही हैं –
सर्वदेवशरीरेभ्यो याSSविर्भूतामितप्रभा ।
त्रिगुणा सा महालक्ष्मी साक्षान्महिषमर्दिनी ।।
श्री दुर्गासप्तशती, वैकृतिकं रहस्य
शुम्भ निशुम्भ का वध करने वाली चंडिका देवी ही महासरस्वती हैं
वैकृतिकं रहस्य में स्पष्ट रुप से कहा गया है कि जिन महालक्ष्मी के सत्वगुण से महासरस्वती का आविर्भाव होता है, वही शुम्भ और निशुम्भ का वध करने वाली महासरस्वती हैं और वही माता पार्वती के शरीर से प्रगट हुई चंडिका देवी थीं ।
इस प्रकार अगर हम देखें तो शाक्त संप्रदाय में भी माता महालक्ष्मी का ही गुणगान किया गया है और महाअष्टमी की रात को इन्हीं आद्या देवी की अराधना की जाती है । सप्तमी की रात जहां महाकाली की अराधना की जाती है वहीं अष्टमी को महालक्ष्मी की अराधना करने की बात कही जाती है । श्री दुर्गा सप्तशती के प्राधानिक और वैकृतिकं रहस्य से ही आद्या शक्ति के असली स्वरुप का ज्ञान होता है ।