मां काली

महाकल्याणी महासंहारिणी शक्ति महाकाली

मां काली जिन्हें महाकाली भी कहा जाता है ,शुद्ध सनातन धर्म की शाक्त परंपरा की सबसे शक्तिशाली, महाकल्याणी और महासंहारिणी नारी ईश्वरीय सत्ता हैं। महाकाली का रहस्य आज भी संसार पूरी तरह से जान नहीं पाया है । आखिर वो कौन हैं जिन्हें एक साथ संहार करने वाला भी माना जाता है और साथ ही कल्याण करने वाली ममयामयी मूर्ति भी माना जाता है ।

कौन हैं महाकाली :

काल का निर्णय करने वाली काली, महाकाल के उपर विराजने वाली महाशक्ति महाकाली। जिनकी वंदना पूरी तरह से शास्त्र भी करने में असमर्थ रहे हैं। इसीलिए महाकाली समस्त शास्त्रो में सबसे रहस्यमय देवी हैं। वो किसी लोक से आती हैं और किस लोक मे विराजती हैं इसका आज तक किसी को पता नहीं चल पाया है।

त्रिदेवों की शक्ति हैं महाकाली :

त्रिदेवों

मां महाकाली त्रिदेवों अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनो की क्रियात्मक शक्ति हैं। । कभी वो शिव की जटाओं से निकल कर भद्रकाली के रुप में अवतरित होती हैं और दक्ष के यज्ञ का संहार कर देती हैं। तो कभी वो विष्णु के हद्य से निकल कर मधु- कैटभ के संहार का माध्यम बनती हैं। वो ही ब्रह्मा की सृष्टि की भी प्रेरणादायी शक्ति हैं ।

देवी शक्ति की मूल हैं काली :

मां महाकाली ही माता सती के शरीर से प्रगट होकर दश महाविद्या की प्रथम देवी काली के रुप में अवतरीत होती हैं। तो श्री दुर्गा सप्तशती में वो माता पार्वती के शरीर से कौशिकी के निकलने के बाद उनके शरीर को अपना माध्यम बनाती हैं और माता पार्वती काले वर्ण में परिणत होकर कालिका देवी के रुप में हिमालय पर वास करने चली जाती है।

मां काली का ही स्वरुप हैं चंडिका और चामुंडा

महाकाली

श्री दुर्गा सप्तशती में वो एक बार फिर चंडिका देवी के कोध्र में आने पर उनके तीसरे नेत्र से प्रगट होती हैं और चण्ड- मुण्ड का संहार कर चामुण्डा के नाम से जगत में विख्यात होती हैं। श्री दुर्गा माता जब अत्यंत क्रोध में लगातार राक्षसों का संहार कर रही थीं और इस श्रम में वो थकती जा रही थीं तो उनकी सहायता के लिए मां महाकाली चंडिका के रुप में प्रगट होती हैं और अपने महाक्रोध से चण्ड और मुंड दोनों का संहार कर देती हैं। मां दुर्गा उनके इस कार्य से इतनी अभिभूत हो जाती हैं किन मां महाकाली का नाम चामुंडा कर देती हैं। तभी से संसार में मां काली के इस स्वरुप को चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है । 

रक्तबीज की संहारिणी मां महाकाली

श्री दुर्गा सप्तशती में महाकाली चण्ड – मुण्ड के अलावा रक्तबीज़ के संहार का भी माध्यम बनती हैं। रक्तबीज़ को ये वरदान था कि उसके रक्त की हरेक बूंद से नया रक्तबीज़ पैदा हो जाता था। माता चंडिका रक्तबीज़ का संहार करने के लिए मां कालिका का सहयोग लेती हैं। मां कालिका रक्तबीज़ के सारे रक्त को पी जाती हैं और फिर मां चंडिका रक्तबीज़ का संहार कर देती हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती में मां काली का अवतरण :

मां महाकाली का प्राग्ट्य श्री दुर्गा सप्तशती में दो बार होता है। पंचम अध्याय में जब देवतागण शुम्भ – निशुम्भ के अत्याचारों से पीड़ित होकर महाशक्ति की प्रार्थना करते हैं तो माता पार्वती से शरीर से शिवा देवी देवताओं को आश्वासन देती हैं। माता पार्वती के शरीर से कौशिकी या चंडिका देवी प्रगट होती हैं और शेष शरीर का रंग काला पड़ जाता है और माता पार्वती मां कालिका में परिणत हो जाती हैं-

तस्या विनिर्गतायां तु कृष्णाभूत्सापि पार्वती।
कालिकेति समाख्याता हिमाचलकृताश्रया।।

अर्थ : कौशिकी के प्रगट होने के बाद पार्वती का रंग काला हो गया और वो हिमालय पर रहने वाली कालिका देवी के नाम से प्रसिद्ध हुईं

इसके बाद कालिका देवी फिर से श्री दुर्गा सप्तशती के सातवें अध्याय में प्रगट होती हैं-

तत कोपं चकारोच्चैरम्बिका तानरीन् प्रति।
कोपेन चास्यां वदनं मषीवर्णमभूत्तदा।।
भ्रूकुटिकुटिलात्तस्या ललाटफलकाद्द्रुतम।
काली करालवदना विनिष्क्रांतासिपाशिनि।।

अर्थ : तब अंबिका ने शत्रुओं के प्रति बड़ा क्रोध किया। उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला पड़ गया।ललाट में भौंहे टेढ़ी हो गईं और वहां से तुरंत विकराल मुखी काली प्रगट हुईं

इसके बाद महाकाली का वर्णन एक भयंकर संहारकारिणि शक्ति के रुप में आता है जो चंड- मुंड और रक्तबीज़ का संहार करती हैं। क्या ये काली, भद्रकाली, विष्णुमाया काली, दक्षिण काली, श्मशान काली से भिन्न हैं यह एक रहस्य ही है। लेकिन इन सभी काली के स्वरुप संहारकारिणी ही है।

मां तारा हैं मां महाकाली की ममतामयी स्वरुप :

महासंहारिणी नारी मां काली

मां महाकाली सिर्फ दुष्टों का संहार करने के लिए ही रौद्र रुप धारण करती है। लेकिन अपने भक्तों और संतानों के लिए वो ममतामयी हैं। कथा है कि जब मां महाकाली राक्षसों के संहार करते वक्त अपने क्रोध में संसार का विनाश करने लगती हैं तो भगवान शिव एक बालक के रुप में उनके सामने आ खड़े होते हैं। मां महाकाली उस बालक स्वरुप शिव को देख कर करुणा से भर जाती हैं और अपने क्रोध का त्याग कर देती हैं। वो भगवान शिव रुपी बालक को गोद में उठा लेती हैं और स्तनपान कराने लगती हैं। मां महाकाली के इसी करुणामयी रुप की पूजा मां तारा के रुप में की जाती हैं।

कल्याण की महादेवी महाकाली :

मां महाकाली के चार हाथों में दो हाथों में संहार के शस्त्र हैं। लेकिन उनके दो अन्य हाथों में वरदान और अभय की मुद्रा भी है । मां काली के शस्त्र वाले हाथ दुष्टों का संहार करने के लिए उठते हैं । उनके अन्य दो हाथ अपनी संतानों को अभय देने और आशीर्वाद देने के लिए उठे हुए हैं। अपने संतानों को वो अपनी करुणामयी मुस्कान से अपने पास बुलाती हैं और उन्हें अभय और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।

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