शिव के जन्म की कथा

भगवान शिव के जन्म की कथा

देवाधिदेव भगवान शिव को आदि अजन्मा और अमर माना जाता है, शुद्ध सनातन धर्म के त्रिदेवों में भगवान ब्रम्हा, भगवान विष्णु और भगवान शिव को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वेदों, पुराणों, उपनिषदों में इन तीनों देवों को सृष्टि की रचना, पालन और संहार की ईश्वरीय सत्ताओं के रुप में जाना जाता है । लेकिन कुछ पुराणों की कथाओं को देखें तो देवाधिदेव महादेव को कहीं ब्रम्हा, तो कहीं विष्णु से जन्मा बताया गया है। जबकि कुछ पुराणों के अनुसार शिव को आदि, अनादि, अजन्मा और अमर बताया गया है । तो आखिर सच क्या है । क्या भगवान शिव का भी जन्म हुआ था । अगर हुआ था तो फिर शिव के जन्म की कथा क्या है । 

शिव के जन्म की कथा, कैसे हुआ जन्म :

शिव के जन्म की कथा, भगवान शिव को रुद्र भी कहा जाता है और उनके ग्यारह स्वरुपों को एकादश रुद्र के नाम से भी जाना जाता है । श्रीमद् भागवत पुराण की कथा के अनुसार भगवान रुद्र की उत्पत्ति ब्रम्हा जी से हुई है । 

श्रीमद् भागवत पुराण के तृतीय स्कंध में ब्रम्हा के द्वारा सृष्टि निर्माण की कथा आती है। श्री मद् भागवत पुराण के अनुसार ब्रम्हा जी ने सबसे पहले अज्ञान की पांच वृत्तियों की रचना की ये पांच वृत्तियां थीं

  • तम ( अविद्या )
  • मोह (अस्मिता)
  • महामोह (राग)
  • तमस(द्वेष)
  • अंधकार

किंतु इन पांचों पापमयी रचनाओं को देख कर ब्रम्हा जी को कोई प्रसन्नता नहीं हुई ।

ब्रम्हा के चार ब्रम्हचारी पुत्र :

इसके बाद ब्रम्हा जी ने एक बार फिर आदि पुरुष नारायण का स्मरण कर एक दूसरी सृष्टि रची । इस बार ब्रम्हा जी ने चार पुत्रों की रचना की । ये पुत्र थे – सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार । लेकिन इन चारों पुत्रो ने ब्रम्हा जी के द्वारा सृष्टि रचना के कार्य के आदेश को पूरा करने से इंकार कर दिया और नारायण की भक्ति में खुद को समर्पित कर दिया । एक बार फिर ब्रम्हा जी के द्वारा सृष्टि की रचना का कार्य अधूरा रह गया । 

  • ब्रम्हा जी के द्वारा रुद्र की उत्पत्ति :

सनत कुमारों के द्वारा ब्रम्हा जी के आदेश को ठुकराने के बाद ब्रम्हा जी क्रोधित हो गये । उनके इस क्रोध से उनकी भौहें सिकुड़ गईं और इनके बीच से नीले और लोहित रंग के एक शिशु का जन्म हुआ । वह शिशु रो रो कर ब्रम्हा जी से अपने जन्म और अपने कार्य के स्थान के बारे में पूछने लगा । उसके लगातार रोने की वजह से उस शिशु का नाम ब्रम्हा जी ने रुद्र रख दिया ।इसके बाद रुद्र को ब्रम्हा ने ग्यारह स्वरुपों में बांट दिया और उन्हें एकादश रुद्र के नाम से जाना गया । इन एकादश रुद्रों को ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना करने का आदेश दिया और इनके लिए ग्यारह रुद्राणियों की रचना की ।

एकादश रुद्रों और रुद्राणियों के द्वारा सृष्टि की रचना :

ब्रम्हा के आदेश से ग्यारह रुद्रों और रुद्राणियों ने अपने ही जैसी प्रजा की रचना शुरु कर दी । लेकिन इन रुद्रों और रुद्राणियों से उत्पन्न संतानों ने संसार का ही भक्षण शुरु कर दिया । इससे चिंतित होकर ब्रम्हा जी ने रुद्रों को संसार में संतानों की उत्पत्ति करने से रोक दिया और कहा कि वो जाकर तप करें। 

इसके बाद ब्रम्हा जी ने दस पुत्रों को उत्पन्न किया जो ब्रम्हा के मानस पुत्र के रुप में विख्यात हुए । इन पुत्रों में मरिचि, अत्रि, अंगीरा, पुलत्स्य , पुलह ,क्रतु , वशिष्ठ, दक्ष और नारद हुए । इन पुत्रों से जिन संतानों की उत्पत्ति हुई वही आज के वर्तमान प्राणी जगत हैं। 

शिव हैं अजन्मा और अनंत :

सामान्य पुराणों की कथाओं के अनुसार या तो विष्णु आदि देव हैं या फिर ब्रम्हा जी से ही विष्णु और शिव की उत्पत्ति हुई है। लेकिन शिव पुराण और लिंग पुराण की कथाओं के अनुसार शिव ही आदि पुरुष हैं। उन्हीं से विष्णु और ब्रम्हा सहित पूरे जगत की उत्पत्ति हुई है । 

शिव पुराण की कथा के अनुसार सदाशिव से सबसे पहले आदि शक्ति अंबिका की उत्पत्ति हुई है ।इसके बाद दोनों ने सृष्टि के विस्तार का संकल्प लिया । सदाशिव के वाम अंग से विष्णु की उत्पत्ति होती है। विष्णु शिव से संकल्प और उनकी माया से जल अर्थात नार में शयन करते हैं। नार अर्थात जल में शयन करने की वजह से विष्णु का एक अन्य नाम नारायण होता है । 

इसके बाद सदाशिव के संकल्प और उनकी इच्छा से विष्णु की नाभि से एक कमल प्रगट होता है । इस कमल पर सदाशिव के दाहिने अंग से ब्रम्हा जी उत्पन्न होते हैं। सदाशिव की इच्छा और आदेश से ब्रम्हा जी सृष्टि का विस्तार करते हैं  और विष्णु जगत का पालन कार्य अपने हाथो में ले लेते हैं। 

लिंग पुराण के अनुसार भी शिव हैं अजन्मा :

लिंग पुराण के अनुसार शिव अदृश्य तत्व हैं और उनका दृश्य मूल लिंग है।अर्थात शिव ही अदृश्य और दृश्य दोनों रुपों में व्याप्त हैं। यह संसार पहले सात प्रकार से फिर आठ प्रकार से और फिर ग्यारह प्रकार ( दस इंद्रियां और एक मन ) से उत्पन्न होता है । ये सभी अदृश्य शिव की माया से उत्पन्न होते हैं । शिव ही बीज हैं और प्रकृति भी उन्ही से उत्पन्न हैं। शिव से उत्पन्न सभी तत्वों से एक अण्ड बना और उसमें जल के बबूले के समान पितामह ब्रम्हा की उत्पत्ति हुई । फिर इसी अण्ड से विष्णु और सारे जगत की उत्पत्ति हुई है । 

शिव हैं परम पुरुष :

शिव ही सत्वगुण से ब्रम्हा, रजोगुण से विष्णु और तमोगुण से कालरुद्र के रुप में उत्पन्न होते हैं। शिव ही प्रथम प्राणियों के कर्ता, पालक और संहारकर्ता हैं। सभी लोकों और जगत का विस्तार इन्ही अदृश्य शिव से है। शिव ही परम पुरुष और आदि पुरुष हैं। 

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