महाभारत सनातन धर्म के सबसे प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में एक है । महाभारत करीब 1 लाख श्लोकों का ग्रंथ है जिसमें हजारों कथाएं दी गई हैं। महाभारत में कई ऐसी कथाएं हैं जिनको लेकर भ्रम की स्थिति है। कई ऐसी कथाएं भी हैं जिनका वर्णन महाभारत में नहीं है, लेकिन वो लोककथाओं के माध्यम से जनता में प्रचलित हैं।
महाभारत में ऐसी कई कथाएं भी हैं जिनका मूल स्वरुप कुछ और था और ये जनसामान्य में किसी और स्वरुप के साथ प्रचलित हैं। शुद्ध सनातन आपको महाभारत से जुड़ी कुछ ऐसी कथाओं के बारे में बताने जा रहा है जिनका महाभारत में या तो वर्णन ही नहीं है या फिर किसी और स्वरुप में उनका वर्णन किया गया है।
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गणेश ने लिखी थी महाभारत
महाभारत की रचना कृष्ण द्वैपायन व्यास ने की थी । महाभारत के गीता प्रेस के संस्करण में कहा गया है कि भगवान गणेश ने वेद व्यास के कहने पर महाभारत लिखी थी। गीता प्रेस के महाभारत में ‘आदि पर्व’ में यह कथा भी दी गई है कि कृष्ण द्वैपायन व्यास ने गणेश जी से महाभारत के श्लोकों को लिखने के लिए अनुरोध किया था।
- भंडारकर इंस्टिट्यूट ऑफ ओरिएंटल रिसर्च ने ये दावा किया है कि गणेश जी के द्वारा महाभारत के लेखन की बात बहुत बाद में जोड़ी गई है और ये क्षेपक है। इस इंस्टिट्यूट ने 40 वर्षों तक देश के विभिन्न प्रांतों से महाभारत की कई प्राचीन पांडुलिपियों का संग्रह करवा कर संस्थान की तरफ से महाभारत की एक पुस्तक की रचना की है।
- संस्थान का दावा है कि गणेश जी के द्वारा महाभारत लिखने की कथा सिर्फ कुछ ही पांडुलिपियों में पाई गई है और भाषा के हिसाब से ये एक क्षेपक लगती है। संस्थान के इस दावे में इसलिए भी दम है क्योंकि महाभारत में कहीं भी भगवान गणेश का जिक्र नहीं मिलता है।
- महाभारत में भगवान शिव और पार्वती के सिर्फ एक पुत्र स्कंद या कार्तिकेय का वर्णन मिलता है । महाभारत में कई पर्वों में स्कंद के जन्म और उनके पराक्रम की कथा दी गई है। महाभारत में कार्तिकेय को एक महान देवता के रुप में दिखाया गया है और उनसे जुड़ी पूरी कथा को विस्तार से बताया गया है।
- महाभारत में सैकड़ों देवी देवताओं के नाम भी दिये गए हैं। सैकड़ों नागों और राक्षसों के नाम दिये गए हैं। यहाँ तक कि ‘शल्य पर्व’ में भगवान शिव के असंख्य गणों के नाम भी दिये गए हैं लेकिन एक बार भी भगवान गणेश को कोई जिक्र महाभारत में नहीं मिलता है।
- महाभारत में ऐसे छोटे से छोटे देवता का जिक्र भी है जिन्हें आज हम भूल चुके हैं। इन देवताओं में भग, पूषन, कुंडलमेघ आदि प्रमुख हैं। देवियों में उपश्रुति, मृत्यु, कालरात्रि, कृतिकाएं, पूतना, दिति , अदिति और दनु आदि का जिक्र आता है, लेकिन भगवान गणेश जैसे महत्वपूर्ण देवता की अनुपस्थिति आश्चर्य पैदा करती है।
- वाल्मीकि रामायण में भी भगवान गणेश का कोई जिक्र नहीं है। इससे भी पता चलता है कि भगवान गणेश का आविर्भाव रामायण और महाभारत के बाद हुआ है। वेदों में भी जिन गणपति का जिक्र आता है वो भगवान गणेश से भिन्न है। वेदों के गणपति ब्रहम्णस्पत देवता के नाम से प्रसिद्ध थे।
महाभारत के युधिष्ठिर सत्यवादी थे
महाभारत से जुड़ा एक और भ्रम जनता में प्रचलित है कि युधिष्ठिर ने अपने जीवनकाल में सिर्फ एक बार ही झूठ बोला था। महाभारत के द्रोण पर्व में युधिष्ठिर द्रोणाचार्य को उनके पुत्र अश्वत्थामा के मरने की आधी झूठी खबर बताते हैं।
दरअसल उस काल में सत्य और असत्य की परिभाषा आज के दौर के मुकाबले दूसरी थी। युधिष्ठिर ने जब तेरह वर्ष के वनवास के दौरान अपना आखिरी वर्ष विराट नगर मे अज्ञातवास के रुप में बिताया था उस वक्त भी उन्होंने पूरे वर्ष तक असत्य बोला था। विराट के राजा को उन्होंने अपना नाम कंक बताया था और ये कहा था कि वो युधिष्ठिर के मंत्री थे।
अंधे का पुत्र अंधा- दुर्योधन और द्रौपदी
महाभारत की कथाओं को लेकर एक भ्रम ये भी है कि द्रौपदी ने दुर्योधन का मजाक उड़ाया था और उसे ‘अंधे का पुत्र अंधा’ कहा था। इसे महाभारत के युद्ध का मूल कारण भी बताया जाता है। कहा जाता है कि दुर्योधन इस अपमान को सह नहीं सका और द्रौपदी से बदला लेने के लिए ही उसने द्यूत क्रीड़ा का आयोजन करवाया था । इस द्यूत क्रीड़ा में द्रौपदी का चीरहरण किया गया था । इसका परिणाम महाभारत के युद्ध के रुप में परिणत हो गया।
सत्य ये है कि द्रौपदी ने दुर्योधन को कभी भी ‘अंधे का पुत्र अंधा’ नहीं कहा था और न ही उसका मज़ाक उड़ाया था। महाभारत से ‘सभा पर्व’ में ऐसी कोई कथा नहीं है। महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन युधिष्ठिर का मायावी महल देख कर भ्रमित हो जाता है और भीम सहित कई लोग उसका मज़ाक उड़ाते हैं। लज्जित होकर दुर्योधन वापस हस्तिनापुर चला जाता है। लेकिन द्रौपदी के द्वारा दुर्योधन के अपमान की कथा महाभारत में कहीं नहीं है।
सूतपुत्र कर्ण का अपमान
महाभारत की कथाओं को लेकर यह भ्रम भी है कि कर्ण के साथ जातिवादी भेदभाव किया जाता था और उसके सूतपुत्र होने पर उसका अपमान किया जाता था। जनसामान्य की अवधारणा यही है कि सूत एक दलित जाति थी।
वास्तव में सूत जाति का उद्गम ब्राह्मण कन्या और क्षत्रिय पिता की संतानों से हुआ था। सूत एकमात्र ऐसी वर्णसंकर जाति थी जिसे द्विज होने का अधिकार था। वो वेद, पुराण का अध्ययन कर सकते थे और यज्ञोपवित भी धारण करते थे। सूत जाति से राजा, मंत्री, सेनापति आदि भी बनाए जाते थे।
महाभारत के अनुसार कैकय देश का राजा सूत जाति का था। विराट राज्य का सेनापति कीचक भी सूत जाति का था। धृतराष्ट्र का मंत्री संजय भी सूत जाति से आता था और महाभारत के कथावाचक रोमहर्षण भी सूत जाति से आते थे। इसलिए सूत जाति कोई दलित जाति नहीं थी।
शिखंडी एक हिजड़ा था
महाभारत के एक वीर पात्र शिखंडी को लेकर भ्रम है कि वो नपुंसक और हिजड़ा था। वास्तव में शिखंडी जन्म से स्त्री था लेकिन एक यक्ष के वरदान से वो पूर्ण पुरुष के रुप में बदल चुका था। महाभारत के अनुसार शिखंडी का एक पुत्र भी था जिसका नाम क्षत्रधर्मा था।
भीम ने दुःशासन का रक्त पिया था
महाभारत की कथाओं को लेकर एक भ्रम यह है कि भीम ने द्रौपदी के चीरहरण के समय दुःशासन की बाहें उखाड़ने और उसकी छाती का रक्त पीने की प्रतिज्ञा ली थी। ये कथा सत्य है लेकिन भीम ने दुःशासन का रक्त नहीं पिया था।
महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव धृतराष्ट्र और गांधारी के पास जाते हैं तो वहाँ भीम गांधारी के सामने इस प्रतिज्ञा का रहस्य खोलते हैं। भीम गांधारी को बताते हैं कि उन्होंने दुःशासन का रक्त सिर्फ अपने होठों से लगाया था लेकिन उसे पिया नहीं था।
द्रौपदी ने दुःशासन के खून से अपने बाल धोए थे
महाभारत को लेकर जनसामान्य में जो कथा प्रचलित है उसके मुताबिक जब दुःशासन ने द्रौपदी के केश खींचे थे तो द्रौपदी ने प्रतिज्ञा की थी कि वो अपने केश तब तक खुले रखेगी जब तक वो दुःशासन के रक्त से अपने बाल नहीं धोएगी।
महाभारत में ऐसी कोई कथा नहीं है। न तो द्रौपदी ने ऐसी कोई प्रतिज्ञा की थी और न ही भीम दुःशासन का वध करने के बाद उसके रक्त को द्रौपदी के हाथों में दिया था ताकि वो दुःशासन के खून से अपने बाल धोए।
अभिमन्यु ने माँ की पेट से चक्रव्यूह भेदन सीखा था
महाभारत की कथाओं को लेकर एक भ्रम ये भी है कि अभिमन्यु ने अपनी माँ सुभद्रा की कोख से ही चक्रव्यूह भेदन की कला सीख ली थी । लोकप्रचलित कथा के अनुसार अर्जुन सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान दे रहे थे तो सुभद्रा की पेट में पल रहे अभिमन्यु ने ये विद्या आधी सीख ली थी। सुभद्रा को अचानक नींद आ गई इसलिए अर्जुन ने चक्रव्यूह भेदन का अधूरा ज्ञान ही दिया था।
वास्तव में महाभारत में ऐसी कोई कथा नहीं है। इसकी जगह अर्जुन अभिमन्यु के वध के बाद ये राज़ खोलते हैं कि उन्होंने अभिमन्यु को यह विद्या पूरी नहीं सिखाई थी। अभिमन्यु ने भी चक्रव्यूह भेदन के पूर्व युधिष्ठिर से ऐसी कोई बात नहीं की थी जिससे पता चले कि उन्होंने अपनी मां की पेट से ये विद्या सीखी थी।
संजय को दिव्य दृष्टि प्राप्त थी
महाभारत को लेकर एक भ्रम ये भी है कि संजय के पास ऐसी दिव्य दृष्टि थी कि वो दूर बैठे ही युद्ध का आँखों देखा हाल लाइव टेलीकास्ट के जरिए बता सकता था। टीवी सीरियलों में भी ऐसा ही दिखाया गया है कि संजय धृतराष्ट्र को उनके महल में बैठ कर कुरुक्षेत्र में हो रहे युद्ध का आँखो देखा हाल बता रहा था।
वास्तव में महाभारत में ऐसी कोई कथा नहीं है। ये सत्य है कि व्यास जी ने संजय को दिव्य दृष्टि दी थी , लेकिन ये दिव्य दृष्टि युद्धक्षेत्र में रहकर सभी घटनाओं को देखने की थी। संजय युद्धक्षेत्र में मौजूद रह कर किसी भी घटना को देख सकता था , उसे याद रख सकता था और किसी के भी मन की बात जान सकता था।
जब महाभारत के युद्ध का दसवाँ दिन बीत जाता है और भीष्म पराजित हो जाते हैं तब संजय रात को हस्तिनापुर आता है और धृतराष्ट्र को पिछले दस दिनों का पूरा हाल बताता है। इसके बाद युद्ध के 16वें दिन जब द्रोणाचार्य का वध हो जाता है तब एक बार फिर संजय हस्तिनापुर आता है और धृतराष्ट्र को पिछले छह दिनों के युद्ध का हाल बताता है। इसी प्रकार संजय बार – बार हस्तिनापुर आकर ही धृतराष्ट्र को युद्ध का हाल बताता है
महाभारत के शल्य पर्व में सात्यिकि और धृष्टद्युम्न युद्धक्षेत्र में ही संजय को पकड़ लेते हैं और उसका वध करने की कोशिश करते हैं ,ठीक उसी वक्त व्यास आकर संजय के प्राणों की रक्षा करते है। इससे भी स्पष्ट है कि संजय लगातार युद्धक्षेत्र में मौजूद था।