शुद्ध सनातन धर्म में दो विवाहों को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। पहला विवाह है भगवान शिव का और दूसरा विवाह है भगवान श्री राम का,भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह और भगवान श्री राम और माता जानकी का विवाह लोकश्रुतियों और विवाहों के मंगल गीतों में भी बार बार आता है। आम तौर पर अगर देखा जाए तो भगवान शिव आदि देव हैं और उनका विवाह माता पार्वती के साथ किस युग में हुआ इसे स्पष्ट रुप के कहना काफी कठिन है। लेकिन भगवान श्री राम का विवाह निश्चित तौर पर त्रेता युग में हुआ जब भगवान श्री राम ने भगवान शिव का धनुष भंग किया और माता जानकी को स्वयंवर में जीत कर उनके पति बने।
शिव पार्वती का विवाह कब हुवा था
भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह यूं तो महाशिवरात्री की रात हुआ था लेकिन कब हुआ इसको लेकर धार्मिक ग्रंथों में एक मत नहीं है। जहां वाल्मीकि रामायण में भगवान शिव और देवी उमा के विवाह और उनसे कार्तिकेय के जन्म की कहानी दी गई है। विश्वामित्र जब ताड़का को मारने के लिए भगवान श्री राम को अपने साथ लेकर जंगल जाते हैं तब वहीं वो शिव और माता उमा के विवाह की कहानी बताते हैं। लेकिन आश्चर्य ये है कि विश्वामित्र उमा को गंगा की बहन बताते हैं और हिमवान की पुत्री भी बताते हैं लेकिन एक बार भी उमा को पार्वती के रुप में संबोधित नहीं करते हैं। तो क्या सती और पार्वती के अलावा उमा भी कोई अलग देवी हैं जिनका विवाह शिव से हुआ और वो गंगा की बहन हैं।
लेकिन शास्त्रो में पार्वती को हिमालय की पुत्री बताया गया है और कई जगह उमा और पार्वती को एक ही बताया गया है। लेकिन इतनी सामान्य सी बात पूरे बालकांड में न तो वाल्मीकि जी ने कही और न ही विश्वामित्र ने कहीं भी उमा को उनके दूसरे नाम पार्वती से संबोधित किया। हालांकि हिमवान और हिमालय दोनों एक ही हैं ये कहना भी मुश्किल है।
रामचरितमानस शिव पार्वती का विवाह का जिक्र
इसी संशय को एक नई कथा और बढ़ा देती है जो तुलसीदास जी के द्वारा रामचरितमानस में कही गई है। रामचरितमानस के बालकांड में जो कथा दी गई है उसके मुताबिक भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भगवान श्री राम चंद्र जी के विवाह के बाद हुआ है। बालकांड की कथा के मुताबिक जब रावण माता जानकी का हरण करके ले गया तब श्री राम अपनी पत्नी माता जानकी को जंगल जंगल खोज रहे थे ।
ऐसे में माता सती ( भगवान शिव की पहली पत्नी) को शक राम भगवान हुआ कि ये श्री राम भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार नहीं हो सकते। सो ऐसे में उन्होंने भगवान शिव से बिना पूछे माता सीता का रुप धर लिया और भगवान श्री राम के सामने आ खड़ी हुईं। भगवान श्री राम ने उन्हें पहचान लिया और माता सती को प्रणाम कर पूछा कि भगवान शिव कहां हैं।माता सती लज्जित हो कर चली गई। भगवान शिव को ये बात बुरी लगी कि माता सती क्यों माता सीता का रुप धारण किया और इसलिए भगवान शिव ने उनका त्याग कर लिया। इसके बाद माता सती अपने पिता दक्ष के यज्ञ में जाती हैं और अपने पति शिव का अपमान होते देख कर यज्ञ कुंड में खुद को भस्म कर देती हैं। लेकिन यज्ञ कुंड में जाने के पहले वो श्री राम चंद्र जी से प्रार्थना करती हैं कि अगले जन्म में भगवान शिव ही उन्हें पति के रुप में प्राप्त हों-
सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा।
इधर जब से माता सती ने शरीर का त्याग किया भगवान शिव वैरागी होकर भगवान श्री राम के भजन में लीन हो गए-
चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहि महि धरि हद्यं हरि, सकल लोक अभिराम।।
इसके बाद भगवान श्री राम ने शिव जी के तपस्या को देख कर प्रसन्न होकर उन्हें समझाया और माता सती के पार्वती के रुप में जन्म लेने की बात बताई-
बहुबिधि राम सिवहिं समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा।
अति पुनित गिरजा के करनी। बिस्तर सहित कृपनिधि बरनी।।
भगवान श्री राम ने माता पार्वती की तपस्या की कहानी भगवान शिव को सुनाई और कहा कि अब आप माता पार्वती से विवाह कर लीजिए-
अब बिनती मम सुनहुं सिव जो मौं पर निज नेहुं।
जाई बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागे देहु।।
इसके बाद भगवान श्री राम की आज्ञा से भगवान शिव ने माता पार्वती का वरण किया । इस प्रकार अगर देखा जाए तो जब माता सती और भगवान शिव एक साथ थे तब माता जानकी के हरण की कथा हुआ। और जब माता पार्वती ने जन्म लिया और वो बड़ी हुईं और इसके बाद उन्होंने तपस्या की तब श्री राम के आदेश से भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया। इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि माता जानकी के हरण और रावण वध या उसके बाद कई वर्षों तक भगवान शिव अविवाहित थे। संभव है कि भगवान श्री रामचंद्र के सिंहासन पर बैठने के वर्षों बाद जाकर भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से हुआ होगा।
लेकिन फिर एक संशय की स्थिति उत्पन्न होती है जब माता जानकी पुष्पवाटिका में माता गौरी यानि माता पार्वती की पूजा करने जाती हैं और भगवान श्री राम चंद्र को देख कर उनसे प्रेम कर बैठती हैं। माता जानकी माता पार्वती से प्रार्थना करती हैं कि श्रीराम चंद्र ही उनके पति हों-
जय जय गिरिबर राज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननी दामिनी दुति गाता।
अर्थात : हे हिमालय की पुत्री माता पार्वती । आप भगवान शिव की प्रिय और गणेश और कार्तिकेय जी की माता हैं और आपकी जय हो।
इसके अलावा भी जब स्वयंवर में भगवान श्री राम धनुष उठाते हैं तो माता सीता एक बार फिर से माता पार्वती, और भगवान शंकर से प्रार्थना करती हैं कि वो उनकी लाज रखें-
मन ही मन मवाव अकुलानी। होहु प्रसन्न महेस भवानी।
करहुं सफल आपनी सेवकाई। करु हित हरहुं चाप गरुआई।
अब प्रश्न यही है कि अगर भगवान शिव का विवाह भगवान श्री राम के विवाह के पश्चात हुआ है तो बाल कांड में ही तुलसीदास माता सीता से माता पार्वती की पूजा कैसे करवाते हैं। यह प्रश्न हमेशा सनातन धर्म में अनुत्तरित रहेगा। परंतु भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह और उनका प्रेम संसार के हरेक प्राणी को प्रेरणा देता रहेगा।