मां गंगा – तीनों लोकों का तारण करने वाली मां

गंगा, गायत्री, गोमाता, तुलसी : शुद्ध सनातन धर्म में मां गंगा, गायत्री, गोमाता और तुलसी को सबसे पवित्र और पापों से मुक्त करने वाला माना गया है । सभी महाकाव्यों और पौराणिक ग्रंथों में जिन ईश्वरीय सत्ताओं के अवतरण की कथा कही गई है उसमें भगवान श्री हरि विष्णु के पृथ्वी पर धर्म की संस्थापना के लिए अवतरीत होने की कथा सबसे विशाल रुप में कही गई है ।

गंगा का अवतरण एक महान घटना :

इसके बाद अगर किसी ईश्वरीय सत्ता के अवतरण की महिमा गाई गई है तो वो हैं मां गंगा । रामायण, महाभारत और सभी पौराणिक ग्रंथो में मां गंगा के अवतरण को मानव सभ्यता की सबसे महान घटनाओं में एक माना गया है । मां गंगा के अवतरण की कथा मानव सभ्यता के विकास की कथा है । कैसे इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ ने अपने महान तपस्या के द्वारा मां गंगा को धरती पर आम जनों के उद्धार के लिए उतारा यह अपने आप में महान कथा है ।

रामायण में गंगा अवतरण की कथा :

वाल्मीकि रामायण में मां गंगा के अवतरण की कथा को विशेष रुप से कहा गया है । बालकांड में जब विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को ताड़का के वध के लिए ले जाते हैं तब विश्वामित्र जी श्री राम को गंगा के अवतरण की कथा सुनाते हैं।

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कार्तिकेय की मां भी हैं गंगा :

वाल्मीकि रामायण के मुताबिक मां गंगा हिमालय की दो पुत्रियों में सबसे बड़ी थीं । हिमालय की दो पुत्रियां हैं – पहली मां गंगा और दूसरी मां उमा या पार्वती । मां गंगा के जन्म के बाद ही सभी देवताओं ने हिमालय से उन्हें जन कल्याण के लिए मांग लिया । गंगा को त्रिपथगामिनी कहा गया । मां गंगा देवताओं के कल्याण के लिए स्वर्ग में रहने लगीं और वहां आकाशगंगा और देवगंगा के नाम से विख्यात हुईं । दूसरे पथ में जब वो पृथ्वी पर अवतरीत होती है तब मंदाकिनी कहलाती हैं। तीसरा पथ उनका समुद्र की तरफ जाने का है जब वो जान्हवी कहलाती हैं ।

वाल्मीकि रामायण की कथा के मुताबिक जब तारकासुर को मारने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती कार्तिकेय को उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं तब देवताओं द्वारा भयभीत होकर अवरोध उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता है ।  तब भगवान शिव अपना तेज अग्नि को दे देते हैं ।लेकिन अग्नि भी भगवान शिव के तेज को सहन करने में जब असमर्थ होते हैं तब मां गंगा भगवान शिव के तेज को धारण करती हैं। इसके बाद जब वो इस तेज को हिमालय की धरती पर उत्सर्जित करती हैं और कुमार कार्तिकेय का जन्म होता है। इसके बाद कृतिका नक्षत्रों के द्वारा कार्तिकेय भगवान का पालन पोषण होता है । देवताओं के कल्याण के लिए मां गंगा भगवान शिव के तेज को धारण करती हैं । इसलिए वो भी कार्तिकेय की माता होने का गौरव प्राप्त करती हैं।

कैसे पृथ्वी पर आईं गंगा :

वाल्मीकि रामायण में मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण की कथा भी विश्वामित्र जी श्री राम को सुनाते हैं । इस कथा का वर्णन कम्ब ने भी अपनी तमिल रामायण में किया है और महाभारत में भी इस कथा का वर्णन है । इस कथा के अनुसार अयोध्या के पूर्व सम्राट राजा सगर के 60 हजार पुत्रों के मां गंगा के द्वारा उद्धार की कथा है ।

राजा सगर के पुत्रों का उद्धार :

एक समय राजा सगर अयोध्या में राज करते थे । उनकी पहली पत्नी विदर्भ की थी जिनसे उन्हें असमंजस नामक पुत्र की प्राप्त हुई । उनकी दूसरी पत्नी भगवान गरुड़ की बहन थी  ।इनसे सगर को 60 हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई । एक बार जब राजा सगर अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे तो उनके पराक्रम से डर कर इंद्र ने उनका अश्व चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में रख दिया । राजा सगर के 60 हजार पुत्रों ने अश्व को खोजने के लिए पृथ्वी की खुदाई कर दी जिससे सागर या समुद्र की उत्पत्ति हो गई । सगर के पुत्रों को जब यह पता चला कि कपिल मुनि के आश्रम में यज्ञ का अश्व है तो उन्होंने कपिल मुनि के साथ लड़ाई कर ली । इसके बाद कपिल मुनि ने उन सभी पुत्रों को भस्म कर दिया । इन पुत्रों के भस्म समुद्र के अंदर विसर्जित हो गए लेकिन इन्हें मुक्ति नहीं मिली । इसके बाद अयोध्या में ही राजा भगीरथ राजा बने तब उन्होंने अपने साठ हजार सगर के पुत्र और अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए ब्रम्हा की तपस्या की । तब भगवान ब्रम्हा ने उनसे मां गंगा की तपस्या कर उन्हें धरती पर उतारने के लिए कहा । भगीरथ ने मां गंगा को प्रसन्न कर लिया लेकिन प्रश्न यह खड़ा हो गया कि मां गंगा की धारा को पृथ्वी पर उतरते वक्त उसके वेग को कौन सहन कर सकेगा । यह शक्ति भगवान शिव के अलावा किसी के पास नहीं थी । फिर भगीरथ ने शिव की तपस्या कर उन्हें भी प्रसन्न कर लिया ।

एक नहीं कई हैं गंगा :

इसके बाद मां गंगा जब आकाश से पृथ्वी पर उतरने लगी तो भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया ।  गंगा को ब्रम्हा ने अपने कमंडल से मुक्त किया और गंगा बड़े वेग से धरती पर गिरने लगीं। उनके वेग को कम करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में कैद कर लिया औऱ फिर गंगा जल को एक सरोवर मे छोड़ दिया। इस सरोवर को बिन्दु सरोवर कहते हैं। मां गंगा की इस सरोवर से सात धाराएं निकली ।  पूर्व दिशा में तीन धाराएं निकली जिन्हें हाल्दिनी, नलिनि और पावनी कहते हैं। इन तीनों धाराओं का सम्मिलित रुप ही आज की ब्रम्हपुत्र नदी है। पश्चिम की तरफ भी तीन धाराएं निकली जिन्हें सचक्षु, सीता और सिन्धु निकली। इन तीनों धाराओं से आज की सिन्धु नदी निकली है। आखिरी सातवीं धारा गंगा भगीरथ के पीछे पीछे चलीं और जहां जहां वो गए वहीं वहीं वो मार्ग बनाती हुई चली और समुद्र के पास पहुंच कर सगर के साठ हजार पुत्रों का कल्याण कर दिया। महाभारत मे भी गंगा एक बार फिर देवी के रुप में शांतनु की पत्नी बनी और आठ वसु पुत्रों में सात वसु पुत्रों को मोक्ष दिलाया। सातवें पुत्र ही गंगापुत्र भीष्म के रुप में प्रसिद्ध हुए। इस प्रकार सनातन धर्म में मां गंगा तीनों देवों ब्रम्हा, विष्णु और महेश से जुड़ी हुई हैं। चारो युगों में कल्याणकारी हैं और तीनों लोकों के लिए कल्याण कारी हैं।

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